जनजातियों के उत्थान हेतु विभिन्न सरकारी प्रयासों का वर्णन कीजिए- Government efforts for the upliftment of tribes

भारत में जनजातीय विकास के लिए सरकार द्वारा किये गये विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए । Government efforts for the upliftment of tribes

भारतवर्ष में 7.56 करोड़ जनजातियाँ हैं जिनकी संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। पिछड़ेपन के कारण इन लोगों को विकास कार्यक्रमों का पूरा-पूरा लाभ नहीं मिल पाया है। आज भी वे लोग अनेक सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं से ग्रसित हैं । इन लोगों की समस्याओं के निराकरण हेतु अनेक विद्वानों ने सुझाव दिये हैं । डॉ . दुबे तथा श्यामाचरण ने निम्नलिखित सुझाव दिये हैं -


( 1 ) वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा आदिवासियों के सामाजिक संगठन और मूल्य में ज्ञान की उपलब्धि । 

( 2 ) विभिन्न प्राविधिक , आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के धरातलों पर उनकी समस्याओं का सूक्ष्म अध्ययन । 

( 3 ) आदिवासी जीवन में एकीकरण की शक्तियों और कारकों का अध्ययन । 

( 4 ) संस्कृति में सहज परिवर्तनशील और परिवर्तन विरोधी पक्षों का विश्लेषण । 

( 5 ) संस्कृति के विभिन्न पक्षों के सम्बद्ध सूत्रों और अन्तरावलम्बन का अध्ययन | 

( 6 ) आदिवासी क्षेत्रों में कार्य करने वाले शासकों तथा अर्द्धशासकीय और सामाजिक कार्यकर्ताओं को आदिवासी जीवन और संस्कृति से परिचित कराने और इन समूहों में किये जाने वाले कार्य को समझने हेतु विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था । 

( 7 ) विचारपूर्वक ऐसी विकास योजनाओं का निर्माण जो आदिवासी समूह की आवश्यकताओं का क्षेत्रीय और राष्ट्रीय आवश्यकताओं से समन्वय कर सके । 

( 8 ) इन योजनाओं द्वारा जनित प्रवृत्तियों की गतिविधि और प्रभावों का अध्ययन तथा उनके हानिकारक तत्वों के निराकरण का प्रयत्न । भारत सरकार द्वारा किये गये जनजातीय कल्याण कार्यों का प्रयास अंग्रेजों के काल से ही भारत सरकार जनजातियों के सुधार के लिए प्रयत्नशील रही है । ब्रिटिश सरकार ने उनके लिए आधुनिक चिकित्सा की सुविधाएँ जुटायीं जिससे उनकी मृत्यु दर में कमी हुई ।


अंग्रेजों ने उनके अमानवीय रीति - रिवाजों पर प्रतिबन्ध लगाया । ब्रिटिश सरकार जनजातियों के कल्याण की तुलना में उन अधिकाधिक नियन्त्रण का प्रयास करती थी । अतः उनकी नीतियों से जनजातियों के लाभ की अपेक्षा हानियाँ अधिक हुई । अंग्रेज सरकार की नीति नकारात्मक थी । तब तक कोई हस्तक्षेप नहीं करते थे , जब तक कोई संकट बढ़ नहीं जाता था । 


संवैधानिक व्यवस्थाएँ – 

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्वाधीन भारत के संविधान के जनजातियों एवं पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए आर्थिक , सामाजिक एवं राजनीतिक न्याय , विचार अभिव्यक्ति , विश्वास , मान्यता एवं धर्म की स्वतन्त्रता और प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता का आश्वासन देता है । भारतीय संविधान में मूल अधिकारी का उल्लेख किया गया है जो नागरिकों को यह विश्वास दिलाते हैं कि धर्म, वर्ग, लिंग, जाति, प्रजाति एवं जन्म के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं बरता जायेगा ।


इससे जनजातियों के प्रति अब तक बरते गये भेदभाव की समाप्ति हो रही है । संविधान में नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख किया गया है जिसमें कहा गय है कि राज्य कमजोर वर्ग के लोगों, विशेषकर अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के शैक्षणिक व आर्थिक हितों को बढ़ावा देगा तथा उन्हें सामाजिक अन्याय एवं शोषण सुरक्षा प्रदान करेगा । संविधान में जनजातियों के लिए दो प्रकार की व्यवस्थाएँ की गयी हैं -


संरक्षी एवं विकासी प्रावधान ( Protective and Promotive Provisions ) । संरक्षी प्रावधानों का उद्देश्य जनजाति हितों की सुरक्षा करना है और विकासी प्रावधानों का उद्देश्य उन्हें प्रगति के अवसर प्रदान करना है । इन दोनों प्रकारों के प्रावधानों का उल्लेख करने वाले संविधान के अंश इस प्रकार हैं 


( 1 ) संविधान के बारहवें भाग के 275 अनुच्छेद के अनुसार केन्द्रीय सरकार राज्यों को जनजातीय कल्याण एवं उनके उचित प्रशासन के लिए विशेष धनराशि देगी । 


( 2 ) पन्द्रहवें भाग के 325 अनुच्छेद में कहा गया है कि किसी भी धर्म , प्रजाति , जाति एवं सेक्स के आधार पर मताधिकार से वंचित नहीं किया जायेगा । विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित किये 


( 3 ) सोलहवें भाग के 330 व 332 वें अनुच्छेद में लोकसभा एवं राज्य गये हैं । 


( 4 ) 335 वाँ अनुच्छेद आश्वासन देता है कि सरकारी नौकरियों में इनके लिए स्थान सुरक्षित रखेगा ।


