ग्रामीण समाजशास्त्र- अर्थ, परिभाषा एवं अध्ययन क्षेत्र
विकास क्रम के अनुसार ग्रामीण और नगरीय स्तर , मानवीय सामाजिक जीवन के दो प्रमुख स्तर हैं तथा इनमें से ग्रामीण स्तर सार्वभौमिक सामुदायिक विकास के परिप्रेक्ष्य में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है । शाश्वत सत्य तो यह है कि वस्तुतः ग्रामीण समुदाय ही न्यूनाधिक समस्त राष्ट्रों में संस्कृति के संरक्षण की दृष्टि से विशिष्ट महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा है, जबकि इसके ठीक विपरीत नगरीय स्तर मानव समाज को अग्रसर करने , नूतन उपकरणों की खोज करने तथा सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक क्षमताओं की वृद्धि करने में सहायक सिद्ध होता है ।
सामाजिक प्रगति के ग्रामीण और नगरीय स्तरों को अध्ययन हेतु ही वृहद् समाजशास्त्र में ग्रामीण समाजशास्त्र तथा नगरीय समाजशास्त्र नामक दो पृथक-पृथक शाखाओं का विकास सम्भव हुआ इस आधार पर हम कह सकते हैं कि ग्रामीण समाजशास्त्र वृहत् समाजशास्त्र की वह शाखा है, जिसमें ग्राम्य-जीवन के विविध पक्षों का वैज्ञानिकता के आधार पर अध्ययन किया जाता है ।
ग्रामीण समाजशास्त्र की परिभाषा ( Definition of Rural Sociology )
विभिन्न विद्वानों ने ग्रामीण समाजशास्त्र के अर्थ को अनेक परिभाषाओं द्वारा स्पष्ट किया है । इन परिभाषाओं तथा इनकी सामान्य विवेचना के द्वारा ग्रामीण समाजशास्त्र के अर्थ तथा इसका सामान्य प्रकृति को निम्नाकित रूप से स्पष्ट किया जा सकता है
सैण्डरसन ( Sanderson ) ने संक्षिप्त परिभाषा देते हुए कहा है , " ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीण पर्यावरण में पाये जाने वाले जीवन का समाजशास्त्र है । " इसका तात्पर्य है कि सामाजिक सम्बन्धों का कोई भी वह वैज्ञानिक अध्ययन जो ग्रामीण पर्यावरण से प्रभावित है , ग्रामीण समाजशास्त्र कहा जा सकता है ।
स्टुअर्ट चौपिन ( Stuart Chapin ) का विचार है कि " ग्रामीण जीवन का समाजशास्त्र ग्रामीण जनसंख्या , ग्रामीण सामाजिक संगठन एवं ग्रामीण समाज में कार्यरत सामाजिक प्रक्रियाओं का अध्ययन है । इस परिभाषा में चैंपिन ने ग्रामीण समाजशास्त्र की अध्ययन - वस्तु पर भी प्रकाश डालने का प्रयत्न किया है ।
लॉरी नेल्सन ( Lowry Nelson ) ने उपर्युक्त परिभाषा में ही कुछ संशोधन करते हुए यह स्पष्ट किया कि " ग्रामीण समाजशास्त्र की विषय - वस्तु ग्रामीण पर्यावरण में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के समूहों का विवेचन एवं विश्लेषण है । " टी ० एल ० स्मिथ— “ कतिपय अन्वेषणकर्ता उन सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करते हैं , जो ग्रामीण पर्यावरण में कृषि व्यवसाय में सम्बद्ध व्यक्तियों में पाये जाते हैं । इसलिये ऐसे समाजशास्त्रीय तथ्य और सिद्धान्त , जो ग्रामीण सामाजिक सम्बन्धों के अध्ययन प्राप्त किये जाते हैं , उसे ग्रामीण समाजशास्त्र कहा जाता है ।
" डा ० ए ० आर ० देसाई- " ग्रामीण समाजशास्त्र , ग्रामीण समाज का विज्ञान है । सामान्य रूप से ग्रामीण समाज की संरचना एवं विकास के सिद्धान्त किसी समाज विशेष का नियंत्रण और संचालन करने वाले असाधारण नियमों को खोजने में हमारी सहायता करते हैं । वस्तुतः ग्रामीण समाजशास्त्र , ग्रामीण समाज के विकास के नियमों का विज्ञान है । " एफ 0 एस ० चैंपियन— " ग्राम्य - जीवन का समाजशास्त्र , ग्रामीण जनसंख्या , ग्रामीण सामाजिक संगठन एवं ग्रामीण समाज के क्रियारत सामाजिक प्रक्रियाओं का अध्ययन है । "
