ग्रामीण समाजशास्त्र के महत्व पर प्रकाश डालिए। या भारत में ग्रामीण समाजशास्त्र के महत्व पर प्रकाश डालिए ।
ग्रामीण समाजशास्त्र समाजशास्त्र की विभिन्न विधाओं में आज ग्रामीण समाजशास्त्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर चुका है । कुछ विद्वान ग्रामीण समाजशास्त्र को एक नवीन विज्ञान कहकर भले ही इसके महत्व को कम करने का प्रयास करें लेकिन वास्तव में इस विज्ञान का इतिहास हजारों वर्ष प्राचीन है । वास्तव में ग्रामीण समाज का प्रारम्भ तभी हो गया था जब मानव ने सबसे पहले विकास तो बहुत एक स्थान पर रहकर कृषि कार्य करना आरम्भ कर दिया था । नगरीय जीवन बाद की घटना है ।
इसी आधार पर लॉरी नेल्सन ने लिखा है कि " तुलनात्मक रूप से कुछ समय पूर्व तक मानव की कहानी अधिकांश अर्थों में ग्रामीण मानव की ही कहानी रही है । " इसका तात्पर्य है कि ग्रामीण समाजशास्त्र एक ऐसे समाज का अध्ययन है जो सभ्यता के सम्पूर्ण विकास का इतिहास है एवं हमारी वर्तमान संस्कृति का मूल स्रोत है ।
जीलिट ( Gillite ) ने लिखा है कि " हम ग्रामीण समाजशास्त्र को समाजशास्त्र की एक ऐसी शाखा मान सकते हैं जो ग्रामीण समुदायों की दशाओं एवं प्रवृत्तियों का व्यवस्थित रूप से अध्ययन कर प्रगति के सिद्धान्तों का निर्माण करती है । "
इस दृष्टिकोण से विभिन्न क्षेत्रों में ग्रामीण समाजशास्त्र के महत्व अथवा उपयोगिता को स्पष्ट किया जा सकता है ।
( क ) समाजशास्त्रीय महत्व —
जैसा कि पूर्व विवेचन से स्पष्ट हो चुका है, ग्रामीण समाजशास्त्र वास्तव में समाजशास्त्र की एक शाखा है । इसके अन्तर्गत ग्रामीण पर्यावरण में रहने वाले मानव की विभिन्न सामाजिक प्रक्रियाओं, अन्तर-सम्बन्धों, परिवर्तन की प्रक्रियाओं, समुदाय' और संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है। यह अध्ययन समाजशास्त्र की सैद्धान्तिक व्याख्या एवं सिद्धान्तों के निर्माण में अत्यधिक सहायक सिद्ध होते हैं ।
वास्तविकता तो यह है कि ग्रामीण अध्ययनों के फलस्वरूप ही समाजशास्त्र के क्षेत्र का अधिक विस्तार सम्भव हो सका है । भारत तथा अन्य देशों में ग्रामीण समाजशास्त्र जब तक एक विशिष्ट विज्ञान के रूप में विकसित नहीं हो सका था तब तक समाजशास्त्र ही ग्रामीण अध्ययनों का एकमात्र आधार था । उस समय ग्रामीण जीवन से सम्बन्धित अनेक सिद्धान्तों का भी निर्माण हुआ था । वर्तमान युग में ग्रामीण समाजशास्त्र का विकास होने से यह सम्भव हो गया है कि समाजशास्त्र के द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों की पुनः परीक्षा करके उनकी प्रामाणिकता को सिद्ध किया जा सके ।
( ख ) शैक्षणिक महत्व -
ग्रामीण समाजशास्त्र ने सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों ही क्षेत्रों में अपनी उपयोगिता एवं महत्व को सिद्ध कर दिया है । एक ओर सैद्धान्तिक क्षेत्र में ग्रामीण समाजशास्त्र गाँवों की संस्कृति , ग्रामीण जीवन , ग्रामीण समूहों , धर्म , शक्ति - संरचना एवं अर्थ व्यवस्था से सम्बन्धित अवधारणाओं को विकसित करता है तो दूसरी ओर यह ऐसे तथ्यों के एकत्रीकरण पर बल देता है कि जिससे एक विशेष देश के ग्रामीण जीवन से सम्बन्धित उपयोगी , सूचनाएँ प्राप्त हो सकती हैं । ग्रामीण समाजशास्त्र के इस कार्य से न केवल नवीन ज्ञान में वृद्धि हुई है बल्कि एक ऐसे बौद्धिक पर्यावरण का भी निर्माण हुआ है जिसमें ग्रामीण जीवन का अध्ययन करने के प्रति विद्वानों की रुचि निरन्तर बढ़ रही है ।
