जनजातीय विवाह - अवधारणा, स्वरूप, तथा प्रकार | Tribal Marriage - Concept, Form, and Types.

जनजातीय विवाह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए तथा जनजातीय विवाह के प्रकारों का वर्णन करें | Explain the concept of tribal marriage and describe the types of tribal marriage.

विवाह की अवधारणा ( Concept of marriage )

पेस्टर मार्क के अनुसार, विवाह एक या अधिक पुरुषों का एक या अधिक जिसमें विदाई करने वाले व्यक्तियों के और उससे पैदा हुए सम्भावित वादों के एक - दूसरे के प्रति होने वाले अधिकारों या कर्त्तव्यों का समावेश होता है । "


लूसी मेयर लिखते हैं, “ विवाह की परिभाषा यह है कि वह स्त्री - पुरुष का ऐसा योग है , जिससे स्त्री से जन्मा बच्चा माता - पिता की वैध सन्तान माना जाय। "


डब्ल्यू. एच. आर. रिवर्स के अनुसार, " जिन साधनों द्वारा मानव समाज यौन सम्बन्धों का नियमन करता है उन्हें विवाह की संज्ञा दी जाती है । " 


मजूमदार एवं मदान के अनुसार, “ इनमें ( विवाह में ) कानून या धार्मिक आयोजन के रूप में उन सामाजिक स्वीकृतियों का समावेश होता है जो दो भिन्न लिंगियों को यौन क्रिया और उससे सम्बन्धित सामाजिक , आर्थिक सम्बन्धों में सम्मिलित होने का अधिकार प्रदान करती है । "


जब हम विवाह के उद्देश्यों पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि -

( 1 ) विवाह परिवार की आधारशिला है और परिवार में ही बच्चों का समाजीकरण एवं पालन - पोषण होता है । 

( 2 ) समाज की निरन्तरता विवाह एवं परिवार से ही सम्भव है । 

( 3 ) विवाह नातेदारी का भी आधार है , विवाह के कारण ही कई नये सम्बन्धों का जन्म होता है । 

( 4 ) विवाह का आर्थिक उद्देश्य भी होता है । आदिवासियों में आर्थिक हितों ' की रक्षा एवं भरण - पोषण के लिए भी विवाह आवश्यक है । 

( 5 ) विवाह का एक उद्देश्य धार्मिक कार्यों की पूर्ति भी है । 

( 6 ) मानसिक सन्तोष एवं रोगों से मुक्ति पाने के लिए भी विवाह जरूरी है ।


मुरडॉक ने लगभग 250 समाजों का अध्ययन किया है और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सभी समाजों में विवाह के तीन उद्देश्य समान रूप से पाये जाते हैं -

( 1 ) यौन सन्तुष्टि , 

( 2 ) आर्थिक सहयोग तथा 

( 3 ) सन्तानों का समाजीकरण एवं पालन - पोषण । 


स्पष्ट है कि विवाह का एक प्रमुख लक्ष्य - यौन इच्छाओं की पूर्ति है जिसे सभी समाजों में मान्यता प्राप्त है । यद्यपि विवाह के उपर्युक्त उद्देश्य सभी समाजों में पाये जाते हैं परन्तु अन्तर केवल यही है कि किसी समाज में धार्मिक कार्यों के सम्पादन , किसी में यौन इच्छाओं की पूर्ति, किसी में आर्थिक सहयोग, तो किसी में सन्तानों के समाजीकरण एवं पालन - पोषण पर विशेष जोर दिया जाता है । 


जनजातियों में विवाह के स्वरूप ( Forms of Marriage in Tribes )

विवाह में सम्मिलित होने वाले वर और वधू की संख्या के आधार पर विवाह के प्रमुख दो भेद हैं

( 1 ) एकल विवाह और

( 2 ) बहुविवाह । 


बहुविवाह के तीन भेद है - यहु पति विवाह , बहु पत्नी विवाह एवं समूह विवाह । 


एकल विवाह -

एकल विवाह से तात्पर्य है एक समय में एक व्यक्ति एक ही स्त्री से विवाह करे । कुछ लोग एक पत्नी की मृत्यु हो जाने पर या तलाक हो जाने पर भी दूसरी स्त्री से विवाह न करने को वास्तविक एकल विवाह मानते हैं , क्योंकि पुरुष एक समय में एक से अधिक स्त्रियाँ नहीं रखता है । एक पत्नी या पति की मृत्यु होने पर पति या पत्नी को कुछ समाजों में दूसरा विवाह करने की छूट होती है । इस प्रकार के विवाह को क्रमिक एकल विवाह कहते हैं ।


बोर्नियो के इबान और अमरीकियों तथा भारत की खस, सन्थाल, कदार आदि जनजातियों में एक विवाह की प्रथा प्रचलित है । एक विवाह , बहु विवाह का सम्बन्ध व्यक्ति से न होकर समाज से है अर्थात् कोई भी व्यक्ति नहीं वरन् समाज की एक विवाही या बहुविवाही प्रथा होती है । इस सन्दर्भ में लूसी मेयर का कथन उल्लेखनीय है ।


