मानावाद क्या है ? माना की परिभाषा कीजिए । माना की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।
जीवितसत्तावाद या मानावाद ( Animatism or Manism )
धर्म की उत्पत्ति से सम्बन्धित जीवित - सत्तावाद या मानावाद का सिद्धान्त प्रमुख हैं । कांडरिंगटन के मेलानेशिया की जनजातियों के सम्बन्ध में अनुसन्धानों के आधार पर हाल ही में मैरेट ने जीवितसत्तावाद के सिद्धान्त को एक नए रूप में प्रस्तुत किया है ।
इसे मानावार ( Manaism ) कहते हैं । इसके अनुसार धर्म की उत्पत्ति ' आत्मा ' की धारणा से नहीं , ' माना ' के धारणा से हुई है । मलेशिया की जनजातियों में ' माना ' की अवधारणा की जो प्रमुख विशेषत हैं उसके आधार पर कॉडरिंगटन ने ' माना ' को इस प्रकार परिभाषित किया है।
" माना " एक शक्ति है जो कि भौतिक या शारीरिक शक्ति से सर्वता भिन्न है यह भले और बुरे सभी रूपों में का करती है और इस पर आधिपत्य या नियंत्रण पाना अत्यन्त लाभदायक है । यह एक शक्ति प्रभाव तो अवश्य है , पर शारीरिक शक्ति नहीं , और एक अर्थ में यह अलौकिक है, किन्तु क शक्ति या अन्य किसी प्रकार की शक्ति या क्षमता से, जिसका कि एक मनुष्य अधिकारी है अपने को प्रकट करती है ।
यह अलौकिक इस अर्थ में है कि यह सब चीजों पर प्रभाव डाल के लिए जिस रूप में कार्य करती है वह मनुष्य की साधारण शक्ति से परे है और प्रकृति के साधारण प्रक्रियाओं के बाहर है । " उपरोक्त परिभाषा के आधार पर हम ' माना ' की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कर सकते हैं-
मानावाद की विशेषताएँ
( 1 ) ' माना ' की शक्ति का कोई शारीरिक रूप नहीं है । इसलिए इस शक्ति को अवैयक्ति कहा जाता है । चूंकि यह शक्ति अलौकिक तथा अवैयक्तिक है , इस कारण इसका ज्ञान इन्द्रियं द्वारा नहीं किया जा सकता ।
( 2 ) ' माना ' शारीरिक शक्ति नहीं है । यह शारीरिक शक्ति से सर्वथा भिन्न है ।
( 3 ) यह हो सकता है कि ' माना ' की शक्ति किसी चीज में कम और किसी में अधिक हो , पर होगी यह सब में ।
( 4 ) ' माना ' का प्रभाव अच्छा और बुरा दोनों तरीकों का हो सकता है । दूसरे शब्दों में , इस शक्ति से हमें हानि व लाभ दोनों ही हो सकते हैं ।
( 5 ) ' माना ' की एक और प्रमुख विशेषता यह है कि यह बिजली की करेण्ट या शक्ति की भाँति होती है जो व्यक्तियों और चीजों को प्रभावित कर सकती है और जो एक से दूसरे में आ जा सकती हैं ।
( 6 ) ' माना ' अलौकिक शक्ति होते हुए भी शारीरिक शक्ति या अन्य प्रकार की शक्तियों में प्रकट होती है । मैक्समूलर की जनजातियों में यह विश्वास है कि किसी काम में उन्हें तब तक सफलता नहीं मिल सकती जब तक कि ' माना ' सहायक न हो । युद्ध में योद्धाओं को विजय ' माना ' के कारण मिलती है, शिकार में शिकारियों की सफलता का कारण भी ' माना ' है और जाल में आकर मछलियों का फैसना भी उसी ' माना ' की शक्ति की एक अभिव्यक्ति है ।
उपरोक्त आधार पर मैरेट ने यह निष्कर्ष निकाला कि आदिकालीन समाज के लोग विश्व की सभी जड़ और चेतन वस्तुओं में ' माना ' के आधारपर एक अनिर्वचनीय , अवैयक्तिक या अशरीरी , अप्राकृतिक , अलौकिक तथा दैवीय जीवितसत्ता पर विश्वास करते थे । इस सत्ता या शक्ति का प्रभाव अच्छा और बुरा दोनों प्रकार का होता है और इसका ज्ञान इन्द्रियों द्वारा नहीं किया जा सकता । इसी कारण आदिकालीन समाज के लोग इस शक्ति को ही सब - कुछ मानकर प्रभावों से बचने के लिए उस सत्ता या शक्ति की आराधना करने लगे । यही धर्म का प्रारम्भिक रूप था ।
आलोचना
अनेक विद्वानों ने मानावाद के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं किया दुर्खीम ने इस सिद्धान्त की जो आयोचना की है वह निम्नवत् है ---
( 1 ) मानावाद की सर्वप्रथम दुर्बलता यह है कि इस सिद्धान्त में इस बात की स्पष्ट व्याख्या नहीं मिलती कि ' माना ' की अवधारणा का जन्म कैसे हुआ ।
( 2 ) धर्म एक सामाजिक तथ्य है और सामाजिक तथ्य व्यक्ति के मस्तिष्क में नहीं वरन मस्तिष्क के बाहर वास्तविक सामाजिक परिस्थिति में निवास करता है ।
( 3 ) मानावाद का एक बहुत बड़ा दोष यह है कि यह धार्मिक जीवन के केवल कुछ भागों पर ही प्रकाश डालता है ।
( 4 ) श्री दुर्खीम का यह भी कहना है कि किसी भी धर्म में एक विशेष बात यह होती है कि उसकी पवित्र और अपवित्र वस्तुओं में एक स्पष्ट भेद माना जाता है । धर्म का सम्बन्ध ' पवित्र ' से होता है परन्तु मानावाद में इस धारणा का कोई भी आभास नहीं होता ।
( 5 ) मानावाद का सिद्धान्त अस्पष्ट इस अर्थ में भी है कि इसमें अवैयक्तिक तथा अलौकिक शक्ति को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने का कोई भी प्रयत्न नहीं किया गया है ।
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