संयुक्त परिवार की विशेषताएं या लक्षण | Sanyukt Parivar ki visheshtaen

संयुक्त परिवार की विशेषताएं या लक्षण ( Sanyukt Parivar ki visheshtaen likhiye )

संयुक्त परिवार की विशेषताएं या लक्षण इस प्रकार है--

वर्तमान जटिल और परिवर्तनशील युग भारतीय समाज में अभी तक संयुक्त परिवारों का प्रचलन और उपस्थिति इस तथ्य की सूचक है कि वस्तुतः इस पारिवारिक व्यवस्था में कुछ न कुछ विशेषता तो अवश्यावश्य निहित ही है । भारतीय ग्रामीण समाज के परिप्रेक्ष्य में संयुक्त परिवारों का महत्व, गुण अथवा विशेषताएं निम्नांकित कारणों से मानी जाती है-


1. परोपकारी एवं सामूहिक जीवन -

संयुक्त परिवार प्रणाली में परोपकारी, परमार्थी तथा सामूहिक जीवन को विशेष रूप से प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है। इस व्यवस्थानुसार परिवार का प्रत्येक सदस्य एक दूसरे के सुख-दुख और हित-अहित का विशेष ध्यान भी रखता है तथा यथासम्भव एक-दूसरे की सहायता भी करता है। संयुक्त परिवार प्रणाली में सदस्यों की अधिक संख्या के परिणामस्वरूप व्यक्तियों को सामूहिक जीवन-यापन की प्रेरणा प्राप्त होती है तथा इसी से लोग परोपकारी भावना से प्रेरित होते हैं।


2. वृद्धावस्था में पूर्ण सुरक्षा

संयुक्त परिवार का एक अन्य प्रमुख गुण यह भी है कि इसमें वृद्ध और असहाय लोगों को पूर्ण सुरक्षित जीवन - यापन का अवसर प्राप्त होता है । संयुक्त परिवारों में वृद्ध जनों को विशेष आदर - सम्मान प्रदान करने के साथ - साथ उनको वृद्धावस्था का मद्देनजर रखते हुए विशेष सुविधायें भी प्रदान की जाती हैं । इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति वृद्धावस्था में एजेन्सी ' की संज्ञा प्रदान की है । पूर्ण सुरक्षा और शान्ति अनुभव करता है । कतिपय समाजशास्त्रियों ने संयुक्त परिवार को एक ' बीमा एजेंसी की संज्ञा प्रदान की हैं।


3. सुरक्षा की भावना

संयुक्त परिवार प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक , सामाजिक , स्वयं को पूर्ण सुरक्षित भी अनुभव करता है । भौतिक , अभौतिक एवं मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्राप्त होती है , जिसके फलस्वरूप प्रत्येक सदस्यगण


4. समष्टिवादिता की भावना

संयुक्त परिवार प्रणाली सामाजिक जीवन में समष्टिवाद की भावना का विकास करता है , क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकतानुरूप और पर्याप्त मात्रा में सभी कुछ प्राप्त होता रहता है । संयुक्त परिवार में सदस्यों को प्रदान की जाने वाली विभिन्न सुविधायें आय एक मापदण्ड द्वारा कदापि निर्धारित नहीं होती हैं , क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति समष्टिवादी भावना के आधार पर परस्पर एक - दूसरे के लिए क्रियाशील होता है । इसके अतिरिक्त परिणामस्वरूप सभी लोगों में समष्टिवादी भावना को निरन्तर प्रोत्साहन प्राप्त होता रहता है ।


