सर्वाधिकारवाद का अर्थ लक्षण, गुण तथा दोष
सर्वाधिकारवाद का अर्थ-
निरंकुश और स्वेच्छाचारी शासन सर्वाधिकारवादी तंत्र का प्रतीक है । यह अनेक रूप में पाया जाता है , जैसे राजतंत्र , कुलीनतंत्र और अधिनायकतंत्र आदि । उसमें शासन शक्ति एक व्यक्ति अथवा एक दल अथवा सेना के हाथ में निहित होती है जिसका प्रयोग निरंकुशता और स्वेच्छाचारितापूर्वक किया जाता है । निरंकुशता से तात्पर्य है शासन की तीनों शक्तियों का एक ही व्यक्ति अथवा एक ही दल अथवा सेना की स्वेच्छाचारी इच्छा के अधीन होना ।
जिस व्यक्ति , दल , अथवा सेना के हाथ में शासन शक्ति होती है , उस पर वैधानिक दृष्टि से कोई प्रतिबन्ध अथवा बन्धन नहीं होता है । अधिनायकतंत्र राजतंत्र से भिन्न होता है । उसमें शासन शक्ति वंशानुगत आधार पर किसी व्यक्ति में नहीं होती है । कोई भी व्यक्ति किसी भी कारण से अधिनायक के रूप में सामने आ सकता है । सर्वाधिकारवादी तंत्रों के |
समर्थक राजनीतिक चिंतन को सर्वाधिकारवाद कहा जाता है । राजतंत्र वंशानुगत शासन के रूप में होता है । अधिनायकतंत्रीय शासन व्यवस्था अथवा सरकार का स्वरूप भी आधुनिक न होकर प्राचीन है परन्तु इसका जो आधुनिक स्वरूप पाया जाता है , वह प्राचीन से भिन्न है । प्राचीन रोम में इस प्रकार की शासन व्यवस्था पायी जाती थी । वहाँ शासन शक्ति दो प्रधानों में निहित होती थी जिन्हें कांसल के नाम से जाना जाता था ।
आधुनिक अधिनायक और उनमें यही अन्तर है कि उन्हें सत्ता कानून से प्राप्त होती में यो अर्थात् वे अपनी शक्ति से उसे नहीं हस्तगत करते थे । आधुनिक काल अधिनायक परिस्थितियों का लाभ उठाकर अपनी शक्ति , बुद्धि और कुशलता से शासन प्राप्त करता है । वह या तो संवैधानिक एवं वैधानिक सुविधाओं कर अथवा संविधानेतर कार्यवाहियाँ कर अर्थात् हिंसात्मक तरीके से शासन पर कब्जा करता है । शासन शक्ति प्राप्त कर लेने के पश्चात् वह निरंकुश और स्वेच्छाचारी हो जाता है अर्थात् वह वैधानिक दृष्टि से अपने को सभी बन्धनों से मुक्त कर देता है । यह निरंकुशता हो उसे आगे चलकर स्वेच्छाचारी, अनुत्तरदायी और अत्याचारी बना देती है ।
सर्वाधिकारवाद प्रजातंत्र के ठीक विपरीत है । आज इसे लोकतन्त्र को विफलता की देन के रूप में माना जाता है । जिस देश में लोकतंत्रीय व्यवस्था विकृत और विफल होती है, उसमें सर्वाधिकारवादी अर्थात् अधिनायकतंत्रीय शासन एवं प्रवृत्ति का उदय निश्चित और अपरिहार्य माना जाता है । विगत वर्षों में एवं लोकतंत्रीय देशों में तानाशाही शासन की स्थापना इस दावे की पुष्टि करती है । लोकतंत्र जनता के शासन में जबकि अधिनायकत्व एक व्यक्ति अथवा एक दल अथवा सेना के शासन में विश्वास करता है ।
लोकतंत्र उत्तरदायी शासन है जबकि अधिनायकतंत्र में इसका कोई प्रश्न ही नहीं उठता है । लोकतंत्रीय सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है अर्थात् जनता का विश्वास खो देने पर उनके व्यक्तित्व का अन्त हो जाता है । अधिनायकवादी सरकार किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है । उसका अस्तित्व अपनी शक्ति खो देने के बाद ही समाप्त हो जाता है । वह सर्वाधिकारवादी होती है । लोकतंत्र विरोधी होने के साथ - साथ यह उम्र राष्ट्रवाद साम्राज्यवाद के अधिकार में इसका कोई विश्वास नहीं होता है । यह उम्र राष्ट्रवाद के रूप में भावुकता जायत करने में विश्वास करता है ।
सर्वाधिकारवाद के लक्षण-
सर्वाधिकारवाद के लक्षण निम्नलिखित हैं- शासन शक्ति एक व्यक्ति अथवा एक दल अथवा सेना के हाथ में निहित होती है ।
