अधिमान्य विवाह क्या है? - Preferential Marriage

अधिमान्य विवाह ( Preferential Marriage ) का संक्षेप में वर्णन कीजिए ।

जनजातियों में अधिमान्य विवाह ( Preferential Marriages Among Tribes ) जनजातियों में विवाह केवल दो व्यक्तियों का ही सम्बन्ध नहीं है बल्कि इसे दो परिवारों अथवा कुछ परिवारों के स्थायी साधन का माध्यम समझा जाता है । इस परकार जनजातियों में विवाह की कुछ ऐसी प्रथाएं विकसित हो गयी हैं जिससे कुछ परिवार विवाह के आधार पर सदैव एक - दूसरे के सहयोगी बने रहें ।


इन विवाहों से कन्या मूल्य की समस्या का भी समाधान हो जाता है और एक विशेष क्षेत्र के अन्दर ही जीवन साथी भी सरलता से उपलब्ध हो सकता है । इस आधार पर अनेकजनजातियाँ कुछ विशेष परिवारों के अन्दर ही विवाह की प्राथमिकता देकर उन्हें अधिमान्य विवाह ( Preferential Marriage ) की श्रेणी में रखती है । अधिमान्य विवाह को प्रमुख रूप से तीन वर्गों में विभाजित करके समझा जा सकता है-

अधिमान्य विवाह क्या है - Preferential Marriage
अधिमान्य विवाह

( 1 ) ममेरे और फुफेरे भाई - बहनों का विवाह ( Cross Cousin Marriage ) -

इस प्रकार के विवाह भारतीय जनजातियों में प्रचुरता के साथ प्रचलित हैं । कुछ जनजातियाँ तो ऐसे विवाहों को आवश्यक समझती हैं और किसी कारण यदि इस क्षेत्र के अन्दर ही विवाह नहीं किया जाता तब आनाकारी करने वाले पक्ष को दूसरे पक्ष के लिए कुछ हर्जाना भी देना होता है । 


( 2 ) साली विवाह -

पत्नी की बहन के साथ जब विवाह सम्बन्ध स्थापित किया जाता है , तो उसे साली विवाह कहा जाता है । जिन जनजातियों में वधू मूल्य का प्रचलन है वहाँ पत्नी की मृत्यु हो जाने पर ससुर द्वारा धन वापस न लौटाकर दूसरी लड़की दे दी जाती है । साली विवाह के भी दो रूप हैं- 

( 1 ) असीमित साली विवाह एवं 

( 2 ) सीमित साली विवाह । 

पत्नी के जीवित रहते ही जब साली से विवाह किया जाता है , तो वह असीमित साली विवाह है और पत्नी की के पश्चात् यदि उसकी बहन से विवाह किया जाता है , तो इस विवाह को सीमित साली विवाह कहते हैं ।


( 3 ) देवर विवाह -

देवर विवाह का प्रचलन थारू , भील , टोडा जनजातियों में प्रचलित हैं । पति की मृत्यु हो जाने पर विधवा स्त्री अपने देवर से विवाह करती है । विवाह के इस स्वरूप को देवर विवाह कहा जाता है।


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