शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए ग्रामीण जीवन में शिक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए ।
शिक्षा ने आज गाँव के औद्योगिक विकास , आर्थिक संरचना , राजनीतिक जीवन और व्यक्तित्व के विकास की एक - दूसरे से इस प्रकार सम्बद्ध कर दिया है कि कुछ समय पहले तक इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी । इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि शिक्षा का तात्पर्य केवल पुस्तकीय ज्ञान से नहीं होता बल्कि समाज की विभिन्न संस्थाएं अपने संचित अनुभव के आधार पर जो व्यावहारिक ज्ञान व्यक्ति को प्रदान करती रहती है , उनका भी शिक्षा में उतना ही महत्वपूर्ण स्थान है ।
इसी आधार पर फिलिप्स ( Philips ) का कथन है , " शिक्षा चाहे पुस्तकीय ज्ञान से सम्बद्ध हो चाहे यह ज्ञान लोक - रीतियों और प्रथाओं के रूप में दिया जाता हो अथवा यह परिवार के दैनिक कार्यों का व्यवसाय के माध्यम से हो , इस सम्पूर्ण ज्ञान को हम शिक्षा के अन्तर्गत सम्मिलित करते हैं । यह वह ज्ञान है जो हमें अतीत के अनुभव देता है , वर्तमान को समझने की क्षमता प्रदान करना तथा भावी परिस्थितियों के विश्लेषण के लिए तर्क - बुद्धि देता है । " इस दृष्टिकोण से ग्रामीण जीवन तथा संस्कृति की निरन्तरता में शिक्षा का निश्चय ही महत्वपूर्ण योगदान है ।
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शिक्षा का अर्थ ग्रामीण जीवन में शिक्षा की आवश्यकता - Need of education in rural life. |
शिक्षा का अर्थ महात्मा गाँधी ने लिखा है कि “ शिक्षा से मेरा अभिप्राय बच्चों के शरीर , मन और आत्मा में विद्यमान सर्वोत्तम गुणों का सर्वांगीण विकास करना है ।
" ब्राउन तथा रूकेक ( Brown and Roucek ) के अनुसार , " शिक्षा अनुभवों की वह सम्पूर्णता है जो किशोर और वयस्क दोनों की अभिवृत्तियों को प्रभावित करती है तथा उनके व्यवहारों का निर्धारण करती है ।
" ब्राउन ने शिक्षा को इसकी तीन विशेषताओं के आधार पर स्पष्ट किया है-
( अ ) शिक्षा का तात्पर्य सभी प्रकार के सैद्धान्तिक विचारों और व्यावहारिक अनुभवों से है ,
( ब ) शिक्षा का प्रमुख कार्य इसे ग्रहण करने वाले व्यक्तियों की अभिवृत्तियों में सुधार करना है तथा
( स ) शिक्षा एक विशेष समूह में व्यक्तियों के व्यवहारों पर नियन्त्रण स्थापित करने वाले सबसे प्रभावशाली माध्यम है ।
अतः स्पष्ट होता है कि शिक्षा ऐसे सभी विचारों जिसके द्वारा अनुभवसिद्ध तथा विकास करना है अपने व्यक्तित्व का विकास कर वह प्रक्रिया है जिसमें सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक , आर्थिक एवं का समावेश होता है जिनका उद्देश्य व्यक्ति के उन गुणों का व्यक्ति सबसे सामाजिक तथा भौतिक पर्यावरण से अनुकूलन करके सके ।
ग्रामीण जीवन में शिक्षा की आवश्यकता ( Need of education in rural life )
ग्रामीण विकास का अर्थ है ग्रामीणों को आर्थिक , सामाजिक एवं राजनैतिक सभी क्षेत्रों में विकास के समुचित अवसर उपलब्ध हों । यह सच है कि ग्रामों के चतुर्दिक विकास के लिए स्वतंत्रता के पश्चात् व्यापक कार्यक्रम तैयार किये गये परन्तु इनके द्वारा ग्रामीण विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में आशातीत सफलता प्राप्त नहीं की जा सकी ।
इस स्थिति के लिए यद्यपि अनेक कारक उत्तरदायी हैं लेकिन सर्वप्रमुख कारण गाँवों में शिक्षा का समुचित प्रसार न हो सकता है , वह तथ्य गाँवों में शिक्षा की आवश्यकता को पूर्णतया स्पष्ट कर देता है । ग्रामीण जीवन में शिक्षा की आवश्यकता तथा इसके औचित्य को स्पष्ट करते हुए प्रो . देसाई ने अनेक कारणों का उल्लेख किया है , जो निम्नलिखित हैं-
( 1 ) आर्थिक कारण-
परम्परागत रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था आत्म - निर्भर थी , परन्तु स्वतंत्रता के पश्चात् कृषकों में नवीन वैज्ञानिक प्रविधियों के उपयोग तथा कृषि नवाचारों ( Innovations ) में वृद्धि हो जाने के फलस्वरूप विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों की पारस्परिक निर्भरता पहले की अपेक्षा बहुत अधिक बढ़ गयी है ।