- वह उस शक्ति को अपने तथा अपने समर्थकों के बल से प्राप्त करता है उसे कानून से कोई शक्ति नहीं प्राप्त होती है । उसकी प्राप्ति के पश्चात् वह उसे वैधानिक मान्यता प्रदान कर देता है तथा अपनी ताकत से सभी लोगों को उसे स्वीकार करने के लए बाध्य करता है ।
- उसकी शासन शक्ति निरंकुश होती है अर्थात् उस पर कोई वैधानिक बन्धन नहीं होता है तथा शासन की तीनों शक्तियों का उपभोग और संचालन उसकी इच्छानुसार होता है ।
- अधिनायकतंत्र वंशानुगत नहीं होता है । राजतंत्र में शासन शक्ति राजवंश के ही किसी व्यक्ति को प्राप्त होती है जबकि अधिनायकतंत्र में वह उस व्यक्ति को प्राप्त होती है जो सबसे शक्तिशाली एवं सक्षम होता है ।
- यह लोकतंत्र की सभी मान्यताओं और मूल्यों का विरोधी होता है । यह राष्ट्रवाद , साम्राज्यवाद , हिंसा , युद्ध तथा किसी भी प्रकार की राजनीतिक गन्दगी में विश्वास करता है ।
- यह राज्य की उत्पत्ति के दैवी नहीं , बल्कि शक्ति के सिद्धान्त में विश्वास करता है । संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि सर्वाधिकारवादी तंत्र निरंकुश और स्वेच्छाचारी शासन का प्रतीक है । इस शासन व्यवस्था अथवा तंत्र में शासन की तीनों शक्तियाँ ( विधायी अथवा विधि निर्माण सम्बन्धी कार्यपालिकीय अर्थात् कार्यपालिका सम्बन्धी तथा न्यायिक अर्थात् न्यायपालिका सम्बन्धी ) एक ही व्यक्ति अथवा एक ही दल अथवा सेना के हाथ में निहित होती हैं वे शासन के सर्वोत्तम पद पर आसीन अर्थात् अधिनायक की स्वेच्छाचारी और निरंकुश इच्छा के अधीन होती है तथा उस पर वैधानिक दृष्टि से कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है । यह लोकतंत्र विरोधी तथा सत्तावादी तंत्र है ।
सर्वाधिकारवाद के गुण अथवा लाभ
सर्वाधिकारवाद अथवा सर्वाधिकारवादी तंत्र के निम्नलिखित गुण अथवा लाभ हैं-(1) स्थिर शासन व्यवस्था—
अधिनायकतंत्र में शासन किसी एक व्यक्ति अथवा किसी एक दल के हाथ में होती है , शासन पर उसका पूर्ण नियन्त्रण होता है । वैधानिक दृष्टि से वह भी इसी प्रकार के नियन्त्रणों से मुक्त होता है । उसका निर्णय और उसकी इच्छा अन्तिम होती है । उसके निर्णय और आदेश के विरोध का किसी को अधिकार नहीं होता है । यदि कोई व्यक्ति ऐसा करने का साहस करता है तो उसे भयंकर दुष्परिणाम का सामना करना पड़ता है ।सर्वसत्तावादी शासन व्यवस्था होने के कारण अधिनायक की स्थिति निरंकुश होती है । अधिनायक की सर्वसत्तावादी तथा निरंकुश स्थिति के कारण शासन व्यवस्था स्थिर होती है । जब तक उसका अन्त अथवा पतन नहीं होता तब तक वह एक सुदृढ़ , शक्तिशाली , निरंकुश और स्वेच्छाचारी शासक होता है । इसके विपरीत लोकतंत्र में वैयक्तिक स्वातन्त्र्य , शासन नियंत्रण तथा प्रतिरोध के अधिकार के कारण शासन - व्यवस्था स्थिर नहीं होती हैं
(2) कार्यकुशलता और क्षमता वैयक्तिक स्वातन्त्र्य , अधिकार और सीमित शासन -
व्यवस्था के कारण लोकतंत्र में कार्यकुशलता और क्षमता का अभाव पाया जाता है जबकि सर्वसत्तावादी निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी स्थिति के कारण निर्णय में कोई देर नहीं होने पाती है । निर्णय उसकी इच्छा से होता है तथा उसकी इच्छा अन्तिम होती है । किसी भी व्यक्ति को उसके विरोध का अधिकार नहीं होता है । ऐसा करने का कोई साहस भी नहीं कर सकता है । लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरह अधिकार नाम की कोई चीज नहीं होती है । इसके फलस्वरूप प्रशासन आतंकित और सजग होता है । भयंकर दुष्परिणाम के डर से अधिकारी और कर्मचारी कर्त्तव्य - पालन के प्रति अधिकाधिक सजग होते हैं । आतंक और सजगता के कारण शासनिक और प्रशासनिक कार्यों में अधिकाधिक कुशलता और समता पायी जाती है । इसमें(3) विकास और प्रगति में तेजी -
