संयुक्त परिवार के विघटन का कारण | Reasons for Disintegration of joint family

संयुक्त परिवार के विघटन का कारण | Reasons for Disintegration of joint family

" ग्रामीण भारत में संयुक्त परिवार व्यवस्था परिवर्तन की प्रक्रिया में है । " विवेचना कीजिए।

ग्रामीण भारत में औद्योगीकरण एवं नगरीकरण का प्रभाव पड़ने के कारण संयुक्त परिवार का विघटन होना प्रारम्भ हो चुका है । ग्रामीण भारत में संयुक्त परिवार के विघटन के निम्नलिखित कारण है-


( 1 ) औद्योगिक क्रान्ति –

संयुक्त परिवारों के विघटन का एक मुख्य कारण औद्योगिक क्रान्ति है। 20 वीं शताब्दी के प्रारम्भ से भारत में औद्योगीकरण का बड़ी तीव्र गति से विकास हुआ है । इसके फलस्वरूप कारखानों और उद्योग-धन्धों में वृद्धि हुई , जिससे आमदनी के साधन बढ़े। गाँवों के लोग अपने परम्परागत उद्योग - धन्धों को छोड़कर नगरों में मेहनत - मजदूरी या कारखानों में नौकरी करने आने लगे। इससे गाँवों में संयुक्त परिवार प्रथा पर बड़ा गहरा आघात पहुँचा ।


मध्यम और उच्च वर्ग के लोग नौकरियों तथा व्यापार के कामों में नगर में रहते हैं । नगरों में आवास की बड़ी जटिल समस्या होती है और दूसरे रहन - सहन , खान - पान काभी खर्च काफी महँगा पड़ता है , इसलिए व्यक्ति एकाकी परिवार की सोचते हैं । औद्योगीकरण के कारण स्त्रियों को भी कारखानों में कार्य मिलने लगा, जिससे वे सजग हो उठी और यह माँग करने लगी कि उनका भी पुरुषों के समान परिवार में आदर - सम्मान होना चाहिए , पर परिवार की वृद्धाओं को यह माँग स्वीकार नहीं हुई । फलतः स्त्रियों ने अपने पति तथा बच्चों के साथ अलग परिवार बसाने का प्रयत्न प्रारम्भ किया और अपने प्रयत्न में वे काफी सीमा तक सफल रहीं । 


( 2 ) नगरीकरण -

नगरीकरण के कारण ग्रामीण संयुक्त परिवारों का विघटन बड़ी तेजी से हुआ है । नगरों में कारखानों , बड़े उद्योग - धन्धों तथा व्यावसायिक सुविधाओं की अधिकता के कारण लोग गाँव छोड़कर नगरों में आते गये और यही बसते गये ।

जो व्यक्ति एक बार गाँव से शहर में आ जाता है तब वह शहरी जीवन के रहन - सहन , मनोरंजन के आधुनिक साधन आदि के प्रति इतना आकर्षित हो जाता है कि उसको वापस गाँव जाने और संयुक्त परिवार में रहने की इच्छा नहीं होती है । नगरीकरण के कारण शहरों में जनसंख्या बढ़ रही है जिससे मकानों की समस्या गम्भीर होती जा रही है । इस कारण शहरों में संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है । 


( 3 ) यातायात के साधनों में वृद्धि -

यातायात के साधन - रेल , ट्रक , मोटर आदि में पर्याप्त विकास होने से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना सहज हो गया है । इससे लोगों की गमनशीलता में वृद्धि हुई अर्थात् लोग संयुक्त परिवार को छोड़कर दूर - दूर स्थानों पर कार्य करने जाने लगे । 


( 4 ) जनसंख्या में वृद्धि -

भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या भी संयुक्त परिवारों के विघटन का एक महत्वपूर्ण कारण रहा है । गाँवों में जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप कृषि योग्य भूमि पर निरन्तर दबाव बढ़ता गया और धीरे - धीरे परिवार सभी सदस्यों की बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होते गये । फलस्वरूप बहुत से व्यक्तियों को संयुक्त परिवार की सदस्यता को छोड़कर अन्य स्थानों पर व्यवसाय या नौकरी आदि करने के लिए जाना आवश्यक हो गया और इस प्रकार संयुक्त परिवारों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया ।

