भारत में उच्च शिक्षा की स्थिति पर एक टिप्पणी लिखिए।
शिक्षा मनुष्य को उदार, चरित्रवान, विद्वान और विचारवान उत्तर बनाने के साथ-साथ उसमें नैतिकता समाज और राष्ट्र के प्रति उसक कर्तव्य और मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था की भावना का संचार करना है। किसी भी शिक्षण संस्थान के मुख्यत: तीन अंग होते है शिक्षक शिक्षार्थी और पाठ्यक्रम। किसी भी संस्थान की सफलता और विफलता इन्हीं पर निर्भर होती है।
भारत की मानव संसाधन क्षमता को पूर्ण रूप से समानता और समावेशिता के साथ उच्चतर शिक्षा क्षेत्र में लगाना मुख्य उद्देश्य है। आज विकसित राष्ट्रों के आर्थिक और तकनीको विकास के पीछे उनके शोध का मजबूत आधार देखा जा सकता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् पिछले सात दशकों में देश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
स्वतंत्रता पूर्व देश में मात्र तीस विश्वविद्यालय थे, वही अब उनकी संख्या 800 के पार पहुंच चुकी है। महाविद्यालयों की संख्या 500 से करीब 40,000 और विद्यार्थियों की 3 संश्चा 3,97,000 से करीब 350,00,000 के पार पहुंच गयी है। यदि उच्च शिक्षा को गुणवत्ता और उसकी व्यवहारिकता पर विचार किया जाए तो वर्तमान शिक्षा प्रणाली शिक्षित बेरोजगारी को एक बहुत बड़ी संख्या प्रत्येक वर्ष तैयार करती जा रही है। हमारे इन उच्च संस्थानों के छात्र देश समाज और उनके समस्याओं से कटे हुए हैं।
उच्च शिक्षा को व्यवस्था में ऐसे बुनियादी बदलाव लाने की जरूरत है शिक्षा का सही उपयोग हम अपने आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में प्रभावी ढंग से कर सकें। आज स्थिति यह है कि सिर्फ वही माता पिता अपने बच्चों को माध्यमिक शिक्षा के बाद कॉलेज भेज पाते हैं जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं। गरीबी से ज्यादा बड़ा कारण गुणात्मकता का मुद्दा है। भारत की समस्या केवल उच्च शिक्षा का कम आंकड़ा हो नहीं है, बल्कि इसकी गुणात्मकता और एकरूपता का भी है।
देश के उच्च शिक्षा संस्थान जिस तरह डिग्रियां दे रहे हैं, उनमें कई विसंगतियां है। अधिकांश महाविद्यालयों में सुनियोजित शिक्षण व्यवस्था का अभाव है। अनेक कॉलेजों में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। असल में कमजोर और बेतरतीब स्कूल व्यवस्था ही उच्च शिक्षा व्यवस्थ की बीमारी का मुख्य कारण है। यद्यपि केन्द्र सरकार ने 2020 तक 30 प्रतिशत सकल नामांकन दर GER का लक्ष्य रखा है, और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए काफी संख्या में विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति माननीय प्रणव मुखर्जी ने एक विश्वविद्यालय और करीब 45 हजार कॉलेज खोलने को सिफारिश की है।
उच्च शिक्षा के गिरते स्तर को लेकर हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति और केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति माननीय प्रणव मुखर्जी ने एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में कहा कि - "हमें एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना होगा जहां युवाओं को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप शिक्षा मिले। उन्होंने छात्रों में आत्मचेतना, संवेदनशीलता मौलिक सोच विकसित करने और प्रभावशाली संवाद, समस्या समाधान व अंतवैयक्तिक संबंध की दक्षता बढ़ाने की जरूरत है।" हम सभी को अपनी जिम्मेदारी को निभाना होगा तभी उच्च शिक्षा को स्थिति बेहतर हो पाएगी।
पाठ्यक्रम की योजना, पाठ्यक्रम का निर्धारण, पाठ्यक्रम का क्रियान्वयन एवं पाठ्यक्रम का मूल्यांकन अलग-अलग कार्य करते हुए भी इस तरह से जुड़े है कि एक के भी गतिहीन होने से पाठ्यक्रम का निर्धारित उद्देश्य समग्रता में प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उच्च शिक्षा के निजी और सार्वजनिक दोनों हो क्षेत्रों में अमूल-चूल परिवर्तन जरूरी है तथा इसमें व्याप्त विसंगतियों को दूर कर दोनों क्षेत्रों को एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी बनकर संचालित किये जाने की जरूरत है।
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