कुला विनिमय क्या है ? What is kula exchange?

कुला विनिमय क्या है ? What is kula exchange?

' कुला ' ( Kula ) कुला आदिम समाज की अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता है । जनजातीय समाज में व्यापार करने हेतु जितने भी तरीके हैं उनमें यह सबसे विस्तृत एवं जटिल है । मानवशास्त्री मैलिनोवस्की ( Malinowaski ) ने जनजातियों में प्रचलित इस प्रथा का विवरण विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया है ।


कूला का उद्देश्य एक ऐसी सांस्कारिक गोष्ठी का निर्माण करना है जिससे सदस्य समूह में परस्पर आर्थिक आदान - प्रदान या व्यापार एक परम्परागत रीति से तथा शान्तिपूर्ण व सुव्यवस्थित ढंग से चलता रहे । इससे लड़ाकू जनजातियों के बीच आर्थिक लेन - देन के मामले में संघर्ष होने की सम्भावनाएँ बहुत कम होती हैं ।


श्री मैलिनोवस्की ( Malinowski ) ने लिखा है कि " कूला एक ऐसी प्रथा है जो कि आदिवासियों के दृष्टिकोण से उन्हें गौरव तथा प्रतिष्ठा प्रदान करती है । और इसीलिए इसके प्रति उनका मनोभाव सम्मानसूचक ही होता है । हार या कंगन के लेन - देने के समय आदिवासियों के व्यवहार से यह स्पष्टतः पता चलता है कि उनके लिए यह न केवल अमूल्य है वरन् सांस्कारिक या धार्मिक महत्त्व का भी है ।


इस कारण इसके साथ अनेक प्रकार दी उद्वेगात्मक प्रतिक्रियाएँ ( Emotional reactions ) जुड़ी होती हैं । आपके अनुसार कूला को केवल एक व्यापार प्रथा या आर्थिक क्रिया मान लेना उचित न होगा क्योंकि इस प्रथा के प्रत्येक पग पर प्रत्येक क्रिया परम्परागत नियमों तथा संस्कारों द्वारा नियन्त्रित होती है और इसके साथ अनेक प्रकार के जादू - टोने व धार्मिक कृत्य और सार्वजनिक उत्सव जुड़े हुए होते हैं ।


इसलिये कूला को व्यापार क्रिया, जादू - टोना, धार्मिक, व सांस्कारिक आदान - प्रदान, यात्रा और मनोरंजन का एक संकुल ( complex ) मानना ही अधिक उचित होगा कूला व्यापार प्रथा का आधार म्वाली ( mwali ) नामक सफेद सीप का कंगन ( amm bands ) और सौलंबा ( soulava ) नामक लाल सीप का बना हार ( necklace ) होता है । ये दोनों चीजें एक जनजातीय समूह से दूसरे दूसरे को एक विशेष दिशा - क्रम से हस्तान्तरित होती रहती हैं ।


कूला का यह सम्बन्ध केवल आल्एक बार के लेन - देन से ही समाप्त नहीं हो जाता है क्योंकि नियम यह है कि जिसके साथ एक बार कूला - सम्बन्ध स्थापित हुआ है उसके साथ यह सम्बन्ध सदैव के लिए बना रहेगा ( once in the Kula , always in the Kula ) । इसलिए कूला का व्यापार सम्बन्ध एक स्थायी और सारे जीवन भर के लिए होता है ।


सुप्रसिद्ध विद्वान डा ० श्यामा चरण दूबे का कहना है कि ' कूला ' व्यापार , जादू , धार्मिक विनिमय , यात्रा और मनोरंजन आ संकुल मानना अधिक उचित होगा । कूला विनिमय अन्तर जनजातीय और अन्तर - द्वीपीय होता है । इस कूला विनिमय प्रथा को डा ० जूबे ने रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करने का प्रयास किया है । यहाँ ' अ ', ' आ ' , ' इ ' , ' ई ' भित्र जनजातियों और द्वीपों के ऐसे समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें कूला सम्बन्ध हैं ।


सौलवा ' अ ' से ' ई ' को ' ' से ' इ ' को ' इ ' से ' आ ' और ' आ ' से ' अ ' को जायेगा । म्वाली इसके विपरीत दिशा में ' अ ' से ' आ ' को, ' आ ' से ' इ ' को ' इ ' से ' ई ' को और ' अ ' को जायेगा । ' अ ' से ' आ ' को कंगन की भेंट मिलने पर यह आवश्यक होता है कि वह उसी समय अथवा जितना शीघ्र हो सके उपहारस्वरूप प्रायः उसी मूल्य का हार ' अ ' को दे । ' अ ' से प्राप्त हार को, ' आ ' अब ' इ ' को दे सकता है । उसके बदले में उसे ' इ ' से , उसी मूल्य के कंगन की प्राप्ति होगी ।


इन आभूषणों का मूल्य उनके प्रचलन की आयु के आधार पर निर्धारित किया जाता है। अपने आपमें यह विनिमय अर्थहीन - सा प्रतीत होता है , किन्तु उसके अन्य सम्बद्ध पक्ष उसे सार्थकता प्रदान करते हैं। विनिमय की प्रत्येक स्थिति धार्मिक क्रियाओं, उत्सवों और आर्थिक दृष्टि से उपयोगी एवं लाभप्रद विनिमय का कारण होती है।


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