जनजातियों में विवाह के प्रकार- Forms of Marriage in Tribal Society

जनजातियों में विवाह के प्रकार ( Forms of Marriage in Tribal Society )

पति व पत्नी की संख्या के आधार पर मानवशास्त्रियों ने विवाह के तीन प्रकार अथवा स्वरूपों का उल्लेख किया है : 

( 1 ) एक विवाह ( monogamy ) 

( 2 ) बहुपत्नी विवाह ( polygyny ) 

( 3 ) बहुपति विवाह ( polyandry ) 


एक - विवाह की प्रथा सभी समाजों का एक नैतिक मापदण्ड बना हुआ है , जबकि ' बहुपत्नी विवाह ' औद्योगिक युग के पहले तक संसार के भी समाजों में किसी न किसी रूप में अवश्य पाये जाते थे । जनजातीय समाज की यह विशेषता है कि इन दोनों स्वरूपों के अतिरिक्त यहाँ ' बहुपति विवाह ' का भी प्रचलन पाया जाता है , जिसकी साधारणतया सभ्य समाजों में कल्पना भी नहीं की जा सकती ।


कुछ मानवशास्त्रियों ने विवाह के एक अन्य रूप ' समूह विवाह ' का भी उल्लेख किया है , लेकिन व्यवहार में विवाह का यह ताप अब सम्भवतः कहीं भी प्राप्य नहीं है । भारत की विभिन्न जनजातियों में विवाह के जो स्वरूप आज भी कम या अधिक मात्रा में प्रचलित हैं , उनका वर्गीकरण निम्नांकित रूप से किया जा सकता है - 

जनजातियों में विवाह के प्रकार- Forms of Marriage in Tribal Society


विवाह के प्रकार ( types of marriages )


( 1 ) एक विवाह ( Monogamy )

एक विवाह से तात्पर्य ऐसे विवाह से है जिसमें एक स्त्री एक ही पुरुष के साथ विवाह करती है और एक पुरूष एक ही स्त्री के साथ विवाह करता है। पुरूष जब तक मौजूद है तब तक स्त्री दूसरा विवाह नही कर सकती और स्त्री जब तक मौजूद है पुरूष दूसरा विवाह नही कर सकता । विवाह की यह अवस्था विकासवादी विचारक अनुसार संकरता का विकसित स्वरूप है । 


बुकेनोविक ( Vukenovic ) के अनुसार केवल उसी विवाह को एक विवाह कहना उचित होगा जिसमें न केवल एक स्त्री का एक ही पति या पत्नी हो बल्कि इनमें से किसी एक की मृत्यु हो जाने के बाद भी विधुर या विधवा पक्ष दूसरा विवाह न करें । किन्तु सामान्य रूप से एक पुरुष के एक स्त्री और एक स्त्री एक पुरूष से विवाह करने को ही एक - विवाह कहा जाता है ।


आज की अधिकांश जनजातियों में जिनमें आर्थिक व्यवस्था का विकास हुआ है वहाँ विवाह की इस पद्धति का विकास हुआ है । एक पुरुष तथा एक स्त्री के सहयो से परिवार की नींव पड़ती है । आदि समाज में स्त्री - पुरुष के सम्भोग के बाद जब सन्ता पालन - पोषण की समस्या पैदा हुई , तो सम्भवतः विवाह के इसी स्वरूप को सर्वोत्त समझा गया । इसके अतिरिक्त समनर तथा केलर ने यह उल्लेख किया है कि एक - विवाह के अन्तर्गत अन्य से यौन सम्बन्धों की स्वीकृति नहीं होती । मृत्यु अथवा विच्छेद द्वार तक यह सम्बन्ध समाप्त होता है ।


एक विवाह के कारण ( Causes of Monogamy ) -

विवाह का यह रूप विश्व  के अधिकांश समाजों में प्रचलित है । कुछ विचारकों का मत है कि आरम्भ में एक - दिवाई प्रथा के मुख्य कारण निम्न प्रकार हैं : 