आज अधिकांश गाँव क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में जुड़ गये हैं । इस स्थिति के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था में शिक्षा की दोहरी भूमिका स्पष्ट होने लगी है । एक ओर कृषकों को कृषि - सम्बन्धी नवीन प्रौद्योगिकी का ज्ञान कराने के लिए शिक्षा अत्यधिक आवश्यक है तो दूसरी ओर कृषि उत्पादन से सर्वाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए शिक्षा अत्यधिक आवश्यक है तो दूसरी और कृषि उत्पादन से सर्वाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए औजारों की जानकारी आवश्यक हो गयी । है । ये दोनों कार्य शिक्षा के समुचित प्रसार के बिना सम्भव नहीं है ।
( 2 ) सामाजिक कारण-
वर्तमान ग्रामीण समाज अनेक समस्याओं से ग्रसित है । इन समस्याओं का समाधान तब तक नहीं किया जा सकता , जब तक ग्रामीणों में जाति , धर्म और क्षेत्र पर आधारित परम्परागत विभेद के प्रभाव को कम न किया जाए ।
परिवर्तन के प्रभाव से आज गाँवों में प्राथमिक एवं प्रदत्त स्थिति पर आधारित सामाजिक सम्बन्धों का प्रभाव कम होता जा रहा है तथा इसके स्थान पर द्वैतीयक एवं हित प्रधान सम्बन्धों में वृद्धि हो रही है । शिक्षा एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा गाँवों में सभी समूहों को सामाजिक और मानसिक दृष्टिकोण से एक - दूसरे के समीप लाया जा सकता है ।
( 3 ) नैतिक कारण -
वर्तमान समय में धर्म एवं नैतिकता सम्बन्धी मूल्यों में तेजी से परिवर्तन हो रहा है । आज गाँवों में भी ऐसे धार्मिक व नैतिक मूल्यों का प्रादुर्भाव हुआ है , जिनमें परम्परागत विश्वासों के स्थान पर धर्मनिरपेक्ष ( Secular ) तथा मानवतावादी ( Humanist ) पक्षों को अधिक महत्व दिया जाने लगा है । इन नवीन मूल्यों के साथ ग्रामीणों का समायोजन करने के दृष्टिकोण से आधुनिक शिक्षा का महत्व काफी अधिक है ।
( 4 ) राजनैतिक कारण -
ब्रिटिश शासनकाल में सरकार की नीति ग्रामीण जीवन में कम से कम हस्तक्षेप करने की थी । इस समय ग्रामीण जीवन को व्यवस्थित करने का कार्य मुख्यतः गाँव पंचायतों एवं जाति - पंचायतों का था । स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के गाँवों की राजनैतिक संरचना तेजी से परिवर्तित होने लगी ।
इस समय एक ओर लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के एक साधन के रूप में गाँव - पंचायतों , पंचायत समितियों तथा जिला परिषदों को व्यापक अधिकार दिये गये तथा दूसरी ओर ग्रामीण जीवन अनेक राजनैतिक दलों की गतिविधियों से प्रभावित होने लगा ।
इन राजनैतिक दलों ने न केवल नवीन विचारधारा को प्रोत्साहन दिया , बल्कि ग्रामीण जीवन में नेतृत्व के परम्परागत स्वरूप को भी परिवर्तित कर दिया । वर्तमान समय में लोकतंत्र की सम्पूर्ण सफलता ग्रामीणों को राजनैतिक जागरूकता एवं मताधिकार के समुचित उपयोग पर ही निर्भर है ।
शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो ग्रामीणों को अपने उत्तरदायित्वों , अधिकारों , कर्तव्यों तथा सामाजिक सहभाग के प्रति जागरूक बनाकर देश की राजनीतिक को स्वस्थ रूप प्रदान कर सकता है ।
( 5 ) सांस्कृतिक कारण-
वर्तमान युग में संस्कृति के भौतिक एवं अभौतिक दोनों ही पक्षों मे अतीव वृद्धि हुई । ग्रामीण संस्कृति का अन्य संस्कृतियों से मिश्रण भी बढ़ रहा है ।
इस स्थिति में यदि विभिन्न ग्रामीण समूहों को एक - दूसरे की संस्कृति आत्मसात करने का प्रोत्साहन न मिला तो गाँवों में सांस्कृतिक विघटन की समस्या उत्पन्न हो सकती है । शिक्षा व्यक्ति को बौद्धिक एवं भावनात्मक दृष्टिकोप्प से प्रगतिशील बनाकर सांस्कृतिक विकास का मार्ग प्रशस्त करती है ।
( 6 ) अन्य कारण -
वर्तमान समय में ग्रामीण जीवन में उत्पन्न सभी परिवर्तनों का लाभ तभी प्राप्त किया जा सकता है , जब ग्रामीणों में शिक्षा का प्रसार दिया जाय । नयीं और पुरानी पीढ़ियों में भावनात्मक आधार पर एक - दूसरे से सम्बन्ध बनाये रखने तथा गाँवों में व्याप्त अन्धविश्वासों तथा कुरीतियों के प्रभाव को कम करने में शिक्षा का योगदान निश्चय ही महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है । प्रौद्योगिकी क्षेत्र में चाहे कितना ही विकास क्यों न हो जाय , लेकिन शिक्षा के प्रसार के बिना ग्रामीण इसका समुचित लाभ प्राप्त नहीं कर सकते।
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