जनजातीय धर्म की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिये । Discuss the main features of tribal religion in Hindi.
इस शताब्दी के प्रारम्भ में भारत के आदिवासियों का धर्म एक विचित्र और पाश्विक धर्म समझा जाता था क्योंकि वे लोग धार्मिक कृत्यों को पूरा करने के लिए निःसंकोच नर-बलि देते थे और मानव मुण्डों की मालायें बनाकर गले में धारण करते थे । इन्हीं सब विचित्रताओं को देखकर सर हरबर्ट रिजले ने लगभग आधी शताब्दी पहले लिखा था कि पिछली जनगणना में उल्लिखित धर्मों में यदि सबसे पुराने रूप को धर्म कहा जाता है तो यह केवल मात्र विभिन्न प्रकार के दुखदायी अन्धविश्वासों की एक विचित्र खिचड़ी है ।
परन्तु 30 वर्ष बाद सन् 1931 की जनगणना रिपोर्ट में हट्टन ने यह दावा किया है कि " जनजातीय धर्म अन्यविश्वासी और अशिक्षित व्यक्तियों की अस्पष्ट कल्पना मात्र नहीं है , अपितु एक वास्तविक धार्मिक - पद्धति और सुनिश्चित दर्शन - प्रणाली का भग्नावशेष है । यह धर्म वर्तमान हिन्दू धर्म का मूलाधार है । हिन्दुओं ने अपने अनेक मुख्य धार्मिक विश्वास जैसे आत्मा की अमरता , पुनर्जन्म , आवागमन ( Transmigration ) के सिद्धान्त इन्हीं जनजातियों से प्राप्त किये हैं । "
भारतीय जनजातियों के धर्म की विशेषताएँ ( Characteristics of the Religion of Indian Tribes )
भारतीय जनजातियों के धर्म की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. आत्मावाद ( Animism ) -
रिजले ने जनजातियों के धर्म को आत्मावाद का नाम दिया था । उनका विचार था कि भारतीय जनजाति हैजा, चेचक आदि बीमारियों से बचने के लिए विभिन्न शक्तियों की उपासना करती है और इसके लिए भेंट, पूजा तथा बलियों को चढ़ाती है । उनका यह विश्वास रहा है कि यह सब बीमारियाँ तब आती हैं जबकि अदृश्य आत्मायें, राक्षस या भूत - प्रेत उनसे नाराज हो जाते हैं इसलिए उनकी आराधना या उपासना करना जरूरी है ।
आत्मावाद का एक मुख्य तत्व पूर्वजों की पूजा है । संथाल अपने पूर्वजों की आत्माओं में विश्वास करते हैं , एक विशेष स्थान पर इनकी स्थापना करते हैं , दिवाली तथा नई फसल के समय वे इनका पूजन करते हैं । उनका यह विश्वास है कि ये आत्मायें केवल फसल को ही नहीं बल्कि मनुष्यों के दैनिक व्यवहार की क्रियाओं को भी नियन्त्रित करती
2. मानावाद ( Manaism ) -
डॉ . मजूमदार का मत है कि भारतीय जनजाति के धर्म का सर्वप्रमुख आधार मानावाद है जिसे भारत की जनजातियाँ अपनी भाषा में बोंगावाद कहती है । छोटा नागपुर की ही मुण्डा तथा अन्य जनजातियों में माना जैसी एक अलौकिक , अदृश्य तथा अवैयक्तिक शक्ति पर विश्वास किया जाता है ।इस शक्ति को वे लोग बोंगा कहकर पुकारते हैं ।
हो जनजाति के धर्म का अध्ययन करने से पता चलता है कि बोंगावाद ही हो धर्म है । हो लोगों के लिए रेल का इंजन भी बोंगा है और हवाई जहाज तो उससे भी बड़ा बोंगा है । खेती के लिए मनुष्य और देव आवश्यक हैं । पर इनसे भी आवश्यक हल का बोंगा है जिससे खेत जोतना सम्भव होता है । डॉ . मजूमदार के शब्दों में बोंगा को सभी स्थानों में व्याप्त एक शक्ति समझते हैं । इसका स्वरूप अलौकिक और अवैयक्तिक है ।
अतः यह कोई भी आकृति या रूप धारण कर सकती है, यह शक्ति सब प्राणियों और वनस्पतियों को जीवन प्रदान करती है , यह पौधों को बढ़ाती है । वर्षा , तूफान , बाढ़ आदि लाती है । यह महामारियों को रोकती है , नदियों को प्रवाह प्रदान करती है , साँपों के विष का मूल है । चीतों , भालुओं , भेड़ियों आदि की शक्ति का कारण है । अतः स्पष्ट है कि बोंगावाद का जनजातीय धर्मों में काफी महत्वपूर्ण स्थान है ।
3. प्रकृतिवाद ( Naturism ) -
भारतीय जनजातीय धर्म की एक प्रमुख विशेषता प्रकृतिवाद है । उन लोगों में प्राकृतिक पदार्थों की पूजा के अनेक उदाहरण मिलते हैं । वे लोग सूर्य देवता के उपासक हैं । आसाम के गारो चन्द्रमा और सूर्य की पूजा करते हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए अनेक पशुओं की बलि देते हैं ।
4. जादू ( Magic ) -
जनजातीय जीवन में धर्म और जादू आपस में इतना अधिक मिले हैं कि इन्हें पृथक नहीं किया जा सकता । यह दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
भारत की जनजातियों के धर्म ( Religions of the Tribes of India )
