विवाह किसे कहते है? विवाह की उत्पत्ति और आयु | Married, Origin and age of marriage.
परिवार बसाने के लिए दो या अधिक स्त्री - पुरूष में आवश्यक सम्बन्ध ( जिसमें यौन सम्बन्ध भी सम्मिलित है ) स्थापित करने और उसे स्थिर रखने की कोई - न - कोई संस्थात्मक व्यवस्था या तरीका प्रत्येक समाज में पाया जाता है जिसे कि विवाह कहते हैं । विवाह प्रत्येक समाज , चाहे वह आदिम समाज हो या सभ्य समाज की संस्कृति का एक आवश्यक अंग होता है क्योंकि यह वह साधन है जिसके आधार पर समाज की प्रारम्भिक इकाई ' परिवार ' का निर्माण होता है ।
प्रत्येक स्वाभाविक जीवन के लिए इसी कारण विवाह एक सामान्य तथा स्वाभाविक घटना है और शायद इसीलिए यह अति प्राचीन जनजातियों से लेकर अति आधुनिक समाजों , सभी में किसी - न - किसी रूप में पाया जाता है । समाज द्वारा मान्यताप्राप्त तरीके से स्त्री - पुरुष की यौन सम्बन्धी आवश्यकता की पूर्ति करने , उसे एक निश्चित ढंग से नियंत्रित करने तथा स्थिर रखने और परिवार को स्थायी रूप देने के लिए विवाह की संस्था का जन्म हुआ है ।
विवाह वह आधार है जो घर बसाता है और बच्चों के पालन - पोषण तथा आर्थिक सहकारिता व सामाजिक उत्तरदायित्व की नींव को बनाता है । व्यक्तिगत दृष्टिकोण से विवाह की आवश्यकता यौन सम्बन्धी इच्छाओं की पूर्ति तथा शरीर का स्वस्थ निर्वाह और मानसिक शान्ति प्राप्त करना है सामाजिक दृष्टिकोण से विवाह का महत्व बच्चों को जन्म देना और तद्वारा समाज की निरन्तरता को कायम रखना है । इसीलिए विवाह नामक संस्था किसी समाज नहीं है , ऐसा कोई भी उदाहरण दुनिया के किसी भी कोने से अनेक छानबीन तथा अन्वेषण के बाद भी मिल न सका ।
विवाह की उत्पत्ति ( Origin of Marriage )
मॉर्गन ( Morgan ) आदि कुछ विद्वानों का मत है कि मानव - समाज व संस्कृति के प्रारम्भिक काल में विवाह नाम किसी भी संस्था का अस्तित्व न था , यह तो सामाजिक विकास के कुछ स्तरों के बाद उत्पन्न हुई है । मॉर्गन ने यह सिद्धान्त प्रचलित किया कि प्रारम्भ में समाज में कामाचार की दशा पाई जाती थी और इसीलिए यौन सम्बन्ध एकत्रित आधुनिक प्रमाणों में यौन सम्बन्ध स्थापित करने की या कामाचार का प्रमाण स्थापित करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी से इस सिद्धान्त की पुष्टि नहीं होती है ।
त्यौहारों परन्तु जनजातीय संसार से मॉर्गन के स्वतंत्रता या धर्म - पालन के हेतु पत्नी की भेंट यौन - साम्यवाद नहीं हो सकती । यहाँ तक कि ब्रेजील की काइगन , साइबेरिया की चकची तथा आस्ट्रेलिया की डेयरी जनजातियाँ , जिनमें कि समूह - विवाह की प्रथा पाई जाती है , वहाँ भी इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिला है कि उन समाजों में कभी कामाचार की दशा थी । अति प्राचीन जनजाति , जैसे कादर , पलियन , चचू बिरहोल ( सब भारतवर्ष के ) में तथा अण्डमान प्रायद्वीप की जनजातियों में भी कामाचार का कोई प्रमाण नहीं मिल सका ।
मॉर्गन के अनुसार कामाचार की व्यवस्था के पश्चात् समूह - विवाह का विकास हुआ था । विवाह में एक परिवार के सब भाइयों का विवाह दूसरे परिवार की सब साथ हुआ करता था जिसमें प्रत्येक पुरुष सभी स्त्रियों का पति होता था और प्रत्येक स्त्री सभी पुरुषों की स्त्री होती थी ।
