Education for Democratic life : लोकतांत्रिक जीवन के लिए शिक्षा के उद्देश्य

Education for Democratic life : लोकतांत्रिक जीवन के लिए शिक्षा के उद्देश्य

विभिन्न आयोगों द्वारा निर्धारित किए गए शिक्षा के उद्देश्यों का विश्लेषण करने पर यह विभिन्न आयोगों द्वारा निर्धारित किए गए शिक्षा के उद्देश्यों का विश्लेषण करने पर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान परिस्थितियों में Education for Democratic life : लोकतांत्रिक जीवन के लिए शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित उद्देश्य हैं :-

1. व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास ( All Round Development of Personality )

देश और समाज को उन्नति सभी हो सकती है जब उसके नागरिक शारीरिक दृष्टि से देश और समाज की उन्नति सभी हो सकती है जब उसके नागरिक शारीरिक दृष्टि से देश और समाज की उन्नति तभी हो सकती है जब उसके नागरिक शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ, बौद्धिक दृष्टि से बुद्धिमान, संवेगात्मक दृष्टि से स्थिर आध् यात्मिक दृष्टि से धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से समाजसेवी हो।

प्रजातन्त्र में तो व्यक्ति की गरिमा को और भी महत्व दिया जाता हैं अतः वर्तमान परिस्थितियों में हमारी शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना होना चाहिए, जिससे भारत के भावी नागरिक आगे चलकर प्रत्येक क्षेत्र में देश का नव-निर्माण कर सकें।

2. व्यावसायिक कुशलता (Vocational Efficiency)

वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर जो सबसे बड़ा आक्षेप लगाया जाता है वह यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली बालकों को किसी व्यवसाय के लिए तैयार नहीं करती। आजादी के 62 वर्षों के बाद भी इसमें कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ, जिससे शिक्षित बेकारों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है और छात्र वर्ग में घोर असन्तोष पैदा हो रहा है।

अतः हमारी शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य हर बालक को उसकी योग्यता, क्षमता और रूचि के अनुसार व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना होना चाहिए, जिससे वह अपना जीविकोपार्जन कर सके और देश की आर्थिक उन्नति हो सके।

3. व्यापारिक शिक्षा (Practical Education)

हमारी शिक्षा प्रणाली सैद्धान्तिक और पुस्तकीय है, इसलिए अव्यावहारिक है। उसका बालक के जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसका परिणाम यह होता है कि बालक उसमें कोई रुचि नहीं लेता। अतः हमारी शिक्षा का उद्देश्य, बालक को ऐसी शिक्षा प्रदान करना होना चाहिए जो बालक के वर्तमान और भावी जीवन से किसी न किसी रूप से सम्बन्धित हो।

ऐसी शिक्षा प्राप्त करके ही बालक जीवन में प्रवेश करने के बाद सफलता प्राप्त कर सकेंगे। डॉ० आत्माराम मिश्न के शब्दों में, "वर्तमान शिक्षा प्रणाली निरो साहित्यिक बनी हुई है। यदि ज्ञान का उपयोग जीवन की परिस्थितियों में न हो सका, तो उसका क्या लाभ ? ज्ञान की मात्र बैद्धिक चेतना से क्या होगा ? उसके प्रयोग के लिए तो चाहिए क्रिया करने का कौशल और मूल्यांकन करने की संवेदनशीलता।

अतएव कौशलों और संवेगों के प्रशिक्षण पर जोर देना जरूरी होगा। व्यावसायिक शिक्षा में तो ज्ञान ही व्यावहारिकता और प्रयोगात्मकता और भी आवश्यक होती है जिससे छात्र जो सीखें उसका उपयोग वास्तविक जीवन को परिस्थितियों में करते रहें।"

4. चारित्रिक विकास (Character Development)

व्यक्ति के चरित्र का सीधा प्रभाव समाज और राष्ट्र पर पड़ता है। चरित्रवान व्यक्ति ही किसी समाज और देश की प्रगति के आधार होते है। आज हमारे देश के चरित्र का संकट है। देश के शत्रुओं को देश की गोपनीय बातों और रहस्यों को बताना, राजनैतिक शक्ति प्राप्त करके अपने को, अपने परिवार को, अपने सम्बन्धियों को और अपने राजनैतिक दल को आर्थिक लाभ पहुँचाना, उच्च पद प्राप्त करके अनैतिक और प्रष्ट आचरण करना, रिश्वत लेना, तस्करी करना आदि ऐसे कार्य हैं जो देश को प्रगति में बाधा पहुँचा रहे हैं। अतः वर्तमान परिस्थितियों में हमारी शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए कि वह नागरिकों को चरित्रवान् बनाए।