खरट्रेन्ड– " विस्तृत परिभाषानुसार ग्रामीण समाजशास्त्र , ग्रामीण पर्यावरण में मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन है । "
एन्डरसन— “ ग्रामीण समाजशास्त्र पर्यावरण में निहित जीवन का समाजशास्त्र है । " उपर्युक्त परिभाषाओं से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि ग्रामीण समाजशास्त्र से सम्बन्धित सभी परिभाषाएँ मौलिक रूप से समाजशास्त्र की परिभाषाओं से ही प्रभावित हैं । सामान्य रूप से मानव जीवन दो प्रकार के पर्यावरण में ही व्यतीत होता है ग्रामीण पर्यावरण तथा नगरीय पर्यावरण ग्रामीण समाजशास्त्र वह महत्वपूर्ण शाखा है जो ग्रामीण पर्यावरण में मानव - सम्बन्धों का अध्ययन करती है । वि8TGCB भिन्न विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाएँ प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से इसी सामान्य निष्कर्ष को स्पष्ट करती हैं ।
ग्रामीण समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र
इन दोनों उद्धरणों से स्पष्ट होता है कि वस्तुतः ग्रामीण समाजशास्त्र में ऐसे समस्त तथ्यों एवं सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है , जो कि ग्रामीण पर्यावरण में अन्तर्निहित होते हैं ।
लॉरी नेल्सन ने अपने लेख ' रूरल सोशियोलॉजी - डायमेन्शन्स एण्ड होरीजन्स ' में ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र का उल्लेख किया है । आपने इस अध्ययन क्षेत्र को त्रिनिमयः ( Three Dimensional ) अथवा तीन वर्गों में विभाजित कर स्पष्ट किया है-
1. ग्रामीण मानव के सम्बन्धों का अध्ययन -
2. काल परिप्रेक्ष्य से सम्बन्धित व्यापक अध्ययन -
हम ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में निम्नलिखित विषयों को सम्मिलित कर सकते हैं
1. ग्रामीण समुदाय का अध्ययन -
ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीण समुदाय के लगभग समस्त पक्षों का अध्ययन करता है । ग्रामीण समुदाय की विशेषताओं , लक्षणों , स्वरूपों , आकार आदि का अध्ययन ग्रामीण समुदाय का अध्ययन क्षेत्र है ।
2. ग्रामीण सामाजिक संरचना का अध्ययन-
ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में उन समस्त इकाइयों को शामिल किया जाता है , जो ग्रामीण सामाजिक संरचना का निर्माण करती हैं । ग्राम्य जीवन कुछ परम्पराओं , मूल्यों , प्रथाओं , संस्थाओं व रूड़ियों आदि पर आधारित है । ये सभी वे मूल इकाइयों या कारक हैं जो ग्रामीण सामाजिक संरचना का निर्माण करती हैं ।
3. ग्रामीण सामाजिक समूहों का अध्ययन -
अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मनुष्य विभिन्न प्रकार के समूहों का निर्माण करता है । क्रीड़ा समूह , मनोरंजन समूह , सांस्कृतिक , धार्मिक , आर्थिक , राजनीतिक आदि अनेक प्रकार के समूहों , जो ग्रामीण समाज में पाये जाते हैं , का अध्ययन भी ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन की सामग्री है ।
4. ग्रामीण सामाजिक संगठन का अध्ययन-
ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था में अनेक प्रकार के सामाजिक संगठन होते हैं । ग्रामीण समाजशास्त में इन सभी संगठनों के निर्धारक तत्वों, भेदों तथा कार्यों का अध्ययन किया जाता है । इसके अन्तर्गत गाँवों में पाये जाने वाले विभिन्न संगठनों जैसे विवाह , परिवार, जाति, व्यवसाय, वर्ग-व्यवस्था, धर्म , स्वास्थ्य, प्रशासनिक संगठन , शैक्षिक संगठन आदि आते हैं ।
