जनजातियों में जीवनसाथी चुनने के तरीके/ Ways to choose a life partner in tribes in Hindi

जनजातियों में जीवन साथी चुनने की विधियों का वर्णन कीजिए । Ways to choose a life partner in tribes in Hindi.

जनजातियों में विवाह का स्वरूप चाहे जो हो, चाहे वह एक विवाही, बहुपत्नी विवाही, अथवा बहुपति विवाही, जीवन-साथी चुनने के उनके अपने-अपने तरीके हैं। जनजातियों में जीवन साथी चुनने की विभिन्न विधियाँ निम्नलिखित हैं 


1. हरण - पद्धति-

जब कोई पुरुष किसी कन्या से बलपूर्वक विवाह कर लेता है तो उसे हरण - पद्धति कहते हैं । कुछ जनजातियों में यह प्रतीकात्मक और कुछ में वास्तविक है । जिन जातियों में यह प्रतीकात्मक है उनमें माता - पिता किसी पुरुष से अपनी कन्या का हरण करने की प्रार्थना करते हैं ।

जनजातियों में जीवनसाथी चुनने के तरीके
Ways to choose a life partner in tribes

उनकी प्रार्थना पर वह ऐसा करता है । खरिया, संथाल, बिरहौर और मुण्डा जनजातियों में यह पद्धति वास्तविक रूप में विद्यमान है अर्थात्, पुरुष अपनी इच्छा से किसी स्त्री से जबर्दस्ती विवाह करता है । गारो और गोंड में इसका प्रचलन प्रतीकात्मक है । बिरहौर और संथाल में यह प्रथा है । कि जब पुरुष किसी स्त्री से विवाह करना चाहता है तो वह किसी सार्वजनिक स्थान पर उसको माँग में सिन्दूर भर देता है । 


2. परीक्षा पद्धति –

जनजातीय समाज में कोई युवक शक्ति परीक्षा द्वारा किसी युवती को अपनी पत्नी बनाता है तो उसे परीक्षा - पद्धति कहते हैं । गुजराती भीलों में यह सबसे अधिक पायी जाती है । इस जनजाति में युवकों की शक्ति - परीक्षा के लिए होली के अवसर पर ' गोल गधड़ों ' नामक उत्सव होता है जिसमें एक खम्भा गाढ़कर उसके सिर पर गुड़ और नारियल बाँध दिया जाता है ।


गाँव की अविवाहित लड़कियाँ उसके चारों तरफ घेरा बनाकर नाचती हैं । उनमें कुछ दूरी पर अविवाहित युवक नाचते हैं । नाचते नाचते कुछ युवक लड़कियों का घेरा तोड़कर खम्भे पर चढ़कर नारियल गुड़ खाने का प्रयास करते हैं । लड़कियाँ उन्हें अपनी पूरी शक्ति से रोकती हैं ।


वे उन्हें मारती, दाँत से काटती, बाल खींचती तथा कपड़े आदि फाड़ती हैं । इसके बावजूद यदि कोई युवक खम्भे पर चढ़कर गुड़ और नारियल खाने में सफल हो जाता है , तो वह उन युवतियों में से किसी से भी विवाह कर सकता है । उस युवक से विवाह करने में गर्व का अनुभव किया जाता है ।



3. परिवीक्षा पद्धति -

जब कोई युवक किसी लड़की के साथ कुछ दिन तक उसके माता - पिता के घर रहकर उसका स्वभाव जानने के बाद उससे विवाह करता है तो उसे परिवीक्षा - पद्धति कहते हैं । आसाम की कूकी जनजाति में यह पद्धति पायी जाती है । लड़की के माता - पिता के घर पर लड़के लड़की को एक साथ एकान्त में रहकर स्वभाव समझने का अवसर दिया जाता है ।


उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे यौन सम्बन्ध नहीं स्थापित करेंगे परन्तु यदि वे ऐसा कर लेते हैं तो उनके इस कार्य को बुरा नहीं समझा जाता है । यदि कुछ दिनों तक परिवीक्षा के बाद दोनों अलग हो, जाते हैं और विवाह नहीं करते हैं तो ऐसी स्थिति में लड़के को लड़की के माता - पिता को कुछ हर्जना, देना पड़ता है । अनुकूल स्वभाव होने पर ही दोनों का विवाह होता है ।


4. हठ - पद्धति -

बिरहौर, ओराँव, कुमार, संथाल तथा थारू जनजातियों में विवाह की यह पद्धति पायी जाती है । जब किसी युवक से विवाह की इच्छुक कोई स्त्री उसके घर में हठपूर्वक घुसकर बैठ जाती है तथा उससे विवाह के लिए हठ करती है तो उसे हठ - पद्धति कहते हैं । उस स्त्री को घर से निकालने के लिए उस युवक के माता - पिता अनेक यातनाओं का सहारा लेते हैं ।


यदि उसके बाद भी वह उनके घर से नहीं भागती है तो उसे उस स्त्री से विवाह करना पड़ता है । इस पद्धति के कारण कभी - कभी युवक को प्रौढ़ स्त्री तक से विवाह करना पड़ता है । थारू जनजाति में यह प्रथा है कि यदि युवक उस स्त्री से विवाह के लिए किसी भी प्रकार से राजी नहीं होता है , तो उसे उस स्त्री को किसी दूसरे युवक से विवाह के लिए कुछ धन देना पड़ता है । विभिन्न जनजातियों में इस पद्धति के भिन्न - भिन्न नाम हैं । 


5. सेवा - पद्धति -

गोंडा , बिरहौर , बैगा और खस जनजातियों में यह पद्धति पायी जाती है । इनमें कन्या मूल्य चुकाने की प्रथा है । जब कोई युवक किसी लड़की के माता - पिता को कन्या मूल्य चुकाने की स्थिति में नहीं होता तो वह उसके बदले में उसके घर पर रहकर उसके माता - पिता की सेवा करता है तथा खेतीबारी के काम में सहायता करता है । वह उतने दिन तक सेवा करता है जब तक कि कन्या मूल्य चुका नहीं दिया जाता था यह नहीं मान लिया जाता है कि उसने कन्या मूल्य के बराबर सेवा कर दी है । इसके बाद वह विवाह का अधिकारी होता है ।


6. क्रय -

पद्धति जब कन्या का मूल्य कोई विकल्प नहीं होता तथा उसे चुकाने के बाद ही विवाह का अधिकार होता है , तब उस पद्धति को क्रय - पद्धति कहते हैं । रेगमा , नागा तथा हो जनजाति में यह पद्धति पायी जाती है । 7. पलायन - पद्धति माता - पिता की इच्छा से विपरीत अथवा जनजातीय नियमों को तोड़कर विवाह करने के इच्छुक युवक - युवती अपने गाँव से दूर भागकर किसी बस्ती अथवा जंगल में जाकर विवाह कर लेते और वहीं रहने लगते हैं तो उसे पलायन - पद्धति कहते हैं ।


इस प्रकार के विवाह करने वाले युवक - युवती उस समय तक अपने गाँव से दूर रहते हैं जब तक कि उनके माता - पिता घर लौटने की अनुमति नहीं दे देते हैं । एक सन्तान हो जाने पर भी वे घर नहीं लौट सकते हैं । घर आने पर उन्हें यातनाएँ दी जा सकती हैं, परन्तु अन्त में उनके विवाह को मान्यता प्रदान कर दी जाती है । बिहार की हो जनजाति एवं राजस्थान की भील जनजाति में यह प्रथा पायी जाती है । 


8. विनिमय -

पद्धति भारत में सभी जनजातियों में यह प्रथा प्रचलित है कि जब कोई व्यक्ति कन्या मूल्य चुकाने में असमर्थ होता है तो वह अपनी पत्नी के घर में अपनी बहिन की शादी कर देता है । यह दो परिवारों के बीच होने वाला विनिमय - विवाह कहा जाता है ।


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