शासन शक्ति के एक ही व्यक्ति अथवा दल के हाथ में निहित होने तथा शासनिक एवं प्रशासनिक कार्यों में अपेक्षाकृत अधिक कुशलता और क्षमता के कारण अधिनायकवादी शासन व्यवस्था में विकास और प्रगति का कार्य तेजी से होता है । यदि अधिनायक अपने देश की प्रगति और उसके विकास में हृदय से रुचि रखता है तो यह लोकतांत्रिक देशों की तुलना में उसे अधिक विकास एवं प्रगति की दिशा में अग्रसर कर सकता है । यही नहीं वह कार्य अपेक्षाकृत कम समय में कर सकता है । मुसोलिनी ने जर्जरित इटली तथा हिटलर ने जर्जरित जर्मनी का अपेक्षाकृत कम समय में विकास कर यह सिद्ध कर दिया कि विकास और प्रगति के लिए अधिनायकवादी शासन अपेक्षाकृत अधिक उपयोगी है । रूस , चीन तथा अन्य साम्यवादी देशों की शासन व्यवस्थाओं में भी अपने - अपने देश का आश्चर्यजनक विकास कर इसी बात की पुष्टि की है ।(4) अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान में वृद्धि -
अधिनायकवादी शासन व्यवस्था देश को तेजी से विकास और प्रगति के मार्ग पर अग्रसरित कर उसके अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान में वृद्धि करती है । प्रथम् महायुद्ध ने विजयी पक्ष के इटली तथा पराजित पक्ष के जर्मनी की स्थिति जर्जरित कर दी थी परन्तु उनके तानाशाहों ( इटली के तानाशाह मुसोलिनी तथा जर्मनी के तानाशाह हिटलर ) ने उसका तेजी से विकास कर तथा उनकी आर्थिक और सैनिक स्थिति सुदृढ़ कर उनकी खोयी हुई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित कर दी । यही नहीं उन्हें विश्व की सर्वशक्तिशाली महाशक्तियों की श्रेणी में ला खड़ा किया ।रूस के साम्यवादी शासन ने उसे अमेरिका के समकक्ष कर दिया है । इस समय वह विश्व में एक गुट का नेता है । यदि खुलकर शक्ति परीक्षण हुआ तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि रूस विश्व का सर्वशक्तिशाली देश सिद्ध होगा । साम्यवादी शासन की स्थापना के बाद चीन ने तेजी से अपना विकास कर अपने को एशिया का सबसे शक्तिशाली देश बना लिया । विश्व को महाशक्तियों में उसकी गणना होने लगी है । सन् 50 के पूर्व वह अफौमचियों का देश माना जाता था । साम्यवादी शासन की स्थापना के बाद उसकी स्थिति में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ
सर्वाधिकारवाद से दोष अथवा हानियाँ
शासनिक एवं प्रशासनिक सुदृढ़ता , विकास एवं प्रगति तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान की दृष्टि से उपयोगी होने के बावजूद अधिनायकतंत्र को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है । यह एक सर्वसत्तावादी निरंकुश शासन तंत्र है । वैयक्तिक | स्वातन्त्र्य और मतवैभिन्न को इसमें कोई स्थान नहीं प्राप्त है । लोकतंत्र के इस युग में इस प्रकार की शासन व्यवस्था को सम्मान की दृष्टि से न देखना कोई आश्चर्य की बात नहीं है । यह लोकतंत्र की सभी मान्यताओं तथा उसके सभी आदर्शों एवं सिद्धान्तों के विपरीत है । इसके अनेक दोष अथवा अनेक हानियाँ हैं(1) निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी शासन -
इस शासन तंत्र में शासन की सभी शक्तियाँ एक ही व्यक्ति अथवा एक ही दल में निहित होती हैं । उस पर वैधानिक दृष्टि से कोई प्रतिबन्ध अथवा बन्धन नहीं होता है । उसकी इच्छा और उसका निर्णय अन्तिम होता है । किसी को भी उनके विरोध का अधिकार नहीं होता है । उसके गलत से गलत निर्णय का भी विरोध करने का कोई साहस नहीं कर सकता है । यदि ऐसा करने का कोई साहस करता है तो उसे भयंकर दुष्परिणाम का सामना करना पड़ता है । यदि इटली और जर्मनी की जनता को प्रतिरोध का अधिकार रहा होता तो शायद विश्व को महायुद्ध का सामना न करना पड़ा होता ।यदि हिटलर निरंकुश और स्वेच्छाचारी न रहा होता तो जर्मनी को दुर्दिन न देखना पड़ा होता । कहने का जात्पर्य है कि अधिनायकतंत्र का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें अधिनायक को निरंकुश और स्वेच्छाचारी शक्ति प्राप्त होती है जिसका वह निश्चित रूप से दुरुपयोग करता है । अधिनायक का सबसे बड़ा दोष यह है कि वह अपने को सबसे बुद्धिमान तथा शेष लोगों को मूर्ख समझता है । यही कारण है कि वह अपने निर्णय विरुद्ध कुछ भी सहन नहीं करता है । अपने विरोधियों का वह क्रूरतापूर्वक दमन करता है ।
