संस्कृति प्रतिमान ( Culture Pattern ) पर संक्षिप्त टिप्पणी
संस्कृति प्रतिमान ( Culture Pattern ) सांस्कृतिक ढाँचे के अन्तर्गत संस्कृति - संकुलों की उस व्यवस्था को, जिसे कि सम्पूर्ण संस्कृति की विशेषताएँ व्यक्त हों, संस्कृति - प्रतिमान कहते हैं ।
सदरलैण्ड तथा वुडवर्ड के शब्दों में, " सम्पूर्ण संस्कृति के एक प्रकार का सामान्यकृत चित्र के रूप में संकुलों का एक संगृरह संस्कृति प्रतिमान है ।
" हर्षकॉविट्स मतानुसार, " संस्कृति प्रतिमान एक संस्कृति के तत्त्वों का वह जिडाइन है जो कि, उस समाज के सदस्यचों के व्यक्तिगत व्यवहार प्रतिमान के माध्यम से व्यक्ति होता है, जीवन के तरीके को सम्बद्धता, निरन्तरता तथा विशिष्ट स्वरूप प्रदान करता है । "
उपरोक्त परिभाषाओं से संस्कृति - प्रतिमान की प्रकृति का पर्याप्त स्पष्टीकरण हो जाता है । संस्कृति - प्रतिमान की किसी भी विवेचना में यह बात सदा याद रखनी चाहिए कि संस्कृतिक कोई गड़बड़ झाले की या अव्यवस्थित चीज नहीं है । प्रत्येक संस्कृति में, चाहे वह आदिम समाज की हो या सभ्य समाज की, एक संगठन होता है । यह संगठन इस कारण दिखाई पड़ता है कि संस्कृति के विभिन्न पक्ष और तत्त्व या संकुल एक विशिष्ट ढंग या फैशन से संस्कृति के ढाँचे के अन्दर सजे हुए होते हैं ।
संस्कृति इन तत्त्वों या संकुलों से इस प्रकार बनी होती है जिस प्रकार पत्थरों से एक मकान , परन्तु केवल संस्कृति - संकुलों का एकत्रीकरण उसी प्रकार संस्कृति नहीं कहा जा सकता, जिस प्रकार पत्थरों के ढेर को मकान नहीं कह सकते । मकान कहलाने के लिए इन पत्थरों में एक व्यवस्था, क्रम या ढंग होना चाहिए ।
एक विशिष्ट ढंग से पत्थरों को संयुक्त करने से एक कमरा बनता है और इन कमरों को एक क्रम से लगाने या सजाने पर मकान बनता है । ठीक उसी प्रकार संस्कृति - संकुलों के एक विशिष्ट ढंग से व्यवस्थित हो जाने से संस्कृत प्रतिमान बनता है और इन संस्कृति - प्रतिमानों की सम्पूर्ण व्यवस्था को संस्कृति कहते हैं । अतः स्पष्ट है कि सम्पूर्ण संस्कृति के ढाँचे के अन्दर एक विशिष्ट ढंग या क्रम से सजे हुए, संस्कृति संकुलों के मिलते रूप को संस्कृति - प्रतिमान कहते हैं ।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि संस्कृति प्रतिमान के अध्ययन से एक संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं का शान सरलता से हो सकता है और संस्कृति प्रतिमान की अवधारणा का यही सबसे उल्लेखनीय महत्त्व है । उदाहरणार्थ, भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत पाये जाने वाले संस्कृति प्रतिमान जैसे, जाति - प्रथा, पंचायत, संयुक्त परिवार, धार्मिक भिन्नता, खेती, गाँधीवाद , अध्यात्म जीवन - दर्शन आदि भारतीय संस्कृति की विशेषताओं और आधारों को बताते हैं । सामाजिक मानवशास्त्र में इसी कारण संस्कृति - प्रतिमान के अध्ययन का महत्त्व किसी - न - किसी रूप में दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
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