जनजातियों की प्रमुख समस्याएं क्या हैं ? What are the major problems of tribals?

जनजातीय समाज क्या है जनजातियों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए-

एक समय था जब जनजातियाँ बाह्य जगत से पूर्णतया पृथक् जीवन व्यतीत करती थीं । लेकिन संचार और यातायात के साधनों के विकास से जनजातीय क्षेत्र बाह्य सभ्यता के सम्पर्क में आये हैं । नयी अर्थव्यवस्था के प्रभाव ने कबीलों की अर्थव्यवस्था को छिन्न - भिन्न कर दिया है । अतः जनजातियों का पुनर्वास आज अत्यन्त आवश्यक है । उनके आर्थिक व सामाजिक जीवन को पुनः संगठित करने की आवश्यकता है । 


सांस्कृतिक सम्पर्क के कारण ( Factors of Cultural Contact )-

भारत की प्रायः सभी जनजातियाँ किसी - न - किसी प्रकार बाह्य जगत् के सम्पर्क में आई हैं । मिशनरियों , प्रशासकीय अफसरों , ठेकेदारों तथा वन विभाग के कर्मचारियों के साथ उनका सम्पर्क होता है । यह सम्पर्क इस प्रकार हुआ है— 


( क ) जनजातीय क्षेत्रों में विभिन्न खानों के कारण वहाँ कार्य होता है , जिससे ये लोग बाह्य सम्पर्क में आते हैं । 

( ख ) सुदूर क्षेत्र में भी जनजातीय श्रमिक कार्य करने आते हैं । जैसे — असम और बंगाल के अनेक उद्यानों में आदिवासी मेहनत-मजदूरी करते हैं इससे वे बाह्य संस्कृति के सम्पर्क में आते हैं ।

( ग ) यातायात के साधनों ने जनजातियों को बाह्य सम्पर्क में आने का अवसर दिया है ।


सांस्कृतिक सम्पर्क से उत्पन्न समस्याएँ

बाह्य सम्पर्क के परिणामस्वरूप जनजातियों में अनेक समस्याएँ पैदा हुई हैं । सम्पर्क के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली समस्याओं को निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया जा सकता है


( 1 ) सामाजिक समस्याएँ ( Social Problems ) -


बाह्य संस्कृति के सम्पर्क में आने से जनजातीय समाज में अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं । इनमें समस्याएँ इस प्रकार हैं-

( क ) शोषण की समस्या-

डॉ . मजूमदार के अनुसार , " उन कबीली क्षेत्रों में जहाँ कबीलियों पर देश के कानून और कबीली कानून द्वारा शासन नहीं होता , बा शासन ने शोषण को प्रोत्साहित किया है । " कबीले के लोग संकोचशील स्वभाव के होते हैं और प्रशासन की कार्यविधियों को नहीं समझते । इस प्रकार विभिन्न लोगो द्वारा अनेक रूप से इनका शोषण हुआ है । 


( ख ) अनैतिकता की समस्या -

जब से कबीली लोग बाह्य सम्पर्क में आये है उनमें शराबखोरी और अनैतिकता में वृद्धि हुई है । पहले जनजातियों में शराब बनाने का प्रतिबन्ध नहीं था लेकिन जब से भट्टियों द्वारा बनी हुई शराब कबीली क्षेत्रों में बिकने लगी है , उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा है ।


श्री राय का मत है कि सरकार द्वारा आदिवासी क्षेत्र में भट्टी द्वारा बनी शराब , सरकार के द्वारा इस क्षेत्र में जाती है , ने अनेक शारीरिक , आर्थिक , नैतिक समस्याएँ पैदा की हैं । आदिवासियों में जब भट्टी की बनी शराब का प्रचलन होता है तो घर की बनी शराब अच्छी नहीं लगती । इसके फलस्वरूप नागपुर के अनेक जनजातीय क्षेत्रों में शराब और अफीम की माँग बढ़ती जा रही है ।


( ग ) रोगों के प्रसार की समस्या

बाह्य सम्पर्क में आने से और संचार के सुगम साधन मिलने से जनजातियों में अनेक रोग भी फैले हैं । कारखानों तथा चाय के बागानों में काम करने वाले कबीली श्रमिक निरन्तर अपने क्षेत्रों में आते - जाते रहते हैं । इसके फलस्वरूप अनेक छूत की बीमारियाँ कबीली प्रदेशों में पहुँच जाती हैं । 


( घ ) कर्ज की समस्या

बाह्य क्षेत्रों के व्यापार जब मुद्राविहीन कबीली अर्थव्यवस्था में व्यापार करते हैं तो कबीली लोगों का अनुचित रूप से शोषण करते हैं । इसी प्रकार से अनेक व्यक्ति निर्धन कबीलों में रुपया कर्ज पर देते हैं और पुश्तों तक उनसे ब्याज वसूल करते रहते हैं ।

