संस्कृति लय ( Culture Theme ) को स्पष्ट कीजिए ।
संस्कृति के एकीकरण को स्पष्ट करने के लिए मॉरिस ओपलर ने संस्कृति लय ( Culture Theme ) का सिद्धान्त प्रस्तुत किया । इसे हम संस्कृति के दृष्टिकोण भी कह सकते हैं । मॉरिस ओपलर ने बेनीडिक्ट के विचारों की आलोचना करते हुए कहा कि यदि हम बेनीडिक्ट के विचारों को स्वीकार कर लें तो इसका तात्पर्य यह होता है कि संस्कृति के संगठन के केवल दो ही आधार रह जायेंगे जिन्हें बेनेडिक्ट ने अपालोनियन और डायांनीशियन कहा है ।
वास्तव में संस्कृति का संगठन इन दो आधारों पर ही नहीं बल्कि अनेक आधारों पर हो सकता है । इस दृष्टिकोण से यह आवश्यक है कि संस्कृति के एकीकरण से सम्बन्धित विभिन्न प्रेरणाओं अथवा आधारों को समझा जाय । ओपलर का कथन है कि प्रत्येक संस्कृति की विशेषताएँ दूसरी संस्कृतियों से भिन्न होती है । इस भिन्नता का कारण विभिन्न संस्कृतियों में भिन्न - भिन्न लय का होना है ।
ओपलर के शब्दों में , " लय कहा हुआ या माना हुआ एक सिद्धान्त या दशा है जो समाज में लोगों के व्यवहार को नियन्त्रित करती है या उन्हें एक विशेष प्रकार से व्यवहार करने की प्रेरणा प्रदान करती है । " इसका तात्पर्य है कि लय एक प्रकार की प्रेरणा, बहाव, या धारा है जो एक समाज में लोगों के व्यवहारों को एक विशेष ढंग से व्यवहार करने की प्रेरणा देती है तथा संस्कृति को एक विशेष रूप प्रदान करती है ।
जिस तरह संगीत की एकविशेष लय के अनुसार ही पूरा संगीत संचालित होता है उसी तरह संस्कृति में भी एक लय होती है जो विभिन्न सांस्कृतिक तत्वों को एक विशेष दिशा की ओर ले जाकर उनके संगठन को बनाये रखती है । इस स्थिति को ओपलर ने छिरिका हुआ अपाछे लोगों की संस्कृति के उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया है । इस संस्कृति की लय इस तरह की है जिससे स्त्रियों की तुलना में पुरुषों को हर तरह से श्रेष्ठ माना जाता है ।
संस्कृति की यह लय छिरिकाहुआ लोगों के सभी सांस्कृतिक प्रतिमानों को एक विशेष ढंग से संगठित करती है । मॉरिस ओपलर ने यह भी स्पष्ट किया कि एक संस्कृति में केवल एक लय का होना ही आवश्यक नहीं होता है बल्कि एक संस्कृति में एक से अधिक लय भी हो सकती है । इसके बाद कोई एक लय अधिक महत्त्वपूर्ण होती है तथा उसी के आधार पर की मुख्य लय में जितना अधिक सन्तुलन और नियंत्रण शक्ति होती है , उससे सम्बन्धित संस्कृति के तत्वों तथा प्रतिमानों में भी उतना ही अधिक संगठन पाया जाता है।
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