जनजातीय परिवार के विविध प्रकारों का वर्णन कीजिए ।
जनजातीय परिवार के स्वरूप ( Types of Family in Tribes ) भारतीय जनजातियों में परिवार के अनेक स्वरूप पाये जाते हैं , जिनका वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है-
( 1 ) सदस्य संख्या के आधार पर वर्गीकरण
( क ) केन्द्रीय परिवार
( ख ) विस्तृत परिवार ।
( 2 ) विवाह के आधार पर वर्गीकरण
( क ) एकविवाही परिवार
( ख ) बहुविवाही परिवार ।
( 3 ) सत्ता के आधार पर वर्गीकरण
( क ) पितृसत्तात्मक परिवार
( ख ) मातृसत्तात्मक परिवार ।
( क ) केन्द्रित परिवार ( Nuclear Family )
परिवार का यह स्वरूप भारत की ' हो ' जनजाति में पाया जाता है । परिवार का यह सबसे छोटा स्वरूप है । इस प्रकार के परिवार में पति - पत्नी और अविवाहित बच्चे आते हैं । डॉ ० रचना को कई नामों से जाना जाता है , यथा , केन्द्रित, निकटस्थ या प्राथमिक परिवार यूँ इन मजूमदार ने इस सन्दर्भ में कहा है " पति - पत्नी और इनकी सन्तानों की इस आधारभूत समूह सभी शब्दों का अभिप्राय एक समान है । " ऐसे परिवारों में परिवार से बाहर के रक्त सम्बन्धियों को सम्मिलित नहीं किया जाता अर्थात् बाहरी रिश्तेदार सम्मिलित नहीं होते । इन परिवारों को एकांकी परिवार भी कहते हैं ।
( ख ) विस्तृत या संयुक्त परिवार
संयुक्त परिवार में केन्द्रित परिवारों का समवेश होता है । इस प्रकार के परिवार भारत की खस , गारो , भील और गोंड जनजातियों में पाये जाते हैं । विस्तृत परिवार का रूप हिन्दुओं में प्रचलित संयुक्त परिवार जैसा है । थारू जनजाति में भी विवाह का यही स्वरूप पाया जाता है । डॉ ० श्यामाचरण दूबे ने विस्तृत परिवार की परिभाषा करते हुए कहा है “ विस्तारित परिवार की संज्ञा उस परिवार संकुल को तदी जा सकती है , जो वंशानुक्रम से सम्बद होते हुए भी अपनी भिन्न - भिन्न इकाइयों के रूप में परिवारों में बँटा हुआ हो । "
( 2 ) विवाह के आधार पर वर्गीकरण
( क ) एक - विवाही परिवार ( Monogamous Family )
एक समय में एक स्त्री और एक पुरुष के विवाह वाले परिवार को एकविवाही परिवार कहा जाता है । वधू मूल्य की प्रथा के कारण वैसे भी एक समय में एक से अधिक स्त्रियाँ रखना कठिन होता है । भारत की अधिकांश जनजातियों में एक - विवाही परिवार ही पाय एजाते हैं । आसाम की खासी जनजातियों में एक - विवाही परिवार का ही प्रचलन है ।
( ख ) बहुविवाही परिवार ( Polygamous Family )
भारतीय जनजातियों में बहुविवाही परिवार का स्वरूप भी पाया जाता है । बहुविवाही परिवार के भी दो स्वरूप है-
( 1 ) बहुपत्नी परिवार
( 2 ) बहुपति परिवार ।
( 1 ) बहुपत्नी परिवार -
विवाह के इस स्वरूप के अन्तर्गत एक व्यक्ति की एक से अधिक पत्नियाँ होती हैं । बहुपत्नी परिवार भारत की लगभग सभी जनजातियों में मिल जाते हैं । बहुप परिवार भारत की लगभग सभी जनजातियों में मिल जाते हैं । वैसे वधू मूल्य प्रथा के कारण एक से अधिक पत्नियों का रखना किसी व्यक्ति के लिए कठिन होता है । बस्तर जनपद की जन जातियों में परिवार का यही स्वरूप पपाया जाता है ।
( 2 ) बहुपति परिवार
