साम्राज्यवाद क्या है? अर्थ, परिभाषा और रूप | What is imperialism? Meaning, Definition and Form

साम्राज्यवाद क्या है? ( What is Imperialism? Meaning, Definition and Form)

साम्राज्यवाद क्या है? आज किसी भी देश को साम्राज्यवादी अथवा उपनिवेशवादी कहना उसका सबसे बड़ा अपमान समझा जाता है । बड़े से बड़ा साम्राज्यवादी मनोवृत्ति वाला देश भी इस संज्ञा से अभिभूत होने से अपना भारी अपमान समझता है । साम्राज्यवादी प्रवृत्ति वाला कार्य करने के बावजूद वह इस बात का प्रयास करता है कि कोई उसे साम्राज्यवादी अथवा उपनिवेशवादी न कहने पाये । 

अपने निहित स्वार्थों की अप्रत्यक्ष रूप से पूर्ति करने के वह जो भी कार्य करता है , उसके पीछे वह स्वतन्त्रता , समानता तथा विश्व कल्याण आदि का नारा देता है | एक समय था जब कोई देश साम्राज्यवादी कार्य करने अर्थात् दूसरे देश को अपना उपनिवेश बनाने में अपना गौरव और अपनी महानता समझता था । 

What is imperialism Meaning, Definition and Form

उसके समर्थक सड़क, स्कूल , व्यापार की उन्नति तथा अस्पताल आदि जैसी उपलब्धियों का उल्लेख कर उसकी प्रशंसा किया करते थे । वह इन उपलब्धियों की आड़ में उन देशों का शोषण तथा उपनिवेश निर्माण को अपरिहार्य सिद्ध करने का प्रयास करता रहता था । इसका यह अर्थ नहीं है कि उस प्रवृत्ति का अन्त हो गया है । अपमान और आलोचना से बचने के लिए उसके स्वरूप में परिवर्तन कर दिया गया है ।

आज उसने आर्थिक , सामाजिक , धार्मिक और सांस्कृतिक रूप धारण कर लिया है। पहले साम्राज्यवादी देश दूसरे देश की भूमि पर कब्जा कर उसे अपना उपनिवेश बना लेते थे । आज वैसा न कर वे दूसरे देशों को आर्थिक स्वतन्त्रता , सहयोग एवं ऋण आदि देकर उन्हें आर्थिक दृष्टि से अपना परतन्त्र बना लेते हैं. अर्थात् उन देशों के अर्थतन्त्र पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लेते हैं । इसी तरह संस्कृति आदान - प्रदान की आड़ में दूसरे देशों में अपनी संस्कृति का प्रभाव स्थापित कर उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से अपना परतन्त्र बनाते हैं । अपने धर्म का प्रभाव स्थापित कर वे ऐसा करते हैं । 

साम्राज्यवाद का अर्थ एवं परिभाषा ( Meaning and Definition of Imperialism ) 

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि वह देश साम्राज्यवादी होता है जो किसी अविकसित , अर्द्धविकसित तथा अपने से शक्तिहीन देश को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से परतन्त्र बनाकर उसका शोषण करता है । साम्राज्यवाद की परिभाषा करते हुए बीन ने कहा है कि “ साम्राज्यवाद वह नीति है जिसका साम्राज्य स्थापित करना , उसे संघटित करना तथा उसे बनाये रखना उद्देश्य होता है । "

डी . सी . बर्न्स ने विश्व सरकार की दिशा में इसे एक महत्वपूर्ण कदम माना है तथा अनेक दृष्टियों से इनकी प्रशंसा की है , परन्तु एकाधिक साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के व्यक्ति को छोड़कर कोई भी बर्न्स की इस राय से सहमत नहीं होगा । शर्मा ने इस बारे में अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि " चाहे जितने भी बहाने बनाये जायें और चाहे नैतिकता की जितनी भी ढोल पीटी जाय परन्तु सत्यता तो यह है कि शक्ति और हिंसा के जरिये किसी देश पर विदेशी सत्ता स्थापित करना ही साम्राज्यवाद है । "

बीयर्ड ने इसकी परिभाषा करते हुए कहा है कि " किसी देश की सरकार तथा कूटनीतिक मशीनरी द्वारा दूसरी जाति के प्रदेशों , रक्षित राज्यों तथा प्रभावी क्षेत्रों को प्राप्त करने का प्रयास साम्राज्यवाद है । साम्राज्यवादी सरकार औद्योगिक , व्यापारिक एवं विनियोजन के अवसरों के विस्तार का कार्य करती है । " अभी तक की परिभाषाओं से स्पष्ट है कि साम्राज्यवादी देश दूसरे की भूमि पर कब्जा कर उसके निवासियों पर शासन तथा अपने आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति करता है ।

