भारत मे समाज सुधार आंदोलनों के प्रभाव की विवेचना कीजिये। Impact of Social Reform Movements in India. Discuss the impact of social reform movements in India.
भारतवर्ष में इस आन्दोलन का प्रभाव { Impact of Social Reform } किसी एक क्षेत्र विशेष पर नहीं पड़ा समाज के विभिन्न अंगों पर इसका स्पष्ट प्रभाव पड़ा । यह आन्दोलन मुख्य रूप से सामाजिक कुरीतियों से जुड़ा था । इस पर भी इसका प्रभाव , धार्मिक , आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्रों पर पड़ा । अतः यह कहना कि आन्दोलन का प्रभाव किसी एक क्षेत्र पर पड़ा कहना नितान्त गलत है । सामाजिक आन्दोलन का प्रभाव स्पष्ट रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में देखा जा सकता है( 1 ) समाज सुधार आंदोलन का भारतीय साहित्य पर प्रभाव -
समाज-सुधार आन्दोलन का भारतीय साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। समाज सुधार आंदोलन के समय अनेक विदेशी मनीषी प्राचीन भारतीय साहित्य की तरफ आकर्षित हुए और उन्होंने अपना बहुमूल्य योगदान दिया । इन मनीषियों में सबसे ज्यादा मैक्समूलर का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है । इन्होंने वैदिक साहित्य का अनुवाद जर्मन भाषा में किया । इसी प्रकार अन्य विदेशियों ने भी संस्कृत साहित्य का अध्ययन व अनुवाद किया । जब भारतीय दार्शनिकों ने विदेशी विद्वानों को अपनी ही संस्कृति व साहित्य को अमर बनाने का प्रयत्न किया ।( 2 ) समाज सुधार आंदोलन का भारत के अर्थव्यवस्था पर प्रभाव -
भारत में 18 वीं शताब्दी के समय औद्योगिक क्रान्ति का युग था । इस क्रान्ति ने संसार के देशों को औद्योगिक प्रगति करने की प्रेरणा दी लेकिन भारत इस समय गुलामी की जंजीरों में बुरी तरह से जकड़ा हुआ था । अंग्रेज शासक मनमाने ढंग सेभारत के लोंगो का शोषण कर रहे थे । भारतीय जनता भुखमरी, दरिद्रता , गरीबी , बेरोजगारी और अंग्रेजो के शोषण से बुरी तरह पीड़ित थी । वे जानते थे कि जब तक भारत में बड़े उद्योगों की स्थापना नहीं होगी तब तक देश की आर्थिक समस्या नहीं सुलझेगी । अतएव हमारे देश के अनेक उद्योगपतियों ने यहाँ अनेक कलकारखाने स्थापित किये जिससे आर्थिक क्षेत्र में नयी चेतना का उदय हुआ .( 3 ) समाज सुधार आंदोलन का शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा ? -
समाज सुधार आन्दोलन ने लोगों को यह बताया कि देश में शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति व समाज दोनों को आगे बढ़ने में सहायता प्रदान करे भारत में ऐसी शिक्षा की कदापि आवश्यकता नहीं जो व्यक्ति को धर्म विरोधी तथा रूढ़िवादी बनाये । इसीलिए उस समय संस्कृत के स्कूलों की बेहद आलोचना की गयी तथा यह कहा गया कि संस्कृत के स्कूलों से न तो देश का कल्याण हो सकता है और न ही देश के विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति ही हो सकती है । अतः इसकी जगह अंग्रजी स्कूलों की स्थापना की जाय । इस तरह सामाजिक आन्दोलन ने शिक्षा पद्धति को समाज की आवश्यकतानुसार बनाने की प्रेरणा प्रदान की ।( 4 ) Impact of Social Reform on Politics
राजनीति पर भी इस आन्दोलन का प्रभाव देखने को मिला । एक ओर देश की सामाजिक चेतना में प्रगति हो रही थी तथा सामाज में व्याप्त बुराइयों में कमी आ रही थी त्यों - त्यों देश के व्यक्तियों में देशभक्ति , देश प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना में वृद्धि होती जा रही थी तथा देश सामाजिक क्षेत्र से सम्बन्धित समस्याओं के प्रति जागरूक हो रहा था । देश के नागरिकों की इस जागरूकता ने अंग्रेज सरकार के सम्मुख अनेक माँगें रखी , जिसमें यह भी माँग सम्मिलित थी कि सार्वजनिक सेवाओं के क्षेत्रों में भारतीयों को भी स्थान दिया जाय ।इसके लिए 1833 चार्टन एक्ट की दुहाई दी गयी । 1858 में रानी विक्टोरिया की घोषणा में विधि के समक्ष समता , प्रतिभा के अनुसार नौकरी , धार्मिक सहिष्णुता और धार्मिक स्वतंत्रता का राज्य की नीति के रूप में प्रतिपादन किया गया लेकिन लिंटन और कर्जन के कार्यों ने देश में प्रजातीय तनाव उत्पन्न आन्दोलन का किया तथा उसमें वृद्धि की जिसके फलस्वरूप भारतीयों ने यह अनुभव किया कि जब तक देश स्वतंत्र नहीं होगा तब तक देश की सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में उन्नति नहीं होगी । इसलिए 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई जिससे अंग्रेजों से राजनैतिक स्तर पर युद्ध किया और देश को स्वतंत्र कराया ।
