आर्थिक विनिमय के प्रकार क्या है? What are the types of economic exchange?
जनजातीय आर्थिक व्यवस्था की अनेक प्रमुख विशेषताएँ हैं । विनिमय प्रणाली भी उन विशेषताओं में एक प्रमुख विशेषता है । वस्तु - विनिमय प्रणाली आर्थिक विनिमय का एक रूप है । आर्थिक विनिमय के दो प्रमुख स्वरूप हैं
1. वस्तु विनिमय प्रणाली
2. मौद्रिक विनिमय
( 1 ) वस्तु - विनिमय प्रणाली ( Barter System )
वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का प्रत्यक्ष रूप से विनिमय होता है । एक वस्तु की अदला - बदली दूसरी वस्तु से की जाती है । किसी की सेवा के बदले भी वस्तु अथवा वस्तु के बदले सेवा का भी विनिमय इस प्रणाली के द्वारा होता है । प्राथमिक एवं प्राचीन समाज में वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन था । आज भी अनेक ग्रामीण समाजों में एवं जनजातीय समाजों में इसका रूप देखने को मिलता है ।
अनेक जनजातीयों में मूक - वस्तु विनिमय ( Dumb Barter ) का भी प्रचलन है । लंका के बेडा , उत्तर प्रदेश की राजी जनजाति एवं विश्व की अनेक प्रमुख जनजातियों में मूक वस्तु विनिमय प्रणाली कबिचलन है । इसके अन्तर्गत दो जनजातीय समूह अपने उत्पादन का विनिमय करते हैं । इस प्रणाली में वस्तुओं का निमय करते समय मोल - भाव नहीं किया जाता ।
![]() |
आर्थिक विनिमय के प्रकार क्या है? |
कूला ( Kula ) प्रणाली इसका उदाहरण है, जो उत्तर - पश्चिमी मैलेनेशिया में प्रचलित है । मूक - वस्तु विनिमय प्रणाली इस मान्यता पर आधारित है कि आर्थिक सम्बन्धों में परस्पर विरोध एवं शत्रुता को दूर रखना चाहिए । मूक विनिमय प्रणाली में न तो एक पक्ष दूसरे से बातचीत करता है और न ही एक दूसरे को देखता है ।
मलाया की पिग्मों, सेमंग जनजाति में इस प्रथा का प्रचलन है । सेमंग जनजाति के लोग किसी एक स्थान पर अपने जंगली बीजों को रख देते हैं और संकेत छोड़कर चले जाते हैं । दूसरी ' सकाई ' जनजाति के लोग अपनी आवश्यकता की चीज ले लेते हैं और उसके बदले में दूसरी चीजें रख देते हैं । सेमंग जनजाति के सदस्य कुछ समय पश्चात आते हैं और बदले में रखी हुई चीजों को ले लेते हैं ।
वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ ( दोष )
वस्तु विनिमय प्रणाली आर्थिक व्यवस्था का प्रारम्भिक स्वरूप है । इस व्यवस्था की अनेक दोष एवं कठिनाइयाँ हैं । इस प्रणाली के दोष , असुविधाओं एवं कठिनाइयों को संक्षेप में निम्नवत् दर्शाया जा सकता है-
( 1 ) इस प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि मूल्य के एक मान्य मानक का अभाव है । वस्तुओं का विनिमय करते समय पारस्परिक अनुपात को निश्चित करना अत्यंत कठिन है । वस्तु विनिमय की शर्त एवं अनुपात क्या होगा, यह निश्चय करना सरल नहीं है ।
( 2 ) वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं के दोहरे संयोग की खोज करना भी कठिन है । आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव इसका सबसे बड़ा दोष है । चावल के बदले यदि हम कपड़ा चाहते हैं, तो यह आवश्यक नहीं कि जिसके पास कपड़ा है, वह चावल ही चाहता हो । समाज के विकास, आवश्यकताओं की वृद्धि, श्रम विभाजन आदि के कारण वस्तु विनिमय प्रणाली की दिन - प्रति दिन निरन्तर यह कठिनाई बढ़ती गई ।
( 3 ) इस प्रणाली का तीसरा सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें मूल्य संचय की सुविधा का अभाव है , किसी भी वस्तु को बहुत अधिक दिन तक संचित करना अत्यंत कठिन है ।
( 4 ) वस्तु विनिमय प्रणाली का एक बड़ा दोष यह भी है कि कोई व्यक्ति चाहे कितनी मेहनत या प्रयास करे , वह धनी नहीं बन सकता । क्योंकि वस्तुओं को वह अधिक समय तक मुद्रा के समान संचित नहीं कर सकता । संक्षेप में कहा जा सकता है कि वस्तु विनिमय प्रणाली प्राथमिक समाजों एवं जनजातीय समाजों की विशेषता है ।
