शक्ति एवं प्रभाव में समानता एवं असमानता
शक्ति और प्रभाव में अंतर: आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में ' प्रभाव ' और ' शक्ति ' दोनों का ही बहुत महत्व है । फलतः आधुनिक राजनीतिशास्त्र में इन दोनों के बारे में अध्ययन को अत्यधिक प्रमुखता प्रदान की जा रही है । लासबेल के अनुसार , “ राजनीतिशास्त्र प्रभाव तथा प्रभावशालियों का अध्ययन है । " लोग समाज में अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए शक्ति अर्जित तथा उसमें वृद्धि करते हैं । इन दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है ।डहल ने उन्हें राजनीति विज्ञान में महत्वपूर्ण स्थान दिया है । यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि आज के जनतन्त्र में शक्ति की अपेक्षा प्रभाव का महत्व अधिक बढ़ गया है । शक्ति में बल प्रयोग , दमन एवं हिंसा के कारण इसे तानाशाही का प्रतीक माना जाता है जब कि लोकतन्त्र आधार जन समर्थन है । आज क्षेत्रीय , प्रान्तीय राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक देश की राजनीति प्रभाव पर ही आधारित है । सामान्य जीवन में भी प्रत्येक व्यक्ति , प्रत्येक समूह , संस्था या समुदाय तथा प्रत्येक देश अपना प्रभाव बढ़ाने में ही संलग्न है ।
सभी यह मापन करते हैं कि अमुक का कितना प्रभाव है तथा उसके प्रभाव की तुलना में उनकी क्या स्थिति है तथा कौन अधिक प्रभावी है और कौन प्रभाव बढ़ाने का क्या तरीका अपना रहा है । राजनेताओं तथा राजनीति में सक्रिय लोगों के लिए प्रभाव अर्जन और उसमें वृद्धि का बहुत ही महत्व है । स्वपक्ष और विपक्ष के प्रभाव का सही मूल्यांकन न हो पाने पर राजनेताओं के राजनैतिक जीवन की इति श्री हो जाती है । राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में ' प्रभाव ' के लिए अनेक उपाय अपनाये जाते हैं । प्रभाव , प्रभावित एवं प्रभावक राजनीति गत्यात्मक सम्बन्ध है । राजव्यवस्था अन्ततोगत्वा प्रभाव व्यवस्था ही है ।
अर्थ और परिभाषा ( Meaning and Definition )
प्रभाव का कोई निश्चित अर्थ नहीं है । कुछ विद्वान शक्ति की ही तरह दूसरे के व्यवहार को परिवर्तित करने की क्षमता मानते हैं । प्रश्न उठता है कि व्यवहार परिवर्तन की क्षमता को शक्ति कहा जाय या प्रभाव ? सूक्ष्म विश्लेषण करने पर दोनों के बीच अंतर स्पष्ट हो जाता है । शक्ति के पीछे दमन और हिंसा होती है जबकि प्रभाव का इनसे कोई सम्बन्ध नहीं होता है । व्यक्ति अथवा कोई राष्ट्र किसी के दमन और भय से नहीं बल्कि स्वेच्छा से उससे प्रभावित होता है । शक्ति रूपी क्षमता का प्रतिरोध होता है । कोई व्यक्ति उसके आगे तभी झुकता है जब प्रतिरोध करते वह थक जाता है ।प्रभाव रूपी क्षमता को किसी के प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ता है । व्यक्ति किसी अन्य के व्यक्तित्व अथवा उसकी किसी दूसरी बात से स्वतः प्रभावित होता है । कुछ विद्वान शक्ति और प्रभाव को एक - दूसरे का पर्यायवाची तो कुछ प्रभाव को शक्ति तथा शक्ति को प्रभाव के अन्तर्गत मानते हैं । बहुत से विद्वानों ने प्रभाव को शक्ति से अलग कर ही उसकी विवेचना की है । बचाश के अनुसार एक व्यक्ति एक निश्चित क्षेत्र में उस सीमा तक दूसरे पर प्रभाव रखता है कि पहला व्यक्ति प्रकट या अप्रकट रूप में बिना भय दिखाये दूसरे व्यक्ति को अपना कार्य या व्यवहार परिवर्तित करने के लिए विवश कर दे ।
