खाद्य संकलन जनजातियों की पाँच विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।
जनजातीय अथवा आदिम समाजों में प्रचलित आर्थि स्तरों में प्राथमिक सतर खाद्य संकलन स्तर है । इस स्तर के जनजातीय समाज में सदस्य भोजन का उत्पादन नही वरन् संकलन करता है । उसका सामाजिक एवं आर्थिक जीवन अस्थिर, अनिश्चित एवं घुमक्कड़ होता है ।
इस स्तर के आर्थिक संगठन भारत के कावर और चेंचू, लंका के वेड्डा, आस्ट्रेलिया के अधिकांश आदिवासी, फिलीपाइन और मलाया प्रायद्वीपों के पिग्मी समूह, आदिवासी तथा अफ्रीका के बुशमैन ऐसे समाजों में जीवन रहने के ये आदि के आदिम स्थानों में पाए जाते हैं । साधन ( शिकार, फल - मूल, अण्डमान द्वीप के आदि ) अत्यधिक शाक - पात सीमित मात्रा में उपलब्ध तथा कठिनंता से प्राप्त होते हैं, इस कारण यहाँ जीवन रहने के लिए संघर्ष भी उग्र और भयंकर होता है ।
इनमें दुर्बलों तथा अक्षमों के लिए जीवित रहना प्रायः इन कारणों में जनसंख्या भी अत्यधिक सीमित होती है । ऐसे समा में आर्थिक जीवन की एक - एक इकाई का आकार बहुत छोटा होता है और उनकी सदस्य 40 से लेकर 70 के बीच तक होती है । ये सदस्य प्रायः आपस में रक्त सम्बन्धी होते हैं , यद्यपि रहते अलग - अलग परिवार में ही है । आर्थिक जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए, अ वे सब आर्थिक क्रियाओं के विषय में सहयोग करें ।
इस सहयोग व्यवस्था में परिवार के ही नहीं जीवनत रहने के लिए , प्रकृति से मोर्चा लेने के लिए इनके लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि समुदाय के पुरुष, स्त्री, बच्चे आदि हाथ बंटाते हैं । स्त्री - पुरुष के भेद के आधार पर आर्थिक विभाजन होता है । तरुणों तथा वयस्क पुरुषों के दल घर से बाहर जंगलों में शिकार करने के मछली मारने जाते हैं, जबकि स्त्रियों के दल जंगलों के कन्द - मूल , फल , शक - पात शब्द आदि इकट्ठा करते, भोजन पकाते तथा बच्चों की देख - रेख करते हैं ।
खाद्य संकलन जनजातीय समाजों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
( 1 ) जनसंख्या का कम घनत्व - इन समाजों में जनसंख्या का घनत्व बहुत कम होता है । जीवित रहने के लिए कठोर संघर्ष करना पड़ता है , इस कारण जनसंख्या अत्यंत सीमित होती है ।
( 2 ) खानाबदोशी जीवन - इस जनजातियों को भोजन प्राप्ति हेतु सदैव स्थान बदलना पड़ता है । इनका जीवन खानाबदोशी होता है । इनका समाज घूमन्तू होता है ।
( 3 ) आत्मनिर्भर परिवार - इन जनजातियों के परिवार आत्मनिर्भर होते हैं । आत्म निर्भरता इनके परिवारों की विशेषता है। यह परिवार परस्पर रक्त सम्बन्धी होते हैं ।
( 4 ) आर्थिक क्रियाओं का सीमित क्षेत्र - इन जनजातियों की आर्थिक क्रियाओं का क्षेत्र सीमित होता है ।
( 5 ) श्रम विभाजन का अभाव - आर्थिक क्रियाओं का क्षेत्र सीमित होने के कारण इन पर श्रम विभाजन होता है । जातियों में श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण का अभाव होता है । केवल स्त्री एवं पुरुष के आधार श्रम का विभाजन होता है।
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