बौद्ध कालीन शिक्षा ( Buddhist education ): के प्रमुख केन्द्र, विशेषताएँ तथा उद्देश्य
बौद्ध कालीन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र संघ थे- चूंकि बौद्धकालीन धर्म यानी बौद्ध धर्म का विकास संघों के रूप में ही था, इसलिए बौद्धकालीन शिक्षा के केन्द्र संघ ही रहे। यह बात भी स्मरणीय है कि चूँकि बौद्ध धर्म का आविर्भाव वैदिक धर्म के खिलाफ एक क्रांति था , एक सुधार था , इसलिए बौद्धकालीन शिक्षा पूर्णरूपेण भिन्न थी । यही कारण है कि बौद्ध शिक्षा न वैदिक अध्ययन पर निर्भर थी और न बौद्ध शिक्षा प्रदान करने के ठेकेदार ब्राह्मण ही थे ।
बौद्ध धर्म का विकास संघों के रूप में हुआ था । इस बौद्धकालीन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र संघ ही रहे । इन संघों के अलावा और कहीं भी शिक्षा देने का कार्य होता था । इस शिक्षा में एक विचारणीय बात यह थी कि केवल संघ के श्रमणों को ही धार्मिक तथा सांसारिक शिक्षा पाने का अधिकार था इसलिए इन्हीं को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया जाता था , अन्य लोगों को नहीं । बौद्ध काल में वैदिककालीन यज्ञों का स्थान संघों ने ले लिया था । इसलिए बौद्ध संघ की पद्धति को ही बौद्ध शिक्षा पद्धति कहा जाता है ।
बौद्ध कालीन शिक्षा की विशेषताएँ बताइए।
बौद्धकालीन शिक्षा पद्धति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं -
1 . विद्यार्थित्व ( विद्यार्थी कौन ) -
बौद्धकालीन शिक्षालयों के द्वारा शिक्षा प्राप्त करने के लिए । सभी जातियों के लिए समान रूप से खुले रहते थे । विद्यार्थियों में ब्राह्मण और क्षत्रियों के लड़के अधिक होते थे । राजा - महाराजाओं से लेकर मछुओं तक के बच्चे एक साथ शिक्षा प्राप्त करते थे । हाँ , केवल चाण्डालों के पुत्रों को शिक्षालयों में प्रवेश करने का अधिकार नहीं था ।
2 . शिक्षा आरम्भ करने की उम्र-
बौद्धकाल में शिक्षा आरम्भ करने की आयु 8 वर्ष थी । विद्यालय में प्रवेश लेने के बाद विद्यार्थी को ' श्रमण ' या ' समनेर ' अथवा ' नवशिष्य ' कहा जाता था ।
3. विद्यार्थियों का चुनाव -
वैसे तो सभी जातियों के लोगों को विद्याध्ययन का पूर्ण अधिकार होता था लेकिन निम्न बातों में से कोई भी बात यदि छात्र में होती थी तो वह शिक्षा पाने के लिए अयोग्य समझा जाता था । ऐसे विद्यार्थी को विद्यालयों ( मठों ) में प्रवेश करने का अधिकार नहीं होता था-
( क ) जो किसी राजा की नौकरी करता हो ।
( ख ) जो जेलखाने से भागकर आया हो ।
( ग ) जिसे राज्य की ओर से दण्डित किया गया हो ।
( घ ) जिसे डाकू घोषित किया गया हो ।
4. प्रव्रज्या संस्कार -
वैदिककालीन शिक्षा में जिस प्रकार छात्रों का उपनयन संस्कार किया जाता था उसी प्रकार बौद्ध शिक्षा में प्रव्रज्या या प्रव्रज्या संस्कार होने के बाद ही छात्र विद्यालय में ( मठों में ) शिक्षा पाने का अधिकारी समझा जाता था ।
बौद्धकालीन शिक्षा के क्या उद्देश्य थे ?
1. ज्ञान का विकास -
महात्मा बुद्ध के अनुसार इस संसार के समस्त दुःखों का कारण अज्ञान है । अतः उन्होंने निर्वाण की प्राप्ति के लिए सच्चे ज्ञान के विकास पर बल दिया । बौद्ध शिक्षा का यह सर्वप्रमुख उद्देश्य एवं आदर्श था ।
2. चरित्र निर्माण पर बल -
महात्मा बुद्ध ने सदाचार पर बल दिया । अतएव बौद्ध शिक्षा प्रणाली में सात्त्विक जीवन एवं शुद्ध विचार छात्र जीवन का आदर्श था ।
3. व्यक्तित्व का विकास -
आत्म - सम्मान , आत्म - विश्वास एवं आत्म - नियन्त्रण के भाव विद्यार्थी में उत्पन्न किये जाते थे । नम्रता , शालीनता एवं शिष्टाचार का महत्त्व था ।
4. सामाजिक कर्त्तव्यों पर बल -
यद्यपि इस काल में जीवन का परम लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति था , फिर भी सामाजिक जीव की उपेक्षा नहीं की गयी थी ।
5. व्यावसायिक कुशलता का उन्नयन -
शिक्षा का उद्देश्य व्यावसायिक कुशलता का उन्नयन एवं कला - कौशल का विकास करना भी था ।
6. राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण एवं विकास -
राष्ट्र की संस्कृति का संरक्षण , विकास एवं प्रसार भी बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य था ।
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