वनस्थली विद्यापीठ का परिचय देते हुए उसके लक्ष्य एवं उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए ।
वनस्थली विद्यापीठ ( Banasthali Vidyapeeth ) : बनस्थली विद्यापीठ राजस्थान के जयपुर से 45 किलोमीटर दूर ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है । बनस्थली विद्यापीठ की स्थापना 1935 में पं . हीरालाल शास्त्री ने की थी । बनस्थली विद्यापीठ की स्थापना का सम्बंध हीरालाल शास्त्री के परिवार की एक दुःखद घटना से जुड़ा हुआ है ।
1934 ई . में जब उनकी पुत्री शान्ताबाई 12 वर्ष की थी, उसमें लड़कियों को पढ़ाने की इच्छा व्यक्त की और शिक्षालय की स्थापना के लिए उसने अपनी हाथें से 500-600 कच्ची ईटें भी तैयार कर ली थी । लेकिन शांताबाई रूणावस्था में अप्रैल 1935 में स्वर्ग सुधार गई । इस दुःख से पीड़ित होकर हीरालाल शास्त्री ने शान्तीबाई की स्मृति को बनाए रखने के लिए 1935 में शिक्षा कुटीर की स्थापना की ।
1936 ई . में इसक पुनः नाम संस्करण हुआ और इसे राजस्थान बालिका विद्यालय के नाम से जाना जाने लगा । 1942-43 ई . में यही राजस्थान बालिका विद्यालय वनस्थली विद्यापीठ में परिवर्तित हो गया और आज तक यह इसी नाम से जाना जाता है । अब यह उच्च शिक्षा का केन्द्र है । इसे सरकार ने विश्वविद्यालय के रूप में स्वीकार कर लिया है ।
बनस्थली विद्यापीठ के लक्ष्य एवं उद्देश्य ( Aims and objective of Banasthali Vidyapeeth ) : -
बनस्थली विद्यापीठ बालिकाओं के बहुमुखी विकास के लिए प्रसिद्ध है । बनस्थली विद्यापीठ में छात्राओं के शारीरिक , मानसिक , सामाजिक , सांस्कृतिक , नैतिक , व्यवसायिक, आध्यात्मिक सभी प्रकार के विकास पर बल दिया जाता है । बनस्थली विद्यापीठ के लक्ष्य एवं उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
1. बालिकाओं का सर्वांगीण विकास : -
बालिकाओ में सर्वांगीण विकास की पूर्ति के लिए विद्यापीठ में बालिकाओं में पढ़ाई के अतिरिक्त गृह शिल्प , गृह प्रबन्धन और गृह व्यवस्था के कार्य , ललित कलाओं और उद्योगों का शिक्षण , शारीरिक व्यायम आदि सिखाए जाते हैं । विद्यापीठ के दूसरे कार्य विवरण ( 1935-36 ) में लिखा है कि “ हमारी योजना बालिकाओं को सर्वतोमुखी शिक्षाप्रद करना है जिससे कि वे सुयोग्य नारी बन सकें । "
2. चारित्रिक विकास : -
बालिकाओं में चारित्रिक विकास करने के लिए सार्वजनिक जीवन व्यतीत करने की प्रवृत्ति , भारतीय आदर्शों का अनुपालन निडरता , सादगी , वीरता एवं साहस की प्रवृत्ति उत्पन्न करना इस विद्यापीठ का मुख्य उद्देश्य है । विद्यापीठ के पहले कार्य विवरण में कहा गया है कि बालिकाओं में चरित्र संगठन की ओर विशेष ध्यान देते हुए छात्राओं में सार्वजनिक वृत्ति का विकास किया जाना चाहिए ।
3. मर्यादापूर्ण स्त्री स्वतंत्रय की भावना का विकास : -
विद्यापीठ में स्त्री मय को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है । वनस्थली विद्यापीठ पाश्चात्य तथा पूर्व सभ्यता के समन्वय को लेकर आगे बढ़ा ।उसका लक्ष्य भारतीय नारी को पर्दा प्रथा , बेधन मुक्त तथा रूढ़ियों एवं परम्पराओं से मुक्त करना चाहता है ।उसका ध्येय नारी की स्वतंत्रता अपनी मर्यादा के भीतर हो ऐसी चेतना बालिका में जागृत करना है ।
4. देशप्रेम और स्वतंत्र राष्ट्रीयता का विकास : -
वनस्थली विद्यापीठ देशप्रेम और स्वस्थ राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने , सामाजिक सेवा और नागरिकाता की क्रियाशीलता भावना तैयार करने , जीवन दृष्टि की सर्वोच्च परम्पराओं को बनाए रखने , यथासंभव नौकरों पर आश्रित रहे बिना अपना काम अपने हाथसे करने की आदत को प्रोत्साहित किया जाएं
5. बाह्य परीक्षाओं से मुक्ति : -
शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तिगत की पूर्णता और उसका सर्वागीण विकास करना होना चाहिए , केवल परीक्षा पास करना नहीं ।विद्यापीठ शिक्षा को वाह्य परीक्षाओं और बंधनों से मुक्ति दिलाना चाहता है जिससे बालिकाओं में स्वतंत्रा से अपना संतुलित विकास करने का अवसर मिल सके ।इसलिए विद्यापीठ में व्यवहारिक और स्वतंत्र कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं ।
6. व्यवहारिक मूल्याकंन की पद्धति : -
शिक्षा पद्धति में तथा छात्राओं के मूल्याकंन के सम्बंध में विद्यापीठ का विश्वास है कि शिक्षा से तत्काल मिलने वाली सफलता की अपेक्षा दृष्टिकोण और अन्तर्दृष्टिकोण का तथ व्यक्तित्व को दबाने वाली उस अनुशासन के भाव की अपेक्षा कर्त्तव्य और जिम्मेदारीतथा आत्म - विश्वास के भाव का अधिक महत्व है ।इसी को यान में रखते हुए विद्यापीठ में व्यवहारिक और स्वतंत्र कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं और व्यवहारिक मूल्याकंन किया जाता है ।
7. सहयोग एवं सामूहिकता की भावना का विकास
सहयोग और सामूहिकता की भावनाएँ बालिकाओं में जागृत करने के लिए विद्यापीठ ने छात्रावास को पूरा घर का सा रूप दिया । छात्रावास व्यवस्था , सामुदायिक विकास योजनाओं द्वारा छात्राओं में सहयोग , सहकारिता और स्वावलम्बन के गुण अर्जित करने का अवसर विद्यापीठ में दिया जाता है । ज्ञान देकर
8. आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक ज्ञान का समंजन : -
वनस्थली विद्यापीठ में आध्यात्मिक विचारधारा लेकर मानव धर्म और वैदिक धर्म की शिक्षा देने का कार्य किया जाता है । आधुनिक विज्ञान का उसका आध्यात्मवाद से समंजन स्थापित किया जाता है ।
9. संरक्षकों से संपर्क : - बालिकाओं के संरक्षकों से भी यथाशक्ति संपर्क रखने का प्रयत्न किया जाता है । बालिकाओं के अभिभावकों एवं संरक्षकों को विद्यापीठ के कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाता है तथा वर्ष में एक बार संरक्षक सम्मेलन भी किया जाता है ।
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