इसमें दो वस्तुओं की प्रत्यक्ष रूप में अदला - बदली की जाती है । इस प्रणाली के अनेक दोष हैं । मुद्रा के प्रचार के कारण इस प्रणाली के द्वारा इसकी कठिनाइयाँ एवं दोष समाप्त हो गये । आदि काल में मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति वस्तु विनिमय प्रणाली के द्वारा ही करता था । उस समय व्यापार वस्तु विनिमय के द्वारा ही होता था उचित माध्यम के अभाव में व्यापार का क्षेत्र अत्यंत ही सीमित था वस्तु विनिमय की कठिनाइयों को दूर करने के लिए मुद्रा को अपनाया गया ।
( 2 ) मौद्रिक विनिमय ( Money Exchange )
मुद्रा के आविष्कार का प्रचलन हुआ । यह विनिमय का विकसित रूप है । वर्तमान युग में अधिकतर मौद्रिक विनिमय का ही प्रचलन है । इस प्रणाली के द्वारा वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों को दूर कर दिया गया । मुद्रा का क्या अभिप्राय है ? मुद्रा किसे कहते हैं ? जनजातीय समाजों में मुद्रा किस रूप में प्रचलित हुई ? केवल नोट या सिक्के को मुद्रा नहीं कहा जाता । कोई भी वस्तु जो विनिमय का माध्यम बन सके । उसे हम मुद्रा कह सकते हैं ।
प्रारम्भ में जनजातीय समाजों में पशुओं, शंख, एवं कौड़ियों को विनिमय के साधन के रूप में अपनाया गया । जनजाति के लोग जब सभ्य समाज के सम्पर्क में आये, तो उनमें वर्तमान मुद्रा का प्रचार हुआ। वर्तमान युग में मौद्रिक विनिमय का प्रचार एवं प्रसार तीव्र गति से बढ़ रहा है।
मुद्रा की परिभाषा (Definition of currency)
केन्ट ( Kent ) का कहना है- " मुद्रा वह वस्तु है , जो साधारणतः विनिमय के माध्यम और मूल्य के मापदण्ड का कार्य करे और जिसको ऋण के भुगतान के रूप में सब लोग स्वीकार करें । "
कूले के अनुसार- " मुद्रा क्रय - शक्ति है और ऐसी वस्तु है, जो वस्तुओं को खरीदने के काम आती है । "
क्राउथर ( Crowther ) का कहना है- " मुद्रा वह वस्तु है, जो सामान्यतः विनिमय के साधन के रूप में स्वीकार की जाती है अर्थात् जो लेन - देन भुगतान का साधन है और साथ ही जो मूल्य के माप और उसके कोष का काम करती है । "
विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर संक्षेप में कहा जा सकता है कि मुद्रा विनिमय का साधन है और यह वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यांकन का कार्य करती है ।
मुद्रा के कार्य ( Functions of Money )
मौद्रिक विनिमय प्रणाली के द्वारा मुद्रा के द्वारा अनेक कार्य किये जाते हैं । इसके कार्यों को संक्षेप में निम्नवत् दर्शाया जा सकता है
( 1 ) मुद्रा विनिमय का शक्तिशाली साधन है , इसके द्वारा किसी भी वस्तु के रूप में बेचा भी जा सकता है और खरीदा भी जा सकता है । मुद्रा के इस कार्य के द्वारा विनिमय के दोहरे संयोग की कठिनाई दूर हो गई ह ऐ । परिणामस्वरूप विनिमय का कार्य सरल हो गया है ।
( 2 ) मुद्रा के द्वारा किसी वस्तु के मूल्यांकन एवं मापदण्ड का कार्य सरल हो गया है । अब मुद्रा द्वारा किसी भी वस्तु का मूल्य उचित रूप से किया जा सकता है ।
( 3 ) मुद्रा संचय का भी प्रमुख साधन है ।
( 4 ) मुद्रा के माध्यम से ऋणों का भुगतान करना भी सरल हो गया है । इधर - उधर करने का कार्य भी सरलता से
( 5 ) मुद्रा के द्वारा किसी वस्तु का हस्तान्तरण किया जा सकता है । उपरोक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्तमान सभी समाजों में मौद्रिक विनिमय प्रणाली के विशेष गुण हैं ।
यह भी पढ़ें- साम्राज्यवाद के विकास की सहायक दशाएँ ( कारक )
यह भी पढ़ें- ऐतिहासिक भौतिकतावाद
यह भी पढ़ें- अनुकरण क्या है? - समाजीकरण में इसकी भूमिका
यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण में कला की भूमिका
यह भी पढ़ें- फ्रायड का समाजीकरण का सिद्धांत
यह भी पढ़ें- समाजीकरण और सामाजिक नियंत्रण के बीच सम्बन्ध
यह भी पढ़ें- प्राथमिक एवं द्वितीयक समाजीकरण
यह भी पढ़ें- मीड का समाजीकरण का सिद्धांत
यह भी पढ़ें- सामाजिक अनुकरण | अनुकरण के प्रकार
यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण में जनमत की भूमिका
यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधन