विवाह तथा यौन सम्बन्ध में भेद ( Distinction between Marriage and Sex Relationship )
विभिन्न मानवशास्त्रियों तथा दूसरे विद्वानों ने विवाह को जिस रूप में परिभाषित किया है उससे अक्सर यह भ्रम उत्पन्न हो जाता है कि विवाह का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को यौनिक सन्तुष्टि के अवसर प्रदान करना है । ऐसे विचार वास्तव में एक - पक्षीय होने के साथ ही अपूर्ण और अवैज्ञानिक भी है ।
यह सच है कि यौन सम्बन्धों की अनुमति " विवाह का एक महत्वपूर्ण पक्ष है लेकिन इसकी वास्तविकता को समझने के लिए सर्वप्रथम विवाह तथा यौन सम्बन्ध के अन्तर को स्पष्ट करना आवश्यक है । यौन सम्बन्ध जीवित प्राणियों का एक ऐसा बाह्य व्यवहार है जो अनेक मानसिक प्रेरणाओं के फलस्वरूप उत्पन्न होता है तथा एक सार्वभौमिक व्यवहार के रूप में सभी प्राणियों के जीवन को प्रभावित करता है ।
यह एक और दैहिक आधार पर अभिव्यक्त होता है तथा दूसरी ओर इसका सम्बन्ध शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति से है । इस रूप में यौन सम्बन्ध केवल मनुष्य ही स्थापित नहीं करता बल्कि कोई प्राणी चाहे कितना ही छोटा अथवा बड़ा हो , सभी में यौनिक व्यवहार आवश्यक रूप से पाये जाते हैं । मानव और पशु समाज के बीच इस आधार पर सर्वप्रमुख अन्तर यह है कि पशु केवल यौन सम्बन्ध स्थापित करते हैं जबकि मानव विवाह के द्वारा अनेक नियमों तथा नियंत्रणों के अन्तर्गत अपनी यौन इच्छाओ की पूर्ति करता है |
इसका तात्पर्य है कि मानव समाज में यौन इचओं की पूर्ति एक स्वतंत्र व्यवहार नहीं है और न ही यह पूर्णतया एक जैविकीय तथ्य है । वास्तविकता यह है कि यौन सम्बन्ध जब सामाजिक और सांस्कृतिक नियमन के द्वारा नियंत्रित हो जाते हैं तब इसी संस्थागत नियमन को हम ' विवाह ' शब्द से सम्बोधित करते हैं ।
इससे यह भी स्पष्ट होता है कि विवाह का उद्देश्य केवल यौन सम्बन्धों को स्थापना करना अथवा यौन इच्छाओं को पूरा करना ही नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य कुछ सामाजिक तथा सांस्कृतिक उद्देश्यों को पूरा करना भी होता है । अनेक जनजातियों में तो विवाह तथा यौन सम्बन्धों के बीच कोई भी सम्बन्ध स्वीकार नहीं किया जाता बल्कि विवाह के द्वारा कुछ विशेष सांस्कृतिक के को स्थायी बनाये रखने का ही प्रयत्न किया जाता है ।
उदाहरणार्थ सेमा नागाओं विवाह में किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसका पुत्र अपनी सगी माँ को छोड़कर अपने पिता की अन्य सभी विधवा पत्नियों से विवाह कर लेता है । ऐसे विवाह का उद्देश्य यौन इच्छाओं की पूर्ति न होकर परिवार की सम्पत्ति को विभाजन से रोकना होता है । अनेक जनजातियाँ ऐसी भी हैं जिनमें दो विभिन्न समूहों से सम्बन्धित स्त्री - पुरुष के बीच विवाह सम्बन्ध इसलिए स्थापित किये जाते हैं जिससे वे समूह एक - दूसरे के निकट सम्पर्क मे आ सके तथा उनके बीच पारस्परिक सहयोग में वृद्धि हो सके ।
कावर जनजाति में विवाह का मुख्य उद्देश्य जंगलों से फल - फूल एकत्रित करने के लिए विश्वस्त जीवन साथी को प्राप्त करना है । इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि विवाह को केवल यौनिक आधार पर ही परिभाषित सकता बल्कि इसमें अनेक दूसरे कागत उद्देश्यों की पूर्ति का यौन नहीं किया जा भी समावेश रहता है । सम्बन्ध एक जैविकीय व्यवहार है जबकि विवाह एक संस्था है ।
