Teacher Evaluation: अध्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता

अध्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता (Need for Teacher Evaluation)

Teacher Evaluation: अध्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता - अध्यापक का कार्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। प्रसिद्ध विद्वान एच. जी. वैल्स (H. G. Wells) ने उसके कार्य का महत्त्व देखते हुए उसे 'राष्ट्र का निर्माता' कहा है। शिक्षा अधिकारी, नेता, राजनीतिज्ञ और अन्य इस बात को स्वीकार करने लगे हैं कि अध्यापक को भारत के शैक्षिक, सामाजिक, यहाँ तक कि राजनैतिक पुनर्निर्माण में महत्त्वपूर्ण कार्य करना है।


अध्यापक हो सम्पूर्ण शिक्षा-पद्धति का निर्देशन एवं संचालन करता है जो कि अन्त में राष्ट्र के बहुमुखी विकास को प्रभावित करती है। अध्यापक वास्तव में राष्ट्र-निर्माता हैं। वह जाति का प्रकाश स्तम्भ है। उसी पर विद्यालय, ग्राम, राष्ट्र और वास्तव में मानव जाति का भविष्य निर्भर है। कितनी ही सुन्दर इमारत, शक्तिशाली पाठ्यक्रम, मूल्यवान उपकरण होंवे तब तक उपादेय नहीं हो सकते, जब तक ऐसे अध्यापक न हों, जो अपने व्यवसाय की महानता और सम्बन्धित उत्तरदायित्वों से सुपरिचित न हों। अध्यापक छात्र की आदतों, रुचियों, व्यवहारों और चरित्र आदि बनाने और बदलने में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। इसके हाथ में बच्चों की सुरक्षा एवं मार्गदर्शन का श्रेष्ठतम कार्य दिया गया है।


माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार, "हमें पूर्ण विश्वास है कि इस अपेक्षित शिक्षा पुनर्निर्माण में अध्यापक का स्थान उसके व्यक्तिगत गुण, शैक्षिक योग्यता तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण पर है। विद्यालय की प्रसिद्धि और समाज पर इसका प्रभाव, कार्य करने वाले अध्यापकों पर ही निर्भर करता है।"


हेनरी आदम का मत है-"माता-पिता जन्म देते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ नहीं करते। एक हत्यारा जीवन का अन्त करता है और वहीं उसके कार्य की इतिश्री हो जाती है। एक अध्यापक का प्रभाव अन्त तक होता है। वह कभी नहीं कह सकता कि उसका प्रभाव कहाँ समाप्त होता है।"


ऊपर लिखित विवरण से स्पष्ट है कि अध्यापक का कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण है अतः यह आवश्यक है कि उसके कार्य का मूल्यांकन किया जाए।


अध्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य (Aims of Teacher Evaluation) 

1. अध्यापकों द्वारा श्रेष्ठ कार्य करने पर उन्हें प्रोत्साहित करना।

2. अध्यापक की शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में पायी जाने वाली कमियों को दूर करना।

3. अध्यापक का छात्र के व्यक्तित्व निर्माण में योगदान को परखना। 

4. अध्यापक की सहायता करना ताकि वे अपने कार्य का अधिक कुशलता से संचालन कर सके।

5. अध्यापकों की पहलशीलता को पहचानना।


अध्यापक मूल्यांकन में आधार बिन्दु (Focal Points for Teacher Evaluation)


अध्यापक का प्रमुख उत्तरदायित्व-अध्यापक का मौलिक कार्य बालकों के अधिगम अनुभवों को इस प्रकार पहल देना या निर्देशित करना है कि वे अपनी क्षमता के अनुसार अपना बौद्धिक, सौन्दर्यात्मक, चारित्रिक, शारीरिक एवं भावनात्मक विकास करके समाज के उपयोगी सदस्य बन सकें।


अध्यापक के मुख्य उत्तरदायित्वं इस प्रकार हैं-


1. छात्रों का चारित्रिक विकास ।

2. पाठ्यक्रम का विकास एवं संचालन।

3. व्यक्तिगत अन्तरों का निराकरण एवं विकास स्तर ।

4. प्रभावशाली शिक्षण अधिगम।

5. उचित कक्षा प्रबन्ध ।

6. छात्रों के कार्यों का मूल्यांकन ।

7. व्यवसाय सम्बन्धी मार्गदर्शन ।

8. प्रभावी सामुदायिक सम्बन्ध ।

9. सम्पूर्ण विद्यालय कार्य-साधकता।

10. छात्रों का सार्वजनिक परीक्षा में परीक्षा परिणाम।

11. अन्य साथियों के साथ बर्ताव।


अध्यापक मूल्यांकन विधियाँ (Methods of Teacher Evaluation)