( 1 ) आर्थिक सहयोग - आदिम समाजों में मनुष्य को जीवन के लिए आर्थिक सर करना पड़ता है । एक पुरुष तथा एक पत्नी का जीवन सहयोग तथा सहकारित चलता था , इसी कारण आदि समाज ने इस विवाह पद्धति को अपनाया । सामन्ती र में जिन लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी होती थी , उनमें अनेक विवाह की प्रथा का आरम्भ हुआ । लेकिन इस प्रथा की शुरूआत सामान्य आर्थिक स्थिति के लोगों में नहीं हुई । अपवादस्वरूप जो उदाहरण मिलते हैं , उनका मुख्य कारण एक जी से सन्तान न होना विवाह - विच्छेद तथा सम्पत्ति के ऊपर अधिकार पाना आदि रहा है । 


( 2 ) एकाधिकार की भावना- यौन सम्बन्धों में पुरुष की भाँति स्त्री भी ईप्याद होती है । पुरुष जिस प्रकार अपनी स्त्री का दूसरे पुरुष के साथ साहचर्य सहन नह कर सकता उसी प्रकार स्त्री भी अपने होते हुए किसी दूसरी स्त्री के साथ अपने पति का सहवास सहन नहीं कर सकती ।


एकाधिकार से सम्बन्धित यह मनोवैज्ञानिक तथ्य परिवार में कलह , फूट व विद्वेष उत्पन्न करता है । कुटुम्ब को सन्तोषमय बनाने की दृष्टि से भी एक - विवाह का स्थान महत्वपूर्ण है । इसी कारण से सम्भवतः यह प्रथा आदिकाल से मनुष्य को रूचिकर रही है । 


( 3 ) स्त्री - पुरूषों की समान संख्या - इस प्रथा का एक कारण समाज में स्त्री - पुरूषों की समान संख्या का होना भी है । समाज में स्त्री - पुरूषों का अनुपात बराबर था अत प्रत्येक स्त्री - पुरूष को वैवाहिक सुख पाने का अवसर मिलता था । यही कारण है कि जिन समाजों में स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों की संख्या अधिक है , वहाँ एक पत्नी के अनेक पति पाये जाते हैं , इसके विपरीत जिन समाजों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का अनुपाल अधिक है , वहाँ प्रायः एक पुरूष की अनेक पत्नियाँ पायी जाती है । इसी कारण प्रारम्भिक समाज में जब स्त्री - पुरुष का अनुपात समान था तो इस प्रथा का जन्म हुआ ।


एक विवाह के लाभ ( Advantage of Monogamy )


आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से एक-विवाह आदिकाल से अत्यन्त उपयोगी रहा है । इसके निम्नलिखित लाभ हैं।


( 1 ) पारिवारिक स्थिरता- पारिवारिक स्थिरता जितनी इस प्रथा के अन्दर है , उतनी विवाह की किसी अन्य प्रथा में नहीं । यह प्रथा स्त्री - पुरूष के ऐसे स्नेह पर आधारित है जिसमें परस्पर एकाधिकार है । स्त्री को अपने पति का स्नेह प्राप्त होता है और कोई अन्य स्त्री पति द्वारा प्राप्त होने वाले स्नेह को विभाजित करने वाली नहीं होती । इस प्रकार पुरुष भी अपनी पत्नी का पूर्ण स्नेह प्राप्त करता है और अपने को उस स्नेह का एकमात्र अधिकारी मानता है ।


( 2 ) शक्तिशाली बन्धन -एक - विवाही प्रथा के अन्दर परिवार के बन्धन शक्तिशाली होते हैं । पति - पत्नी का निकट सम्पर्क होने के कारण दोनों एक - दूसरे को नियंत्रित करते हैं ।


( 3 ) सम्पत्ति का न्यायपूर्ण वितरण इस प्रथा के अंदर सम्पत्ति के उत्तराधिकार सम्बन्धी नियम निश्चित होते हैं । कुटुम्ब के स्वामी की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार का विवाद नहीं होता । 


( 4 ) स्त्री की उच्च स्थिति - एक - विवाह के अन्तर्गत परिवार में स्त्री की स्थिति उच्च तथा प्रतिष्ठापूर्ण होती है , पुरूष द्वारा उसकी उचित देखभाल होती है । पुरुष के अनेक पत्नियाँ हैं तो ऐसी हालत में प्रायः स्त्रियों की स्थिति दयनीय यदि एक होती है । 


