Peasant Movement in India. Explain the Main Causes of Peasant Movement in India. भारत में कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारणों को समझाइए । भारत में कृषक आंदोलन के मुख्य कारण क्या है? उत्तर प्रदेश कृषक आन्दोलन। Peasant Movement.
भारत में कृषक आन्दोलन के कारण
किसान का सीधा सम्बन्ध भूमि से है । उसकी जमीन उसका जीवन है । उसके जीने का आधार जमीन है, खेती हैं, फसल है । जमीन से उत्पन्न होने वाली चीजें , उसका आय का स्रोत का आधार जमीन है, खेती है, फसल है । जमीन से उत्पन्न होने वाली चीजें, उसकी आय का स्रोत हैं ।उनका विचार है कि “ भारत में साम्राज्यवादी शासन के इतिहास में तीन मुख्य युग सामने आते हैं । पहला युग प्रारम्भिक पूँजीवाद का युग है , जिसकी प्रतिनिधि इंस्ट इण्डिया कम्पनी थी । जहाँ तक साम्राज्यवादी व्यवस्था के साधारण स्वरूप का सम्बन्ध है , यह युग अठारहवीं सदी के अन्त तक चला जाता है । दूसरा औद्योगिक पूँजी का पानी मशीन इस्तेमाल करने वाले पूँजीवादी उद्योगों का युग है , जिसने उन्नीसवीं सदी में भारत के शोषण का एक नया आधार तैयार किया ।
तीसरा बैंक पूँजी का आधुनिक युग, जिसने शोषण की पुरानी व्यवस्था के खण्डहरों पर भारत को लूटने की अपनी एक खास ढंग से व्यवस्था जारी की ... " . अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों किसानों का मन चाहे रूप में दमन करने लगी । उनके साथ शत्रुओं जैसा व्यवहार करने लगी । उन्हें गुलाम की तरह जीवनयापन करने के लिए बाध्य किया जाने लगा ।
Peasant Movement in India
सम्पूर्ण भारतवर्ष का किसान अंग्रेजी शासकों के उत्पीड़न का शिकार हो गया । ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सौदागरों को भारत को लूटने का रास्ता देखा गया । इस सम्बन्ध में रजनी दास दत्त लिखते हैं " कम्पनी की तरफ से बार - बार यह माँग की जाती है कि लूट की आमदनी को और बढ़ाया जाये । इसका नतीजा यह हुआ कि जमीन की मालगुजारी को अंधाधुंध बड़ा दिया गया ।हालत यहाँ तक पहुँच कि अक्सर किसानों के बीच के नाज और बैल तक छीन लिये जाते थे । बंगाल के अन्तिम भारतीय शासक के शासन काल के आखिरी वर्ष में , यानी 1764-65 में 817,000 पौण्ड की मालगुजारी वसूल हुई । कम्पनी के शासक के पहले वर्ष में यानी 1765-66 में बंगाल में 1,470,000 / पौण्ड की मालगुजारी वसूल हुई और जब 1793 में लार्ड कार्नवालिस ने इस्तमरारी बन्दोबस्त शुरू किया , तो उन्होंने 3,400,000 पौण्ड की मालगुजारी बाँधी । ”
निश्चय ही दमनकारी व्यवस्था किसानों को जमींदारों के विरुद्ध आन्दोलन करने की प्रेरणा दे रहे थे । इस नारकीय और पशु समान जीवन से किसानों में आग सुरान रही थी । वे एक ऐसे अवसर की तलाश में थे कि किसान एकजुट होकर जमींदार , महाजन और साहूकारों के शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज बुलन्द करें । उनके अत्याचारों के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ें ।
एक दिन शहदा के किसान आन्दोलन की ओर बढ़ गये। “ क्रान्तिकारी चेतना से कार्य कर रहे मजदूरों और किसानों ने ' श्रमिक संगठन ' की स्थापना की और इस संघर्ष समिति में भील और शोषित हिन्दु जातियाँ एक जुट हो गईं । अपने संघर्ष को उन्होंने उन आर्थिक माँगों से जोड़ा कार्यरत जन समुदाय , विशेषकर आदिवासियों की आर्थिक स्थिति में बुनियादी सुधार , ठेके के मजदूरों के लिए 50 प्रतिशत और वेतन वृद्धि , निश्चित कार्य समय और प्रति सप्ताह एक सवेतन छुट्टी " आदि ।
एल . नटराजन अंग्रेजी शासन व्यवस्था में किसानों को किस तरह प्रताड़ित और शोषण किया जाता था , उस सम्बन्ध में लिखते हैं- " इस बीच भारतीय समाज के समूचे सामाजिक और आर्थिक आधार में एक जबरदस्त रद्दोबदल हो रहा था । अंग्रेजों के जमीन के बन्दोबस्त मालगुजारी की ऊँची दरें और एकक ऐसी न्याय व्यवस्था जो जनता के हितों के खिलाफ जाती थी— इन सबका फायदा उठाकर, जमींदारों ने आम किसान जनता के ऊपर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। "
उत्तर प्रदेश कृषक आन्दोलन
उत्तर प्रदेश के जमींदार किसानों पर बड़े अत्याचार करते थे । साहूकार उनका शोषण करते थे । अधिकांश किसानों की स्थिति खेतिहर मजदूर की थी । जिनके कोई अधिकार न थे । इन खेतिहर मजदूरों की मजदूरी बहुत कम थी । अवध के किसानों की और भी बुरी अवस्था थी ।यह भी पढ़ें- साम्राज्यवाद के विकास की सहायक दशाएँ ( कारक )
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