( ग ) ग्रामीण समस्याओं के अध्ययन में महत्व —
अमरीका तथा संसार के अन्य देशों के सन्दर्भ में यदि ग्रामीण समाजशास्त्र के विकास के इतिहास को देखा जाए तो स्पष्ट होता है कि ग्रामीण समाजशास्त्र का विकास ग्रामीण समस्याओं के अध्ययन को आधार मानकर ही हुआ है । जब कभी भी ग्रामीण समस्याएँ राज्य के नियन्त्रण से बाहर हो गयीं एवं उनके समाधान को राष्ट्रीय विकास के लिए आवश्यक समझा जाने लगा, तभी ग्रामीण समाजशास्त्र के विकास की आवश्यकता अनुभव की गई।
आज ग्रामीण समाजशास्त्र ही ज्ञान की एकमात्र ऐसी शाखा है जो प्रमुख ग्रामीण समस्याओं, जैसे, निर्धनता, कृषि समस्याओं, स्वास्थ्य के निम्न स्तर, ॠणग्रस्तता, ग्रामीण सामाजिक विघटन एवं सांस्कृतिक विघटन इत्यादि का अध्ययन करती है । इन्हीं अध्ययनों के फलस्वरूप आज ग्रामीण जीवन के विकास के लिए नवीन योजनाएँ कार्यान्वित की जा रही हैं ।
( घ ) ग्रामीण एवं नगरीय जीवन के ज्ञान में सहायक-
आज अधिकांश विद्वान यह अनुभव करने लगे हैं कि ग्रामीण समाजशास्त्र केवल ग्रामीण जीवन की उपयोगी जानकारी ही नहीं करता बल्कि ग्रामीण अध्ययनों की सहायता से नगरीय जीवन को भी अधिक व्यवस्थित रूप से समझना सम्भव हो गया है । इसके अतिरिक्त ग्रामीण समाजशास्त्र नगरों तथा ग्रामों के पारस्परिक सम्बन्धों को भी महत्व देता है ।
एक ओर यदि नगरीय प्रभावों के फलस्वरूप ग्रामीण जीवन में परिवर्तन उत्पन्न हुए हैं तो दूसरी ओर ग्रामीण प्रथाओं , मूल्यों , विश्वासों तथा जीवन - विधि ने नगरीय जीवन को भी प्रभावित किया है । ग्रामीण समाजशास्त्र के अतिरिक्त अन्य कोई ऐसा विज्ञान नहीं है जो इन अन्तर सम्बन्धों की व्याख्या करके सम्पूर्ण समाज के समन्वित विकास के लिए सही दिशा प्रदान का सकता हो ।
( च ) कृषक समुदाय के लिए महत्व -
कृषक समुदाय ग्रामीण समुदाय का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण भाग है । वास्तव में ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि पर ही आधारित है । ऐसी स्थिति में कृषक समस्याओं के अध्ययन एवं कृषि विकास के लिए ग्रामीण समाजशास्त्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आरम्भ में सरकार द्वारा कृषकों में कृषि नवाचारों का संचार करने का प्रयत्न किया गया। परन्तु काफी समय तक इस कार्य में अधिक सफलता नहीं मिल सकी ।
इसका कारण यह था कि कृषकों में परम्परावादिता, भाग्यवादिता, नियोजन के प्रति उदासीनता तथा परिवर्तनों का विरोध आदि कुछ ऐसे प्रभावशाली कारक थे जिनके फलस्वरूप कृषि से सम्बन्धित नवीन आचारों को ग्रामीणों के द्वारा मान्यता नहीं मिल सकी। ग्रामीण समाजशास्त्र ने ऐसे सभी कारकों का सूक्ष्म अध्ययन करके उन साधनों को विकसित किया जिनकी सहायता से आज ग्रामीणों द्वारा नवाचारों को तेजी के साथ ग्रहण किया जा रहा है । इस दृष्टिकोण से कृषकों को अधिक प्रगतिशील बनाने में ग्रामीण समाजशास्त्र के महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