1. अध्यापकों द्वारा पढ़ाये जाने वाले छात्रों के परीक्षाफल (Examination Result Based Rating)

2. स्वयं मूल्यांकन (Self-Rating)

3. छात्रों द्वारा अध्यापक के कार्य का मूल्यांकन (Student Rating)

4. साथी अध्यापकों द्वारा मूल्यांकन (Peer Rating)

5. शिक्षा निरीक्षकों द्वारा मूल्यांकन (Inspector Rating)

6. प्रधानाचार्य द्वारा मूल्यांकन (Head's Rating)

7. शिक्षा बोर्डों द्वारा मूल्यांकन (Education/Examination Board Rating)

8. समुदाय द्वारा मूल्यांकन (Community Rating)


मूल्यांकन तथा क्रम निर्धारण (रेटिंग) (Evaluation and Rating)


मूल्यांकन के पश्चात् क्रम-निर्धारण की अवस्था है। क्रम निर्धारण का अर्थ है किसी व्यक्ति या वस्तु में किसी गुण अथवा गुणों की मात्रा को आँकना। यह ऐसे गुणों जैसे प्रयत्नशीलता, सहयोगिता, अभिवृत्ति, आज्ञा-पालन, अवधान, कर्तव्यनिष्ठा आदि के मूल्यांकन की विधि है। मूल्यांकन संख्या, प्रतिशत या वर्णों द्वारा दर्शाया जाता है अथवा भावात्मक विवरणों द्वारा; प्रत्येक गुण की व्यावहारिक परिभाषा करके उसे मापन का एक आयाम मान लिया जाता है।


प्राय: अध्यापकों के मूल्यांकन के रेटिंग में निम्न शब्दावली का प्रयोग किया जाता है-


1. उत्कृष्ट (Excellent)

2. अति उत्तम (Very Good)

3. अच्छा (Good)

4. सन्तोषजनक (Satisfactory)

5. असन्तोषजनक (Below Satisfactory)


छात्रों द्वारा अध्यापक श्रेणी निर्धारण अथवा रेटिंग (Pupil Rating of Teachers)


छात्रों द्वारा अध्यापक रेटिंग के लाभ


1. छात्र उपभोक्ता के रूप में हैं, अत: उनकी रेटिंग में बल होगा।

2. छात्रों की रेटिंग विश्वसनीय है।

3. छात्र रेटिंग प्रक्रिया में बहुत कम खर्च आता है।

4. छात्र रेटिंग विश्वसनीय कुंजी का कार्य सम्पन्न करती है। उससे पता चलता है कि किस प्रकार के शिक्षण-अधिगम की अध्यापकों से आशा रखनी चाहिए।


छात्र रेटिंग से हानियाँ


1. स्कूली अवस्था पर छात्र परिपक्व नहीं होते। अतः उन्हें यह उत्तरदायित्व नहीं देना चाहिए।

2. छात्र विषय विशेषज्ञ नहीं होते हैं।

3. प्राय: छात्र उन अध्यापकों को कम रेटिंग देते हैं जो कठोर स्वभाव के होते हैं।

4. छात्रों द्वारा रेटिंग प्रविधि को अध्यापक प्रायः ठीक नहीं मानते हैं। ये यह नहीं चाहते कि उनके कार्य का निरीक्षण छात्रों द्वारा किया जाए।


छात्र रेटिंग के लिए प्रश्नावली के बिन्दु


1. अध्यापक की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया।

2. अध्यापक की शिक्षण-शैली।

3. अध्यापक का विषय पर अधिकार ।

4. अध्यापक द्वारा पाठ्य-वस्तु की व्याख्या करना।

5. अध्यापक के प्रश्नोत्तर ।

6. अध्यापक की पढ़ाने की गति ।

7. अध्यापक द्वारा दृष्टान्तों का प्रयोग ।

8. अध्यापक द्वारा शैक्षिक तकनीकों का प्रयोग।

9. अध्यापक द्वारा गृह-कार्य तथा कक्षा कार्य की जाँच ।

10. अध्यापक का पक्षपात रहित व्यवहार ।

11. अध्यापक की कक्षा प्रबन्ध में दक्षता।

12. अध्यापक का व्यक्तित्व ।

13. अध्यापक की छात्रों के कल्याण में रुचि ।

14. अध्यापक का कक्षा में समय पर आना।

15. अध्यापक द्वारा कक्षा में अनुशासन रखना।


नोट-छात्रों द्वारा रेटिंग गुप्त रूप से रखा जाना चाहिए। प्रश्नावली के उत्तरों पर उन्हें हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य न किया जाए।


