जनजातीय/आदिम कानून की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
जनजातीय कानून:- जब कोई संगठित शक्ति मानव - व्यवहार से सम्बन्धित किसी नियम को प्रतिपादित करती , उसे लागू करती तथा उसका उल्लंघन करने वाले को दण्ड देती है , तो उस शक्ति के द्वारा प्रतिपादित उस नियम को कानून कहते हैं । कानून मानव व्यवहार से सम्बन्धित वह नियम है जिसे प्रतिपादित करने, उसे लागू करने तथा उसके उल्लंघन करने वाले को दण्ड देने वाले का उत्तरदायित्व एक संगठित शक्ति पर हो ।हॉबल के अनुसार- " कानून एक सामाजिक नियम है जिसका उल्लंघन होने पर धमकी देने या वास्तव में शारीरिक बल का प्रयोग करने का अधिकार एक ऐसे समूह को होता है जिसे ऐसा करने का समाज द्वारा मान्य विशेषाधिकार प्राप्त है । "
लूसी मेयर के अनुसार , “ विधि से हमारा तात्पर्य उन नियमों से है , जो उच्च सत्ता द्वारा बनाये गये हैं । "
मैकाइवर एवं पेज ने लिखा है कि, " कानून नियमों की वह व्यवस्था है जिन्हें राज्यों के न्यायालयों द्वारा मान्यता प्राप्त होती है , न्यायालयों द्वारा इनकी विवेचना होती और किसी विशेष परिस्थिति के अनुसार ही इन्हें लागू किया जाता है । "
रॉस के अनुसार, “ कानून मानव व्यवहार को नियन्त्रित करने वाले औपचारिक विशिष्ट नियमों का स्वरूप जो उन लोगों द्वारा बनाये जाते हैं , जिन्हें राज्य में राजनीतिक शक्ति प्राप्त रहती है और उन्हीं सत्ताधारियों द्वारा लागू किया जाता है । "
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि कानून वे नियम हैं जिन्हें बनाने, लागू एवं उनका उल्लंघन करने पर दण्ड देने की शक्ति समाज के एक संगठित समूह में होती है जिसे हम सरकार कहते हैं । इस प्रकार वर्तमान में हम जिन नियमों को कानून कहते हैं उनका निर्माण राज्य द्वारा किया जाता है ।
यदि हम उपर्युक्त परिभाषाओं के सन्दर्भ में आदिम समाजों में कानून का अध्ययन करें तो निश्चय ही हम यह पायेंगे कि इस अर्थ में वहाँ कोई कानून नहीं पाया जाता क्योंकि वहाँ शासन कानून नहीं बनाते वरन् आज्ञाएँ देते हैं ; जैसे— शत्रुओं के विरुद्ध सेना भेजो, कर वसूल करो , अमुक मनुष्य का वध करो ।
किन्तु वे ऐसे नियम नहीं बनाते जिससे पहले चले आ रहे व्यवहार भविष्य में अवैध करार दे दिये जायें या विवाह को वैध या अवैध घोषित करें या उत्तराधिकार के नियम परिवर्तित कर दिये जाएँ । रैडक्लिफ ब्राउन कानून के अन्तर्गत सारी प्रक्रिया का समावेश करते हैं , जिससे बाध्यकारी नियमों का पालन होता है। मैलिनोवस्की कानून के पालन में बल प्रयोग एवं शक्ति को महत्त्व नहीं देते वरन् वे यह मानते हैं कि नियमों का पालन करना आदिम समाजों में प्रत्येक व्यक्ति का अपना दायित्व है ।