( 5 ) उच्च जीवन है । आर्थिक कारणों से अधिक स्त्रियों के रहने की संख्या अधिक होती है । का विशेष महत्व है । स्तर आज के धार्मिक जीवन में एक - विवाही प्रथा विशेष महत्वपूर्ण एक मनुष्य अनेक स्त्रियों का पालन - पोषण नहीं कर सकता । अधिक स्त्रियों के रहने का अर्थ बड़े परिवार का होना है जिसमें बच्चों तथा नातेदारों की संख्या अधिक होती है। इसलिए उच्च जीवनस्तर की दृष्टि से भी एक - विवाही प्रथा का विशेष महत्व है।


एक विवाह के दोष ( Disadvantages of Monogamy ) -


एक - विवाह अनेक विवारकों की दृष्टि में दोषपूर्ण है । उनका मत है कि एक - विवाही प्रथा मनुष्य की एकाधिकार की इच्छा का ही एक रूप है इसलिए एकाधिकार में जो दोष हैं, वे एक-विवाही प्रथा में भी पाये जाते हैं । इस सम्बन्ध में समनर और केलर का मत उल्लेखनीय है । उनका मत है कि जहाँ कहीं भी एकाधिकार का प्रचलन है , वहाँ अनेक दोषों का पाया जाना स्वाभाविक है । 


( 2 ) बहुपत्नी विवाह ( Polygyny )


बहुपत्नी विवाह वह प्रथा है जिसके अनुसार एक पुरुष को अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते हुए भी अन्य स्त्रियों से विवाह करने की अनुमति होती है । भारत की अधिकांश जनजातियाँ क्योंकि एक कठिन और संघर्षमय प्राकृतिक पर्यावरण में रहकर जीविका उपार्जित करती हैं , इस लिए विवाह की इस प्रथा का प्रचलन उनमें कम ही पाया जाता है ।


सामान्यतया जिन जनजातियों में बहुपत्नी विवाह प्रचलित है , वहाँ जनजाति के कुछ प्रमुख व्यक्ति ही एक से अधिक पलियाँ रखते हैं क्योंकि उनके लिए एकाधिक पत्नियों को रखना सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक होता है । उदाहरणार्थ भारत में नागा , बैगा , गोंड और लुशाई जन - जातियों में बहुपत्नी विवाह का प्रचलन नहीं है , बल्कि एक या दो वर्गों में ही यह प्रथा पायी जाती है ।


कुछ समय पहले तक जौनसार बाबर की खस जनजाति , नैनीताल की थारू जनजाति और नीलगिरि पहाड़ियों की टोडा जनजाति मी बहुपत्नी विवाही थीं , लेकिन सभ्य समाजों के सम्पर्क में आने के कारण ये जनजातियों भी एक विवाही होती जा रही हैं । सभी जनजातियों में बहुपत्नी विवाह की प्रथा का रूप समान नहीं होता । 


कुछ समाजों में बहुपत्नी विवाह की मान्यता पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं होता , अर्थात् उस समाज में सभी सदस्यों को बहुपत्नी विवाह करने का अधिकार मिल जाता है । इसके विपरीत , कुछ समाजों में बहुपत्नी विवाह का अधिकार कुछ शर्तों के साथ ही प्राप्त होता है।


बहुपत्नी विवाह के कारण ( Causes of Polygyny )


( 1 ) बहुपत्नी विवाह का सबसे प्रमुख कारण किसी जनजाति में स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों के अफ्रांका में अनुपात में कमी होता है । बील्स और हवाइजर ने इस सन्दर्भ में पूर्वी रहने वाली जनजाति बगण्डा का उदाहरण दिया है जहाँ स्त्रियों की संख्या जाते हैं । पुरुषों से तीन गुना अधिक होने के कारण वहाँ बहुपत्नी विवाह अधिक मात्रा में पाये जाते है।


( 2 ) बहुपत्नी विवाह का कारण कुछ जनजातियों में एक विशेष प्रकार का भोजन करने के कारण अधिक कामवासना का होना है ।