तीसरी अवस्था में एक पुरुष का एक ही स्त्री के साथ विवाह तो होता था , पर उसी परिवार में ब्याही हुई स्त्रियों के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित करने की स्वतन्त्रता प्रत्येक पुरूष को रहती थी । चौथी अवस्था अनुसार , पुरूष का ही एकाधिपत्य होता था और इसलिए वह अपनी इच्छानुसार एकाधिक स्त्रियों से विवाह करता और उन सबके साथ यौन सम्बन्ध रखता था । एक विवाह की स्थिति इस अवस्था के बाद आई है ।
बैकोफन ( Backofen ) संस्कृति के अनुसार भी आदिकाल में विवाह नामक कोई संस्था स्पष्ट नहीं थी । फलतः यौन सम्बन्ध स्थापित करने का कोई निश्चित नियम नहीं था । इसके बाद जनसंख्या के बढ़ने के साथ - साथ दरिद्रता तथा कमी भी बढ़ने लगी और लड़कियों के बध की प्रथा शुरू हुई जिससे समाज में स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों की संख्या अधिक हो गई । फलतः बहुपात विवाह का जन्म हुआ ।
इसके बाद खेती में उन्नति होने से परिवार में स्थायी श्रमिकों के रूप में स्त्रियों की आवश्यकता बढ़ी और पुरूष भी अपने ऐशोआराम के लिए अधिक पत्नियाँ रखने में समर्थ हुए जिससे बहुपत्नी - विवाह का जन्म हुआ । अन्त में नैतिक विचारों में विकास होने पर और स्त्रियों द्वारा समान अधिकार की माँग होने पर एक - विवाह की प्रथा चली । बेस्टरमार्क ने उपरोक्त सिद्धान्तों की कटु आलोचना करते हुए अपने एक - विवाह के सिद्धान्त को प्रस्तुत किया ।
आपके अनुसार यौन सम्बन्धों सामाजिक नियमों के क्षणिक और नीचे सभी प्रकार के पशुओं , बनमानुष ही है । ऊँचे की स्वतंत्रता , बहुपति या बहुपत्नी - विवाह केवल उल्लंघन मात्र हैं , स्थायी रूप तो एक विवाह समाजों में एक - विवाह ही मिलता है , यहाँ तक कि भी एक - विवाह ही मिलता है । मैनीलोवस्की ने का समर्थन करते हुए लिखा है कि “ एक विवाह ही विवाह का एक मात्र सत्य रूप है , रहा है और रहेगा । " आदि में चिड़ियों , बेस्टरमार्क सारांश यह है कि विवाह का स्वरूप प्रत्येक समाज में एक ही रहा है , इस तथ्य की पुष्टि में प्रमाण प्रस्तुत करना उतना ही कठिन है जितना की यह प्रमाणित करना कि आदिकाल में कामाचार की अवस्था थी ।
परन्तु यौन सम्बन्धों को नियमित व स्थिर करी परविार को स्थायी रूप देने , आर्थिक सहयोग का विकास करने तथा बच्चों के . -पालन की एक सुनिश्चित व्यवस्था करने के लिए विवाह की संस्था का जन्म हुआ है , इस तथ्य के पक्ष में प्रायः सभी समाजों से , चाहे वह आते आदिम समाज हो या अति आधुनिक , अनेक प्रमाणों को प्रस्तुत किया जा सकता है । इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विवाह , चाहे उसका स्वरूप कुछ भी हो , हमेशा ही था और रहेगा ।
विवाह की आयु ( Age of Marriage )
सामान्य रूप से जनजातियों में बाल - विवाह का प्रचलन नहीं है , और उनमें विवाह किशोरावस्था या उसके बाद ही होता है । जहाँ तक भारत की जनजातियों का प्रश्न हैं , उनमें भी बाल - विवाह नहीं पाया जाता । परन्तु जो जनजातियाँ हिन्दुओं के घनिष्ट आई हैं उनमें बाल - विवाह होने लगा है । हिन्दुओं के सम्पर्क में आने के छोटा नागपुर की संथाल , मुण्डा और ओरांव जनजातियों में तथा राजस्थान लड़कों के विवाह की आयु प्रायः 12-13 वर्ष और लड़कियों की प्रायः 9-10 वर्ष के लगभग हो गई है ।
परन्तु अधिकांश जनजातियों में यह स्थिति नहीं है । उदाहरणार्थ , आसाम के नागाओं और कूकियों में लड़कियों का विवाह 15 से 20 वर्ष की आयु में तथा लड़कों का विवाह 18 से 25 वर्ष की आयु में होता है । विवाह चाहे बाल्यावस्था में हो या किशोरावस्था में हो , साधारणतः विवाह के समय लड़कों की आयु हिन्दुओं की भाँति ही लड़कियों से अधिक होती है ।
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