जौनसार भावर के कोल्टा तथा खटीमा के थारू इसके मुख्य उदाहरण हैं । इस प्रकार बाह्य सम्पर्क जनजातियों के लिए अहितकर साबित हुआ है । डॉ . एलविन का मत है कि जनजातीय क्षेत्रों को बाह्य सम्पर्क से पृथक् कर देना चाहिए और उनके जीवन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । 


( 2 ) सांस्कृतिक समस्याएँ ( Cultural Problems )-

बाह्य सभ्यता के सम्पर्क ने प्रजातियों के विभिन्न वर्गों को अनेक रूपों में प्रभावित किया है । ये लोग जब बाह्य लोगों से परिचित होते हैं तो अपने आपको और अपने रीति - रिवाजों तथा परम्पराओं को हेय दृष्टि से देखने लगते हैं । अनेक जनजातियों में ईसाई धर्म के प्रचार का यही कारण है ।


ईसाई मिशनरी के कार्यकर्ताओं ने अब जनजातियों के बीच जाकर उन्हें आधुनिक सभ्यता की ओर आकर्षित करने की चेष्टा की है और उन्हें अपने रहन - सहन में ढालने की कोशिश की । अपनी हीनता की भावना को दूर करने के लिए अनेक जनजातीय सदस्यों ने ईसाई धर्म को स्वीकार किया । इसके अतिरिक्त अनेक व्यक्तियों को ईसाई होने के लिए विवश भी किया गया ।


अनेक जनजातियों ने अपनी सामाजिक प्रथाओं को भी बदलने का प्रयास किया है । सन्थाल , गारो तथा खासी जनजातियाँ इसकी उदाहरण हैं । खासी जनजाति में अब छोटी कन्या द्वारा सम्पत्ति के उत्तराधिकार को अब शंका की दृष्टि से देखा जाने लगा है । इस प्रकार गारो जनजाति भी मातृवंशीय उत्तराधिकार के प्रति सन्देहशील होने लगी है ।


इन सभी बातों से जनजातियों में सांस्कृतिक विघटन की समस्याएं पैदा की हैं जनजातियाँ धीरे - धीरे बाह्य संस्कृति को अपना रही हैं । अतः एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होने लगी है , जब कि अनेक जनजातियाँ न तो पूर्णतया अपनी संस्कृति पर | अवलम्बित हैं और न बाह्य संस्कृति को भली - भाँति अपना सकी हैं । 


( 3 ) बाह्य सम्पर्क के अभाव में उत्पन्न होने वाली समस्याएँ ( Problems on | Account of Isolation )


जनजातियों में जहाँ बाह्य सम्पर्क में अनेक समस्याएँ पैदा की हैं , वहाँ बाह्य सम्पर्क के अभाव ने भी अनेक समस्याओं के अस्तित्व को बने रहने में मदद की है । उदाहरण के लिए अधिकांश जनजातियाँ एक निश्चित स्थान पर खेती नहीं करती हैं । कुछ समय तक एक स्थान पर खेती करने के बाद जब भूमि की |


उर्वरा शक्ति कम हो जाती है तो एक - दूसरे स्थान पर जंगल को काटकर आबाद किया | जाता है । इसके फलस्वरूप वन सम्पत्ति का विनाश हुआ है । पेड़ों के कट जाने से | अनेक जनजातीय क्षेत्रों में जल की समस्या भी पैदा हो गई । इसके अतिरिक्त इनमें कृषि की जो पद्धति प्रचलित है वह बहुत अलाभकर है । परम्परागत अन्धविश्वास आदि ने भी विभिन्न प्रकार से जनजातियों को हानि पहुँचायी है । 


( 4 ) जनसंख्या के ह्रास की समस्या -


उपर्युक्त समस्याओं के अतिरिक्त दिनों - दिन जनजातियों की संख्या कम होना भी एक समस्या है । कुछ जनजातियाँ यद्यपि जनसंख्या में बढ़ी हैं , लेकिन अधिकांश जनजातियाँ ऐसी हैं , जो उत्तरोत्तर घटती जा रही हैं ; जैसे — कोरवा और टोडा जनजाति । गिलबर्ट मूरे ( Gilbert Murray ) ने इस संख्या में कमी का कारण मनोवैज्ञानिक बतलाया है । अनेक जनजातियों में नर बलि , शिरोच्छेदन आदि की प्रथाएँ भी प्रचलित हैं ।


इसके अतिरिक्त जनजातियों में दूसरे समूहों पर आक्रमण करके स्त्रियों के अपहरण की क में प्रथा मौजूद है । इसी कारण अनेक जनजातियाँ लड़की को पैदा होते ही मार देल ताकि कोई अन्य समूह उनके ऊपर आक्रमण न करे । अनेक जनजातियों में लड़की के विवाह के लिए पैसा चुकाना पड़ता है ।