( 3 ) कुछ जनजातियों का जीवन अत्यधिक संघर्षपूर्ण होने के कारण , एक से पत्नियों को रखना इसलिए अच्छा समझा जाता है जिससे कृषि अथवा अन्य आर्थिक कार्यों में उन्हें विश्वसनीय सहयोगी मिल सके । त्रिपुरा और मनीपुर की लुशाई जनजाति में एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करके उनके बीच श्रमविभाजन कर देना इस तथ्य का उदाहरण है । 


( 4 ) पुरूष में नवीनता की इच्छा और एक पत्नी द्वारा सन्तान न होने पर दूसरी पत्नी द्वारा इच्छित सन्तान को जन्म देने की इच्छा भी बहुपत्नी विवाह का कारण है । 


( 5 ) कभी - कभी अधिक पत्नियों को व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा का भी आधार समझा जाता है । इससे भी बहुपत्नी प्रथा को प्रोत्साहन मिलता है । 


( 6 ) कुछ जनजातियों का भौगोलिक पर्यावरण इस प्रकार का है कि स्त्रियों में कम आयु में ही यौनिक इच्छा समाप्त हो जाती है । इसके अतिरिक्त स्त्रियों की गर्भ धारण सम्बन्धी निर्योग्यता के कारण भी पुरूष दूसरे विवाह को उपयोगी प्रथा के रूप में देखते हैं । 


बहुपत्नी विवाह के परिणाम ( Consequences of Polygyny )


अन्य संस्थाओं के समान बहुपत्नी विवाह के परिणाम भी एकपक्षीय नहीं है । कुछ क्षेत्रों में इससे जनजातीय समाज को लाभ हुआ है , जबकि अनेक क्षेत्रों में इसने पारिवारिक और सामाजिक संघर्षों को जन्म दिया है । इसके प्रमुख गुणों और दोषों को इस प्रकार समझा जा सकता है : 


( क ) गुण ( Merits ) -

बहुपत्नी विवाह के गुण जैविकीय और आर्थिक क्षेत्र में स्पष्ट किये जाते हैं - 


( 1 ) इसके कारण जनजाति में अच्छे गुणों की सन्तानों की संख्या में वृद्धि होती है ।

( 2 ) परिवार में अनेक स्त्रियाँ होने से बच्चों का पालन - पोषण अधिक अच्छी तरह किया जा सकता है ।

( 3 ) श्रम विभाजन में सहायता मिलती है जिससे प्राकृतिक संघर्षों का सामना करने में पुरूष अधिक क्षमतावान हो जाता है।

( 4 ) पुरुष की नवीनता की इच्छा तथा काम - वासना की तृप्ती परिवार के अन्दर ही हो जाती है जिससे उनके समूह में अनैतिकता अथवा व्यभिचार बढ़ने की सम्भावना बहुत कम रह जाती है।


( ख ) दोष ( Demerits ) -


इस प्रथा के दोष विशेषकर पारिवारिक और सामाजिक क्षेत्र में देखे जा सकते हैं - 

( 1 ) इसके परिणामस्वरूप समाज में स्त्रियों की स्थिति में अत्यधिक हर होता है जिससे बच्चों के व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं हो पाता । 

( 2 ) ऐसे अधिकतर कलह , ईर्ष्या और मतभेद के केन्द्र होते हैं क्योंकि सभी पतियाँ पुरुष अपना एकाधिकार रखने का प्रयत्न करती है । 

( 3 ) यदि उचित रूप से स्त्रियों पर नियंत्रण नहीं रखा जाता है तब पुरुष का जीवन ही विघटित हो जाता है ।

( 4 ) बहुपत्नी विवाही परिवारों की आर्थिक स्थिति सदैव बिगड़ने का डर रहता है।


( 3 ) बहुपति विवाह ( Polyandry )


सभ्य समाजों से बिलकुल मित्र जनजातियों में विवाह का एक स्वरूप उनकी एक अनुपम विशेषता है । माइकेल ( Mitchell ) के अनुसार , " एक स्त्री द्वारा एक पति के जीवित होतु हुए अन्य पुरूषों से भी विवाह करना अथवा एक समय पर ही सेवा है से अधिक पुरूषों से विवाह करना बहुपति विवाह कहलाता है ।