5. नव विवाहितों पर हल्का कार्यभार

संयुक्त परिवारों में नव विवाहित दम्पत्तियों का विशेष ध्यान रखा जाता है तथा सभी सदस्यों द्वारा यथासम्भव उन पर कम से कम कार्य भार डाला जाता है और भी सरल शब्दों में यह कह सकते हैं कि संयुक्त परिवारों में नव विवाहित पति पत्नियों पर अधिक कार्य भार इसलिए नहीं डाला जाता है कि वे कुछ समय तक दाम्पत्य जीवन का संयुक्त परिवार का एक महत्वपूर्ण गुण होता है । पूर्ण भोग कर सकें । इसके कारण विवाहोपरान्त वे कुछ समय आनन्दपूर्वक व्यतीत करते हैं , जो कि 


6. बाल - बच्चों का समुचित पालन - पोषण

संयुक्त परिवार में एकाकी परिवारों की अपेक्षाकृत बच्चों की पर्याप्त रूप से समुचित देखरेख भी होती है । चूँकि संयुक्त परिवार में अनेकानेक स्त्री - पुरुष और अन्य सदस्यगण निवास करते हैं , इसलिए केवलमात्र माता - पिता ही नहीं , अपितु अन्य लोग भी बच्चों की सेवा - सुश्रुषा और देखरेख में संलग्न हो जाते हैं । संयुक्त परिवारों का सम्भवतया यह अत्यधिक महत्वपूर्ण गुण है कि वे एक कुशल चिकित्सक की भाँति अपने - अपने बच्चों का पालन - पोषण करके उनको एक स्वस्थ नागरिक बनाते हैं । ऐसे परिवारों में बच्चों की देख - रेख तथा पालन - पोषण का कार्य सामान्यतया दादा दादी करते हैं , क्योंकि उनके पास ' एक तो कुछ समय भी अधिक होता है और दूसरे ने इस कार्य में विशेषज्ञ भी माने जाते हैं । 


7. आपतियों का पारिवारिक सीमा

कुछ विद्वानों में परिवार आपत्तियों से सुरक्षित रखने वाली एक बीमा संस्था भी कहा है । संयुक्त परिवार का कोई भी जब कभी किसी विपति अथवा दुर्घटना में जाता है , पारिवारिक सदस्य उसको महत्वपूर्ण रूप से सहायता प्रदान करते हैं । उदाहरणार्थ- संयुक्त परिवार में किसी व्यक्ति की नौकरी चली जाये , तो परिवार ही उसकी अधिकाधिक सहायता करता है । इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति का देहान्त हो जाता है , तो संयुक्त परिवार ही उसके बच्चों और विधवा पत्नी का पालन पोषण करता है । इससे है कि संयुक्त परिवार अपने सदस्यों की विभिन्न आपत्तियों और दुर्घटनाओं से पूर्ण सुरक्षा करता है ।


8. मितव्ययी

व्यसंयुक्त परिवार अत्यधिक मितव्ययी भी होते हैं, क्योंकि इसमें सभी सदस्यों के लिए एक ही समान सुविधायें और आवश्यकतायें पूर्ण की जाती है। सामान्यतः मुखिया ही घर के विभिन्न खर्चों का उत्तरदायी होता है, जो कि अत्यधिक मितव्ययी भी होता है। 


9. सम्पत्ति के उप विभाजन से सुरक्षा

संयुक्त परिवार का सम्पत्ति का सामान्यतः उपविभाजन भी नहीं हो पाता है । संयुक्त परिवार की धन - सम्पत्ति , बाग - बगीचे मकान या हवेली आदि पर एक व्यक्ति विशेष का नहीं , अपितु सभी सदस्यों का समान हिस्सा होता है । इसके परिणामस्वरूप संयुक्त परिवार की सम्पत्ति विभाजन से काफी कुछ सुरक्षित बनी रहती है । 


10. धन का समान वितरण

संयुक्त परिवार प्रणाली में धन का एक समान मात्रा में वितरण होता है । समाजवादी दृष्टिकोण के अनुसार सभी लोगों को उनकी आवश्यकता और क्षमता के अनुसार ही विभिन्न दायित्व और सुविधायें प्रदान की जाती हैं । स्पष्ट है कि संयुक्त परिवारों में सर्वत्र समान वितरण प्रणाली के सिद्धान्त को प्रोत्साहित किया जाता है , जिसके फलस्वरूप व्यक्तियों की पारिवारिक असमानतायें भी समाप्त होती हैं।