इसलिए भी लड़कियों को प्राय : मार दिया जाता है । भ्रूण हत्या भी अनेक जन में प्रचलित है । सिंहभूमि के ' हो ' लोगों में तथा गंजाम के खोड़ लोगों में इसका ज प्रचलन है । आसाम की कूकी जनजाति में प्रेमी - प्रेमिका को साथ रहने की अनुमति मिलती है , लेकिन इसके बाद यदि प्रेमिका जीवित सन्तान को जन्म देती है तो यह उनके लिए अपमान की बात होती है । इसलिए बच्चे को प्रायः मार दिया जाता है । इन सभी कारणों से जनजातियों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही है । 


( 5 ) स्वास्थ्य की समस्याएँ ( Problems of Health ) -


इसके अतिरिक्त जनजातियों में स्वास्थ्य की समस्या भी मौजूद है । संचार के साधनों ने जहाँ एक और आर्थिक विकास में मदद दी है वहीं दूसरी ओर विभिन्न रोगों का भी इनमें प्रसार हुआ है । अनेक प्रकार की बीमारियों के बाद भी ये लोग डॉक्टरों द्वारा इलाज कराने के बजाय भूत - प्रेतों पर अधिक विश्वास करते हैं , इस कारण जनजातियों में अनेक व्यक्ति उपचार के अभाव में मर जाते हैं । इसके फलस्वरूप भी जनजातियों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही है ।


( 6 ) राजनैतिक समस्याएँ ( Political Problems ) -


भारतीय जनजातियों में बहुत पुराने अर्से से शासन - व्यवस्था का अपना एक रूप है । प्रत्येक गाँव व टोलियों में एक मुखिया होता है जो जन्मानुगतता के आधार पर बनाया जाता है । किसी - किसी जनजाति में यह मुखिया पुरोहित का भी काम करता है ।


इसी के इशारे पर गाँव के सभी कार्य होते हैं और वह गाँव के बूढ़ों से हर एक कार्य के सम्बन्ध में राय लेता है । परन्तु ब्रिटिश शासन के प्रभावों ने उनकी स्वायत्त शासन की इस संस्था को बहुत बड़ा धक्का पहुँचाया और उनके बहुत से राजनीतिक संगठनों और संस्थाओं को अवैधानिक घोषित कर दिया । भारत की अनेक जनजातियों ने अलग - अलग अस्तित्व बनाये रखने और राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिये अनेक आन्दोलन किये हैं । इनमें नागा , गौंड तथा झारखण्ड प्रदेश के जनजातीय लोग उल्लेखनीय हैं । 


( 7 ) शिक्षा सम्बन्धी समस्याएँ ( Educational Problems ) -


जनजातियाँ ज्यों - ज्यों बाहरी सभ्यता के सम्पर्क में आती जा रही हैं त्यों - त्यों उनके अन्दर शिक्षा प्राप्त करने की उत्कण्ठा बढ़ती जा रही है । शिक्षा प्रसार के लिये हमें चार प्रश्नों पर ध्यान देना होगा


( 1 )शिक्षा का माध्यम कौन - सी भाषा हो ?

( 2 ) अनिवार्य शिक्षा लागू की अपने बच्चों को आर्थिक सहायता दे जाय अथवा नहीं और माता - पिता कहाँ तक सकते हैं ? 

( 3 ) बुनियादी शिक्षा के बारे में मतभेद है । कुछ लोगों का मत है कि क जनजातीय बच्चों को बुनियादी शिक्षा दी जानी चाहिये । 

( 4 ) चौथी सभ्यता बच्चों के निवास , भोजन आदि की है । क शिक्षा के माध्यम के सम्बन्ध में भी अनेक विचार हैं । कुछ विचारकों का मत है कि हिन्दी तथा प्रादेशिक भाषाओं के द्वारा शिक्षा का ज्ञान देना चाहिए क्योंकि उनको भारत के अन्य बच्चों के सदृश ज्ञान प्राप्त कराना आवश्यक है ।


इनका भारतीय - संस्कृति में मिलना और अन्य बच्चों के समान बुद्धि तथा सांस्कृतिक व्यवस्थाओं का - ज्ञान करना तभी सम्भव हो सकेगा जब वे हिन्दी और प्रादेशिक भाषाओं के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करेंगे । कुछ लोगों का यह विचार है कि शिक्षा का माध्यम जनजातीय भाषा होनी चाहिए ।


क्योंकि अपनी भाषा के माध्यम से किसी बात को समझने में बच्चों को बहुत कम समय लगता है और उन्हें वस्तु के बारे में सही ज्ञान होता है तथा वे अपनी संस्कृति से विमुख नहीं हो सकते । अपनी संस्कृति , परम्परा , रीति - रिवाजों के प्रति उनमें आस्था रहेगी । इस विचार के विरोध में भी बहुत से लोगों ने तर्क पेश किये हैं । उनका विश्वास है कि जनजातीय भाषाएँ अधूरी और अविकसित हैं जिनके द्वारा आधुनिक ज्ञान प्राप्त करना कठिन है ।


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