5. ग्रामीण सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन-
ग्रामीण सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन की प्रमुख विषय - वस्तु है । सामाजिक संस्थाएँ सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने की समाज द्वारा स्वीकृति विधियाँ हैं । इसके अन्तर्गत ग्रामीण रीति - रिवाजों , जन - रीतियों , रूढ़ियों , प्रथाओं , कानूनों , नियमों आदि के स्वरूप , प्रकार एवं प्रकार्यों का अध्ययन किया जाता है ।
6. ग्रामीण राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन –
आर्थिक संस्थाओं की भाँति ही ग्रामीण समाजशास्त्र अपने व्यापक रूप में राजनीतिक संस्थाओं का भी अध्ययन करता है । इसमें ग्रामीण नेतृत्व , ग्राम पंचायतें , दलबन्दी , गुटबन्दी आदि राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है ।
7. ग्रामीण आर्थिक संस्थाओं का अध्ययन-
ग्रामीण समाजशास्त्र यद्यपि आर्थिक संस्थाओं को अध्ययन नहीं करता है , यह कार्य तो अर्थशास्त्र का है , परन्तु अपने व्यापक रूप में कृषक सम्बन्धों , कृषि व अन्य व्यवसायों का ग्रामीण जीवन पर प्रभाव इत्यादि का अध्ययन इसमें किया जाता है ।
8. ग्रामीण सामाजिक समस्याओं का अध्ययन -
वस्तुतः ग्रामीण समाजशास्त्र की उत्पत्ति ही ग्रामीण सामाजिक समस्याओं के अध्ययन के परिणामस्वरूप हुई है । अतः ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन - क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण पक्ष ग्रामीण सामाजिक समस्याओं का अध्ययन है । इस दृष्टिकोण से ग्रामीण पर्यावरण में व्याप्त समस्त सामाजिक , सांस्कृतिक समस्याओं के कारणों व परिणामों एवं भावी समस्याओं का अध्ययन ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन की विषय-सामग्री है। ऋणग्रस्तता, निर्धनता, बेरोजगारी, निरक्षरता, बीमारी, निम्न जीवन स्तर आदि प्रमुख निवर्तमान ग्रामीण समस्याएँ हैं ।
9. ग्रामीण सामाजिक प्रक्रियाओं का अध्ययन –
ग्रामीण पर्यावरण में पायी जाने वाली विभिन्न संगठनात्मक एवं विघटनात्मक सामाजिक प्रक्रियाओं का अध्ययन ग्रामीण समाजशास्त्र में किया जाता है , जैसे सहयोग , सात्मीकरण ( Assimilation ) , व्यवस्थापन ( Accommodation ) , एकीकरण, संघर्ष, प्रतिस्पर्द्धा आदि।
10. ग्रामीण जनसंख्या का अध्ययन -
ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीण पर्यावरण में रहनेवाली जनसंख्या का वितरण , घनत्व , बनावट , जन्म एवं मृत्यु दर , आयु , लिंग , व्यवसाय , धर्म आदि जनांगिकीय विशेषताओं का भी अध्ययन करता है । इसमें जनसंख्या की तुलना में खाधानों की पूर्ति , भूमि पर जनसंख्या का दबाव तथा ग्रामीण जनसंख्या से सम्बन्धित स्थानीय गतिशीलता आदि का भी अध्ययन किया जाता है ।
निष्कर्ष
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि वर्तमान परिस्थितियों में ग्रामीण समाजशास्त्र का अध्ययन - क्षेत्र अत्यधिक व्यापक बन चुका है । ग्रामीण समाजशास्त्र आज केवल प्रामीण समुदाय के सामान्य जीवन का ही अध्ययन नहीं है बल्कि इसके अन्तर्गत उन सभी नवीनतम प्रवृत्तियों का समावेश है जो ग्रामीण समुदाय को एक नवीन संरचना प्रदान कर रही हैं । विभिन्न समाजशास्त्रीय अध्ययनों एवं शोध कार्यों की सहायता से भविष्य में इसका अध्ययन और भी अधिक व्यापक बन जाने की सम्भावना है।
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