मार्गेन्थो ने संक्षेप में इससे भिन्न परिभाषा की है । उसके अनुसार , " अपने राज्य से बाहर शक्ति का विस्तार ही साम्राज्यवाद है । " अतः परिवर्तित परिस्थिति में इसकी परिभाषा करते हुए कहा जा सकता है कि किसी देश द्वारा अविकसित अथवा अर्द्धविकसित देश को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में अपने नियन्त्रण में कर उसका आर्थिक तथा अन्य दृष्टियों से शोषण करना ही साम्राज्यवाद है । इसी आधार पर लेनिनवाद साम्राज्यवाद को पूँजीवाद की अन्तिम परिणति मानता है । 

साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद में अन्तर 

साम्राज्यवाद का अर्थ स्पष्ट करने के लिए उपनिवेशवाद और इनके बीच अन्तर पर प्रकाश डालना आवश्यक है । पार्कर थामस मून के अनुसार , साम्राज्यवाद उपनिवेशवादी विस्तार का समानार्थक है परन्तु विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि दोनों में अन्तर है । दोनों के बीच विभाजन रेखा खींचना असम्भव नहीं तो कठिन तो है ही । साम्राज्यवाद का ही रूप उपनिवेशवाद है परन्तु दोनों में अन्तर यह है कि पहला दूसरे की अपेक्षा अधिक संघटित तथा विभिन्न उद्देश्यों से पूर्ण होता है ।

साम्राज्यवादी देश के अधीन केवल उपनिवेश नहीं अपितु रक्षित राज्य , अर्द्धरक्षित राज्य तथा आश्रित राज्य भी आते हैं । वे सभी प्रकार के अधीनस्थ विदेशी प्रदेशों के हितों की रक्षा के लिए शोषण करता है । उनके तथा अधीनस्थ राज्यों के विभिन्न हितों में टक्कर होती है जिनके कारण उनकी बीच संघर्ष होता रहता है । साम्राज्यवादी देश शोषण करता है तथा परतन्त्र स्वतन्त्र होने के लिए संघर्ष करते हैं । 

साम्राज्यवाद का रूप 

साम्राज्यवाद का कोई एक रूप नहीं है । सर्वोच्च और अधीनस्थ देशों के बीच शक्ति सम्बन्ध का नाम ही साम्राज्यवाद है । इस आधार पर विश्लेषण से इसके नौ रूप हैं 
  1. उपनिवेश
  2. संरक्षित तथा अर्द्ध - संरक्षित राज्य
  3. प्रभाव क्षेत्र
  4. बाह्य प्रादेशिकता
  5. अनौपचारिक नियन्त्रण
  6. आर्थिक नियन्त्रण
  7. शुल्क नियन्त्रण
  8. संयुक्त विदेशी प्रशासन
  9. पट्टा ।
मार्गेन्थो के विश्लेषण के आधार पर इसके तीन रूप हैं- 
  1. राजनीतिक रूप से संघटित हो पूरे विश्व पर शासन करना
  2. महाद्वीपीय प्रदेशों पर शासन करना
  3. स्थानीय प्रदेशों पर शासन करना । 

साम्राज्यवाद के जो विभिन्न रूप बताये गये हैं, उनके विश्लेषण के आधार पर हम इसे तीन रूप में बाँट सकते हैं- 

  1. सैनिक साम्राज्यवाद
  2. आर्थिक साम्राज्यवाद
  3. सामाजिक एवं सांस्कृतिक साम्राज्यवाद । 
सैनिक साधन से किसी देश की भूमि पर कब्जा कर उसे परतन्त्र बनाना तथा उसका शोषण करना सैनिक साम्राज्यवाद है । साम्राज्यवाद का यह अत्यन्त प्राचीन रूप तथा द्वितीय विश्व युद्ध तक इसका ही प्रचलन था । इस महायुद्ध की समाप्ति के पश्चात् इसके स्वरूप में परिवर्तन आया है । अब यह सैनिक न रहकर आर्थिक तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक हो गया है । 

आर्थिक सहायता सहयोग एवं ऋण तथा तकनीकी सहायता एवं सहयोग के जरिये किसी देश पर औपचारिक नियन्त्रण स्थापित कर उसका शोषण करना आर्थिक साम्राज्यवाद है । इसे डॉलर साम्राज्यवाद भी कहते हैं । सांस्कृतिक आदान - प्रदान के जरिये किसी देश पर अपनी संस्कृति , सभ्यता और अपने धर्म आदि को थोपना तथा तत्पश्चात् उस देश का अप्रत्यक्ष रूप से शोषण करना सांस्कृतिक और सामाजिक साम्राज्यवाद है । इसका लक्ष्य किसी देश के मन और मस्तिष्क पर नियन्त्रण स्थापित करना होता है ताकि शक्ति सन्तुलन में वह उसका सहायक हो । इसके जरिये नियन्त्रण स्थापित कर आर्थिक शोषण भी किया जाता है । साम्राज्यवाद क्या है?

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