अभौतिक संस्कृति का वर्णन 150 शब्दों में लिखिए ।
अभौतिक संस्कृति ( Non - Material Culture ) - अभौतिक संस्कृति ( Non - Material Culture ) अधिकांश विद्वानों ने संस्कृति को इसके अभौतिक पक्ष के आधार पर परिभाषित किया है । वास्तविकता यह है कि अभौतिक तत्व सम्पूर्ण संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण भाग अवश्य है लेकिन केवल इन्हीं के आधार पर संस्कृति को परिभाषित नहीं किया जा सकता ।
अभौतिक संस्कृति का तात्पर्य संस्कृति के उस पक्ष से हैं । जिसका कोई स्थूल स्वरूप नहीं होगा तथा जो विचारों और विश्वासों के माध्यम से मानव व्यवहारों को प्रभावित करता है । उदाहरण के लिए, अपनी सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत के द्वारा किसी समाज में जितने भी विचारों, विश्वासों, नियमों, परम्पराओं, लोकाचारों, प्रथाओं और जनरीतियों का विकास होता है, वे सभी संस्कृति के अभौतिक तत्व हैं ।
स्पष्ट है कि मानव सगाज को प्रभावित करने में यह अभौतिक संस्कृति की अपेक्षा अधिक प्रभावपूर्ण होती है । व्यक्ति यदि भौतिक संस्कृति से अनुकूलन न करे तो इसका उसके सामाजिक अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन अपनी अभौतिक संस्कृति से अनुकूलन न करने पर व्यक्ति को कठोर सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ता है ।
यही कारण है कि अभौतिक संस्कृति की स्कृति स्थिर होती है । व्यक्ति इसके रूप में परिवर्तन करने का साहस बहुत कठिनता से ही कर गते हैं । इसका संस्कृति के इस पक्ष में बाध्यता का गुण रॉबर्ट बीरस्टीड ने अभौतिक संस्कृति में विचारों और आदर्श नियमों को सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है ।
इसके विवेचन से अभौतिक संस्कृति की प्रकृति को सरलतापूर्वक समझा जा सकता है । विचार अभौतिक संस्कृति में कुछ विशेष प्रकार के विचारों अथवा विश्वासों का विकास होता है तथा उस समाज के सदस्यों से इनका पालन करने की आशा की जाती है । विचारों की कोई संख्या निर्धारित नहीं की जा सकती । इसके पश्चात् भी अध्ययन की सरलता के लिए इन सभी विचारों को आठ भागों में बाँटा जा सकता है -
1 . वैज्ञानिक सत्य
2. धार्मिक विश्वास
3. पौराणिक कथायें
4. उपाख्यान ( Legends )
5. साहित्य
6. अन्ध विश्वास
7 . सूत्रं ( Aphorisms )
8. लोकोक्तकियाँ तथा लोकगाथायें आदि ।
ये सभी विचार अभौतिक संस्कृति के प्रमुख तत्व हैं । आदर्श नियमों का सम्बन्ध विचार करने से नहीं बल्कि हमारे व्यवहार करने के तरीकों से है । प्रत्येक समाज व्यवहार के कुछ ऐसे नियमों का पालन करने पर जोर देता है जिन्हें उस समाज की संस्कृति उचित समझती है । प्रत्येक समाज की संस्कृति कुछ अर्थों में एक दूसरे से भिन्न होती है , इसलिए कि उसके आदर्श नियम एक - दूसरे से भिन्न देखने को मिलते हैं ।
उदाहरणार्थ यदि हमें किसी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना है तो इसके लिए विभिन्न संस्कृतियों के आदर्श नियम एक - दूसरे से भिन्न हो सकते हैं । हम साथ जोड़कर अथवा पैर छूकर यह कार्य करते हैं , पश्चिमी संस्कृति के नियम हाथ मिलाने अथवा हाथ उठाकर हिलाने की स्वीकृति देते हैं ।
फीजी और टोंगा लोग किसी का सम्मान करने के लिए उसके सामने बैठ जाते हैं जबकि अफ्रीका की मसाई जनजाति में एक - दूसरे पर थूककर परस्पर सम्मान और स्नेह दिखाने का नियम है । इससे स्पष्ट होता है कि हम किस प्रकार से व्यवहार करेंगे , यह हमारे उन नियमों पर आधारित है जिन्हें संस्कृति अपना ' आदर्श ' मानती है ।
बीरस्टीड ने सभी प्रमुख आदर्श नियमों को 14 भागों में विभाजित किया है -
1 . कानून
2. अधिनियम
3. नियम
4. नियमन ( Regulation )
5. प्रथायें
6. जनरीतियाँ
7. लोकाचार
8. संस्कार
10. निषेध
11 . सदाचार
12. परिपाटी
13. कर्म - काण्ड
14. अनुष्ठान ।
ये सभी विचार विश्वास एवं नियम अमूर्त है इसलिए इससे बनने वाले सांस्कृतिक पक्ष को अभौतिक संस्कृति कहा जाता है।
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