कपाडिया का मत है कि “ बहुपति विवाह वह सम्बन्ध है जिसमें स्त्री एक समय में एक से अधिक पतियों का वरण कर लेती है अथवा जिसके अन्तर्गत अनेक भाई एक स्त्री अथवा पत्नी के सम्मिलित रूप से उपयोग करते हैं । " कुछ व्यक्तियों का विचार है कि विवाह की कह प्रधा जनजातियों की ही विशेषता नहीं है बल्कि यहपरम्परागत हिन्दू संस्कृति का एक उप - लक्षण है ।


इसके प्रमाण के रूप में , महाभारत काल में द्रौपदी का पाँच पाण्डवों से विवाह और एत्तरय ब्राह्मण के समय ( ईसा से 800 वर्ष पहले ) के कुछ दृष्टान्त दिये । जाते हैं । वास्तव में , यह विवेचन भ्रान्तिपूर्ण है क्योंकि किसी एक या कुछ घटनाओं को ही किसी सामाजिक व्यवस्था का आधार नहीं माना जा सकता । वास्तव में बहुपति जनजातियों में ही प्रचलित हैं , यद्यपि इनका क्षेत्र बहुत सीमित होता जा रहा है ।


भारत में कुछ समय पूर्व तक बहुपति विवाह की प्रथा बहुत - सी जनजातियों में प्रचलित थी , लेकिन सभ्य समाजों के सम्पर्क में आने और शिक्षा के प्रसार के कारण अनेक जातियों में यह प्रथा अब समाप्त होती जा रही है । इस समय जिन जनजातियों में यह प्रथा विशेष रूप से पायी जाती है उनमें उत्तरी और पूर्वी भारत की जनजातियाँ टोडा, कोटा, खस, केरल की टियान , कोट , कुसुम्ब ; नीलगिरी पर्वत की टोडा , दक्षिण भारत की नैयर , मालाबार की कम्मल जनजाति और दुर्ग की पहाड़ियों पर रहने वाली जनजातियों का नाम उल्लेखनीय है । 


बहुपति विवाह की विशेषताएँ ( Features of polyandry marriage )


बहुपति विवाह से सम्बन्धित सामान्य विशेषताओं को निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है :


( 1 ) बहुपति विवाह सामान्य रूप से दो प्रकार का होता है । प्रथम तो वह जिसमें स्त्री के अनेक पति आपस में भाई - भाई होते हैं और दूसरा वह जिसमें अनेक पतियों के बीच में किसी प्रकार का रक्त सम्बन्ध होना आवश्यक नहीं होता । प्रथम स्वरूप को हम ' भ्रातृ बहुपति विवाह ' ( fraternal polyandry ) कहते हैं , जबकि दूसरे को ' अभ्रातृ बहुपति विवाह ' ( non - fraternal polyandry ) कहा जाता है।


( 2 ) यह आवश्यक नहीं है कि परिवार में सभी पतियों के बीच केवल एक ही पत्नी हो । इनकी संख्या कभी - कभी दो या दो से अधिक भी होती है । ऐसी स्थिति में सभी भाइयों अथवा पत्तियों का सभी पत्नियों पर समान अधिकार होता है । 


( 3 ) भ्रातृ बहुपति विवाह में पत्नी पर बड़े भाई का अधिकार सबसे अधिक होता है , यद्यपि छोटे भाइयों की पूर्णतया अवहेलना नहीं की जा बहुपति विवाह में पत्नी पर सभी पतियों का अधिकार समान होता है । 


( 4 ) मातसत्तात्मक जनजातियों में स्त्री स्वयं अपने पतियों का वरण करती है जबकि 

पितृसतात्मक जनजातियों में पत्नी को चुनने का अधिकार पुरुषों का होता है । सामान्यतया बहुपति विवाह की प्रथा मातृसत्तात्मक जनजातियों में अधिक पायी जाती है । 


( 5 ) साधारणतया भ्रातृ बहुपति विवाह में विवाह के बाद पत्नी अपने पति के घर जाकर रहती है , जबकि अभात बहुपति विवाह में पत्नी किसी पृथक स्थान पर रहती है और सभी पतियों को अलग - अलग अवसरों पर अपने साथ रहने की अनुमति प्रदान करती है । 


