वैज्ञानिक समाजवाद क्या हैं ? वैज्ञानिक समाजवाद का अर्थ Scientific socialism

वैज्ञानिक समाजवाद क्या हैं ? What is Scientific socialism

वैज्ञानिक समाजवाद- समाजवाद के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं— मार्क्सवाद और वैज्ञानिक समाजवाद एक - दूसरे के पर्यायवाची हैं । वैज्ञानिक समाजवाद का सीधा अर्थ है मार्क्सवाद और मार्क्सवाद का सीधा अर्थ है साम्यवाद , चाहे उसका रूप लेनिनवादी हो अथवा स्टैलिनवादी अथवा माओवादी अथवा कोई अन्य । कहने का तात्पर्य यह है कि अपने को जो भी साम्यवादी कहता है वह मार्क्सवादी अर्थात् वैज्ञानिक समाजवादी है।

वैज्ञानिक समाजवाद क्या हैं ? वैज्ञानिक समाजवाद का अर्थ Scientific socialism

मार्क्सवाद से हटकर 
अलग समाजवाद की बात करने वाले लोग अर्थात् समाजवाद में विश्वास करने वाले लोग मोटे रूप में काल्पनिक समाजवादी कहे जाते हैं । समाजवाद के दोनों पक्ष पूँजीवादी व्यवस्था तथा उत्पन्न होने वाली सामाजिक, आर्थिक , राजनीतिक और नैतिक बुराइयों एवं समस्याओं से क्षुब्ध एवं उनके निराकरण के पक्षधर हैं ।

दोनों ही एक नये, सुखी तथा शोषण रहित समाज की परिकल्पना करते हैं परन्तु समस्याओं के विश्लेषण निराकरण के प्रति दृष्टिकोण में भारी और मौलिक अन्तर होने के कारण दोनों एक - दूसरे से अलग तथा दो छोर पर खड़े हैं । मार्क्सवाद अपने को वैज्ञानिक होने का दावा करता है और यह दावा स्वीकार भी कर लिया गया है ।

इसका आधार यह है कि मार्क्स ने पूरी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक व्यवस्था का भौतिकवादी आधार विश्लेषण प्रस्तुत किया है । उसने द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद एवं वर्ग संघर्ष की अवधारणा , इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या , मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य के सिद्धान्त तथा राज्य सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या के जरिए आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक नैतिक व्यवस्था का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है ।

शेष समाजवादी दूसरी श्रेणी अर्थात् ' काल्पनिक समाजवादियों ' की श्रेणी में आते हैं क्योंकि उन्होंने नये सुखी और शोषणरहित समाज की परिकल्पना ' आदर्शात्मक ' आधार पर की है । उन्हें काल्पनिक इसलिए भी कहा जाता है कि समस्याओं एवं बुराइयों की जड़ तक पहुँचे तथा वर्तमान आर्थिक , सामाजिक , राजनीतिक और नैतिक व्यवस्था में आमूल परिवर्तन किये बिना वे एक नये , सुखी और शोषणहीन समाज की स्थापना की परिकल्पना करते हैं ।

19 वीं शताब्दी में उद्भूत होने वाला मार्क्सवाद केवल उसी शताब्दी में ही हलचल मचाने वाला नहीं रहा । आज 20 वीं शताब्दी में यह सबसे प्रभावशाली आकर्षण और विवादग्रस्त सिद्धान्त है । यों तो मार्क्सवाद भी कई खेमों में बँट गया है, तथा प्रत्येक खेमा अपने को ही मार्क्सवाद और अन्य को संशोधनवादी एवं प्रतिक्रियावादी घोषित करता है फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुल मिलाकर यह न केवल समाजवादी अपितु सभी विचारधाराओं की प्रभावशीलता की दृष्टि से एक चुनौती है ।

पूरे विश्व में इसके करोड़ों समर्थक और प्रशंसक हैं परन्तु इसका यह अर्थी नहीं कि यह विवाद रहित है । करोड़ों व्यक्ति इसके आलोचक हैं तथा वर्ग - संघर्ष हिंसा तथा पूँजीवाद के विरोध के कारण से इससे घृणा भी करते हैं । 

यदि लोगों का क एक वर्ग मार्क्स को देवता तथा शोषित जनता के मुक्तिदाता के रूप में देखता है तो एक ऐसा वर्ग भी है जो उसे दानव के रूप में देखता है । यदि तटस्थ दृष्टि से विश्लेषण किया जाए जो राजनीति , सामाजिक एवं आर्थिक चिन्तन के क्षेत्र में मार्क्स के योगदान की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

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