डहल के शब्दों में प्रभाव व्यक्तियों, समूहों, संघों तथा राज्यों के मध्य सम्बन्ध है । यह एक ऐसा सम्बन्ध है जिसमें एक कर्त्ता दूसरे कर्ताओं को वह करने के लिए प्रेरित करता है जिसे वह पहले नहीं करता है । लासवेल के अनुसार समस्त राजनैतिक प्रक्रियाएँ प्रभाव और शक्ति से निःस्तृत होती हैं । शक्ति प्रभाव के ही एक अथवा आधार मूल्य के रूप में है ।
प्रभाव के अनेक मूल्य हैं । शक्ति उनमें से एक मूल्य है । वायर्सटेड का कहना है कि प्रभाव अनुनयात्मक है । कैटलिन ने प्रभाव को मानसिक नियंत्रण माना है । उसका सम्बन्ध मस्तिष्क से होता है । प्रभावित व्यक्ति बिना किसी प्रतिरोध के स्वेच्छया किसी का
प्रभाव स्वीकार करता है । फौड्रिक के अनुसार प्रभाव अप्रत्यक्ष एवं असंघटित शक्ति के रूप में है । वह सदैव ही अदमनात्मक होता है ।
शक्ति तथा प्रभाव के बीच सम्बन्ध
प्रभाव तथा शक्ति के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है । कुछ विद्वान प्रभाव को शक्ति का ही एक प्रकार मानते हैं । लासवेल , सिंगर तथा फ्रीड़िक ने उसे एक प्रकार की शक्ति ही माना है । प्रभाव और शक्ति दोनों में ही दूसरे का व्यवहार बदलने की क्षमता होती है । रोवे के अनुसार प्रभाव एक छाता के समान है जिसके अन्तर्गत सत्ता तथा शक्ति आश्रय प्राप्त करते हैं ।कुछ विद्वान दोनों को एक - दूसरे से अलग मानते हैं । कैटलिन प्रभाव को मानसिक तथा शक्ति को कठोर नियंत्रण मानते हैं । मनुष्य प्रभाव के समक्ष अपनी इच्छा से समर्पण करता है जबकि शक्ति उसके लिए उसे बाध्य करती है । उससे मनुष्य की इच्छा का हनन होता है और अवसर प्राप्त होते ही वह उसका प्रतिरोध करने लगता है । प्रभाव के पास अप्रत्यक्ष शक्ति होती है तथा शक्ति में प्रच्छन्न प्रभाव निहित होता है । प्रत्येक राजनेता तथा राजनैतिक संघटन में शक्ति और प्रभाव दोनों होते हैं ।
प्रभाव एवं शक्ति के बीच बौद्धिक सम्बन्ध है । वे दोनों ही एक - दूसरे के पूरक तथा एक - दूसरे को बल प्रदान करते हैं । प्रभाव शक्ति उत्पन्न करता है और शक्ति प्रभाव स्थापित करती है । प्रभाव को शक्ति की आवश्यकता होती है और शक्ति को प्रभाव की । कभी - कभी यह ज्ञात करना कठिन हो जाता है कि प्रभावित व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन शक्ति के कारण आया या प्रभाव के । एक कुशल राजनेता दोनों का प्रयोग करता है । दोनों ही काफी हद तक शक्ति और प्रभाव , परिस्थितियों पर आश्रित होते हैं । दोनों ही व्यक्ति को प्रभावशाली बनाते हैं परन्तु कभी - कभी शक्ति रखते हुए भी कोई आदमी प्रभावहीन तथा शक्ति रहित व्यक्ति अपने प्रभाव के कारण प्रभावशाली हो जाता है ।
प्रभाव और शक्ति के बीच अनेक असमानताएँ भी हैं-
( 1 ) शक्ति दमनात्मक होती है उसके पीछे कठोर भौतिक शक्तियाँ होती हैं जबकि प्रभाव अदमनात्मक होता है । शक्ति विवश करती है जबकि प्रभाव खुशी खुशी स्वीकार कराता है ।( 2 ) शक्ति बलपूर्वक समर्पण कराती है । प्रभावित व्यक्ति के सामने उसे स्वीकार करने के अतिरिक्त अन्य कोई चारा नहीं होता जबकि प्रभाव स्वेच्छापूर्वक समर्पण है । वह अनुनयात्मक होता है । वह प्रभावित व्यक्ति के सामने अनेक विकल्प प्रस्तुत करता है ।
( 3 ) शक्ति एक स्वतन्त्र परिवर्त्य के रूप में है उसका प्रयोग दूसरे की इच्छा र के विरुद्ध उसके प्रतिरोध के बावजूद किया जाता है जबकि प्रभाव के सम्बन्ध में बात इसके विपरीत है । प्रभावित व्यक्ति की स्वीकृति उसके आधार के रूप में है ।
( 4 ) शक्ति तानाशाही है जबकि प्रभाव लोकतांत्रिक प्रवृत्ति का प्रतीक होता है ।
( 5 ) शक्ति में भय निहित होता है । उसके सामने समर्पण न करने पर दण्ड मिलता है । प्रभाव में भय की कोई आशंका भी नहीं होती है । उसके प्रभावित न होने पर किसी प्रकार के दण्ड के मिलने का भय नहीं होता है ।
