मातृसत्तात्मक परिवार किसे कहते हैं? - What is a Matrilineal family

मातृसत्तात्मक परिवार ( Matrilineal Family ) का संक्षेप में वर्णन कीजिए-

आज, भी भारत के अनेक जनजातियों में मातृसत्तात्मक परिवार पाये जाते हैं । मातृसत्तात्मक परिवार मातृस्थानीय या मातृवंशीय भी होते हैं । इनमें परिवार की सत्ता माता के हाथ में होती है । विवाह के पश्चात् पुरुष को स्त्री के घर पर जाकर रहना पड़ता है । इन परिवारों में पति की अपेक्षा पत्नी के अधिकार होते हैं । परिवार की मुखिया माता होती है । मातृसतात्पद परिवार भारत की खासी और गारी जनजातियों में पाये जाते हैं । 


मातृसत्तात्मक परिवार की विशेषताएँ -

मातृसत्तात्मक परिवारों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 

1. विवाह के पश्चात् पति ससुराल में जाकर रहता है । 

2. परिवार की वंशावली माता के नाम पर चलती है । 

3. परिवार की सम्पत्ति उत्तराधिकार में लड़के ही नहीं वरन् लड़कियों को भी मिलती है । 

4. अनेक मातृसत्तात्मक परिवारों में पुरोहित का कार्य भी स्त्रियाँ ही करती हैं । 

5. परिवार संरचना में पत्नी या सास की स्थिति सर्वोच्च एवं महत्त्वपूर्ण होती है । 

6. स्त्री को तलाक सम्बन्धी अधिकारों में प्रमुखता प्राप्त होती है । 


भारतीय जनजातियों में मातृसत्तात्मक परिवार ( Matriachal Family in Indian Tribals ) 


भारत की अनेक जनजातियों में मातृसत्तात्मक परिवार पाये जाते हैं । ऐसी जनजातियों में ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी तट पर निवास करने वाली खासी और गारो जनजातियाँ प्रमुख हैं । इन जनजातियों के मातृसत्तात्मक परिवारों को संक्षेप में निम्न प्रकार से दर्शाया जा सकता है 


( क ) खासी जनजाति -

खासी जनजाति आसाम प्रदेश के खासी और जयन्तिका पर्वतीय जिलों में निवास करती हैं । खासी परिवार मातृस्थलीय होते हैं । अर्थात् पति अपने ससुराल में जाकर रहता है । “ मातृस्थानीय परिवार में औरतों और आदमियों की सारी कमाई मुखिया औरत खर्च करती है । पारस्परिक कानून के कानून सम्पत्ति पर स्वामित्व या पुरुषों का कोई वैयक्तिक अधिकार नहीं के होता, चाहे वे पति हों या पुत्र ।


सम्पत्ति की उत्तराधिकारी स्त्रियाँ ही होती हैं । " खासी मातृसत्तात्मक परिवारों में क्रियाओं और आयोजन में पुरुषों की कोई भूमिका नहीं होती । परिवार की छोटी पुत्री सभी धार्मिक क्रियाओं और कृत्यों को सम्पन्न करती है । पैतृक सम्पत्ति पर अधिकार भी खासी परिवारों में पुत्री का ही होता है ।


इन परिवारों में पुत्री के अभाव की पूर्ति गोद लेकर की जा सकती है । खासी मातृसत्तात्मक परिवारों में नारी की स्थिति पुरुषों से उच्च है , इस पर भी खासी स्त्रियाँ अपने पतियों को स्वामी के समानारथी शब्दों से सम्बन्धित करती हैं । तलाक के सम्बन्ध में भी पनि और पत्नी दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं । 


( ख ) गारो -

गारो जनजाति भी आसाम प्रदेश में निवास करती है । गारो जनजाति मातृसत्तात्मक है । विवाह के पश्चात् पति अपनी पत्नी के घर जाकर रहता है । गारो जनजाती में ' को सम्पतति में कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता , वरन् छोटी लड़की को प्राप्त होता है ।


न्य लड़कियाँ विवाह के पश्चात् अपना पृथक् परिवार बसा लेती हैं लेकिन छोटी लड़की विवाह के पश्चात् भी माता के घर पर ही रहती है । पारिवारिक पूजा और माता की अंत्येष्टि संस्कार आदि कार्य छोटी लड़की द्वारा ही किये जाते हैं । गारो जनजाति में पुत्रियों के पतियों के लिए दो प्रकार के सम्बोधनों का प्रयोग किया जाता 

( 1 ) नोक्रम - यह सम्बोधन उस पुत्री के पति के प्रयोग में होता है , जिसको परिवार का उत्तराधिकार देने का निश्चय किया जाता है । 

( 2 ) चोवारी - यह सम्बोधन उन पुत्रियों के पतियों के प्रयोग में होता है , जो परिवार की सम्पत्ति का उत्तराधिकार प्राप्त नहीं करती । नोक्रोम जाति ( छोटी कन्या का पति ) अपनी पत्नी के साथ सास - ससुर के परिवार में रहता है । छोटी लड़की का विवाह बुआ के लड़के से होता है । इस प्रकार मामा की लड़की से विवाह इन गारो समाज में उत्तम माना जाता है ।


अतः इनमें मामा और ससुर के लिए एक ही सम्बोधन का प्रयोग किया जाता है । गारो जनजाति में ससुर की मृत्यु हो जाने पर विधवा सास अपनी पुत्री के पति ( नोकोम ) से विवाह कर लेती है । इस प्रकार इस जनजाति में अपवाद रूप में सास - दामाद विवाह पाया जाता है ।


विवाह का यह नाटक परिवार की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है ताकि सम्पत्ति पर पुत्री का अधिकार बना रहे । गारो जनजाति यदि किसी परिवार में कन्या नहीं होती तो पुत्री को गोद लेने की प्रथा है । इन परिवारों में विवाह का प्रस्ताव स्त्रियों के पक्ष से जाता है । विवाह के समय कन्या मूल्य - या वर - मूल्य जैसी किसी प्रकार की प्रथा नहीं है ।


निष्कर्ष -

उपरोक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि जनजातीय समाजों में परिवार के विविध रूप पाये जाते हैं । विश्व भर में परिवार के जितने भी रूप सम्भव हैं - वे समस्त रूप भारत की जनजातियों में पाये जाते हैं । सभ्य समाजों के सम्पर्क के परिणामस्वरूप भारतीय जनजातियों में प्रचलित परिवार के स्वरूपों में भी परिवर्तन आ रहा है।


यह भी पढ़ें- साम्राज्यवाद के विकास की सहायक दशाएँ ( कारक )

यह भी पढ़ें- ऐतिहासिक भौतिकतावाद

यह भी पढ़ें- अनुकरण क्या है? - समाजीकरण में इसकी भूमिका

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण में कला की भूमिका

यह भी पढ़ें- फ्रायड का समाजीकरण का सिद्धांत

यह भी पढ़ें- समाजीकरण और सामाजिक नियंत्रण के बीच सम्बन्ध

यह भी पढ़ें- प्राथमिक एवं द्वितीयक समाजीकरण

यह भी पढ़ें- मीड का समाजीकरण का सिद्धांत

यह भी पढ़ें- सामाजिक अनुकरण | अनुकरण के प्रकार

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण में जनमत की भूमिका

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधन

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top