( 6 ) बहुपति विवाह की प्रमुख विशेषता बच्चों के पितृत्व ( fatherhood ) के निर्धारण से सम्बन्धित है । ऐसे विवाहों से निर्मित परिवारों में बच्चे के पितृत्व का निर्धारण जैविडीय रूप से न होकर सामाजिक रूप से होता है , तथा बच्चे पर माँ के अधिकार को प्राथमिकता दी जाती है । 


बहुपति विवाही जनजातियों के उदाहरण


बहुपति विवाह के उदाहरण के रूप में कपाड़िया ने जिन छः जनजातियों का उल्लेख किया है , उनमें आपने केवल दो जनजातियों को ही पूर्णतया बहुपति विवाही स्वीकार किया है । इन दोनों जनजातियों के उदाहरण से बहुपति विवाह की प्रथा को सरलता से समझा जा सकता है । 


( क ) खस जनजाति के भ्रातृ बहुपति विवाह 

बहुपति विवाह का विस्तार सम्पूर्ण खस जनजाति में नहीं है , बल्कि यह प्रथा केवल देहरादून के जौनसार बाबर परगना और टेहरी के रवाई तथा जौनपुर परगनों में ही पायी जाती है । इस जनजाति में जब बड़ा भाई किसी स्त्री से विवाह करता है , तब उसकी पत्नी छोटे भाइयों की भी पत्नी मान लो जाती है । छोटे भाइयों की आयु बहुत कम होती है , तब युवा होने यदि उन्हें उस स्त्री का पति 1848 में तैयार पर होने का अधिकार मिल जाता है ।


यद्यपि किये गये जौनसार बाबर के रीति - रिवाजों के अनुसार ( जिसे दस्तूरूल अम्ल कहा जाता है ) किसी भी छोटे भाई को अपने लिए पृथक पत्नी रखने को अधिकार नहीं है , लेकिन व्यावहारिक रूप से यदि छोटे भाई की आयु बड़े भीई की आयु से बहुत कम हो तब उसे किसी अन्य स्त्री से भी विवाह करने की अनुमति दे दी जाती है ।


ऐसी स्थिति में भी उसका अपनी पत्नी पर पूर्ण अधिकार तभी तक रह सकता है जब तक कि उसके बड़े भाइयों को किसी प्रकार की आपत्ति न हो । आपत्ति होने की स्थिति में उस स्त्री को भी सभी भाइयों की पत्नी के रूप में रहना आवश्यक है । कपाड़िया का कथन है कि " यद्यपि विवाह के बाद स्त्री सभी भाइयों की पत्नी होती है लेकिन मुख्य रूप से वह सबसे बड़े भाई की ही पत्नी होती है । " इस तथ्य को श्री कपाड़िया ने अनेक रीति - रिवाजों और पारिवारिक नियमों के आधार पर स्पष्ट किया है - 


( 1 ) सामान्यतया जब तक बड़ा भाई घर पर रहता है , तब तक अन्य भाइयों के लिए पत्नी से सम्बन्ध रखना प्रायः सम्भव नहीं होता ।- 

( 2 ) बड़े भाई से यौनिक सम्बन्ध थापित करने के लिए पत्नी द्वारा किसी प्रकार की भी उदासीनता दिखाना एक गम्भीर दुराचरण समझा जाता है और इसके लिए बड़ा भाई उसे तलाक भी दे सकता है । समें अन्य भाइयों की इच्छा का कुछ भी महत्व नहीं है । 

( 3 ) यदि कोई छोटा भाई किसी वैशेष स्त्री से विवाह करना चाहता है ( इसका कारण चाहे कुछ भी हो ) तब उस स्त्री विवाह - संस्कार बड़े भाई के साथ ही होता है ,, यद्यपि बाद में वह स्त्री उस छोटे दी जा सकती है।

( 4 ) यदि पत्नी को लेकर भाइयों के बीच किसी प्रकार का त्पन्न हो जाय , तब बड़े भाई को ही यह अधिकार है कि वह विवाह को समाप्त कर । आदेश दे दे ।- 

( 5 ) परिवार की सम्पत्ति का बँटवारा बड़े भाई की इच्छा से ही हो सकता है । यदि कोई अपने हिस्से की माँग करने लगे , तब बड़े भाई को अधिकार है कि वह इस बँटवारे को स्वीकार न करे तथा पत्नी अथवा पत्नियों पर से भी उसके अधिकारों को समाप्त घोषित कर दें ।- 