संयुक्त परिवार के विघटन का कारण  Reasons for Disintegration of joint family


( 5 ) स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार-

वर्तमान युग में स्त्रियों में पर्याप्त शिक्षा का प्रसार होने से उनमें सामाजिक जागरूकता बढ़ी है । फलस्वरूप वे संयुक्त परिवार के मनमाने शोषण और अमानवीय व्यवहार को अनुचित मानने लगी और अपने पतियों को मनमाने शोषण और अमानवीय व्यवहार को अनुचित मानने लगी और अपने पतियों को अलग पर बसाने के लिए प्रोत्साहित करने लगीं ।


के . टी . मर्चेन्ट ( K.T. Merchant ) ने संयुक्त परिवार के विषय में आधुनिक युवतियों से जो सम्मतियाँ प्राप्त की है , उनसे स्पष्ट होता है कि सास के अत्याचार , पारिवारिक क्लेश तथा परिवार की दासता आदि के प्रति विद्रोह के कारण आज की शिक्षित नवयुवती संयुक्त परिवार को बिल्कुल पसन्द नहीं करती । इस कारण संयुक्त परिवारों का निरन्तर हास होता जा रहा है । 


( 6 ) व्यक्तिवाद -

पाश्चात्य संस्कृति तथा आधुनिक शिक्षा के फलस्वरूप व्यक्तिवादी भावना का विकास हुआ है जिसके फलस्वरूप आज के नवयुवक अपने पसीने की गाढ़ी कमाई औरों पर व्यय नहीं करना चाहते हैं और विशेषकर स्त्रियाँ अपने पति की कमाई पर अपना पूर्ण अधिकार चाहती हैं वस्तुतः व्यक्तिवाद ही संयुक्त परिवार के टूटने का सबसे बड़ा मनोवैज्ञानिक कारण रहा है । 


( 7 ) पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति का प्रभाव -

संयुक्त परिवार प्रथा को समाप्त करने में पाश्चात्य शिक्षा का बहुत बड़ा हाथ रहा है । पाश्चात्य शिक्षा से देश में पाश्चात्य संस्कृति का विकास हुआ । पाश्चात्य संस्कृति के फलस्वरूप विचारों , मनोवृत्तियों और जीवन दर्शन में परिवर्तन आया । समष्टिवाद के स्थान पर व्यक्तिवाद को प्रोत्साहन दिया जाने लगा । आत्म - संयम , त्याग तथा आज्ञापालन आदि का महत्व घट गया और स्वच्छन्दता , समानता , अधिकार , आग्रह तथा प्रदर्शन की प्रवृत्ति का विकास हुआ ।


ये सभी बातें संयुक्त परिवार की स्थिरता के लिए घातक सिद्ध हुई । अतः पाश्चात्य संस्कृति के फलस्वरूप पनपी व्यक्तिवाद की भावना के कारण एक ओर तो संयुक्त परिवार में सम्पत्ति का विभाजन प्रारम्भ हुआ और दूसरी और स्थान परिवर्तन को बहुत अधिक प्रोत्साहन मिला । इसी के फलस्वरूप एकाकी परिवारों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती गई । 


( 8 ) परिवार का कलहपूर्ण वातावरण -

संयुक्त परिवारों का वातावरण प्रत्येक समय बड़ा कलहपूर्ण बना रहता था। छोटी-छोटी बातों को लेकर स्त्रियों में कहा - सुनी चलती रहती थी । वे अपने बच्चों को एक - दूसरे के विरुद्ध भड़काती और लड़ाती रहती थीं । स्त्रियों के मध्य सारे दिन जो शीतयुद्ध चलता था उसे वे काम पर थके-मांदे आये अपने पतियों को रात्रि में सुनाती थीं । अन्ततः इस परिस्थिति से तंग आकर वे एकाकी परिवारों की स्थापना में रुचि लेने लगे । 