ऐसे परिवारों में किसी एक स्त्री के एक से अधिक पति होते हैं । • जोनसार बाबरकी खन जनजाति में बहुपति परिवार प्रथा है । वहाँ पर स्त्री के सभी पति परस्पर भाई होते हैं । नीलगिरी की टोंडा जनजाति में भी बहुपति परिवार व्यवस्था का प्रचलन
( 3 ) सत्ता के आधार पर वर्गीकरण
सत्ता के आधार पर परिवारों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता है
( क ) पितृसत्तात्मक परिवार ( Patriachal Family )
ऐसे परिवारों में सत्ता या शक्ति का स्रोत पिता होता है । स्त्री को विवाह के पश्चात पति के घर पर आकर रहना पड़ता है । जनजातियों में अधिकतर परिवार पितृमूलक हैं । भील , संथाल और खस परिवार पितृसत्तात्मक हैं । इन परिवारों की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार से है-
( 1 ) परिवार की सत्ता पति के हाथ होती है ।
( 2 ) विवाह के पश्चात् स्त्री पति के घर जाकर रहती है ।
( 3 ) इन परिवारों में स्त्रियों की नहीं वरन् पुरुषों की प्रधानता होती है ।
( 4 ) पिता के पश्चात् सम्पत्ति का अधिकार पुत्र को प्राप्त होता है ।
( 5 ) वंश पिता के नाम पर चलता है ।
( 6 ) ऐसे परिवारों में पुत्र का विशेष महत्त्व होता है ।
( 7 ) विशेष स्थिति में ऐसे परिवारों में स्त्री के विधवा होने पर देवर या ज्येष्ठ से विवाह का भी प्रचलन है ।
( 8 ) परिवार पर माता के वंश वालों का या उसके सम्बन्धियों का कोई अधिकार नहीं होता ।
( ख ) मातृसत्तात्मक परिवार ( Matriachal Family )
आज भी भारत की अनेक जनजातियों में मातृसत्तात्मक परिवार पाये जाते हैं । मातृसत्तात्मक परिवार मातृस्थानीय या मातृवंशीय भी होते हैं । इनमें परिवार की सत्ता माता के हाथ में होती है । विवाह के पश्चात् पुरुष को स्त्री के घर पर जाकर रहना पड़ता है । इन परिवारों में पति की अपेक्षा पत्नी के अधिकार होते हैं । परिवार की मुखिया माता होती है । मातृसत्तात्मक परिवार भारत की खासी और गारी जनजातियों में पाये जाते हैं ।
मातृसत्तात्मक परिवार की विशेषताएँ मातृसत्तात्मक परिवारों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. विवाह के पश्चात् पति ससुराल में जाकर रहता है ।
2. परिवार की वंशावली माता के नाम पर चलती है ।
3. परिवार की सम्पत्ति उत्तराधिकार में लड़के ही नहीं वरन् लड़कियों को भी मिलती है ।
4. मातृसत्तात्मक अनेक परिवारों में पुरोहित का कार्य भी स्त्रियाँ करती हैं ।
5. स्त्री को तलाक सम्बन्धी अधिकार प्राप्त होते हैं । भारत में आसाम प्रदेश की खासी एवं गारो नामक जनजातियों में मातृसत्तात्मक परिवार पाये जाते हैं ।
निष्कर्ष ( Conclusion )
उपरोक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि जनजातीय समाजों में परिवार के विविध रूप पाये जाते हैं । विश्व भर में परिवार के जितने भी रूप सम्भव हैं वे समस्त रूप भारत की जनजातियों में पाये जाते हैं । सभ्य समाजों के सम्पर्क के परिणामस्वरूप भारतीय जनजातियों में प्रचलित परिवार के स्वरूपों में भी परिवर्तन आ रहा है।
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