( 6 ) पत्नी की सन्तान के भरण - पोषण तथा नियंत्रण का दायित्व भी प्रमुख रूप से बड़े भाई का ही होता है । बड़े भाई के इन सभी आहे कारों से स्पष्ट होता है कि खस जनजाति दिवाही होते हुए भी ' पितृसत्तात्मक ' व्यवस्था द्वारा प्रभावित है । खस जनजाति में बच्चों के पितृत्व का निर्धारण सामाजिक रूप से होता है ।


यद्यपि सभी बच्चों पर प्रमुख अधिकार बड़े भाई का होता है लेकिन सामाजिक रूप से पहली सन्तान पर सबसे बड़े भाई का अधिकार होता है , दूसरी सन्तान पर उससे छोटे भाई का और इसी प्रकार इससे आगामी सन्तानों का अधिकार क्रम से अन्य भाइयों को मिलता जाता है । 


( ख ) टोडा जनजाति के मिश्रित बहुपति - विवाह- 

नीलगिरी पर्वत की टोडा जनजाति बहुपति विवाह का एक प्रमुख उदाहरण है इस जनजाति का मूल स्थान मालाबार क्षेत्र माना जाता है । मालाबार क्षेत्र के नैयर लोगों में बहुपति विवाह की प्रथा एक लम्बे समय तक प्रचलित रही है और इसी कारण कुछ विद्वानों का विचार है कि टोडा जनजाति की यह विशेषता नैयर लोगों से ही प्राप्त की गयी मालूम होती है ।


प्रो ० रिवर्स के अध्ययन के आधार पर टोडा जनजाति में प्रचलित बहुपति विवाह की प्रथा को निम्नांकित रूप से स्पष्ट किया जा सकता है :


( 1 ) सामान्यतया टोडा जनजाति में भ्रातृ बहुपति विवाह की प्रथा पायी जाती है । यहाँ तक कि यदि किसी पुरुष के विवाह के बाद उसके किसी भाई का जन्म हो तब इतने छोटे भाई को भी उस स्त्री का पति मान लिया जाता है । 


( 2 ) इस जनजाति में पितृत्व का निर्धारण सांस्कृतिक रूप से होता है । पत्नी के गर्भवती होने पर पाँचवे माह में कोई एक भाई ' पुरसुतपिमि ' संस्कार पूरा करता है । इस संस्कार के अन्तर्गत कोई एक पति पत्नी को धनुष और बाण देकर बच्चे का दायित्व लेने की घोषणा करता है और इस प्रकार उसे बच्चे का पिता स्वीकार कर लिया जाता है । जब तक दूसरा पति समय आने पर इस संस्कार को नहीं करता , पत्नी की समस्त सन्तानें उसी पति की मानी जाती है । 


( 3 ) यदि किसी स्त्री के सभी पति आपस में भाई - भाई नहीं होते और वे विभिन्न गाँवों में रहते हैं , तब पत्नी एक निश्चित अवधि के लिए प्रत्येक पति के पास बारी - बारी से जाकर रहती है । ऐसी स्थिति जो भी पति ' पुरसुतपिमि ' संस्कार पूरा करता है , बच्चे का गोत्र उसी के वंश से जोड़ दिया जाता है । 


( 4 ) टोडा लोगों में स्त्री का साहचर्य अपने पतियों तक ही सीमित नहीं होता बल्कि पतियों के अतिरिक्त उसके और भी प्रेमी हो सकते हैं । 


( 5 ) सामाजिक रूप से यद्यपि पितृत्व का अधिकार सबसे बड़े भाई को दिया जाता हैं , लेकिन फिर भी सामान्यतया सभी भाइयों अथवा पतियों को सन्तान का पिता माना जाता है । 


( 6 ) प्रो ० रिवर्स के अनुसार टोडा जनजाति की एक वैवाहिक विशेषता पत्नी को मृत्यु के बाद पतियों के सामने विधुर जीवन की अनेक असमर्थताएँ उत्पन्न होना है । यदि स्त्री के सभी पति आपस में भाई होते हैं तो सभी भाइयों को विधुरावस्था की स्थिति से बचाने के लिए कुछ भाइयों को ही विधुर घोषित किया जाता है , जबकि दूसरों का इसमें छूट मिल जाती है ।