यदि कोई व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है तो अन्य व्यक्ति भी उसके प्रति अपने दायित्व नहीं निभायेंगे । इस प्रकार वर्तमान परिभाषा के सन्दर्भ में जिसमें कानून बनाने , लागू करने एवं दण्ड देने आदि का कार्य विशिष्ट संस्थाओं द्वारा किया जाता है और उन्हें मनवाने के लिए राज्य बल प्रयोग करता है , आदिम समाजों में ये कानून नहीं पाये जाते हैं । आदिम समाज बन्धुत्व पर आधारित है वहाँ प्रथाएँ , परम्पराएँ , गोत्र के नियम एवं नैतिकता ही कानून है । वहाँ प्रथाएँ ही शासक हैं ।
स्वयं आदिम कानून की प्रकृति एवं विशेषताएँ ही ऐसी हैं जो उसे वर्तमान कानूनों से पृथक् करती हैं । आदिम कानून की उत्पत्ति एक लम्बे विकास का परिणाम है । जब कोई व्यक्ति किसी क्रिया को बार - बार दोहराता है तो वह उसकी आदत कहलाती है । यह आदत जब सारे समूह द्वारा अपना ली जाती है तो उसे हम जनरीति कहते हैं । यह जनरीति जब एक पीढ़ी को हस्तान्तरित होती है तो हम उसे प्रथा कहतेहैं ।
जब एक प्रथा को सम्पूर्ण समुदाय का अभिमत प्राप्त हो जाता है और उसके उल्लंघन किये जाने पर दण्ड मिलता है तो कानून अस्तित्व में आता है । आदिम समाजों में कानून बनाने या बदलने के लिए सचेष्ट एवं संकल्पित प्रयास नहीं किये जाते हैं । कानून निर्माण का कार्य सम्पूर्ण समाज द्वारा होता है ।
आदिम कानून की प्रकृति ( Nature of primitive law )
आधुनिक दृष्टिकोण से जब हम कानून की परिभाषा को आदिम समाजों पर प्रयुक्त करते हैं तो हम यह पाते हैं कि वह परिभाषा आदिम समाजों में ठीक - ठीक नहीं बैठती है । दुनिया के अनेक आदिम समाजों में हम यह पाते हैं कि इन समाजों में न कोई अदालत है और न ही पुलिस संगठन । अनेक आदिम समाजों में तो कानून का उल्लंघन होने पर उसका विचार परिवार या नातेदारों के द्वारा ही हो जाता है । दण्ड का स्वरूप भी आधुनिक समाज से काफी भिन्न होता है ।
आदिम समाजों तथा आधुनिक समाजों के कानून में तीन प्रमुख अन्तरों का उल्लेख लोई ने किया है जो कि निम्न है-
1. नातेदारी -
भारतवर्ष में क्षेत्र के आधार दो हैं - एक राज्य सरकार और दूसरी केन्द्रीय सरकार । बहुत से कानून ऐसे हैं जिन्हें राज्य सरकार पास करती है और ये कानून उस राज्य के क्षेत्र के अन्दर ही लागू होते हैं । इसके विपरीत केन्द्र ऐसे कानून को भी पास कर सकता है जो कि सारे देश में लागू होता है । दोनों प्रकार के कानूनों का ही एक निश्चित क्षेत्र होता है और ये कानून उस क्षेत्र में रहने वालों पर लागू होते हैं । परन्तु आदिम समाजों में कानूनों का प्रतिपादन किसी क्षेत्र के आधार पर नहीं होता, बल्कि नातेदारी के आधार पर होता है।
इसका प्रमुख कारण यह है कि समाजों में भूमि या क्षेत्र का महत्त्व उतना नहीं है जितना कि नातेदारी या रक्त - सम्बन्धियों के द्वारा जो कानून बनाया जाता है उसे लागू करना तथा उसका पालन करवाना सरल हो जाता है । प्रायः यह देखा जाता है । कि आदिम समाजों में प्रत्येक गोत्र के कुछ महत्त्वपूर्ण राजनैतिक कार्य होते हैं । एक गोत्र का मुखिया अपने गोत्र के लिए कानून बनाता है और उसका पालन करवाता है ।
2. आचार तथा जनमत -
