भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के कारण तथा उसके प्रारम्भिक उद्देश्य

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के कारणों तथा उसके प्रारम्भिक उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए ।

उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों से लेकर 1885 ई ० तक की अवधि में धीरे - धीरे भारतीयों के हृदय में राजनीतिक चेतना तथा राष्ट्रीय जागृति का विकास होना शुरू हुआ और 1885 ई 0 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ इन भावनाओं ने संस्थापक रूप धारण किया । संपूर्ण राष्ट्र के स्तर पर एक राजनीतिक संगठन की स्थापना का पृष्ठाधार तैयार हो गया । इल्बर्ट विधेयक पर जो विवाद उठा उससे भारतवासी जाग उठे । इस विवाद ने तत्कालीन देशसेवकों को संगठन के महत्त्व का पाठ पढ़ाया ।

भारतवासी समझ गए कि तिरस्कार , विभेद और अनादर जीवनपर्यन्त बने रहेंगे और बिना देशव्यापी संग के उनका अंत नहीं होगा । परिणामस्वरूप राष्ट्रीय जागृति और राजनीतिक चेतना देशव्यापी संगठन का रूप लेने के लिए मचल उठी । 1883 ई ० में कलकत्ता के अल्बर्ट हॉल में एक राजनीतिक परिषद का आयोजन हुआ और दूसरे वर्ष एक अन्तर्राष्ट्रीय परिषद हुई , जहाँ अखिल भारतीय कांग्रेस की स्थापना की प्रेरणा मिली ।

कांग्रेस के जन्म के लिए उत्तरदायी कारण 1885 ई ० में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है । क्योंकि यह संस्था एक महत्वपूर्ण संगठन बन गई थी और भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को नेतृत्व प्रदान करने में सफल रही । इसकी स्थापना में अनेक कारण और परिस्थितियाँ सहायक रही हैं , जिनका विवरण इस प्रकार है।

( 1 ) तात्कालिक परिस्थितियाँ-

ठीक ही कहा जाता है कि कांग्रेस की स्थापना के समय भारत में अनुकूल परिस्थितियाँ वर्तमान थीं । देश में अनेक राष्ट्रीय संगठनों का निर्माण हो चुका था जिनका कांग्रेस की स्थापना हेतु पथ प्रशस्त करने में महत्वपूर्ण हाथ रहा । ऐसे संगठनों में बॉम्बे एसोसिएशन , इंडियन एसोसिएशन ,

ईस्ट इंडिया एसोसिएशन इत्यादि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है । साथ ही , देश अभाव , अकाल , निर्धनता तथा कष्टों के दौर से गुजर रहा था । देश में असंतोष की ज्वाला धधक रही थी । बेकारी और भुखमरी का साम्राज्य स्थापित हो चुका था । अँगरेज सरकार का इन समस्याओं की तरफ कोई ध्यान नहीं था । देश में राजनीतिक अशांति धीरे - धीरे बढ़ रही थी । इन परिस्थितियों में राष्ट्रीय स्तर पर एक राजनीतिक संगठन की आवश्यकता महसूस की गई और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हो गई ।

( 2 ) भारत की राष्ट्रीय चेतना-

19 वीं शताब्दी के अंत में भारत में राष्ट्रीयता का जन्म हुआ । अँगरेजी शिक्षा और साहित्य के संपर्क में आने से भारतीयों में स्वतंत्रता और लोकतंत्र की आकांक्षा बलवती हुई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना उक्त राष्ट्रीय चेतना का ही परिणाम है ।
( 3 ) ब्रिटिश साम्राज्य की सुरक्षा की भावना-
कुछ लोगों के मतानुसार कांग्रेस की स्थापना का प्रमुख कारण ब्रिटिश साम्राज्य की सुरक्षा की भावना था । रजनी पाम दत्त के अनुसार , " ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्धारित नीति के अंतर्गत तथा उसके पहल पर , वायसराय के साथ गुप्त रूप से पूर्वनिर्धारित एक योजना के अनुसार राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना वास्तव में इस उद्देश्य से की गई थी कि वह भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का संरक्षण भारतीय जनता के बढ़ते हुए असंतोष तथा अँगरेज विरोधी भावना से कर सकें । " लाला लाजपत राय ने भी इसी तरह का विचार व्यक्त करते हुए कहा था , " कांग्रेस की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अँगरेजी साम्राज्य को खतरे से बचाना था , भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करना नहीं ।

" राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक ह्यूम ने भी अपने मित्र ऑकलैंड कॉलविन से अपना विचार बताते हुए कहा था , " ब्रिटिश साम्राज्य के भविष्य को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए तथा ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी बढ़ती हुई शक्तियों को निकाल देने के लिए सुरक्षा नली का काम करने वाली एक राष्ट्रव्यापी संस्था की इस समय बड़ी आवश्यकता है । ” इन कथनों से यह बात स्पष्ट होती है कि कांग्रेस की स्थापना के पीछे ब्रिटिश साम्राज्य के हितों की पूर्ति भी महत्वपूर्ण कारण रहा ।
( 4 ) झरुम का भारत के प्रति सहानुभूति-
कुछ लेखकों का मत है कि कांग्रेस की स्थापना का मुख्य कारण ह्यम की भारत के प्रति सहानुभूति था ह्यरुम एक अवकाश प्राप्त अंगरेज अधिकारी थे जिनके हृदय में भारतीयों के प्रति अत्यधिक सहानुभूति थी । उन्होंने भारतीयों के हृदय में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न की । उन्होंने स्नातकों के नाम अपने पत्र में लिखा था- “ प्रत्येक राष्ट्र ठीक वैसी ही सरकार प्राप्त कर लेता है जिसके योग्य वह होता है ।

यदि आप लोग , जो देश की आशाओं के केंद्र हैं तथा उच्च शिक्षा प्राप्त किए हैं , अपने सुख - चैन तथा स्वार्थ को त्याकर स्वतंत्रता प्राप्त करने के काम में नहीं लग सकते .... तब . कहना होगा कि उन्नति की सब आशाएँ व्यर्थ हो गई हैं तथा भारत उसी प्रकार के शासन के योग्य है जो उसे मिला हुआ है । " ह्यरुम के इस विचार का भारत के शिक्षित युवकों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा और वे राजनैतिक संगठन के काम में जुट गए । फलस्वरूप , कांग्रेस का जन्म हुआ । 
( 5 ) सरकार का सहयोग-
कांग्रेस की स्थापना में ब्रिटिश सरकार का सहयोग प्राप्त रहा ह्यरुम ने कांग्रेस की स्थापना से संबद्ध विचार , तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डफरिन के सामने रखा । लॉर्ड डफरिन भारतीय जनता के असंतोष के वैधानिक निदान का उपाय ढूँढ़ रहे थे और प्रस्तावित संस्था को राजनैतिक स्वरूप देना चाहते थे । अतः , लॉर्ड डफरिन ने ह्यरुम के विचारों का समर्थन किया और बताया कि प्रस्तावित संस्था उसी रूप में कार्य करे जिस रूप में ब्रिटिश सम्राट का विरोधी दल करता है । लार्ड डफरिन का आशीर्वाद प्राप्त कर ह्यरुम साहब इंगलैंड गए और वहाँ के नेताओं से इस संबंध में विचार - विमर्श किया । उनका समर्थन मिलने पर ह्यरुम भारत लौट आए ।

उन्हीं के प्रयास से 28 दिसंबर 1885 को 12 बजे बंबई के गोकुलदास तेजपाल कॉलेज में एक राष्ट्रीय सम्मेलन ( इंडियन नेशनल यूनियन ) हुआ । जिसमें अखिल भारतीय कांग्रेस ( Indian National Congress ) का जन्म हुआ । यह अधिवेशन पूना में होने वाला था , परंतु वहाँ हैजे का प्रकोप होने से स्थान परिवर्तन करना पड़ा । इस अधिवेशन में देश के विभिन्न भागों के 72 प्रतिनिधि सम्मिलित हुए थे । उमेशचंद्र बनर्जी ने इस अधिवेशन का सभापतित्व किया । भारतभूमि के इतिहास की याद में ऐसा महत्वपूर्ण और व्यापक प्रतिनिधित्वपूर्ण सम्मेलन नहीं हुआ था । इस प्रकार , भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म 1885 ई ० में हुआ । ए ० ओ ० ह्यरुम की सक्रियता और सहयोग के कारण उन्हें कांग्रेस का जनक कहा जात है ।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक उद्देश्य-