11. श्रम विभाजन का मूलाधार

संयुक्त परिवारों को श्रम विभाजन का मूलाधार भी माना जाता है, क्योंकि सामूहिक रूप से पारिवारिक व्यवसाय करने अथवा खेती-बारी या कृषि आदि कार्यों में प्रायः ही पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों आदि में कार्यों का विभाजन सम्भव होता है । भूमि की जुताई, हुआई, सिचाई आदि के कार्य पुरुषों के द्वारा किये जाते हैं, जबकि खाद एकत्रित करना, फसल काटना , खेत की निराई करना आदि कार्य स्त्रियों द्वारा किये जाते हैं । इसी प्रकार कृषकों के अतिरिक्त धोबी, नाई, कहार, लोहार आदि परिवारों में भी आन्तरिक और बाह्य कार्यों में विभाजन दृष्टिगत होता है ।


12. मनोरंजन का साधन

संयुक्त परिवार अपने सभी सदस्यों का मनोरंजन भी करता है। संयुक्त परिवार के विभिन्न सदस्यों में हास-परिहस सामान्यतः ननद-भाभी और देवर-भौजाई के मध्य होता ही रहता है। इसी प्रकार होली दीपावली जैसे वार्षिक त्योहारों और विवाहोत्सव जन्मोत्सव आदि पर होने वाली छेड़-छाड़, कहा-सुनी भी सभी का स्वस्थ मनोरंजन करती है। परिवार के बड़े बुजुर्गों द्वारा छोटे बच्चों से मन बहलाव हेतु किस्से-कहानी सुनाना भी मनोरंजन से ही सम्बन्धित है।


13. व्यक्तिवादिता पर रोक

संयुक्त परिवार की एक अन्य प्रमुख विशेषता यह भी होती है कि यह व्यक्तिवादिता पर रोक स्थापित करते हैं । सभी व्यक्तियों के एक साथ निवास और भोजन करने के कारण उनमें अपने पराये की भावना का विकास नहीं होता है, अपितु इसके स्थान पर उनमें परमार्थ, परोपकार, त्याग, बलिदान, सामूहिकता, आत्मविश्वास, सहानुभूति आदि की भावना का उत्तरोत्तर विकास होता रहता है। इसके अन्तिम परिणामस्वरूप संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों में व्यक्तिवादी भावना के स्थान पर समष्टिवादी भावना का प्रादुर्भाव होता है।


14. सांस्कृतिक एकता की स्थापना

संयुक्त परिवार सांस्कृतिक एकता की स्थापना भी करते हैं , क्योंकि इन परिवारों में अपनी कुल संस्कृति एवं इसके प्रमुख आवर्शी , परम्पराओं ,जनरीतियों एवं लोकाचारों को पिछली पीढ़ी से नई पीढ़ी को हस्तान्तरण होते रहने से सांस्कृतिक सुरक्षा और एकता भी बनी रहती है ।


संयुक्त परिवार के सभी सदस्यगण सम्मिलित रूप से मिलजुलकर समस्त सांस्कृतिक और धार्मिक क्रिया - कलापों में हिस्सा लेते है जिसके परिणामस्वरूप सांस्कृतिक एकता बनी परम्परागत संयुक्त परिवारों के महत्व और गुण से सम्बन्धित उपयुक्त वर्णित अध्ययन के आधार पर अन्त में सारसंक्षेप हेतु यह कहा जा सकता है कि भारतीय समाज में प्रचलित संयुक्त परिवार एक सर्वथा स्वतन्त्र और आत्म - निर्भर समूह के रूप स्पष्ट होते हैं।


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