वे लिखते हैं— “ एक विवाही और बहु विवाही शब्द विवाह या समाज के लिए प्रयुक्त होते हैं, ' व्यक्तियों के लिए नहीं निष्ठाहीन पति या कामाचारी व्यक्ति को बहु - विवाही कहना भाषा के साथ खिलवाड़ करना है, यद्यपि कुछ लोग ऐसा करते हैं । " जहाँ स्त्री व पुरुषों की संख्या करीब - करीब समान होती है , वहाँ साधारणतः एक विवाह का प्रचलन होता है ।


बहुपति प्रथा -

बहुपति प्रथा बहु विवाह का एक रूप है । बहु विवाह से तात्पर्य , “ एक व्यक्ति का अनेक साथियों से एक ही समय में विवाह होना है । " बहुपति विवाह की परिभाषा करते हुए डॉ . रिवर्स लिखते हैं , " एक स्त्री का कई पतियों के साथ विवाह सम्बन्ध बहुपति विवाह कहलाता है ।


मैकलेनन ही पहला विद्वान था, जिसने मानवशास्त्र के सिद्धान्तों में बहुपति प्रथा का उल्लेख किया । भारत में तिब्बत , देहरादून , जौनसार , बाबर परंगना तथा शिमला की पहाड़ियों , टिहरी गढ़वाल में रहने वाले खस राजपूतों , नीलगिरी की पहाड़ियों में बसने वाले टोडा एवं लद्दाखी बोटा तथा चेन्नई के तियान एवं इरावा तथा मालाबार के नायर आदि लोगों में भी बहुपति प्रथा प्रचलित है । कश्मीर से लेकर असम तक के क्षेत्र में रहने वाले इण्डोआर्यन और मंगोलायड लोगों में भी इस प्रथा का प्रचलन रहा है । 


बहुपति विवाह के दो रूप हैं - एक वह जिसमें एक स्त्री के सभी पति आपस में भाई होते हैं । यह प्रथा तिब्बत में है , अतः मेकलेनन ने इसे तिब्बती बहुपति प्रथा कहा।

जनजातीय विवाह - अवधारणा, स्वरूप, तथा प्रकार
यहाँ खस एवं टोडा जनजाति में पाये जाने वाली बहुपति विवाह प्रथा का वर्णन संक्षेप में प्रस्तुत


खस जनजाति -

खस राजपूत देहरादून जिले से जौनसार, बाबर परगना , टिहरी गढ़वाल और हिमाचल प्रदेश के कुछ भागों में निवास करते हैं । ये लोग अपने को पाण्डुओं की सन्तान मानते हैं और प्रातृक बहुपति प्रथा का पालन करते हैं , यद्यपि सभी खस जाति इस प्रथा का पालन नहीं करते हैं ।


खस लोगों में सबसे बड़ा भाई ही विवाह करके स्त्री लाता है और शेष भाई स्वतः ही उस स्त्री के पति हो जाते हैं । एक माँ से उत्पन्न सगे भाई एक या एक से अधिक स्त्रियों से सम्मिलित रूप में विवाह कर लेते हैं और वह स्त्री या स्त्रियाँ सभी भाइयों की सामूहिक पत्नी या पत्नियाँ होती हैं , परन्तु बड़े भाई का ही पत्नी पर विशेषाधिकार होता है । खस लोगों में इस प्रथा के प्रचलन के अनेक कारण हैं -



( 1 ) इन लोगों का विश्वास है कि वे पाण्डुओं की सन्तानें हैं , अतः इस प्रथा का पालन करना उनका धर्म है । 

( 2 ) सम्पूर्ण खस प्रदेश एक पहाड़ी भाग है, खेती योग्य भूमि की कमी है, जो कुछ खेती होती है, वह सीढ़ीनुमा खेत बनाकर की जाती है , लेकिन भरण - पोषण के लिए कृषि ही पर्याप्त नहीं है । प्रत्येक घर में एक भाई भेड़ चराने का काम करता है । इस प्रकार भौगोलिक व आर्थिक परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि उन्हें बहुपतित्व का पालन करना होता है ।

( 3 ) पुरुषों की तुलना में यहाँ स्त्रियों का भी अभाव है । इसका एक कारण लड़कियों के पैदा होते ही मार देने की प्रथा है । 


टोडा जनजाति

नीलगिरि पर्वत पर निवास करने वाली टोडा जनजाति में भ्रातृक बहुपति विवाह प्रथा प्रचलित है । सभी भाई एक स्त्री से विवाह करते हैं , यहाँ तक कि बाद में पैदा होने वाले भाई भी उस स्त्री के पति माने जाते हैं । डॉ . रिवर्स ने अपने अध्ययन के आधार पर बताया कि कभी - कभी ये भाई सगे न होकर संगोत्री भी होते हैं । एक ही माता से उत्पन्न सौतेले भाई एक स्त्री से विवाह कर सकते हैं ।


