टोटमवाद क्या है? टोटमवाद का अर्थ, परिभाषा और महत्व - What is totemism?

टोटमवाद क्या है? टोटमवाद का अर्थ, परिभाषा और महत्व

टोटमवाद का अर्थ

टोटमवाद का तात्पर्य सामाजिक संगठन की उस प्रणाली से है जिसके अनुसार कोई जनजाति अपने गोत्र या वंश का सम्बन्ध किसी भौतिक अथाव अभौतिक वस्तु से स्थापित करती है । डॉ ० मजूमदार के शब्दों में- " भारत में अनेक कबीले और जातियाँ किसी भौतिक पदार्थ पशु या पेड़ - पौधों से अपना एक रहस्यमय सम्बन्ध होने का दावा करते हैं, इन्हें टोटमवादी कहा जा सकता है ।


इसमें से अनेक टोटम को भूल गये हैं या इस रहस्यमय सम्बन्ध की कोई विशेष महत्त्व नहीं देते । लेकिन अधिकांश आदिम कबीलों में पशुओं और पौधों को महत्तवपूर्ण स्थान दिया जाता है । जिस जाति का जो टोटम है , उसे खाना या नष्ट करना निषेध समझा जाता है । क्योंकि उस निश्चित टोटम से वह जाति अपने वंश का सम्बन्ध मानती है ।


टोटम शब्द को जे ० लॉग ने 1791 में उत्तरी अमेरिका में इण्डियंस से ग्रहण किया था । इसके बाद जे ० एफ ० मैक्लेनन ने टोटमवाद का आदिम सामाजिक संस्था के रूप में मूल्यांकन किया । आज टोटमवाद को सर्वव्यापी संस्था के रूप में माना जाता है । विश्व के सभी आदिम समाजों में इसका प्रचलन है । 


टोटमवाद की परिभाषा ( Definition of Totemism ) -

टोटम को विभिन्न मानवशास्त्रियों ने विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है । इसमें निम्नलिखित परिभाषाएँ उल्लेखनीय हैं 


1. जेम्स फ्रेजर - ' टोटम भौतिक वस्तुओं का एक वर्ग है जिसकी एक जाति यह समझ कर अंधविश्वास पूर्वक प्रतिष्ठा करती है कि उसके तथा गोत्र के प्रत्येक सदस्य के बीच में घनिष्ठता और एक विशेष सम्बन्ध है । ' 


2. नीडस एण्ड कैबरीज आन एन्थोपोलोजी - टोटमवाद का प्रयोग सामाजिक संगठन के एक स्वरूप तथा धर्म व जादूपूर्ण ' प्रथा के लिए किया जाता है जिसकी मुख्य विशेषता गोत्रया वंश का सम्बन्ध किसी जीवित अजीवित वस्तु के साथ जोड़ना है । 


3. हरस्कोविटस - ' टोटमवाद उस विश्वास या धारणा को कहते हैं जिसके अनुसार मानव समुदाय की किसी वनस्पति , पशु और कभी - कभी किसी अद्भुत प्राकृतिक पदार्थ को साथ अपने दैवीय सम्बन्धों को मानता है । '


इस प्रकार टोटमवाद का तात्पर्य उन विश्वासों से है जिसके अनुसार कोई जनजाति किसी जीवित अथवा अजीवित वस्तु के साथ अपने वंश का सम्बन्ध जोड़ लेती है और टोटमी वस्तुओं को नष्ट करना अथवा प्रयोग में लाने का निषेध करती है ।


संक्षेप में गोत्रों में विभाजित अनेक जनजातियों में गोत्र का नाम पशु , पौधे अथवा प्राकृतिक पदार्थ से लिया जाता है । गोत्र के सदस्य इन वस्तुओं या पशुओं के प्रति एक विशेष मनोभाव रखते हैं । इसी को मानवशास्त्री टोटम कहते हैं ।

टोटमवाद क्या है? टोटमवाद का अर्थ, परिभाषा और महत्व - What is totemism?


आदिम समाज में टोटम का महत्त्व ( Importance of Totem in Primitive Society )


प्रो 0 रावर्ट लॉवी का मत है कि विभिन्न जनजातियों में टोटम के आधार पर ही गोत्र का निश्चय होता है । इसका प्रचलन विश्व की प्रायः सभी जनजातियों में है । प्रो ० एलिएट स्मिथ का मत है कि टोटमवाद सर्वप्रथम उत्तरी अफ्रीका में विकसित हुआ और फिर इसका विश्व के अन्य क्षेत्रों में प्रसार हुआ । भारत में सभी आदिम कबीलों में टोटमी संरचना पाई जाती है ।


डॉ ० मजूमदार के अनुसार , ' एक टोटमी समूह सामाजिक जीवन की बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक से अधिक टोटमी समूहों में बँटा है । उदाहरण के लिए छोटा नागपुर में जब एक टोटमी कुल ( clan ) के सदस्य की संख्या बढ़ जाती है तो वह अनेक उप - टोटमी में विभाजित हो जाता है । इस प्रकार उप-टोटमी समूह अपने मूल टोटम के पशु या पौधों के अंगों को अपना टोटम स्वीकार कर लेते हैं ।


जब समूह के सदस्यों की संख्या बढ़ जाती है तो टोटम का उप - विभाजन हो जाता है । अनेक जनजातियों में टोटम के आधार पर कुलों की रचना हुई है । मध्य प्रदेश की गोंड जनजाति के कबीलों के नाम वहाँ पाये जाने वाले पशु - पक्षियों के नाम पर आधारित है ।


इसी प्रकास से डा ० मजूमदार के अनुसार बंगाल की बागड़ी मेहसिया और कोडा लोगों के कुलों का नामकरण पशुओं के नाम से ही किया गया है । लेकिन ये लोग टोटमी , विश्वासों को नहीं मानते हैं । मुण्डा प्रजातीय स्कन्ध की कीड़ा जाति कछुएँ, बत्तख, मछली तथा अण्डों को पूजती है । इस प्रकार पशु , पक्षी तथा जीवित - अजीवित वस्तुओं के प्रति प्रतिष्ठा की भावना टोटमवाद की एक विशेषता है ।


प्रतिष्ठा की यह भावना यद्यपि टोटमवाद की विशेषता है, लेकिन डा ० मजूमदार के अनुसार , ' पशुओं या पौधों के प्रति सम्मान मात्र ही टोटमवाद कहा जाता है , यह एक विवादास्पद बात है । यह आवश्यक नहीं की इसका सम्बन्ध सीधे टोटमवाद से हो । ' इसके लिए डा ० मजूमदार ने भारतीय जनजीवन से अनेक उदाहरण दिए हैं । उन्होंने यह उल्लेख किया है कि भारत में नदियों, वृक्षों तथा स्रोतों को पवित्र मानते हैं ।


इसी प्रकार तुलसी , बेल और वटवृक्ष भी पूजनीय है । गाय हिन्दुओं में पूजनीय पशु है । शेर देवी का मुख्य वाहन है । चूहा गणपति का वाहन है । लेकिन इनका टोटम के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है । इस प्रकार केवल पशु या वनस्पति को ही टोटमवाद नहीं माना जाता है । टोटम के लिए यह आवश्यक है कि जिस पशु , की पूजा पक्षी या वनस्पति इत्यादि के समूह को अपना टोटम मानता है, उसके प्रति उसके अन्दर यह भावना होनी चाहिए कि उसका उनके वंश के साथ सम्बन्ध है ।


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