( 6 ) शक्ति का प्रयोग होने पर प्रभाव समाप्त हो जाता है जबकि प्रभाव के प्रयोग का शक्ति पर कोई असर नहीं पड़ता है ।
( 7 ) शक्ति के दुर्बल होते ही उसका तिरस्कार शुरू हो जाता है जबकि प्रभाव की ताकत असीम होती है ।
( 8 ) शक्ति धारक और उससे प्रभावित व्यक्ति में कोई घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं होता है जबकि प्रभाव भावात्मक सम्बन्ध स्थापित करता है ।
( 9 ) शक्ति का प्रयोग निश्चित , सीमित और विशिष्ट रूप में ही किया जाता है जबकि प्रभाव व्यक्तिगत , अमूर्त , अस्पष्ट तथा व्यापक होता है । बन्दूक के भय से बन्दूकधारी की उपस्थिति में इच्छा न होते हुए भी उसके निर्देशानुसार कार्य करना " पड़ता है । प्रभाव की स्थिति में प्रभावक की उपस्थिति अनिवार्य नहीं होती है । एक कुशल राजनेता की अनुपस्थिति में लोग उसके प्रभाव के कारण उसके निर्देशानुसार कार्य करते हैं ।
( 10 ) शक्ति व्यय साध्य होती है । बल प्रयोग या दमन में अधिक खर्च होता है जबकि प्रभाव कम खर्च में स्थापित होता है । इसकी स्थापना के लिए केवल प्रचार पर व्यय होता है ।
( 11 ) शक्ति त्याज्य है जबकि प्रभाव ग्राह्य है । शक्ति अस्थायी जबकि प्रभावी स्थायी है ।
( 12 ) शक्ति विरोध तथा प्रतिरोध पैदा करती है जबकि प्रभाव स्वेच्छया समर्पण का भाव पैदा करता है । प्रभाव की प्रकृति प्रभाव का राजनीतिक जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है । यह उसका एक तथ्य है । रोवे के अनुसार प्रभाव सर्वत्र असमान रूप में बँटा होता है । संख्या पर आधारित नहीं होता है । विशाल जनसंख्या का प्रभाव बहुत कम तथा अल्पसंख्यक अभिजन वर्ग का अत्यधिक हो सकता है । उसका राजनीतिक साधनों पर नियंत्रण होता है । परन्तु समान नहीं है । उसकी प्रकृति विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न - भिन्न प्रकार की होती है।
जैसे- आर्थिक क्षेत्र में धनवान व्यक्ति , सामाजिक क्षेत्र में समाज सुधारक तथा राजनीतिक क्षेत्र में राजनेता का प्रभाव होता है । अन्तर्राष्ट्रीय जगत में शक्तिसम्पन्न देश अपना प्रभाव रखता है । उसका सबसे अधिक महत्व राजनीति के क्षेत्र में है । राजनेता सदैव ही राजनीतिक प्रभाव प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं । वे सरकार की नीतियों , उसके नियमों तथा विनिश्चयों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं । प्रभाव स्थापित करने में सबको समान रूप में सफलता नहीं मिलती है । फलतः राजनेताओं की प्रभावशाली स्थिति असमान होती है ।
राजनीति में विशिष्ट प्रभाव रखने वाले को शासक अथवा राजनीतिक अभिजन कहा जाता है । राजनीतिक समय और परिस्थितियों के कारण राजनैतिक प्रभाव बदलता रहता है । संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि उसकी प्रकृति असमान और परिवर्तनशील है । और वे हीं प्रभाव के स्रोत भी उसकी तरह ही असमान हैं । राजनीतिक प्रभावों की असमानता का मूल कारण राजनैतिक स्रोतों की असमानता है । रोवे ने सम्पत्ति , स्वास्थ्य शिक्षा , व्यक्तिगत आकर्षक तथा कार्यकुशलता आदि को राजनैतिक प्रभाव है का स्रोत माना है । वे उद्देश्य साधन तथा क्रियाविधियों पर निर्भर करते हैं ।
राजनीतिक विरोधी भी प्रभाव उत्पन्न करने में सराहनीय भूमिका निभाते हैं । प्रभाव भी शक्ति की भाँति ही एक मूल्य तथा मूल्यों का आधार है । लासवेल ने उसे आठ मूल्य वर्गों में विभाजित किया है । उसके अनुसार प्रभाव में मूल्यों का र महत्वपूर्ण स्थान है । उन्होंने और कैपलिन ने उसकी व्याख्या करते हुए लिखा है कि किसी व्यक्ति या समूह की निहित क्षमता और मूल्य स्थिति को प्रभाव कहा जाता है ।