आदिम समाजों में कानून, प्रथा, आचार , धर्म आदि आपस में इतने अधिक घुले - मिले होते हैं कि इनको एक - दूसरे से अलग करना बहुत कठिन होता है। प्रथा, आचार, धर्म से पृथक्, आदिकालीन कानूनों का कोई अलग अस्तित्व नहीं है । आदिम समाजों के कानूनों पर प्रथा, आचार और धर्म का ही केवल प्रभाव नहीं होता, बल्कि जनमत का भी बहुत प्रभाव हुआ करता है ।
आदिम समाज सरल तथा छोटे होने के कारण इन समाजों में सामाजिक अन्तरक्रिया को व्यक्तिगत रूप से जानता और पहचानता है और साथ ही अनेक आर्थिक तथा सामाजिक विषयों में वह एक - दूसरे पर निर्भर भी होता है । इन आदिम समाजों के विषयों में एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समाज के सदस्यों की प्रमुख समस्याएँ प्रायः एक समान होती हैं । समस्याएँ प्रायः एक - सी होने के कारण जनमत के विभिन्न रूप भी विकसित नहीं हो पाते ।
एक - सा होने पर भी यहाँ जनमत बहुत प्रभावशाली होता है । आदिम समाज के सदस्यों को पारस्परिक अन्योन्याश्रिता के कारण जनमत का यह प्रभाव और भी अधिक होता है । इसी कारण आदिम समाजों के जनमत में वह सत्ता निहित होती है जो व्यक्ति के व्यवहारों पर नियन्त्रण और शासन करती है । इस जनमत का डर प्रत्येक सदस्य को होता है ।
जनमत जिस व्यवहार को उचित मान ले , उसे उसी रूप में स्वीकार कर लेना ही ठीक है अन्यथा समूह से बहिष्कृत हो जाने का डर सदैव रहता है । इन नियमों को, जो कि धर्म, परम्परा तथा आचार पर आधारित होते हैं, आधुनिक अर्थ में कानून कहा जाता है या नहीं यह अलग बात है , किन्तु यदि कानून को समाज द्वारा मान्यता प्राप्त समूह के सदस्यों के व्यवहारों के नियन्त्रक के रूप में मान लिया जाय तो आदिम समाज के ये नियम भी कानून ही हैं ।
3. अपराध और टॉर्ट -
राज्य या समुदाय अपने हितों की रक्षा के लिए कुछ नियमों को प्रतिपादित करता है । इन नियमों को तोड़ना या इनके विरुद्ध काम करना ही अपराध है । इनके विपरीत एक व्यक्ति के व्यक्तिगत हितों के विरुद्ध काम करने को ' टॉर्ट ' कहते हैं । इससे समुदाय राज्य या जनता को नहीं , बल्कि एक व्यक्ति को हानि पहुँचती है । आधुनिक सभ्य समाज में इन दो प्रकार के अपराधों के बीच स्पष्ट भेद माना जाता है ।
अपराध के मामलों में राज्य अपराधी के विरुद्ध कार्यवाही करता है और उसे सजा देता है परन्तु टार्ट के मामलों में राज्य से कोई मतलब नहीं होता है । जिस व्यक्ति के विरुद्ध टार्ट किया गया है वह व्यक्ति अपराधी के विरुद्ध अदालत में कार्यवाही कर सकता है और उससे हर्जाना वसूल करता है या सजा दिलवाता है । परन्तु आदिम समाज में अपराध और टार्ट में विशेष अन्तर नहीं माना जाता ।
अधिकतर व्यक्ति नातेदारों या गोत्र के विरुद्ध अपराध करते हैं । अगर कोई व्यक्ति हानि पहुँचाता है तो सभी व्यक्ति उसके या उसके रिश्तेदारों के विरुद्ध कार्यवाही करते हैं । बदला लेते हैं या दण्डित करते हैं । इसी प्रकार यदि एक गोत्र के सदस्य ने दूसरे गोत्र के किसी सदस्य को हानि पहुँचायी है तो दूसरा गोत्र पहले गोत्र से बदला लेता है । इस प्रकार अपराध या टार्ट के विरुद्ध किया जाने वाला कार्य दण्ड का भागी बनता है ।
