बौद्धकाल में स्त्री शिक्षा की स्थिति - Status of female education in Buddhist period

बौद्धकाल में स्त्री शिक्षा की स्थिति | Status of female education in Buddhist period in Hindi

बौद्धकाल नारी शिक्षा सिद्धान्तों के अनुसार ही स्त्री को हेय व त्याजक समझा जाता था । भिक्षु आजन्म नैष्ठिक ब्रह्मचारी रहते थे। किन्तु गृहस्थों के यहाँ भिक्षान्न के लिए जाने के समय स्त्रियों का सम्पर्क आवश्यक समझते थे । भिक्षु इन्हीं मठों और विहारों में रहकर पवित्र जीवन व्यतीत करते थे । शिक्षा के प्रारम्भिक दिनों में स्त्री शिक्षा को बहुत प्रोत्साहन मिला ।


स्त्रियों के लिए अलग मठों का निर्माण हो गया । स्वयं भगवान बुद्ध ने अपनी विमाता महाप्रजापति को जो पाँच सौ शाध्य क्षत्राणियों सहित संग में प्रविष्ट हुई थी संघ में सम्मिलित कर लिया था । कालान्तर में उन्होंने अपने शिष्य आनन्द के आग्रह से संघ में स्वियों के प्रवेश करने की अनुमति दे दी स्त्रियों पर संघ के कटिन नियम लागू थे तथा भिक्षुणियों का स्थान मिक्षुओं की अपेक्षा निम्न समझा जाता था ।


उनके लिए निर्धारित आठ नियमों में प्रथम यह था कि सौ वर्ष की पुरानी भिक्षुणी भी एक नये भिक्षु से प्रकाश ग्रहण करे । नव भिक्षुणी का परीक्षा काल दो वर्ष का होता था । भिक्षुणिओं को भिक्षु से हमेशा अलग रहना होता था और एक विशेष भिक्षु उसे प्रतिमास दो बार किसी अन्य भिक्षु के समक्ष शिक्षा व उपदेश दिया करता था तथा वह आचार्य के साथ अकेले भी नहीं रह सकती थी ।


बौद्ध संघ ने भारतीय नारी जाति के सांस्कृतिक विकास व सामाजिक उन्नति की ओर भी ध्यान दिया है । भगवान बुद्ध की शिष्याओं में ' भेरी ' शिष्याएँ भी हैं तथा उन्होंने अपनी सुयोग्य 13 थेरियों का उल्लेख स्वयं किया है । इनमें धम्यदिन्ना प्रमुख थीं । चेरियों के धार्मिक पद्यों का संकलन ही ' थेरी गाथा ' नामक ग्रन्थ में हुआ है । धार्मिक आचरण व विद्वत्ता की दृष्टि से भिक्षुणियाँ भिक्षुकों के सम्मानित संघ से किसी भी प्रकार पीछे नहीं रहना चाहती थीं । इस प्रकार उनमें अध्ययनप्रियता स्वाभाविक ही थी और उनका मानसिक परिज्ञान भी बहुत उच्च कोटि का था । 


बौद्धकाल शिक्षा के गुण और दोष | Bauddhakaal Shiksha ke Gun aur Dosh


बौद्धकाल शिक्षा के गुण -


बौद्धकालीन शिक्षा में निम्नलिखित गुण थे-

( 1 ) शिक्षा की व्यवस्था काफी अच्छी थी । वह पूर्ण रूप से व्यवस्थित थी । 

( 2 ) यद्यपि एक मठ में अनेक शिष्य सामूहिक रूप में रहते एवं पढ़ते थे , तो भी शिक्षक एवं शिष्य के मध्य बड़ा निकट का तथा गहरा सम्बन्ध रहता था , जिससे वे शिक्षा को शिष्य के अनुकूल प्रदान करते थे ।

( 3 ) बालकों को कठोर नियमों में रखकर उन्हें बाह्य तथा आन्तरिक दोनों पहलुओं में अनुशासित किया जाता था । 

( 4 ) बौद्ध शिक्षा के परिणामस्वरूप ही गृहस्थ लोग भी संयम से रहते थे । 

( 5 ) शिक्षा के कुछ बहुत बड़े केन्द्र विकसित हो गये थे , जहाँ लोग देश - विदेश से अध्ययन करने आने लगे थे , जैसे - नालन्दा तथा तक्षशिला 


बौद्धकाल शिक्षा के दोष - 

बौद्धकाल शिक्षा में निम्नलिखित दोष -

( 1 ) बौद्धकालीन शिक्षा में भी धर्म का बहुत बोलबाला था । इसलिए भौतिक उन्नति की ओर ध्यान नहीं दिया गया । 

( 2 ) कला - कौशल को शिक्षा में कोई स्थान नहीं मिला । इसलिए वह पतनोन्मुख हो चली । 

( 3 ) कालान्तर में जब मठों में स्त्रियों को प्रवेश मिलने लगा तो मठ धीरे - धीरे व्यभिचार के अड्डे बनते गये । इसका जनसाधारण पर भी बुरा प्रभाव पड़ा ।

( 4 ) सैनिक शिक्षा की व्यवस्था का तो प्रश्न ही नहीं था , क्योंकि इस धर्म का मूल मन्त्र अहिंसा था । परिणामस्वरूप नालन्दा जैसा विख्यात विश्वविद्यालय हिंसात्मक आक्रमण से नष्ट हो गया । 

( 5 ) स्त्री - शिक्षा का भी प्रसार नहीं हुआ , वरन् उसकी दशा और हीन होती चली गयी । 


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