प्रभु जाति किसे कहते हैं? Prabhu Jati kise kahte hain
डॉ ० श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण के वर्तमान प्रतिमान को स्पष्ट करने के लिए इसे प्रभु जाति के सन्दर्भ में स्पष्ट किया है । इस तथ्य को स्पष्ट करने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि प्रभु जाति क्या है तथा इसके निर्धारण के विभिन्न आधार कौन से हैं ? पूर्व विवेचन में हम प्रभु जाति की अवधारणा को विस्तार से स्पष्ट कर चुके हैं , इसके पश्चात् भी यह कहा जा सकता है कि प्रभु जाति एक विशेष गाँव अथवा क्षेत्र की कोई साधन - सम्पन्न जाति होती है , इसके अनेक सदस्य उच्च पदों पर आसीन होते हैं तथा ग्रामीण निर्णयों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
भारतीय ग्रामीण समुदाय में आज एक निम्न जाति आवश्यक रूप से किसी द्विज जाति के व्यवहार प्रतिमानों का ही अनुकरण नहीं करती बल्कि अनुकरण की जाने वाली जाति अक्सर प्रभु जाति के रूप में होती है । आज संस्कृतिकरण के विश्लेषण में एक प्रतिमान के रूप में प्रभु जातियों का स्थान इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हो गया है कि स्थानीय स्तर पर अनुकरण किये जाने वाले जाति - समूह को उच्च जाति से सम्बद्ध होना अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं समझा जाता ।
यदि किसी गाँव में उच्च जाति के अतिरिक्त कोई अन्य जाति प्रभु जाति है तो अन्य जातियों के लिए वही संस्कृतिकरण का प्रतिमान होती है । यह प्रभु जाति ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र किसी भी श्रेणी की हो सकती है । इतना अवश्य है कि यदि प्रभु जाति ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य जैसी कोई द्विज जाति होती है तो उसका अनुकरण शीघ्र ही किया जाने लगता है जबकि प्रभु जाति का सम्बन्ध किसी निम्न जाति से होने पर अनुकरण की यह प्रकिया इतनी तेज नहीं होती ।
इसके पश्चात् भी गाँव में यदि किसी प्रभुता सम्पन्न कृषक जाति का कर्मकाण्डीय स्तर निम्न होता है और वह प्रभु जाति के रूप में मान्य होती है तो संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में वह अन्य समूहों के लिए एक प्रतिमान का कार्य करती है । इससे स्पष्ट होता है कि
( क ) संस्कृतिकरण का तात्पर्य सदैव निम्न जातियों द्वारा द्विज जातियों का ही अनुकरण करना नहीं होता बल्कि किसी भी जाति द्वारा प्रभु जाति के व्यवहारों का अनुकरण करना भी संस्कृतिकरण है ,
( ख ) डॉ ० श्रीनिवास के अनुसार संस्कृतिकरण से उत्पन्न जातिगत परिवर्तन उदग्र प्रकृति का होता है क्योंकि द्विज अथवा प्रभु जाति के व्यवहारों का अनुकरण करके निम्न जाति - समूह भी एक उच्च सामाजिक स्थिति का दावा करने लगते हैं , तथा
( ग ) संस्कृतिकरण की प्रक्रिया पूर्णतः निर्बाध नहीं होता क्योंकि उच्च जातियाँ निम्न जाति समूह को अपनी समस्त विशेषताएँ ग्रहण करने की खुली छूट देना नहीं चाहतीं ।
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