( 7 ) टोडा जनजाति के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि सभी भाइयों द्वारा एक ही पत्नी रखने के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं । सामान्यतया प्रत्येक भाई की अब अपनी एक पत्नी होती है लेकिन परिवार में सभी भाइयों की पत्नियों से सभी को यौन सम्बन्ध रखने को स्वतंत्रता होती है । 


बहुपति विवाह के कारण ( Reasons for polyandry )


प्रश्न यह उठता है कि बहुपति विवाह की प्रथा किन परिस्थितियों में प्रचलित हुई ? विभिन्न मानवशास्त्रियों ने इसे अनेक कारणों के आधार पर स्पष्ट किया है : 


( 1 ) कुछ मानवशास्त्रियों का मत है कि बहुपति विवाह का प्रमुख कारण पुरूषों की अपेक्षा स्त्रियों के अनुपात में काफी कमी होना है । इसके प्रमाण में यह तर्क दिया जाता है कि टोडा जनजाति में बहुत - सी लड़कियों के जन्म लेते ही उनकी हत्या कर दी जाती है । इस प्रकार इस समाज में स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों की संख्या लगभग दुगुनी होने के कारण ही इस जनजाति में बहुपति विवाह का प्रचलन है । 


( 2 ) कुछ जनजातियों में विवाह के समय पुरुष को पत्नी - मूल्य चुकाना पड़ता है । । जनजातियों की आर्थिक स्थिति निम्न होने के कारण भी अनेक भाई मिलकर एक ही स्त्री से विवाह कर लेते हैं । 


( 3 ) बहुपति विवाह का एक मुख्य कारण जनजातियों का संघर्षपूर्ण प्राकृतिक जीवन है । 


( 4 ) कपाड़िया का मत है कि जनजातियों में जीविका उपार्जित करने के लिए पुरूषों को सामान्यतया घर से बाहर ही रहना होता है । ऐसी स्थिति में हो सकता है कि स्त्री की सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी बहुपति विवाह की प्रथा को प्रोत्साहन मिला हो । वेस्टरमार्क ने भी इस कारण को महत्वपूर्ण माना है । 


( 5 ) पैतृक सम्पत्ति को विभाजन से बचाने की इच्छा भी बहुपति विवाह का कारण है।


बहुपति विवाह के परिणाम ( Consequences )


( क ) गुण ( Merits ) - 


( 1 ) इस प्रथा की सहायता से परिवार की सीमित सम्पत्ति का और अधिक विभाजन नहीं होता । कृषि और पशुपालन में लगी जनजातियों के लिए यह प्रथा विशेष रूप से महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है । 

( 2 ) जिन जनजातियों में बहुपति विवाह का प्रचलन है वहाँ सामाजिक संघर्षों की सम्भावना कम हो जाती है । 

( 3 ) बहुपति विवाह के अन्तर्गत परिवार की आर्थिक क्रियाओं की क्षमता सदैव अधि क बनी रहती है । 

( 4 ) अपने संघर्षमय पर्यावरण में जनजातियाँ जीविका के साधन कठिनता से ही र्जित कर पाती हैं । जाता है , - 


दोष ( Demerits ) -

बहुपति विवाह के यद्यपि अनेक दोषों का उल्लेख किया से यह दोष केवल तीन क्षेत्रों में ही देखे जा सकते हैं : 


( 1 ) इस प्रथा के अन्तर्गतयों की सामाजिक स्थिति में सुधार होने वे शारीरिक रूप से दुर्बल और अनेक बीमारियों की शिकार हो जाती है । 

( 2 ) इस प्रथा के अन्तर्गत स्त्रियों को यौन से सम्बन्धित व्यापक स्वतंत्रता मिल जाने के कारण यौनिक बाद भी नैतिकता का स्तर बहुत गिर जाता है । 

( 3 ) बहुपति विवाह की प्रथा अपने आपमें स्वतःचालित है । सामान्य रूप से एक स्त्री के अनेक पति होने से लड़कियों की अपेक्षा लड़कों का जन्म अधिक होता है ।


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