(2) सर्वाधिकारवाद हिंसा और युद्ध को बढ़ावा देता हैं -
अधिनायकवादी शासन अथवा अधिनायकतंत्र निरंकुशता , स्वेच्छाचारिता , सर्वसत्तावादी , उम्र राष्ट्रवाद तथा अन्ततः अत्राज्यवाद में विश्वास करने के कारण हिंसा और युद्ध में विश्वास करता है तथा में बढ़ावा देता है । हिंसा और युद्ध इसके आधार हैं । अधिनायक अपने विरोधियों का क्रूरतापूर्वक दमन करता है । क्रूरता के लिए हिंसा अपरिहार्य है । हिंसा में विश्वास के कारण वह युद्धप्रिय भी होता है ।(3) उग्र राष्ट्रवाद को बढ़ावा -
निरंकुश और स्वेच्छाचारी होने के बावजूद अधिनायक जनमत की उपेक्षा नहीं करता है । अपने पक्ष में रखने के लिए व कतिपय जनहितकारी कार्य करने का प्रयास करता है । इस प्रयास के अन्तर्गत ही वह विकास और प्रगति का भी कार्य करता है । ( साम्यवादी शासन के बारे में यह बात नहीं की जा सकती है । वह एक आदर्श और सिद्धान्त के अन्तर्गत कार्य करता है ) । अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए वह इसके साथ - साथ उम्र राष्ट्रवाद को भी बढ़ावा देता है । इस बात का सीधा अर्थ है अपने देश को सबसे महान तथा दूसरे को निम्न समझना । अधिनायक उग्रराष्ट्रवाद को बढ़ावा देकर जनमत को अपने पक्ष में करता है । यह वाद युद्ध का पोषक होता है । हिंसा और युद्ध का समर्थन कर अधिनायकतंत्र उग्रराष्ट्रवाद का पोषण करता है ।(4) साम्राज्यवाद को बढ़ावा
अधिनायक की निरंकुशता , स्वेच्छाचारिता , उपराष्ट्रवादिता तथा युद्धप्रियता की अन्तिम परिणति साम्राज्य विस्तार की लालसा में होती है । अधिनायक का साम्राज्यवादी होना अपरिहार्य है । अपनी जनता के बीच लोकप्रियता प्राप्त करने , अपनी युद्ध - लिप्सा की पूर्ति करने , उग्रराष्ट्रवाद को बढ़ावा देने , अपने समर्थकों के निहित स्वार्थों को पूरा करने और अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए वह साम्राज्य विस्तार की दिशा में अग्रसर होता है ।(5) सर्वाधिकारवाद वैयक्तिक स्वतंत्रता और समानता का विरोध करता है -
अधिनायकतंत्र वैयक्तिक स्वतंत्रता और समानता का विरोधी है । वह निरंकुशता और स्वेच्छाचारिता में विश्वास करता है । अतः उसका वैयक्तिक स्वातन्त्र्य का विरोध होना स्वाभाविक है । इस बात में विश्वास करने के कारण कि प्रकृति ने सभी को असमान पैदा किया है । अधिनायकवादी समानता का विरोधी होता है । स्वतंत्रता और समानता का नहीं , बल्कि सभी लोकतांत्रिक मूल्यों , आदर्शों और सिद्धान्तों का वह विरोधी होता । है ।(6) सर्वाधिकारवाद मानसिक दासता का पोषक है -
हिंसा और आतंक अधिनायकतंत्र के आधार हैं । अधिनायक अपने विरोधियों का क्रूरतापूर्वक दमन कर आतंक की स्थिति पैदा करता है । आतंकित व्यक्ति मानसिक दासता का शिकार है । यही कारण है कि अधिनायकतंत्र में सभी लोग अधिनायक के निर्णय का आँख मूंदकर समर्थन करते हैं । अधिनायक केवल आतंक से ही नहीं अपितु अन्य साधनों से भी मानसिक दासता पैदा करता है । वह की पूरी व्यवस्था पर नियंत्रण कर उसके माध्यम से नयी पीढ़ी को मानसिक दास बनाता है ।इसे भी पढ़ना न भूले -
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