वधु मूल्य प्रथा ( Bride - Price ) का संक्षेप में वर्णन कीजिए ।
भारतीय जनजातियों को आजकल अनेक सामाजिक आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है । वधू - मूल्य की समस्या जनजातियों की एक प्रमुख समस्या है । जिस प्रकार हिन्दू समाज में दहेज प्रथा का प्रचलन है उसी प्रकार जनजातीय समाज में वधू - मूल्य प्रथा का प्रचलन है । इस प्रथा के अन्तर्गत वधू प्राप्त करने के लिए वर के पिता द्वारा कन्या के पिता को एक निश्चत रकम देनी होती है ।
वधू - मूल्य के अभाव में पुरुष को अविवाहित रहना पड़ता है । कन्या के पिता को यह वधू मूल्य नकद धनराशि के रूप में देना होता है या उपहार के रूप में भी हो सकता है । जिन जनजातियों में वधू - मूल्य की प्रथा है, वहाँ क्रय - विवाह ( Purchase Marriage ) का रूप प्रचलित है । जनजातियों में वधू - मूल्य प्रथा में दिन - प्रतिदिन प्रचलन बढ़ रहा है और वधू - मूल्य राशि में भी वृद्धि हो रही है ।
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वधु मूल्य क्या है? What is bride price? |
वधु मूल्य की परिभाषा -
वधू मूल्य प्रथा दहेज प्रथा का विलोम है और इसमें वधू या स्त्री का क्रय विक्रय किया जाता है । वधू - मूल्य प्रथा में वधू के पिता को निर्धारित धनराशि देनी पड़ती है । समाजशास्त्री प्रो ० गौरी शंकर भट्ट के शब्दों में- " वधू मूल्य प्रथा के अनुसार वर का पिता वधू के पिता को एक निश्चित रकम देता है ।
" भारतीय जनजातियों में वधू - मूल्य प्रथा भारत की अधिकांश जनजातियों में वधू - मूल्य देकर पत्नी प्राप्त होती है । प्रो ० भट्ट के अनुसार " मुण्डा जनजातियों में वधू - मूल्य की रकम वधू की सुन्दरता उम्र और उसके पिता की सामाजिक प्रतिष्ठा पर निर्भर करती है । " वधू मूल्य प्रथा के कारण यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है कि वधू - मूल्य प्रथा के प्रचलन के प्रमुख कारण कौन - कौन से हैं । इस सन्दर्भ में कहा जाता है
( 1 ) विवाह के कारण लड़की के चले जाने के कारण वधू के पिता को जो आर्थिक हानि होती हैं , यह उसी की क्षतिपूर्ति है ।
( 2 ) जिन जनजातियों में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कम होती है , वहाँ पर भी इस प्रथा का प्रचलन हो जाता है ।
( 3 ) कई समाजों में इसे कन्या के दूध का मूल्य कहा जाता है ।
( 4 ) मानवशास्त्रियों का यह भी कहना है कि वधू - मूल्य प्रथा से दो परिवारों में सामाजिक सम्बन्ध मजबूत होते हैं ।
( 5 ) सन्तान को जन्म देना पत्नी का प्रमुख कार्य एवं विशेषता जनजातियों में मानी जाती है । अतः यदि कोई स्त्रीं बाँझ होती है , तो वधू के पिता को वधू - मूल्य वापिस लौटाना पड़ता है या अपनी दूसरी कन्या दे देता है ।
( 6 ) तलाक की स्थिति में वधू - मूल्य लौटाना पड़ता है ।
वधू - मूल्य एवं दहेज में अन्तर ( Difference between bride-price and dowry )
वधू - मूल्य प्रथा एवं दहेज प्रथा में निम्न अन्तर है-
( i ) दहेज प्रथा हिन्दू समाज की विशेषता है , इसके विपरीत वधू - मूल्य प्रथा जनजातीय समाज की विशेषता है ।
( ii ) दहेज वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिया जाता है जबकि ' वधू - मूल्य ' वर द्वारा वधू के पिता को दिया जाता है ।
( iii ) दहेज के अभाव में अनेक स्त्रियाँ अविवाहित रह जाती हैं जबकि वधू - मूल्य न दे सकते के कारण कई पुरुष को अविवाहित रहना पड़ता है ।
( vi ) दहेज प्रथा में वह के महत्त्व को स्वीकार किया जाता है, वधू - मूल्य प्रथा में स्त्री की उपयोगिता एवं महत्त्व को स्वीकार किया जाता है ।
निष्कर्ष ( Conclusion )
वधू - मूल्य प्रथा की समस्या के कारण जनजातीय समाजों में अनेक युवकों को अविवाहित रहना पड़ता है । इस प्रथा के द्वारा स्त्री की उपयोगिता को प्रदर्शित किया जाता है । प्रो ० हट्ट का कहना है- " जिस प्रकार मुद्रायी अर्थ - व्यवस्ता के प्रभाव से दहेज उत्तरोत्तर नकद रकम के रूप में दिया जाने लगा है, उसी प्रकार वधू - मूल्य भी धीरे - धीरे नकद रकम का रूप लेता रहा है । बिहार की मुण्डा जनजाति में वधू - मूल्य इतना पढ़ गया है कि वह दहेज की भाँति एक सामाजिक आर्थिक समस्या बन गया है । " वधू - मूल्य की धनराशि निर्धारण करने में मध्यस्थ की भूमिका का विशेष महत्त्व है ।
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