5. समाजवादी समाज की स्थापना 

भारत का उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना करना है, अर्थात् ऐसे समाज की स्थापना करनी है जहाँ सभी जाति, प्रजाति, वर्ण, सम्प्रदाय के लोगों को सभी क्षेत्रों में समान अवसर प्राप्त होंगे, किसी प्रकार की असमानता नहीं होगी, सभी को शारीरिक और आर्थिक सुरक्षा प्राप्त होगो, सभी को सुखी जोवन व्यतीत करने के समस्त अवसर प्राप्त होंगे और सभी को समस्त नागरिक सुविधाएँ प्राप्त होंगी।

यह कार्य शिक्षा के द्वारा ही हो सकता है। हमारी शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तियों में समाजवाद की भावना को विकसित करके उसे स्थायी बनाना होना चाहिए। पंडित नेहरू के शब्दों में, "मैं समाजवादी राज्य में विश्वास करता हूँ और मैं बाहता हूँ कि शिक्षा का इस उद्देश्य की ओर विकास किया जाए।"

6. भावत्मकता एकता का विकास (To Develop Emotional Integrity): 

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में अनेकों समस्याएँ पैदा हुई हैं जिन्होंने भारतीय जीवन को आन्दोलित किया है। इन समस्याओ में एक प्रमुख समस्या भावानात्मक एकता की है। हमने प्रजातन्त्रीय शासन प्रणाली को अपनाया है। प्रजातन्त्रीय शासन प्रणाली की सफलता के लिए आवश्यक है कि देशवासियों में पारस्परिक प्रेम, सहयोग, भ्रातृत्व, त्याग और देश पर मर मिटने की भावना हो।

दुर्भाग्य से आज देश में इसका अभाव है। आज देश में जातीयता की भावना, साम्प्रदायिकता, भाषावाद आदि कुछ ऐसी विघटनकारी प्रवृत्तियों ने जोर पकड़ा है कि उनसे देश की एकता में बाधा पड़ रही है। इन प्रवृत्तियों ने देश की आजादी और प्रजातन्त्रीय सफलता को एक जदरदस्त चुनौती दे रखी है। अतः इन प्रवृत्तियों को नष्ट करके राष्ट्र की रक्षा करनी है।

इसके लिए हमें अपने शिक्षा के द्वारा बालकों में भावनात्मक एकता का विकास करना होगा। शिक्षा का उददेश्य बालकों में ऐसी भावनाओं को रोकना होना चाहिए जो पृथकता और विघटन को प्रोत्साहन देने वाली हॉ तथा ऐसे बालकों में संवेगों का निर्माण करना होना चाहिए। जो उनको एकता के सूत्र में आबद्ध करें।

7. अन्तर-सांस्कृतिक भावना का विकास (The Develop Intercultural Understanding): 

हमारा देश बहुत विशाल है। हमारे यहाँ प्राचीन काल से हो जीवन के आदशों, मूल्यों, मान्यताओं, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा, भाषा आदि में बड़ी विभिन्नताएँ पायी जाती हैं, अर्थात् हमारे यहाँ विभिन्न सांस्कृतिक धाराएँ प्रवाहित हो रही हैं। यदि कुछ लोग अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ समझने लगें और दूसरी संस्कृक्ति को घृणा की दृष्टि से देखने लगे तो लोगों में आपसी वैमनस्य और ईष्या पैदा हो जाती है, जिससे व्यक्ति और राष्ट्र दोनों का ही बड़ा अहित होता है।

अतः हमारी शिक्षा का उद्देश्य बालकों में अन्तर-सांस्कृतिक भावना का विकास करना होना चाहिए। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे बालक एक-दूसरे की संस्कृति के विषय में ज्ञान प्रापत करें और उनके प्रति आदर और श्रद्धा रखें।

8. अन्तर्राष्ट्रीय समझ का विकास (To Develop International Understanding):

आज दुनिया में दुनिया में भारी परिवर्तन किये है। वैज्ञानिक खोजों और ज्ञान में दुनिया के देशों को बहुत किनट ला दिया है। आज यदि दुनिया के एक सिरे पर स्थित किसी देश में कोई पटना होती है तो उसका प्रभाव दुनिया में दूसरे सिरे पर स्थित अन्य देशों पर भी पड़ता है।

आज कोई देश अपने बल पर न शान्ति स्थापित कर सकता है और न उन्नति कर सकता है। उसे दूसरे देशों की समस्याओं को समझना होगा, उनमें रूचि लेनी होगी और उनके समाधान में यथासम्भव सहायता करनी होगी। इस कार्य के लिए हमारी शिक्षा ऐसो होनी चाहिए जो बालकों में सम्पूर्ण मानव जाति के प्रति प्रेम की भावना पैदा करें और उनको दूसरे देशों की सभ्यता, संस्कृति, धर्म और ज्ञान की जानकारी है।

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