अध्यापक का समकक्ष अध्यापकों (Peer Teachers) द्वारा रेटिंग

पीयर रेटिंग का अर्थ-पीयर रेटिंग का अर्थ है अध्यापक के गुणों को समकक्ष अध्यापकों द्वारा आँकना तथा क्रमबद्ध करना। आँकने वाले अध्यापक उसी संस्था के तथा अन्य संस्थाओं के भी हो सकते हैं। वे अध्यापक के व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार देते हैं। वे आँकते हैं कि अध्यापक में सहयोगिता, प्रयत्नशीलता, आज्ञापालन आदि गुण कितनी मात्रा में हैं। अध्यापकों द्वारा साथी अध्यापकों का मूल्यांकन विश्वसनीय तथा अविश्वसनीय दोनों रूप ले सकता है। वस्तुनिष्ठ होना बहुत कठिन है।


इस विधि को इस कारण मान्यता दी जाती है क्योंकि साथी अध्यापक शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के विभिन्न पक्षों से परिचित होते हैं। साथ ही एक स्थान पर कार्य करने से उन्हें अपने साथियों के गुणों तथा सीमाओं का भी ज्ञान होता है। परन्तु इस विषय पर शोध का बहुत अभाव है।


पीयर रेटिंग के लाभ

1. साथी अध्यापकों को अपने विषय के बारे में उपयुक्त जानकारी होती है। वे विषय की बारीकियों से परिचित होते हैं।

2. समीपता के कारण साथी अध्यापक एक-दूसरे को भली-भाँति जानते हैं। 

3. पीयर मूल्यांकन से समाज में अध्यापक का वृत्तिक स्तर ऊँचा उठता है क्योंकि अध्यापक स्वयं ही अपने अध्यापक साथियों के कार्य का मूल्यांकन करते हैं।


पीयर रेटिंग की हानियाँ

1. पीयर रेटिंग की माँग है कि सभी अध्यापक खुले मन के हों न कि संकीर्ण विचारों के।

2. मूल्यांकन में व्यक्तिनिष्ठता की व्याप्तता रहती है तथा वस्तुनिष्ठता की कमी।

3. पीयर रेटिंग विधि के अपनाने के लिए बहुत प्रशिक्षण की आवश्यकता है ?

4. परम्परागत मान्यताओं के अनुसार इस प्रकार के मूल्यांकन को कोई स्थान नहीं मिलना चाहिए।


निरीक्षकों द्वारा अध्यापकों के कार्य का रेटिंग प्रपत्र


1. कक्षा का भौतिक वातावरण तथा स्थिति

1. क्या अध्यापक ने कक्षा में प्रकाश की ओर ध्यान दिया ?

2. क्या कक्षा में डैस्क आदि की व्यवस्था उचित थी ?

3. क्या कक्षा में छात्रों के बैठने का उचित प्रावधान था ?


II. अध्यापक की वेशभूषा

क्या अध्यापक ने ठीक प्रकार के वस्त्र पहने हुए थे ?


III. अध्यापक का व्यवहार

1. क्या अध्यापक ने उचित शिष्टाचार को निभाया ?

2. क्या अध्यापक ने छात्रों को सम्बोधन करते हुए उचित भाषा का प्रयोग किया ?

3. क्या अध्यापक का बर्ताव छात्रों के प्रति स्नेह तथा सहानुभूतिपूर्ण था ?


IV. अध्यापक का व्यक्तित्व

1. क्या अध्यापक का स्वर स्पष्ट, आकर्षक तथा प्रभावशाली था ?

2. क्या अध्यापक ने आत्मविश्वास का परिचय दिया ?


V. कक्षा में अनुशासन

1. क्या छात्र कक्षा में उचित ढंग से बैठे थे ?