किसी समय यह समझा जाता था कि भारत की जनजातियों में धर्म का विचार नहीं है , परन्तु उसके बाद यह कहा जाने लगा कि उनमें जातिवाद ( Animism ) पाया जाता है उदाहरणार्थ, कोरवा जनजाति के लोग खेती का एक अलग, वर्षा का एक अलग, पशुओं की देख - रेख करने वाला एक अलग देवता मानते हैं । पड़ोसियों के साथ उनके व्यवहार को नियन्त्रित करने वाला उनका देवता अलग ही है ।
देवता शुभ तथा अशुभ दोनों प्रकार के होते हैं । शुभ की उपासना का कोई फायदा नहीं क्योंकि वह कोई नुकसान नहीं पहुँचाता , अशुभ ही तो नुकसान पहुँचाता है , उसी को सन्तुष्ट करना होता है । इसलिए कहा जाता था कि भारत की आदिवासी जनजातियों के जीववाद में अधिकतर अशुभ देवताओं की पूजा का ही विधान मिलता है । कहीं नाग की पूजा , तो कहीं खून पीने वाली किसी देवी की पूजा ।
भारत की जनजातियों के धर्म के विषय में हट्टन ( Hutton ) का कहना है कि इन्हें जीववाद ( Animism ) कहने के स्थान पर जनजातीय धर्म ( Tribal religion ) कहना अधिक उपयुक्त है क्योंकि इनका हिन्दू - धर्म से इतना गहरा सम्बन्ध है कि अगर हिन्दू धर्म को जीववाद न कहकर हिन्दुओं का धर्म कहा जाता है तो इन्हें भी जीववाद न कहकर जनजातियों का धर्म कहना चाहिए ।
हुट्टन का यह कहना तो नहीं है कि हिन्दू धर्म और जनजातियों के धर्म में भेद नहीं है परन्तु वह इस बात पर अवश्य जोर देता है कि ये दोनों एक - दूसरे से इतने घुल - मिल गये हैं कि कहीं-कहीं इनको एक-दूसरे से अलग - अलग करना कठिन हो जाता है । उसका कहना है कि हिन्दू धर्म में जनजातियों को बहुत अधिक अंश में आत्मसात कर लिया है , उनकी अनेक बातों को अपना लिया है , और जनजातियों के धर्मों में अब भी बहुत कुछ ऐसा मसाला बचा हुआ है कि जिसे अभी तक हिन्दू धर्म ने आत्मसात् नहीं किया है ।
एलविन ( Elwin ) भी हट्टन से सहमत हैं । उनका कहना है कि हिन्दू - धर्म तथा जनजातियों के धर्मों में भेद करना कठिन है । घुरिये ( Ghurye ) का तो यहाँ तक कहना है कि हिन्दू धर्म तथा जनजातियों के धर्म में कोई भेद ही नहीं है , जनजातियाँ सिर्फे हिन्दू धर्म के निम्न स्तर के लोगों के नाम हैं । इन जनजातियों को हिन्दुओं से अलग सत्ता ही नहीं है , इन्हें जीववादी या आदिवासी कहने के स्थान पर पिछड़े हुए हिन्दू कहना अधिक उपयुक्त है ।
घूरिये का कथन अत्युक्तिपूर्ण प्रतीत होता है , क्योंकि आदिवासियों तथा हिन्दुओं एवं उनके धर्मों में कुछ आधारभूत भेद भी दिखाई देते हैं । यह हो सकता है कि मिशनरी स्पिरिट में कुछ हिन्दुओं के उद्योगों का परिणाम यह हो रहा हो कि आदिवासी अपने धर्म को छोड़कर हिन्दू धर्म को अपनाते जा रहे हों और उनके धर्म तथा हिन्दू धर्म के कम भेद होता दीखता हो परन्तु जैसा एलविन ने कहा है, आदिवासी जिन देवी - देवताओं को पूजते चले आ रहे हैं उनसे दो - चार अधिक या नये देवी-देवताओं को पूजने में भी उन्हें कोई एतराज नहीं दीखता , इसलिए वे अपने देवताओं के साथ हिन्दुओं के देवी-देवताओं को भी पूजने लगे हैं, परन्तु फिर भी इन दोनों में भेद बना ही हुआ है ।
हट्टन ने तो इस भेद को दर्शाने के लिए आदिवासियों के धर्म की कुछ विशेष-विशेष बातों का उदाहरण भी दिया है । उदाहरणार्थ , आदिवासियों के कई धर्मों में दूसरे का सिर काट लाना ( Head hunting ) महत्व की वस्तु है। नागा लोगों में जो युवा दूसरों का सिर काट लाता है वह विवाह का अधिकारी समझा जाता है। यह प्रथा यद्यपि अब धीरे- धीरे हटती जा रही है तथापि अभी तक यह प्रथा नागा लोगों में रही ।
इसी प्रकार नर-बलि ( Human sacrifice ) कहीं-कहीं महत्वपूर्ण धार्मिक संस्कार है । फिर भी इसमें सन्देह नहीं कि ज्यों - ज्यों ये जनजातियों हिन्दुओं के समर्थ में आती जा रही हैं, त्यों-त्यों इनके धार्मिक विचारों, विधि-विधानों में पहले से आता जा रहा है । इसका दो तरह का परिणाम है । एक तो इसका अच्छा परिणाम है । अगर वे इस सम्पर्क के परिणामस्वरूप घृणित धार्मिक कृत्यों को छोड़ दें, दूसरों का सिर काटना, नर-बलि चढ़ाना आदि का त्याग कर दें, तो अच्छा है, परन्तु इस सम्पर्क का एक बुरा परिणाम भी हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप आदिवासियों का पर ही नष्ट हो सकता है।
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