आदिम समाजों में कानून का आधार चूँकि धर्म या आचरण होता है इसलिए अधिकतर अपराध या अपराधी क्रिया को पाप की संज्ञा दी जाती है । यह ईश्वरीय नियमों का उल्लंघन माना जाता है । इसलिए यह विश्वास किया जाता है कि अगर कोई सामाजिक नियम तोड़ता है तो उसे ईश्वरीय सजा मिलती है । यह विश्वास अपराध को रोकने या अपराधी को दण्ड देने के विषय में समाज या समूह के उत्तरदायित्व को घटा देता है । अधिक उत्तरदायित्व अलौकिक शक्तियों का होता है ।
कानून के पीछे अभिमति
सामान्य रूप से हम कह सकते हैं कि आदिम समाजों के कानून के पीछे वास्तविक अभिमति जनमत है जिसका कि महत्त्व इन समाजों में अत्यधिक है । आदिम समाज छोटा , सरल तथा आमने - सामने का समाज होता है जिसमें नियन्त्रण के अनौपचारिक साधन अधिक कार्यशील होते हैं । यह सभ्य समाजों की भाँति नहीं होता जिसमें कानून , न्यायालय और पुलिस के द्वारा दण्ड का विधान किया जाता इस प्रकार आदिम जनजातीय समाजों में कानून अनौपचारिक साधन होता है जिसको मान्यता प्राप्त होती है ।
सभ्य समाजों में कानून व दण्ड का विधान औपचारिक साधनों पर निर्भर होता है जो शक्तिशाली व्यक्ति के पक्ष में ही न्याय करता है । मैलिनोवस्की ने आदिम समाजों में पाये जाने वाले कानूनों को पारस्परिक अन्योन्याश्रितता तथा कर्त्तव्य बोध के तत्वों के आधार पर उचित माना है कि इन समाजों में समूह की जागरूकता तथा अन्य विभिन्न प्रकार के दायित्वों के निर्वहन के क्रम में आदिम लोग इन्हें मानते हैं तथा कभी इनके विरुद्ध आचरण नहीं करते ।
सभ्य समाजों में कानून निर्माण का आधार प्रथाएँ होती हैं । प्रथा के विपरीत कोई कानून निर्मित नहीं होता है और जनजातीय समाजों में भी प्रथाओं पर ही बल दिया जाता है । किन्तु महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है कि कानून को तोड़ने की क्षमता सभ्य समाज में होती है । किन्तु जनजातीय समाज में इन्हें कोई तोड़ नहीं सकता । किसी भी अपराधी क्रिया के लिए प्रमाण की आवश्यकता होती है ।
यह सभ्य समाजों में लागू किया जाता है किन्तु आदिम समाजों में इसका निर्धारण प्राकृतिक तरीके से होता है और सभ्य समाजों में दूसरे प्रकार का । जैसे — किसी स्त्री ने अवैध सम्बन्ध स्थापित किया तो आदिम समाज में उसे ऊँची पहाड़ी या टीले से नीचे धक्का देकर गिराया जायेगा - यदि उसके शरीर पर चोट नहीं लगती है तो वह निर्दोष है वरना दोषी । किन्तु सभ्य समाज में डॉक्टरी परीक्षा के द्वारा यह प्रमाणित करके उसका अपराधी होने का अभियोग लगता है । इस प्रकार जनजातीय समुदाय के कानून सभ्य समाजों से भिन्न होते हैं । इसी आधार पर दण्ड के स्वरूपों में भी विभिन्नताएँ पायी जाती हैं ।
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