गोंड जनजाति ( Gond Tribe )
गोंड जनजाति: साधारण जीवन व्यतीत करने वाले तथा प्रकृति की छत्र-छाया में रहने वाले गोंड जनजाति का निवास मध्य प्रदेश है, मध्य प्रदेश में रहने वाली गोंड जनजाति भारत की प्रमुख जनजातियों में से एक है । इस जनजाति के बहुत से लोग मध्य प्रदेश बाहर भी रहते हैं लेकिन इनका मुख्य निवास केन्द्र छत्तीसगढ़ , दमोह , बस्तर , सागर और बिलासपुर है ।
आर्थिक विकास के स्तर के दृष्टिकोण से यह जनजाति मिश्रित अर्थ - व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करती है । इसका तात्पर्य है कि इस जनजाति की अर्थ - व्यवस्था में खाद्य पदार्थों के संचय, खेती, घरेलू उद्योगों तथा श्रम का साथ - साथ समावेश है । गोंड जनजाति के लोग मुख्यतः खेती करके अथवा उद्योगों और निजी प्रतिष्ठानों में श्रम करके अपनी आजीविका उपार्जित करते हैं । सीमित साधनों के कारण इनके यहाँ साग - सब्जी उगाने के साथ ही तम्बाकू की खेती भी की जाती है ।
कुछ गोंड ' कुटकी ' नामक धान भी उगाते हैं तथा उपज का अधिकांश भाग अपने खाने के लिए सुरक्षित रखते हैं । कृषि कार्य से अवकाश मिलने के समय बहुत से गोंड जंगलों से फल - मूल एकत्रित करके अपनी आवश्यकता को पूरा करने का प्रयत्न करते हैं । गोंड जनजाति में सूत कातने, बेंत की टोकरियाँ बनाने तथा मिट्टी के बर्तन बनाने का भी काम किया जाता है ।
आवश्यकता पड़ने पर गोंड लोग छोटे - छोटे जानवरों का शिकार करके भी अपनी उदर - पूर्ति करते हैं । सच तो यह है कि गोड जनजाति प्रत्येक दृष्टिकोण से आर्थिक विकास के लिए मिश्रित स्वरूप को स्पष्ट करती हैं । इस जनजाति में एक ओर अत्यधिक निर्धन और साधनहीन लोग हैं तो दूसरी ओर बहुत से गोंड स्वतंत्र रूप से अपना व्यापार चलाते हैं तथा कार्यालयों में काम करते हैं । इनके बीच की श्रेणी उन गोंडो की है जो उद्योगों और निजी प्रतिष्ठानों में नौकरी करके अपनी आजीविका उपार्जित करते हैं ।
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