( 5 ) सामाजिक कुरीतियों पर प्रभाव -
सामाजिक सबसे अधिक गहरा समाज सुधारकों को अपनी ओर आकर्षित किया था जिनसे प्रेरित होकर राजाराम मोहन राय ने सती प्रथा, बहुपत्नी प्रथा , कुलीन विवाह , जातिवाद आदि की विरोध की थी और इसके विरुद्ध आन्दोलन छेड़ा था। जिसके परिणाम स्वरूप समाज की विभिन्न कुरीतियाँ व रूढ़ियाँ समाप्त हो गयीं । इन कुरीतियों व रूढ़ियों को दूर करने के लिए विभिन्न संगठनों की स्थापना हुई थी जिसमें ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज और रामकृष्ण मिशन आदि प्रमुख हैं । इन संगठनों ने सामाजिक कुरीतियों , रूढियों व बुराइयों को व्यवस्थित रूप से दूर करने का प्रयास किया और अपने इस प्रयास में काफी हद तक सफलता अर्जित की ।( 6 ) समाज सुधार संगठनों की उत्पत्ति -
समाज-सुधार आन्दोलन ने व्यक्तियों को इतना अधिक प्रभावित किया कि अलग-अलग विचारधारा के लोगो ने अपने विचार तथा दर्शन के अनुरूप सामाजिक संगठनों की स्थापना की । इन संगठनों का उद्देश्य व्यवस्थित रूप से समाज का सुधार करना था। ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, थियासोफिकल सोसायटी आदि इन निर्मित संगठनों में प्रमुख थे ।( 7 ) भारतीय संस्कृति की पुनः स्थापना
सामाजिक आन्दोलन के फलस्वरूप कुछ दार्शनिकों को यह अनुभव होने लगा कि भारतीय समाज पर पश्चिम देशों की सभ्यता और संस्कृति का प्रभाव दिनों दिन बढ़ता जा रहा है जिसके कारण भारत अपनी मूल संस्कृति से हटकर पाश्चात्य संस्कृति को तेजी से ग्रहण करता जा रहा है। अतः स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भारतीय संस्कृति को पुनः स्थापित करने का संकल्प लिया था। उसके महत्त्व पर प्रकाश डाला । उनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप भारतीय संस्कृति पुनः जीवित हुई । इसके अलावा स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की तथा असंख्य उन ईसाइयों को जो पहले हिन्दू थे उन्हें पुनः शुद्ध करके हिन्दू बना दिया । इस प्रकार स्वामी जी ने हिन्दू संस्कृति को पुनः स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की ।( 8 ) राष्ट्रीयता को प्रोत्साहन -
सामाजिक आन्दोलन ने एक प्रकार से अगर देखा जाय तो अपने देशवासियों को अपनी संस्कृति, भाषा तथा धर्म आदि से प्रेम करना सिखाया । उनके भीतर देश - प्रेम और देश भक्ति की भावना का संचार किया । इसी चेतना के फलस्वरूप समस्त भारतीय एकजुट होकर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी तथा सफलता अर्जित की ।( 9 ) प्रगतिवादी विचारधारा का उदय -
अगर गम्भीरतापूर्वक समस्त सामाजिक आन्दोलन का विश्लेषण किया जाय तो निश्चय ही उसमें एक तथ्य स्पष्ट है कि प्रत्येक दार्शनिक तथा समाज सुधारक ने इस बात का प्रयत्न किया है कि व्यक्ति संकीर्ण विचारों से ऊपर उठे और प्रगतिवादी विचारों को ग्रहण करे । समाज - सुधारक इस तथ्य से भली - भाँति परिचित था कि कूप मंडूप तथा संकीर्ण विचारों के व्यक्ति समाज में परिवर्तन नहीं ला सकते । इसीलिए उन्होंने देश में पाश्चात्य शिक्षा पद्धति को प्रोत्साहन दिया तथा जातिवाद , अस्पृश्यतावाद और बाल विवाह इत्यादि की आलोचना की । इस प्रकार सामाजिक आन्दोलन ने देश में प्रगतिवादी विचारधारा को प्रोत्साहति करने में सहायता प्रदान की ।( 10 ) तकनीकी तथा वैज्ञानिक शिक्षा का उदय -
तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति पर भी सामाजिक आन्दोलन के प्रभाव स्पष्ट देखने को मिलता है । स्वामी विवेकानन्द पश्चिम का अन्धानुकरण करने के पक्ष में नहीं थे । उनका कहना था कि अगर देश की प्रगति करनी है तो पाश्चात्य देशों की भाँति अपने देश में भी तकनीकों और वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ावा देना होगा।निष्कर्ष
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि इस आन्दोलन का प्रभाव सभी क्षेत्रों पर पड़ा है, चाहे वह आर्थिक क्षेत्र रहा हो या धार्मिक , सांस्कृतिक क्षेत्र रहा हो अथवा राजनीतिक इस आन्दोलन ने विभिन्न जातियों , धर्मों और वर्गों के मध्य एकता स्थापित की है । देश की आर्थिक और राजनैतिक समस्याओं के प्रति जागरूकता उत्पन्न की तथा देश को नये तरीके से स्थापित होने की प्रेरणा दी।
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