रिवर्स का मत है कि टोडा लोगों में किसी समय बहुपतित्व की प्रथा इतनी दृढ़ नहीं थी जितनी वह इस समय है । इन लोगों में सन्तान निर्धारण का एक सांस्कृतिक तरीका प्रचलित है । अधिकांशतः सामाजिक पितृत्व सबसे बड़े भाई को ही प्रदान किया जाता है । फिर भी सभी भाई समान रूप से पिता माने जाते हैं । भारत में खस , टोडा , नायर आदि के अतिरिक्त इरावन, तियान , कुर्गवासियों एवं कोता लोगों में भी बहुपति प्रथा का प्रचलन है ।


बहुपत्नी विवाह -

बहुपत्नी विवाह का अर्थ है - एक पुरुष द्वारा एक से स्त्रियों से विवाह करना । इस प्रकार के विवाह पर धनवान एवं शक्तिशाली लोगो ही विशेषाधिकार रहा है । विश्व में अफ्रीका ही वह भूमि है जहाँ यह प्रथा अधि फली - फूली है । यहाँ राजा और राजक सैकड़ों पलियाँ रख सकते हैं । भिन्न - भिन्न स्त्रियों की सन्तानों को विशिष्ट शब्दों से पुकारतें हैं और उन्हीं के पर वे पहचानी जाती हैं कि वे किसकी सन्तान हैं ।


इससे सगे भाई व अन्य भाइयों भेद जाना जा सकता है । इस्लाम में बहुपत्नी प्रथा व्यापक रूप से प्रचलित रही है ओशनिया में भी विकसित लोगों में यह प्रथा देखी जा सकती है । मलेशिया में वृद्ध पुरुषों का विशेषाधिकार है । एड्रीस्ल दीव में राजकों तथा उन लोगों को पत्नीत्व का अधिकार होता है जिन्होंने युद्ध में दस सिर काटे हों, युगाण्डा में प्रचलिर है । भारत में भी बहुपत्नी प्रथा पायी जाती है । भारत में नागा, गोंड, बैगा, भील, टोडा लुशाई और मध्य भारत की अधिकांश प्रोटो - आस्ट्रेलाइड जनजातियों में यह प्रणा प्रचलित है । 


बहु पत्नीत्व के कारण 

निम्न कारणों से हमें समाज में बहुपत्नी प्रथा देखने को मिलती है -


( 1 ) पुत्र प्राप्ति की लालसा- हिन्दुओं में पुत्र का धार्मिक महत्त्व है , अतः एक स्त्री के कोई सन्तान न हो या केवल पुत्रियाँ ही हों तो पुरुष दूसरा विवाह पुत्र प्राप्ति के लिए करता है । 


( 2 ) आर्थिक कारण - अधिकांश जनजातियाँ पहाड़ी भागों में निवास करती हैं या ऐसे क्षेत्रों में रहती हैं जहाँ जीवनयापन के लिए प्रकृति से कठोर संघर्ष करना पड़ता है । अतः आर्थिक क्रियाएँ कई सदस्यों की एक सहयोगी क्रिया है । अधिक स्त्रियाँ होने पर उन्हें खेतों पर मजदूरों के रूप में काम में लगाया जाता है और वे गृह - कार्य में भी सहयोग प्रदान करती हैं । 


( 3 ) पलियाँ सामाजिक प्रतिष्ठा की भी सूचक हैं धनवान , जमींदार एवं ऐश्वर्यशाली व्यक्ति एकाधिक पत्नियाँ इसलिए रखते हैं कि इससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है ।


( 4 ) स्त्री - पुरुषों के अनुपात में अन्तर - जहाँ स्त्रियों की तुलना में पुरुष कम होते हैं , वहाँ पुरुष एकाधिक स्त्रियाँ रखते हैं । शिकार , युद्ध एवं साहसिक आर्थिक कार्यों में स्त्रियों की तुलना में पुरुषों के मरने के अवसर अधिक होते हैं , इससे पुरुषों की संख्या घट जाती है ।


( 5 ) जहाँ पर साली विवाह प्रचलित है वहाँ प्रथा के रूप में एक व्यक्ति को अपनी पत्नी की सभी बहिनों से विवाह करना पड़ता है । तोगा जनजाति में एक व्यक्ति अपनी सभी सालियों से विवाह करता है । 


( 6 ) देवर विवाह भी इसका एक कारण है - एक भाई की मृत्यु पर उसकी विधवा से दूसरे भाई को विवाह करना होता है । इससे भी जीवित भाई की पत्नियों की संख्या में वृद्धि हो जाती है । 


( 7 ) युद्ध आदि के कारण भी अपहरण करके लायी हुई स्त्रियों से विवाह कर लिया जाता है।


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