2. क्या छात्र उचित ढंग से प्रश्नों का उत्तर देते थे तथा प्रश्न करते थे ? 

3. क्या कक्षा में अध्यापक का छात्रों पर पूरा नियन्त्रण था ?


VI. कक्षा में शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया

1. क्या अध्यापक ने कक्षा में पाठ की उचित ढंग से प्रस्तावना रखी ?

2. क्या पाठ्य-विषय को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया ?

3. क्या छात्र ने विभिन्न प्रकार के प्रश्न उचित ढंग से पूछे ? 

4. क्या छात्रों को प्रश्न करने का उचित अवसर दिया गया ?

5. क्या छात्रों को प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित किया गया ?

6. क्या प्रश्न कई छात्रों से पूछे गये ?

7. क्या प्रश्न उपयुक्त थे ?

8. क्या छात्र सारा समय कार्य में व्यस्त रहे ?

9. क्या अध्यापक पाठ को रोचक तथा प्रभावी बनाने में सफल हुआ ?

10. क्या बच्चों ने यह प्रदर्शित किया कि उन्हें समस्या पर ठीक प्रकार से चिन्तन करना आ गया है ?

11. क्या अध्यापक पाठ में मौलिकता लाने में समर्थ हो सका ?

12. क्या छात्रों तथा अध्यापकों के कार्य में उचित नेतृत्व था ?

13. क्या पाठ-योजना इकाइयों में विभाजित की गई ?

14. क्या पाठ को दोहराया गया ?


VII. दृश्य सामग्री का प्रयोग

1. क्या उचित मात्रा में तथा उचित सहायक सामग्री का प्रयोग किया गया ? 

2. क्या श्यामपट का उचित ढंग से उपयोग किया गया ?

3. क्या पाठ का सार श्यामपट पर छात्रों के सहयोग से किया गया ?


समुदाय रेटिंग (Community Rating)

कोई भी विद्यालय समुदाय या समाज से अलग नहीं रह सकता। विद्यालय की स्थापना ही समाज, अपने लिए तथा अपने संसाधनों द्वारा करता है। समाज की प्रगति करना ही स्कूल की स्थापना का मुख्य उद्देश्य होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही


अध्यापक की नियुक्ति की जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो प्राय: स्कूलों के लिए भूमि ग्राम पंचायत आदि द्वारा ही दी जाती है। अत: स्कूल के कार्य का मूल्यांकन समुदाय को भी करना चाहिए। स्कूल के कार्य के मूल्यांकन से तात्पर्य अध्यापकों के कार्य का मूल्यांकन करना तथा रेटिंग करना है।


इस प्रकरण में प्रश्न उठता है कि समुदाय का प्रतिनिधित्व कौन करे ? समुदाय के सारे लोग तो रेटिंग नहीं कर सकते, अतः उनके चुने हुए प्रतिनिधि ही अध्यापकों के कार्य का रेटिंग कर सकते हैं। इसी सन्दर्भ में प्रश्न उठता है कि किस प्रकार प्रतिनिधि रेटिंग करें। क्या वे शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में दक्ष हैं ? सम्भवतः नहीं।


अतः यद्यपि सैद्धान्तिक रूप से यह मान्य है कि समुदाय अध्यापकों के कार्यों का मूल्यांकन करें तथा उसके पश्चात् रेटिंग, परन्तु वास्तविक परिस्थितियों में यह सम्भव प्रतीत नहीं होता है। फिर भी समय-समय पर समुदाय के सदस्य तथा अभिभावक विद्यालय जाकर अध्यापकों से सम्पर्क करें, अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के बारे में जानकारी प्राप्त करें तथा अपने सुझाव भी दें।


अभिभावक समय-समय पर बच्चों के लिखित कार्य आदि पर भी नजर रखें जिससे उन्हें ज्ञात हो जाए कि विद्यालय में नियमित तौर पर कार्य हो रहा है तथा अध्यापक बच्चों में रुचि रखते हैं।


प्रधानाचार्य द्वारा अध्यापक के कार्य का मूल्यांकन तथा रेटिंग (Evaluation and Ratings of Teachers by the Head)


प्रधानाचार्य न केवल मूल्यांकनकर्ता अपितु अध्यापकों के मार्गदर्शक तथा परामर्शदाता के रूप में भी कार्य करता है। उसे अपने साथ कार्यरत अध्यापकों का विश्वास जीतना होगा कि वह उनका हित-चिन्तक है न कि आलोचक। उसका कार्य बहुत ही कठिन है। वह केवल अध्यापकों की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का ही निर्देशन नहीं करता, बल्कि उनके सभी कार्यों का जो वे स्कूल में वे करते हैं, उनका मूल्यांकन करता है।