( 5 ) 338 वें अनुच्छेद में राष्ट्रपति द्वारा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए विशेष अधिकारी की व्यवस्था की गयी है । यह अधिकारी प्रतिवर्ष अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा । 


( 6 ) पाँचवीं अनुसूची में जनजातीय सलाहकार परिषद् की नियुक्त की व्यवस्था है जिसमें अधिकतम 20 सदस्य हो सकते हैं , जिनमें से तीन - चौथाई सदस्य राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के होंगे । 


( 7 ) अनुच्छेद 324 एवं 244 में राज्यपालों को जनजातियों के सन्दर्भ में विशेषाधिकार प्रदान किये गये हैं । 


( 8 ) संविधान में कुछ अनुच्छेद ऐसे भी हैं जो मध्यप्रदेश, असम, बिहार , उड़ीसा आदि के जनजाति क्षेत्रों के लिए विशेष सुविधा देने से सम्बन्धित हैं । इन लोगों के लिए नौकरियों में प्रार्थना - पत्र देने एवं आयु सीमा में छूट दी गयी है । शिक्षण संस्थाओं में भी इन्हें शुल्क से मुक्त किया गया है एवं कुछ स्थान इनके लिए सुरक्षित रखे गये हैं । संविधान में दिये गये इन प्रावधानों का उद्देश्य जनजातियों को देश के अन्य नागरिकों के समकक्ष लाना है । पं . जवाहरलाल नेहरू भी जनजातियों के कल्याण कार्यों में रुचि रखते थे । 


प्रशासनिक व्यवस्था—

आन्ध्र प्रदेश , बिहार , गुजरात , हिमाचल प्रदेश , मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र , उड़ीसा और राजस्थान के कुछ क्षेत्र अनुच्छेद 244 और संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अन्तर्गत ' अनुसूचित ' घोषित किये गये हैं । इन राज्यों के राज्यपाल प्रतिवर्ष अनुसूचित क्षेत्रों की रिपोर्ट राष्ट्रपति को देते हैं । 


कल्याणकारी एवं सलाहकार संस्थाएँ ( Welfare and Advisory Organizations )

केन्द्रीय सरकार के गृहमन्त्री का यह दायित्व है वह अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के कल्याण के लिए योजनाएँ बनाएँ और उन्हें क्रियान्वित करे । अगस्त 1978 में संविधान के अनुच्छेद 348 के तहत अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए एक कमीशन की स्थापना की गयी । यह कमीशन 1955 के नागरिक अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत संविधान में इन लोगों के लिए सुरक्षा सम्बन्धी किये गये प्रावधानों के बारे में जाँच करता है और उचित उपाय सुझाता है । 


संसदीय समितियाँ - भारत सरकार ने 1968 , 1971 तथा 1973 में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के संविधान में प्रदत्त सुरक्षा एवं उनके कल्याण की जाँच के लिए तीन संसदीय समितियाँ भी नियुक्त कीं । वर्तमानकाल में इस समिति की सदस्य संख्या 30 हो गयी है , जिसमें 20 लोकसभा और 10 राज्यसभा के सदस्य होते हैं ।


राज्यों में कल्याण विभाग ( Welfare Departments in the States )

राज्य सरकारों एवं केन्द्रशासित क्षेत्रों मे अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की देखरेख एवं कल्याण के लिए पृथक् विभाग की स्थापना की गयी है । प्रत्येक राज्य का अपना विशिष्ट प्रशासन का तरीका है । राज्यों में केन्द्र की भाँति संसदीय समितियों के समान विधानमण्डलीय समितियाँ भी बनायी गयी हैं । 04 


विधान मण्डलों में प्रतिनिधित्व -संविधान में अनुच्छेद 330 और 332 के द्वारा लोकसभा तथा राज्य विधान मण्डलों में जनजातियों की संख्या के अनुसार स्थान • सुरक्षित किये गये हैं । वर्तमान में लोकसभा में 41 और विधानसभाओं में 527 स्थान अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित किये गये हैं । पंचायती राज व्यवस्था भी लागू होने के साथ ही इन लोगों के लिए ग्राम पंचायतों एवं अन्य स्थानीय निकायों में भी स्थान सुरक्षित किये गये हैं । 


राजकीय सेवाओं में आरक्षण -

अखिल भारतीय आधार पर खुली प्रतियोगिता द्वारा की जाने वाली नियुक्तियों में 74 % स्थान सुरक्षित किये गये हैं । ग्रुप ' सी ' और ' डी ' के पदों के लिए प्रत्येक प्रान्त और केन्द्रशासित प्रदेश अनुसूचित जातियों की जनसंख्या के अनुपात के आधार पर स्थान सुरक्षित रखता है । राज्य सरकारों ने भी अनुसूचित जातियों को राजकीय सेवाओं में भरती करने और उन्हें पदोन्नतियाँ देने के सम्बन्ध में कई प्रावधान किये हैं । साथ ही कुछ अधिकारियों की नियुक्त की गयी है जो यह देखेंगे कि इस प्रावधान का पालन हुआ है या नहीं ।


इस प्रकार जनजातीय कल्याण के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं - जिनके द्वारा उनमें विकास और कल्याण सम्बन्धी कार्यों को सुचारू रूप से चलाया जा रहा है । विभिन्न जनजातीय क्षेत्रों को विकास उपखण्डों में विभाजित कर दिया गया , जिसके द्वारा विकास अधिकारी तथा ग्राम विकास अधिकारी कल्याणकारी कार्यों की योजनाओं को मूर्त रूप देने में लगे हैं ।


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