आदिम श्रम विभाजन का वर्णन कीजिए। Describe the primitive division of labour.

आदिम श्रम विभाजन का वर्णन कीजिए।

श्रम विभाजन किसी भी अर्थ - व्यवस्था का अनिवार्य अंग है । आदिम आर्थिक संगठन भी इस नियम का अपवाद नहीं है । इसके अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक विशेष प्रकार का कार्य निश्चित होता है । यह लिंग, आयु, पारिवारिक सम्बन्ध , नीति तथा वर्ग पर निर्भर रहता है। लेकिन आदिकालीन समाजों में श्रम विभाजन मुख्य रूप से प्रकृति प्रदत्त शारीरिक क्षमताओं पर आधारित है । आदिकालीन श्रम विभाजन के दो मुख्य रूप हैं-

( 1 ) विशेषीकरण पर आधारित श्रम विभाजन

( 2 ) लिंग भेद पर आधारित श्रम विभाजन । ये दोनों प्रकार के श्रम विभाजन आदिवासी समाजों में प्रचलित हैं ।


( 1 ) विशेषीकरण पर आधारित श्रम विभाजन ( Division of Labour based on Specialization ) -

विशेषीकरण का तात्पर्य उस व्यवसाय से है , जिसे कोई समुदाय अपना लेता है और उस पर अपना वंशानुगत अधिकार कर लेता है । इसमें मनुष्य के लिए किसी कार्य विशेष में दक्षता प्राप्त करनी होती है इसलिए व्यवसायिक दक्षता ही इसकी उत्पत्ति का कारण है । आदिवासियों की जब सरल अर्थ - व्यवस्था का विकास हुआ तो उसमें विशेषीकरण का प्रारम्भ हुआ ।

आदिम श्रम विभाजन का वर्णन कीजिए। Describe the primitive division of labour.
Describe the primitive division of labour.

किसी न किसी रूप में यह आदिवासी समाजों की प्रत्येक अर्थ - व्यवस्था में मिलता हैं । आदिवासी कार्य विशेष में निपुणता प्राप्त करते हैं और अपने द्वारा बनायी हुई वस्तुओं को विनिमय द्वारा दूसरों को देते हैं । इसी प्रकार दूसरे समुदाय भी किसी कार्य विशेष में निपुणता प्राप्त करते हैं और अपनी वस्तुओं को दूसरे निपुणता प्राप्त समुदाय की वस्तुओं के साथ विनिमय कर लेते हैं, जो जन - जातियाँ समुद्रों के निकट रहती हैं, उन्होंने मछली पकड़ने के व्यवसाय में निपुणता प्राप्त की है ।


जो समुदाय जंगलों के निकटवर्ती क्षेत्रों में निवास करते हैं , उन्होंने जंगली लकड़ी आदि से तैयार होने वाली विभिन्न वस्तुओं के निर्माण में निपुणता प्राप्त की है । यह निपुणता समुदाय विशेष का निश्चित व्यवसाय बन गया है । यह विशेषीकरण की प्रक्रिया विकसित होकर वंशानुसार चलने लगती है तो जाति प्रथा का जन्म होता है ।


( 2 ) लिंग पर आधारित श्रम विभाजन ( Division of Labour on Sex )

लिंग पर आधारित श्रम विभाजन समाज के कार्यविभाजन का सर्वप्रथम रूप है। प्रत्येक सम स्त्री तथा पुरुष के कार्य विभक्त रहते हैं । कुछ कार्य ऐसे हैं , जिन्हें स्त्रियाँ सम्पन्न करती हैं। इसके विपरीत, कुछ कार्य ऐसे हैं, जिन्हें केवल पुरुष ही सम्पन्न करते आदिकालीन समाज में पुरुष शिकार का पीछा करता हैं । मछली पकड़ना और अन्य समूहों के साथ संघर्ष में हाथ बँटाता था।


स्त्रियाँ जंगलों में कन्द मूल फल एकत्रित करती थी। इस प्रकार जिन कार्यों के लिए अधिक शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती थी, उन्हें पुरुष करते थे, जिन कार्यों के लिए कम शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती थी, उन्हें स्त्रियाँ करती थीं । पुरुष तथा स्त्रियों के इस कार्य विभाजन को लिंग पर आधारित श्रम विभाजन कहा जाता है ।


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