आदिम अर्थ - व्यवस्था में सम्पत्ति का संक्षेप में वर्णन करें ।
आदिम अर्थ - व्यवस्था में सम्पत्ति प्रत्येक प्रकार की अर्थ - व्यवस्था में चाहे वह आदिम हो या आधुनिक , सम्पत्ति की धारणा अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है । अपनी विविध आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जिस किसी भी चीज की जरूरत मानव की होती है, उसी को वह सम्पत्ति के अन्तर्गत ले आता है, या मान लेता है, परन्तु आदिम अर्थ - व्यवस्था में सम्पत्ति की धारणा उस रूप में नहीं है कि जिस रूप में हम लोग अपने आधुनिक समाज में रहते हुए उसे जानते हैं, लोई ने उचित ही लिखा है कि सम्पत्ति की धारणा औद्योगिक विकास तथा नैतिक विचारों में परिवर्तन के साथ - साथ निरन्तर बदलती रहती है ।
फल - मूल इकट्ठा करने वाले लोगों में पशुओं को सम्पत्ति न मानना ही स्वाभाविक है । उसी प्रकार पशुपालक समूहों के सदस्यों के लिए यह ही स्वाभाविक है, कि पशुओं को तथा अधिक से अधिक चारागाह को सम्पत्ति माने दूसरे प्रकार के भूमि वे भला क्यों सम्पत्ति मानेंगे ? उसी प्रकार आधुनिक औद्योगिक समाज में पूँजी , मशीन और मिल व फैक्ट्री को छोड़कर फल - मूल को सम्पत्ति मानना मूर्खता ही होगी ।
सम्पत्ति को, जिस पर कि लोक अपना अधिकार मान सकते हैं, और मानते हैं, तीन प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-
( क ) प्राकृतिक चीजें जैसे , भूमि , नदी , नहर , समुद्र , पशु , मछली , खनिज पदार्थ , पेड़ - पौधे और इनमें पैदा होने वाले फल - मूल आदि ,
( ख ) मनुष्य द्वारा बनाई गई । चीजें जैसे मकान , कपड़ा , आभूषण , नाव , तीर - धनुष आदि और
( ग ) अभौतिक सम्पत्ति जैसे, उपकथाएँ , संगीत , जादू - टोना आदि ।
आदिम अर्थव्यवस्था में सम्पत्ति के वास्तविक स्वरूप को समझाने के लिए यह आवश्यक है कि इन तीनों प्रकार की सम्पत्तियों को समझा जाए ।
( क ) सम्पत्ति के रूप में प्राकृतिक चीज में भूमि का स्थान सबसे पहले आता है परन्तु यह स्मरण रहे कि भूमि के साथ मनुष्य का सम्बन्ध केवल मात्र आर्थिक ही नहीं होता है । अपने जन्म स्थान की भूमि को हम पवित्र मानते हैं , और उसके साथ एक रहस्यमय सम्बन्ध को जोड़ते हैं । भोजन अथवा खाने - पीने की चीजों पर अधिकार के सम्बन्ध में जनजातियों में भिन्नता पाई जाती है।
( ख ) सम्पत्ति के रूप में मनुष्य द्वारा बनाई कई चीजों के सम्बन्धों में भी जनजातीय समाजों में एक - सा विचार नहीं है । औजार और उपकरणों पर सामान्यतः व्यक्तिगत अधिकार ही होता है । नियम यह है कि जिन वस्तुयों को व्यक्ति ने श्रम या प्रयत्न से बनाया है । उन पर उसी व्यक्ति का अधिकार होगा, और वह उन्हें व एच तथा हस्तान्तरित कर सकता है, परन्तु इन चीजों के सम्बन्ध में आदिम समाजों में एक अनोखी बात यह है कि वहाँ लोगों को यह असीमित अधिकार होता है कि वे इन चीजों को दूसरों से अपने काम के लिए माँग सकते हैं, विशेष उन चीजों ( शिकार के औजार आदि ) को जो कि एक व्यक्ति के पास अधिक मात्रा ( Surplus ) में है ।
उदाहरणार्थ, कैनगेंग जनजाति में अगर कोई चीज फालतू पड़ी हुई है, तो उसे कोई भी उसके मालिक से आज्ञा लिये बिना ही ले जा सकता है और फिर सुविधानुसार लौटाई जा सकती है । हाँ , अगर मालिक को उस चीज की आवश्यकता है , तो वह उस व्यक्ति से उस चीज को लौटा देने की माँग भी कर सकता है ।
एस्कीमो , लोगों में यह भावना है कि ' अ ' ने अपने किसी शिकार करने के उपकरण को ' ब ' को काम में लाने के लिये दे दिया है , तो इसका यही अर्थ है कि ' अ ' को उस चीज की आवश्यकता नहीं है । इसलिए ' ब ' के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह उस चीज को, जब तक उसे उसकी आवश्यकता है, ' अ ' को लौटा ही दे ।
( ग ) अभौतिक सम्पत्ति ( Incorporeal Property )
अभौतिक सम्पत्ति की धारणा केवल जनजातीय समाजों में ही नहीं , आधुनिक समाजों में भी प्रायः समान रूप से पाई जाती है । हम अपने समाज में भी देखते हैं कि दुकानदारी या व्यापार में ' सुनाम ' का एक मूल्य होता है । उस कम्पनी के नाम पर और कोई भी व्यक्ति अपनी चीजों को बेच नहीं सकता । ' 7'0 Clock ' इस नाम से कोई भी कम्पनी अपने ब्लेड को बेच नहीं सकती ।
हाँ , यह हो सकता है कि इससे मिलता - जुलता कोई नाम जैसे - ' 6'0 Morning ' रख लिया जाए । ट्रेड मार्क या पेटेण्ड के द्वारा इस प्रकार की ' सुनाम ' रूपी सम्पत्ति की रक्षा की जाती है । उसी प्रकार प्रामोफोन रेकार्ड कम्पनी , फिल्म कम्पनी , प्रकाशक आदि संगीत , कहानी आदि के रूप में अपनी - अपनी सम्पति के द्वारा करते हैं । यहाँ तक कि पारिवारिक नाम भी सम्पत्ति हो सकती है ।
इसलिए यदि हम यह कहते हैं कि आदिम समाजों में नाम , उपकथा , जादू - टोने के तरीके , संगीत आदि महत्त्वपूर्ण सम्पत्ति हैं , तो शायद किसी को भी आश्चर्य न हो । अमेरिका के उत्तर - पश्चिमी तट पर निवास करने वाली कुछ जनजातियों में कतिपय उपकथाओं को एक वंश - विशेष की सम्पत्ति माना जाता है और उन्हें कोई दूसरा वंश व्यवहार में नहीं ला सकता है ।
क्याकिउटल इण्डियन में एक विशेष नाम को सबसे बड़ी सम्पत्ति समझा जाता है और उस नाम को ही प्राप्त करने के लिये एक पोटलैच ( Potlatch ) का आयोजन करके एक व्यक्ति अपनी समस्त सम्पत्ति को बर्बाद करने के लिए भी तैयार रहता है । यही कारण है कि नाम को प्राप्त करने के विषय को लेकर आज उस समाज में प्रतिद्वन्द्विता के अनेक कटु उदाहरण पाये जाते हैं ।
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