चापलूसों के कारण भी वे अपने तथा अपने विरोधी के प्रभाव का तटस्थ और सही आंकलन नहीं कर पाते हैं । निष्पक्ष तथा अनुभवी राजनीतिशास्त्रियों द्वारा विभिन्न तरीकों से किया गया आकलन ही सही हो सकता है । राजनीति विज्ञान में अभी तक प्रभाव आकलन का कोई निश्चित सिद्धान्त विकसित नहीं हुआ है । राजनीति विज्ञान में प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है । डहल के अनुसार यदि A, B को प्रभावित करता है तथा प्रभाव की मात्रा X है तो हम A पर B का प्रभाव X कहेंगे । यदि प्रभाव की मात्रा X-2 है तो हम समझेंगे कि उसकी मात्रा बढ़ गयी है ।
राजनीतिक विरोधी भी प्रभाव उत्पन्न करने में सराहनीय भूमिका निभाते हैं । प्रभाव भी शक्ति की भाँति ही एक मूल्य तथा मूल्यों का आधार है । लासवेल ने उसे आठ मूल्य वर्गों में विभाजित किया है । उसके अनुसार प्रभाव में मूल्यों का र महत्वपूर्ण स्थान है । उन्होंने और कैपलिन ने उसकी व्याख्या करते हुए लिखा है कि किसी व्यक्ति या समूह की निहित क्षमता और मूल्य स्थिति को प्रभाव कहा जाता है ।
लासवेल के अनुसार आठ मूल्य संवर्ग हैं ।
- शक्ति
- सम्मान
- ईमानदारी
- स्नेह
- कल्याण
- सम्पदा
- प्रबोधन
- कुशलता ।
चापलूसों के कारण भी वे अपने तथा अपने विरोधी के प्रभाव का तटस्थ और सही आंकलन नहीं कर पाते हैं । निष्पक्ष तथा अनुभवी राजनीतिशास्त्रियों द्वारा विभिन्न तरीकों से किया गया आकलन ही सही हो सकता है । राजनीति विज्ञान में अभी तक प्रभाव आकलन का कोई निश्चित सिद्धान्त विकसित नहीं हुआ है । राजनीति विज्ञान में प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है । डहल के अनुसार यदि A, B को प्रभावित करता है तथा प्रभाव की मात्रा X है तो हम A पर B का प्रभाव X कहेंगे । यदि प्रभाव की मात्रा X-2 है तो हम समझेंगे कि उसकी मात्रा बढ़ गयी है ।
उन्होंने प्रभाव मापन के जो तरीके प्रस्तुत किये है निम्नलिखित हैं-
- प्रभावित होने की स्थिति में होने वाले परिवर्तन के आधार पर प्रभाव क तुलना की जा सकती है । यदि ए बी को चार अवसरों पर प्रभावित करता है तो प्रभाव की मात्रा का आंकलन किया जा सकता है । इसी प्रकार यदि ए एक्स , वाई जैड पर अपना प्रभाव रखता है तो भी प्रभाव का मापन किया जा सकता है ।
- प्रभाव का मापन अनुपालन के आधार पर भी किया जा सकता है , जैसे यदि किसी राजनेता के निर्देश पर हड़ताल होती है तो उसमें भाग लेने वाले व्यक्तियों की मानसिक स्थिति भिन्न - भिन्न होगी ।
- प्रभाव का मापन अनुमान के आधार पर भी होता है जैसे विधायिका में प्रस्तुत विधेयक पर पक्ष और विपक्ष के मतों का अनुमान प्रभाव में सहायक होता है ।
- संख्या के आधार पर प्रभाव का मापन किया जा सकता है जैसे निर्वाचन में उम्मीदवारों को प्राप्त मत के आधार पर प्रभाव का मापन किया जा सकता है ।
- न्यून और अधिक मात्रा की दृष्टि से भी प्रभाव का मापन किया जा सकता है।
डहल ने प्रभाव मापन में निम्न सावधानियाँ बरतने का सुझाव दिया है
- सापेक्ष प्रभाव निश्चित करने के लिए जितने भी मापन सम्भव हो उनसे सम्बन्धित सभी सूचनाएँ एकत्रित की जाएँ ।
- उपलब्ध सूचना के आधार पर तुलनात्मक विधि अपनायी जाय ।
- मापन में स्पष्टता तथा सूक्ष्मता रखी जाय ।
- अधिक प्रामाणिक सूचनाएँ आधार बनायी जाएँ ।
- प्रभाव सिद्धान्त विकसित करने के प्रयास किए जाएँ ।
- प्रभाव सिद्धान्त सामान्य एवं व्यापक होने चाहिए ।
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