सांस्कृतिक विकास का प्रसारवादी सिद्धान्त को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए-
सांस्कृतिक विकास का प्रसारवादी सिद्धान्त उद्विकास की आलोचनाओं के फलस्वरूप बीसवीं शताब्दी के आरम्भ से ही विकसित होना आरम्भ हो गया । इस सिद्धान्तक के प्रतिपादक यही मानते हैं कि संस्कृति का विकास कुछ आन्तरिक कारकों के प्रभाव से स्वयं ही अनेक स्तरों के माध्यम से स्पष्ट होता है बल्कि उन्होंने संस्कृति के विकास को विभिन्न समूहों के पारस्परिक सम्पर्क तथा सांस्कृतिक विशेषताओं के आदान - प्रदान की प्रक्रिया का परिणाम माना है ।
शाब्दिक रूप से प्रसार का अर्थ होता है ' फैलना ' । इसका तात्पर्य है कि जब किसी स्थान पर आविष्कृत अथवा विकसित संस्कृति - तत्त्व दूसरे स्थानों में फैलने लगते हैं तो इसी दशा को हम ' प्रसार ' के नाम से सम्बोधित करते हैं । वास्तविकता यह है कि जब विभिन्न मान - समूह एक - दूसरे के निकट सम्पर्क में आते हैं तो एक समूह दूसरे की उन विशेषताओं को ग्रहण करने लगता है जो उसे अपने लिए उपयोगी अथवा आवश्यक प्रतीत होती है ।
इसके फलस्वरूप अनेक सांस्कृतिक तत्त्व जो पहले किसी एक समूह की विशेषता होते हैं, धीरे-धीरे अनेक समूहों की विशेषता बन जाते हैं । इस सिद्धान्त के तीन प्रमुख सम्प्रदाय हैं-
( 1 ) ब्रिटिश प्रसारवादी सम्प्रदाय ( British Diffusionsistic School )
इस सम्बन्ध के प्रमुख प्रतिपादक इलियट स्मिथ तथा पेरी हैं । स्मिथ एक मानवशास्त्री होने के साथ ही शरीर रचनाशास्त्र के विशेषज्ञ थे और एक लम्बे समय तक अपने शोध कार्य के लिए वह मिश्र में रहे । ऐसा प्रतीत होता है कि स्मिथ मिश्र की प्राचीन संस्कृति से अत्यधिक प्रभावित हुए और इसलिए आपने अपनी पुस्तक " The Ancient Egeptian तथा The Migration of Early Culture ' में यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि संसार में सबसे आरम्भिक संस्कृति का जन्म मिस्र में हुआ और वहीं से इसका दुनियाँ के अन्य देशों में प्रसार हुआ । स्मिथ के अनुसार मिस्र की संस्कृति के अनेक तत्त्व भूमध्यसागरीय प्रदेशों इण्डोनेशिया , पोलीनेशिया तथा अमेरिका में फैल गये ।
( 2 ) जर्मन प्रसारवादी सम्प्रदाय ( German Diffusionsistic School )
इसे ऐतिहासिक सम्प्रदाय भी कहा जाता है क्योंकि यह सम्प्रदाय विभिन्न सांस्कृतिक तत्वों के इतिहास और उनके प्रसार को ज्ञात करने पर अधिक बल देता है । इस सम्प्रदाय के प्रमुख प्रतिपादक शिमिट, ग्रैबनर तथा फॉय हैं । यह सम्प्रदाय ब्रिटिश प्रसारवादी सम्प्रदाय से इस अर्थ में भिन्न है कि इसके द्वारा उद्विकास तथा प्रसार दोनों का मिश्रण करते हुए संस्कृति के विकास को स्पष्ट किया गया है । इसके अनुसार संस्कृति का मूल स्रोत कोई एक स्थान होना आवश्यकनहीं है बल्कि समय - समय पर विभिन्न स्थानों पर संस्कृति के विभिन्न तत्त्वों का जन्म होता है वहीं से ये तत्त्व दूसरे स्थानों पर फैलने लगते हैं ।
( 3 ) अमरीकन प्रसारवादी सम्प्रदाय ( American Diffusionsistic School )
इस सम्प्रदाय के प्रमुख प्रतिपादक अमरीकन मानवशास्त्री फ्रेन्ज बोआस तथा क्लार्क विसलर हैं । आपने जर्मन - प्रसारवादी सम्प्रदाय के दोष को दूर करते हुए यह स्पष्ट किया कि संस्कृति का प्रसार ' किस प्रकार ' और ' क्यों ' होता है । बोआस ने उत्तरी अमरीका में पाये जाने वाले विभिन्न संस्कृति तत्त्वों का अध्ययन करके यह निष्कर्ष दिया कि सम्पूर्ण विश्व में सांस्कृतिक प्रसार की एक साथ विवेचना नहीं की जा सकती है ।
संस्कृति के प्रसार को समझने के लिए आवश्यक है । कि संसार को विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों में विभाजित कर लिया जाए और इसके पश्चात् उन क्षेत्रों में ऐसे सांस्कृतिक तत्त्वों को ढूंढ़ा जाए जो प्रसार के द्वारा वहाँ विकसित हुए हैं । इसी की सहायता से उन कारणों को भी ज्ञात किया जा सकता है जो प्रसार को प्रोत्साहन देने में सहायक सिद्ध हुए ।
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