1885 ई ० से 1905 ई ० की अवधि में ,जिसे उदारवादी युग भी कहते हैं , कांग्रेस वैधानिक तरीकों से पूर्णतः विश्वास करती थी । इसके वार्षिक अधिवेशन ब्रिटेन के प्रति राजभक्ति की शपथ और वैधानिक कार्यवाही में विश्वास के प्रदर्शन के साथ प्रारंभ होते थे और ब्रिटिश साम्राशी तथा वायसराय के प्रति ' हर्षध्वनि के साथ समाप्त होते थे । प्रारंभिक कुछ वर्षों त कांग्रेस के अधिवेशनों के प्रस्तावों के अध्ययन से स्पष्ट है कि उस समय वह विनम्र भाषा में शासन में थोड़ा सुधार चाहती थी । अप्रैल 1885 में कांग्रेस के संस्थापकों ने एक घोषणापत्र द्वारा कांग्रेस के दो उद्देश्यों का जिक्र किया –

( i ) राष्ट्र के प्रति सद्भावना रखना , कार्यकर्ताओं में निकटतम संबंधों की स्थापना करना और
( ii ) आगामी वर्ष के लिए कार्यक्रम निश्चित करना ।
1885 ई ० में कांग्रेस के प्रगम अधिवेशन में सभापति पद से भाषण देते हुए उमेशचंद्र बनर्जी ने कांग्रेस के अग्रलिखित उद्देश्य बताए थे ।
( i ) राम्राज्य के विभिन्न भागों में फैले सच्चे देशवासियों का पारस्परिक संपर्क और उनकी प्रगाढ़ मैत्री ।
( ii ) व्यक्तिगत मित्रता और मेल - जोल द्वारा देशप्रेमियों के बीच जातीयता , सांप्रदायिकता और प्रांतीयता की संकीर्ण भावनाओं का विनाश और राष्ट्रीय एकता की उन भावनाओं का विकास तथा संगठन जिनकी उत्पत्ति सर्वप्रिय लॉर्ड रिपन के चिरस्मरणीय शासनकाल में हुई थी ।
( iii ) महत्वपूर्ण और आवश्यक सामाजिक समस्याओं पर भारतीय पढ़े लिखे वर्ग के विचारों का प्रामाणिक लेखा रखना ।
( iv ) उन तरीकों पर विचार करना जिनके अनुसार आगामी बारह महीनों तक देश के राजनीतिज्ञ जनहित में कार्य करेंगे । इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस के प्रारंभिक उद्देश्य बड़े ही नम्र थे ।
कांग्रेस की सिर्फ यही इच्छा थी कि भारतीयों की कठिनाइयों को सरकार समझे और उन्हें दूर करने की चेष्टा करे । इस अधिवेशन में कांग्रेस ने निम्नलिखित प्रस्ताव पास किए थे-
( i ) केंद्र और प्रांत विधानसभाओं में सदस्यों की संख्या में वृद्धि हो ;
( ii ) सिविल सर्विस की प्रतियोगिता परीक्षाओं की व्यवस्था भारत और इंग्लैंड दोनों देशों में हो ;
( iii ) एक शाही आयोग की नियुक्ति हो , जो भारतीय शासन व्यवस्था की जाँच कर सके ;
( iv ) बर्मा को भारत से पृथक कर दिया जाएः
( v ) सेना पर खर्च घटा दिया जाए ।

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कांग्रेस की स्थापना कब और किसने की ? भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक कौन थे ? भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन के पीछे का कारण ?

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