( 9 ) धन का महत्व –

आधुनिक युग में धन का महत्व बढ़ गया है । मनुष्य के गुण , उसकी सामाजिक स्थिति आदि का मूल्यांकन धन के आधार पर किया जाता है । इसके फलस्वरूप संयुक्त परिवार व्यक्तिगत सम्पत्ति की अनुमति नहीं देता और न अपव्यय को पसन्द करता है जबकि आधुनिक युग में व्यक्ति को समाज में अपनी एक स्थिति बनाने के लिए व्यक्तिगत सम्पत्ति भी जोड़नी पड़ती है और प्रदर्शन के लिए काफी धन का अपव्यय भी करना पड़ता है । अतः आज के शिक्षेत युवक व्यक्तिगत सम्पत्ति बनाने और समाज में अपनी एक पृथक् स्थिति बनाने के उद्देश्य से संयुक्त परिवार से अलग होकर रहना पसन्द करने लगे हैं । 


( 10 ) वैधानिक कारण-

ब्रिटिश शासन में और स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त अनेक ऐसे कानून बने , जिनसे संयुक्त परिवारों को गहरा धक्का पहुंचा है । 1929 में पास होने वाले ' उत्तराधिकार अधिनियम ' द्वारा उन व्यक्तियों को भी पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा लेने का अधिकार प्रदान किया गया जो संयुक्त परिवार से अलग होकर एकाकी परिवार बसाकर या अकेले रहने के इच्छुक थे । 1937 में ' हिन्दू स्त्रियों का सम्पत्ति अधिकार कानून ' के उपरान्त स्त्रियों को अत्यधिक दबाकर रखना सम्भव नहीं रह गया ।


1929 में ' शारदा एक्ट ' पास हो जाने से बाल - विवाह पर रोक लगा दी गई जिसका संयुक्त परिवार की स्थिरता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा । इन कानूनों के अतिरिक्त ' हिन्दू विवाह और विवाह - विच्छेद अधिनियम ' आदि और भी अनेक ऐसे कानून बने ,जिन्होंने संयुक्त परिवार की सम्पत्ति को छिन्न - भिन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । अतः इन वैधानिक प्रयत्नों के फलस्वरूप संयुक्त परिवारों का तेजी से विघटन होता गया । 


भारत में संयुक्त परिवार का भविष्य ( future of joint family in india )


संयुक्त परिवार में तेजी से होते हुए विघटन को देखकर एक प्रश्न उठता है कि भविष्य में संयुक्त परिवारों का अस्तित्व पूर्णतया समाप्त हो जायेगा या इनको बढ़ावा मिलेगा ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए के . एम . कपाडिया ( K.M. Kapadia ) ने लिखा है , " अभी तो संयुक्त परिवार ने कष्टमय समय को पार किया है तथा भविष्य बुरा नहीं है । "


इस कथन से इस बात का संकेत मिलता है कि कपाडिया के अनुसार , भविष्य में संयुक्त परिवारों की संख्या घटेगी नहीं , वरन् यह अपना अस्तित्व बनाये रखेगा । यही विचार कर्वे तथा देसाई ने भी प्रस्तुत किये हैं । परन्तु इनका यह विचार कुछ विद्वानों ( जैसे बोटोमोर तथा कोलण्डा आदि ) की दृष्टि से गलत है क्योंकि आज की शिक्षित युवा पीढ़ी की संयुक्त परिवार की ओर प्रवृत्ति नहीं के बराबर दिखाई पड़ती है ।


दूसरे , आज हिन्दू समाज में अनेक ऐसे प्रबल कारक है जो संयुक्त परिवार की जड़ें बड़ी तेजी से खोखली कर रहे हैं । अतः यह एक सत्य तथ्य है कि संयुक्त परिवार का विघटन हो रहा है और उनका स्थान एकाकी परिवार लेते जा रहे हैं ।


यह भी पढ़ें- साम्राज्यवाद के विकास की सहायक दशाएँ ( कारक )

यह भी पढ़ें- ऐतिहासिक भौतिकतावाद

यह भी पढ़ें- अनुकरण क्या है? - समाजीकरण में इसकी भूमिका

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण में कला की भूमिका

यह भी पढ़ें- फ्रायड का समाजीकरण का सिद्धांत

यह भी पढ़ें- समाजीकरण और सामाजिक नियंत्रण के बीच सम्बन्ध

यह भी पढ़ें- प्राथमिक एवं द्वितीयक समाजीकरण

यह भी पढ़ें- मीड का समाजीकरण का सिद्धांत

यह भी पढ़ें- सामाजिक अनुकरण | अनुकरण के प्रकार

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण में जनमत की भूमिका

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधन

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top