' संस्कृति एवं व्यक्तित्व ' के सम्बन्धों की संक्षेप में वर्णन कीजिए ।
संस्कृति और व्यक्तित्व ( Culture and Personality ) मनुष्य की सामाजिक पृष्ठभूमि उसके व्यक्तित्व का निर्माण करती है । इस कारण विभिन्न प्रकार की संस्कृति तथा सामाजिक पृष्ठभूमि में व्यक्तित्व के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं । व्यक्तित्व से तात्पर्य मनुष्य की इस विशेषता ते है जिसके आधार पर उसे अन्य लोगों से पृथक किया जा सकता है । शारीरिक भिन्नता के साथ - साथ प्रत्येक मनुष्य के व्यवहार , वृद्धि और विचार की भिन्नता भी होती है ।
इन सभी भिन्नताओं का मूल कारण मनुष्य का वह समाज है जिसमें वह जीवन व्यतीत करता है को विभिन्न प्रकार के उसकी बुद्धि, भावुकता, स्वभाव, चरित्र तथा सामाजिकता को प्रभावित करता है । इसलिए प्रत्येक समाज और उसकी संस्थाएँ एक निश्चित प्रकार के व्यक्तित्व के निर्माण में सहायता होती है। प्रत्येक समाज की संस्थाएं उस समाज के सदस्य के ऊपर एक निश्चित प्रभाव डालती है । तुलनात्मक समाजशास्त्र एवं सामाजिक मानवशास्त्र में विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का विवेचन किया जाता है इसलिए विभिन्न सांस्कृतिक के मध्य विकसित व्यक्तित्व का अध्ययन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ।
व्यक्तित्व की धारणा ( Concept of Personality )
व्यक्तित्व किसी व्यक्ति की विशेषता को दर्शाता है और अंग्रेजी शब्द परसनेलिटि ( Personality ) का पर्यायवाची है । अंग्रेजी का Person शब्द लैटिन के Persona शब्द से लिया गया है जिसका अभिप्राय व्यक्ति की वेशभूषा , रहन - सहन से लिया जाता है । जॉन लॉक ने Personality शब्द का प्रयोग किसी व्यक्ति के जीवित अवस्था में दर्शाने के लिये किया लेकिन व्यक्तित्व शब्द का वर्तमान प्रयोग इससे भिन्न है ।
व्यक्तित्व का तात्पर्य उन समस्त गत्यात्मक प्रवृत्तियों के संगठित रूप से है जिसे मनुष्य जन्म के बाद अर्जित कर प्राप्त करता है । यह व्यक्ति की नहीं है, बल्कि उसके व्यवहार की विलक्षणता को प्रकट करता है । व्यक्तित्व का तात्पर्य किसी मनुष्य की उन विशेषताओं से है जो उसे दूसरे लोगों से पृथक करती है ।
प्रत्येक व्यक्ति का जन्म , पालन - पोषण एक - दूसरे से भिन्न स्थिति में होता है । इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का सामाजिक पर्यावरण भी एक - दूसरे से भिन्न होता है । इस प्रभा फलस्वरूप मनुष्य की प्रवृत्ति बुद्धि विचार व व्यवहार का जो स्वरूप संगठित होता है , उसी के दूसरे शब्दों में व्यक्तित्व कहा जाता है ।
संस्कृति और व्यक्तित्व के कुछ अध्ययन ( Some studies in Culture and Personalities )
व्यक्तित्व का विकास प्राणिशास्त्रीय व सामाजिक प्रक्रिया ही नहीं , अपितु सांस्कृतिक प्रक्रिया भी है । इस दृष्टि से व्यक्तित्व पर संस्कृति के प्रभावों को दर्शाने के लिये मानवशास्त्रियों ने एकाधिक जनजातियों के जो अध्ययन किए हैं उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
( 1 ) होपी जनजाति ( Hopi Tribe )
इस जनजाति के सदस्य उत्तरी पश्चिमी मैक्सिको और उत्तरी पूर्वी अरीजोना में रहते हैं । इस क्षेत्र वनस्पति कम होती है , फिर भी कृषि ही इनका प्रमुख व्यवसाय है । इनमें मातृवंशीय तथा मातृस्थानीय परिवार पाए जाते हैं । सम्पूर्ण जनजाति अनेक गोत्रों में बँटी हुई हैं । भूमि की मालकिन स्त्रियाँ हैं, और वे ही परिवारों की केन्द्र भी हैं । परिवारों में माता - पिता, उनके अविवाहित पुत्र व पुत्रियाँ, विवाहित पुत्रियाँ माता के अविवाहित भाई भी रहते हैं, सम्पत्ति माता से पुत्री को हस्तान्तरित होती है ।
भूमि पर पति कार्य करता है , परन्तु उपज पर पत्नी का अधिकार एवं नियंत्रण रहता है । धार्मिक संस्कारों को छोड़कर सभी क्षेत्रों में स्त्रियों का स्थान प्रमुख होता है । आर्थिक व्यवस्था सहकारिता पर आधारित है , और व्यक्तिगत प्रतिस्पर्द्धा नहीं पायी जाती है । वर्ग - व्यवस्था का अभाव है । राजनीतिक नियंत्रण की मौलिक इकाई गाँव है ।
गाँव का मुखिया गाँव की देख - रेख करता है । होपी लोग धर्मपरायण है । उपर्युक्त संस्कृति प्रतिमान का प्रभाप होपी लोगों के व्यक्तित्व में स्पष्टतः देखने को मिलता है । उन्हें जीवित रहने के साधनों को उत्पन्न करने के लिए आपस में निरन्तर सहयोग करना पड़ता है । यही कारण है कि उनका व्यक्तित्व सहयोग के आधार पर विकसित होता है ।
( 2 ) क्वाकियूटल जनजाति ( Kwakutl Tribe ) -
इस जनजाति का सांस्कृतिक प्रतिमान होपी संस्कृति से बहुत - कुछ विपरीत है । इस क्षेत्र में खाने - पीने की चीजें खूब पाई जाती हैं । जहाँ के लोग मछलियों तथा अन्य समुद्री जानवरों का शिकार करते हैं । शिकार अधिकार व्यक्तिगत आधार पर होता है । समाज में वर्ग - व्यवस्था के नियमों का कठोरता से पालन किया जाता है, यहाँ तक कि परिवार में पहले बच्चे की स्थिति बाकी बच्चों से ऊंची मानी जाती है ।
परिवारों में ऊंच नीच का संस्करण पाया जाता है । प्रत्येक वर्ग का एक मुखिया होता है जिसे सीमित राजनीतिक व धार्मिक अधिकार प्राप्त होते हैं । धन का महत्त्व केवल उसे एकत्रित करने में नहीं अपितु खर्च करने में भी होता है । सामाजिक मूल्य यह है कि जो व्यक्ति अपने संचित धन को जितना अधिक बर्बाद कर सकेगा , उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा उतनी ही ऊँची रहेगी ।
समाज में पितृसत्तात्मक परिवार पाए जाते हैं, और समस्त सम्पत्ति पिता के परिवार के सबसे बड़े लड़के को ही मिलती है । प्रायः सबसे छोटे भाई को चतुर समझा जाता है । दावतों में वस्तुएं तथा तश्तरियाँ गिनने का भार सबसे छोटे भाई को चतुर समझा जाता है । दावतों में वस्तुएँ तथा तश्तरियाँ गिनने का भार सबसे छोटे भाई को दिया जाता है । यदि ऊंचे कुलों की लड़कियों से विवाह हो जाता है , तो इस आधार पर भी सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त की जा सकती है । धर्म का महत्त्व कम माना जाता है।
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