एक संस्था के रूप में विवाह के अन्तर्गत अनेक ऐसे नियमों का समावेश होता है जिनकी व्यक्ति या तो अवहेलना नहीं कर सकता अथवा उनकी अवहेलना करने पर व्यक्ति को कीर सामाजिक दण्ड का भागी बनना पड़ता है । अनेक जनजातियों में यौन सम्बना बहुत ढीले और स्वतंत्र प्रकृति के होने के कारण कुछ लोग अक्सर यह समझने लगते हैं, विवाह का मुख्य उद्देश्य यौन सम्बन्धों की पूर्ति करना ही है लेकिन जनजातियों में यौन सम्बन्धों की स्वतंत्रता वास्तव में विवाह से इनकी पृथकता को ही स्पष्ट करती है ।
अनेक जनजातियाँ ऐसी भी हैं में लड़कियों को विवाह से पहले तक कठोर अनुशासन में रखा जाता है लेकिन विवाह के पश्चात् उन्हें अपने पति के अतिरिक्त किसी भी अन्य रूप से यौन सम्बन्धों को स्थापित करने की स्वतंत्रता मिल जाती है । इस तर भी यह स्पष्ट होता है कि विवाह पूर्णतया एक सामाजिक - सांस्कृतिक संस्था है तथा स यौन इच्छाओं की पूर्ति से ही एकमात्र सम्बन्ध नहीं है ।
विवाह के उद्देश्य अथवा प्रकार्य ( Objectives or Functions of Marriage )
विवाह मानव समाज की एक सर्वव्यापी विशेषता है लेकिन विभिन्न समाजों के सामाजिक मूल्यों और सांस्कृतिक विशेषताओं में भिन्नता होने के कारण विवाह के उद्देश्यों में भी कुछ भिन्नता पायी जाती है । विभिन्न समाजों को ध्यान में रखते हुए विवाह के चार प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख किया जा सकता है जो इस प्रकार है :
( 1 ) यौन इच्छाओं की पूर्ति ।
( 2 ) परिवार की स्थापना ।
( 3 ) आर्थिक सहयोग की स्थापना तथा ।
( 4 ) बच्चों के पालन - पोषण की समुचित व्यवस्था ।
इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि विवाह के यह चारों उद्देश्य समान रूप से महत्वपूर्ण हैं लेकिन विभिन्न समाजों में इनकी प्राथमिकता के क्रम में कुछ अन्तर पाया उदाहरण के लिए जटिल और भौतिकवादी संस्कृति से सम्बन्धित जाता है । " समाजों में विवाह का प्रमुख उद्देश्य यौन सम्बन्ध स्थापित करने के कानूनी अधिकार प्राप्त करना तथा बच्चों के जन्म को वैध रूप प्रदान करना है ।
ऐसे परिवारों में विवाह क सम्बन्ध व्यक्तित्व से बहुत कम होता है । इसके बिलकुल विपरीत , में विवाह का उद्देश्य केवल यौन सम्बन्यों को स्थापित करने ही नहीं होता बल्कि दो परिवारों अथवा अथवा के विकास सरल और आदिम के अधिकार प्राप्त करना सम्पत्ति - अधिकारों समाजों दो समूहों के सम्बन्धों को दृढ़ बनाना होता है । इस दृष्टिकोण से भी यौन सम्बन्धों
सामाजिक मानव के अधिकारों को प्राप्त अनेक बहुत कठिन हो जाता है कि बच्चे का वास्तविक में बच्चे करना विवाह का सर्वप्रमुख उद्देश्य नहीं कहा जा सकता है । आदिवासी समाजों में बहुपति विवाह का प्रचलन है जिसके कारण यह जानन पिता कौन व्यक्ति है । ऐसी स्थिति सामाजिक प्रथाओं तथा अनुष्ठानों के को वैध रूप देना भी विवाह अनुष्ठानों की केवल परिवार कुछ विशेष के पितृत्व का निर्धारण द्वारा किया जाता है ।
इससे स्पष्ट होता है कि बच्चों का प्रमुख उद्देश्य नहीं हो सकता क्योंकि कुछ प्रथाओं , संस्कारों अथवा सहायता से भी बच्चे को वैध रूप दिया जा सकता है । इस स्थति में की स्थापना करना ही विवाह का सर्व प्रथम उद्देश्य रह जाता है । यह सच है कि व्यक्ति विवाह के बिना भी अपनी यौन इच्छा को पूरा कर सकता है लेकिन यह कार्य न को नैतिक है और न ही इससे व्यक्तित्व का समुचित विकास सम्भव है । इसका तात्पर्य है कि व्यक्तित्व का स्वस्थ रूप से विकास करना तथा व्यक्ति को मानसिक सुरक्षा प्रदान करना भी विवाह का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य हो जाता है।
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