टोडा जनजाति ( Toda Tribe )
खुले आसमान के नीचे और प्रकृति की गोद में निवास करने वाले टोडा जनजाति का निवास - क्षेत्र नीलगिरि का सुन्दर पहाड़ी प्रदेश है । यह जनजाति पशु - पालन स्तर का प्रतिनिधित्व करती है । इस जनजाति में न तो खेती का काम किया जाता है और न ही किसी तरह की दस्तकारी देखने को मिलती है । इसके बाद भी इनकी अर्थ - व्यवस्था कादर जनजाति की तुलना में काफी अच्छी है तथा जीवन स्तर भी काफी ऊँचा देखने को मिलता है ।
कारण यह है कि सभी टोडा पशु - पालक हैं । टोडा लोग भैंस के दूध को बेचकर, इसी के द्वारा अपनी जरूरत की सभी वस्तुओं को प्राप्त करते हैं । नीलगिरी पर्वत की तलहटी पर रहने वाले बगाडा इनसे दूध प्राप्त करके उसे मैदानी क्षेत्रों में बेचते हैं तथा बदले में टोडा लोगों को अनाज और कपड़ा देते हैं । बगाडा इन टोडाओं को कुछ वार्षिक उपहार भी देते हैं जिससे टोडाओं को जादू - टोने से बचाया जा सके ।
टोडा जनजाति की अर्थ व्यवस्था भैंस पर आधारित होने के कारण भैंस को इतना पवित्र माना जाता है कि स्त्रियों को मासिक धर्म के समय भैंस को छूने की भी अनुमति नहीं होती । भैंस का दूध निकालने का काम करने वाले लोगों को ' पुलोल ' कहा जाता है । इन पुलोलों की प्रतिष्ठा पुरोहित के समान होती है तथा साधारतया पुलोल से अविवाहित रहकर पवित्र जीवन व्यतीत करने की आशा की जाती है टोडा लोगों के पास किसी तरह के अस्त्र - शस्त्र नहीं होते , यद्यपि लकड़ी काटने के लिए कुल्हाड़ी का प्रयोग अवश्य करते हैं ।
यहाँ तीर कमान का उपयोग कुछ विशेष उत्सवों पर प्रतीक के रूप में ही किया जाता है । तीर - कमान के द्वारा कभी शिकार नहीं किया जाता । टोडा जनजाति के क्षेत्र में ही एक दूसरी जनजाति ' कोटा ' रहती है । कोटा जनजाति के लोग टोडाओं से दूध लेकर बदले में उन्हें मिट्टी की बर्तन , लोहे के उपकरण तथा दूध के उपयोग में लाये जाने वाले बर्तन प्रदान करते हैं ।
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