शिक्षा विभाग के निरीक्षक केवल वर्ष या दो वर्ष में एक बार शिक्षण कार्य का निरीक्षण करते हैं। अतः यह मूल्यांकन प्रभावी नहीं होता। प्रधानाचार्य का उत्तरदायित्व है कि वह अध्यापकों के समस्त कार्यों का मूल्यांकन करें अर्थात् उनका स्कूल में समय पर आना-जाना, कक्षा में समय पर जाना, नियमित कक्षा में जाना तथा कार्य करना, गृह-कार्य को जाँचना, पाठ्यान्तर क्रियाओं में भाग लेना, परीक्षा-पत्र बनाना तथा उत्तर-पुस्तिकाओं की जाँच करना, अभिभावकों से स्नेहपूर्वक बातचीत करना आदि।


इन सबका मूल्यांकन करने के लिए तथा सुझाव देने के लिए प्रत्येक अध्यापक सम्बन्धी उसे अपनी डायरी बनानी चाहिए तथा उसमें मूल्यांकन सम्बन्धी विचार लिखने चाहिए। तदुपरान्त वे स्नेहपूर्वक तथा बिना किसी तनाव आदि के अध्यापक से बातचीत करें।


संस्थागत सुधार में रेटिंग का योगदान (Use of Rating for Institutional Improvement)


रेटिंग का आधार मूल्यांकन है। अतः मूल्यांकन विश्वसनीय तथा वस्तुनिष्ठ होना चाहिए। मूल्यांकन एक ऐसी प्रणाली है जिसमें जाँच के परिणाम का आधार भविष्य की योजना बनाया जाता है। मूल्यांकन यह भी निश्चित करता है कि जिस व्यक्ति का मूल्यांकन किया जाता है, उसका स्वयं विकास कैसे हो रहा है और वह दूसरों के विकास के लिए किस प्रकार प्रयत्नशील है।


विद्यालय का मान तथा स्तर प्रधानाचार्य तथा अध्यापकों की कार्यकुशलता, सहयोग तथा निष्ठा आदि पर निर्भर है। निरीक्षक को भी सदैव इसी बात को निरीक्षण के समय ध्यान में रखना चाहिए। मुख्याध्यापक तथा निरीक्षकों की योग्यता तथा दूरदर्शिता की परीक्षा तभी होती है जब वे अध्यापकों की योग्यताओं, कमियों तथा सीमाओं को परखकर उन्हें विद्यालय के हित में जुटाने के प्रयास करते हैं।


मूल्यांकन तथा रेटिंग की सफलता के लिए आवश्यक है कि अध्यापकों को झिड़कने, डराने, कमजोर करने की परम्परागत प्रथा को छोड़कर 'सहयोग, सद्भावना तथा विश्वास' नीति को अपनाया जाए। उपलब्धि का श्रेय मुख्याध्यापक को सभी में बाँटना चाहिए। 'मैं' के स्थान पर 'हम' शब्द का ऐसे प्रकरणों में उपयोग करना चाहिए। 'प्रेरणा' तथा 'प्रोत्साहन’


शब्दों का प्रयोग बहुत लाभदायक सिद्ध होता है। खेल की भावना (Sportsman's Spirit) सही अर्थों में मूल्यांकन तथा रेटिंग का आधार बनायी जानी चाहिए तभी संस्था की प्रगति हो सकती है।


विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, दिल्ली (University Grants Commission, New Delhi) ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में स्तरों की जाँच-परख तथा रेटिंग के लिए एक 'राष्ट्रीय प्रत्यानयन तथा निर्धारण परिषद्' (National Assessment and Accreditation Council-NAAC) की स्थापना की है। इस संस्था द्वारा मूल्यांकन तथा रेटिंग से सम्बन्धित मानक तय किये जाते हैं तथा उनके अनुसार उच्च शिक्षा संस्थाओं का रेटिंग किया जाता है।


इसी प्रकार स्कूल स्तर पर भी एक ऐसी परिषद् की आवश्यकता है। इसका नाम 'National Assessment and Accreditation School Council' रखा जा सकता है।


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