( छ ) ग्रामीण अध्ययनों में महत्व –
भारत गाँवों का देश है । यहाँ सम्पूर्ण समाज के विकास के लिए नगरीय अध्ययनों का उतना महत्व नहीं है जितना कि ग्रामीण अध्ययनों का इस वास्तविकता के बाद भी यह सच है कि ग्रामीण क्षेत्र इतना व्यापक है कि इसका वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक अध्ययन करना कठिन है ।
ग्रामीण समाजशास्त्र का विकास होने से आज ऐसी पद्धतियाँ का विकास हो चुका है जिनको सहायता से इस क्षेत्र की व्यापकता के बाद भी ग्रामीण जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन किया जा सकता है । ग्रामीण समाजशास्त्र के अन्तर्गत आज विभिन्न विद्वानों द्वारा जो महत्वपूर्ण अध्ययन किये गये हैं, उनकी सहायता से देश के सम्पूर्ण आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन को अधिक प्रगतिशील बनाना सम्भव हो सका है।
( ज ) व्यावसायिक महत्व
ज्ञान की कोई शाखा चाहे कितनी ही महत्वपूर्ण क्यों न हो । लेकिन व्यावहारिक जीवन में तब तक उपयोगी नहीं समझी जा सकती जब तक वह व्यावसायिक क्षेत्र में भी उपयोगी न हो । कुछ समय पूर्व तक ग्रामीण समाजशास्त्र केवल एक सैद्धान्तिक विज्ञान था लेकिन विगत कुछ वर्षों से सभी देशों में ग्रामीण विकास योजनाओं को विशेष महत्व मिलने के कारण इसका व्यावसायिक महत्व भी तेजी से बढ़ता जा रहा है ।
आज पंचायती राज, सामुदायिक विकास योजना, साक्षरता, जनजातीय कल्याण, समाज कल्याण, प्रौढ़ शिक्षा तथा योजना आयोग से सम्बद्ध विभिन्न विभागों में समाजशास्त्रियों की सेवाओं को विशेष महत्व दिया जाने लगा है । इसके अतिरिक्त कृषि विश्वविद्यालयों, बैंकिंग सेवाओं तथा परिवार नियोजन के क्षेत्र में भी ग्रामीण समाजशास्त्र के ज्ञान को प्राथमिकता प्रदान की जाती है। इसके फलस्वरूप ग्रामीण समाजशास्त्र के क्षेत्र में निरन्तर विस्तार होता जा रहा है। वास्तविकता यह है कि किसी भी विज्ञान का महत्व उसके कार्यों में निहित है। यदि इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो ज्ञात होता है कि ग्रामीण समाजशास्त्र -
1. ग्रामीण पर्यावरण से प्रभावित सामाजिक जीवन की सूक्ष्म व्याख्या करता है ,
2. विभिन्न ग्रामीण समस्याओं से हमें परिचित कराता है,
3. ग्रामीण जीवन से सम्बद्ध ऐसी सूचनाएँ प्रदान करता है जो सामाजिक एवं आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक हैं ,
4. विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों तथा आर्थिक विषमताओं से युक्त समूहों को एक-दूसरे के निकट लाने का प्रयत्न करता है ,
5. नगरीय एवं ग्रामीण संस्कृतियों का तुलनात्मक अध्ययन करता है,
6. ग्रामीण समुदायों की शक्ति-संरचना एवं राजनीतिक सिद्धान्तों से परिचित कराकर प्रजातांत्रिक मान्यताओं को विकसित करता है ,
7. ग्रामीण समस्याओं का विश्लेषण करके ग्रामीण जीवन में सुधार लाने का प्रयत्न करता है , एवं
8. ग्रामीण पुनर्निर्माण से सम्बन्धित कार्यों के प्रति ग्रामीणों में चेतना उत्पन्न करता है । यह सभी कार्य इतने महत्वपूर्ण हैं कि वर्तमान युग में ग्रामीण समाजशास्त्र के महत्व की अवहेलना नही की जा सकती।
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