विद्यालय तथा समाज में सम्बन्ध || Relationship between school and society

विद्यालय तथा समाज के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।

विद्यालय तथा समाज का सम्बन्ध (Relationship Between School and Society): आवश्यकता आविष्कार की जननी है। मनुष्य जब किसी आवश्कयता का अनुभव करता है उस समय उसकी पूर्ति के लिए किसी विचार या धारणा का जन्म होता है। समाजशास्त्रीय सम्बन्धव में सामाजिक संस्था वह सामाजिक संरचना तथा यंत्र है जिसके माध्यम से मानव समाज मानवीय आवश्यकताओं। की पूर्ति के लिए विविध क्रियाओं को संगठित, निर्देशित व क्रियान्वित करता है।

विद्यालय तथा समाज में सम्बन्ध || Relationship between school and society

इस क्रियान्वयन में विद्यालय की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जॉन डीवी का कथन है कि जिस प्रकार शरीर को कामय रखने के लिए भोजन व प्रजनन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार समाज के अस्तित्वे के लिए विद्यालय की आवश्यकता होती है। शिक्षा का प्रारम्भ उस समय होता होता है जब बालक प्रजाति की सामाजिक चेतना में भाग लेता है।


अतः उसके शिक्षा के महत्वपूर्ण साधन विद्यालय को एक सामाजिक संस्था माना जिसमें प्रजाति की सामाजिक चेतना को स्थान प्रदान किया जा सके। इस सामाजिक संस्था में बालक एक दूसरे के अधिकारों, विचारों और व्यक्तियों का आदर करना और अपने कर्तव्यों का समझदारी के साथ निर्वाह करना सीखते हैं।


समाज विद्यालय की स्थापना करके उससे इस बात की अपेक्षा करता है कि वे बालकों में उन गुणों को विकसित करें जिन्हें प्राप्त कर वे उन गुणों को विकसित करे जिन्हें प्राप्त कर वे समाज के विभिन्न क्रियाओं में कुशलतापूर्वक भाग ले सकें। समाज अपनी ओर से प्रत्येक व्यक्ति के विकास एवं उसके हितों की रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहता है और उससे अपेक्षा करता है कि वे सामाजिक जीवन को स्थायित्व प्रदान करें।


इससे यह स्पष्ट होता है कि विद्यालय कासबसे महत्वपूर्ण दायित्व यह है कि बालक तथा बालिकाओं को समाज के आदर्शों विचारधाराओं एवं परम्पराओं आदि से अवगत कराएं तथा उनमें समाज को समृद्धि बनाने के लिए उत्कण्ठा उत्पन्न करें।


विद्यालय एक सामाजिक संस्था है जिसे समाज अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए स्थापित करता है। इस सम्बन्ध में टी०पी० नन का विचार उल्लेखनीय है "एक राष्ट्र के विद्यालय उसके जीवन के वे अंग हैं, जिनका विशेष कार्य है उसकी आध्यात्मिक शक्ति को दृढ़ बनाना, उसको ऐतिहासिक निरन्तरता को बनाए रखना, उसके अतीत को सफलताओं को सुरक्षित और उसके भविष्य को गारण्टी करना।"


इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि समाज, शिक्षा की समुचित व्यवस्था किए बिना जीवित नहीं रह सकता और न ही शैक्षिक संरचनाएं समाज की मांगों को पूर्ण किए बिना स्थिर नहीं रह सकती है। जिस समाज में विद्यालय स्थित होता है उसका विद्यालय पर सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृक्तिक प्रभाव अवश्य पड़ता है। जो नागरिक विद्यलाय का व्ययभार उठाते हैं वे उसको शिक्षा को मात्रा तथा प्रकार पर नियन्त्रण रखते है।


विद्यालय अपना आदर्श प्रस्तुत करके उसके दूषित वातावरण को शुद्ध बनाने का प्रयास करता साथ ही वह ऐसे नागरिकों को तैयार करता है जो भावी समाज का निर्माण करते हैं। अत: इन दोनों में पारस्परिक निर्भरता पाई जाती है। विद्यालय तथा समाज के सम्बन्ध में विषय में सी.एम. कैम्पबेल ने निम्नलिखित विचार व्यक्त किया है-


1. विद्यालय कार्यक्रम तथा सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इसलिए विद्यालय का पाठ्यक्रम समाज को आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाना चाहिए।


2. विद्यालय को अपने कार्यक्रम को पूर्ण करने के लिए समाज के समस्त साधनों का उपयोग करना आवश्यक है। अतः समाज का उत्तरदायित्व है कि वह अपने समस्त साधनों का उपयोग करना आवश्यक है। अतः समाज का उत्तरदायित्व है कि वह अपने समस्त साधनों द्वारा विद्यालय के कार्य में सहायता करें।


3. विद्यालय सामाजिक विकास की योजनाओं में सक्रिय भाग लेकर तथा समाज में योग्य नेतृत्व प्रदान करके समाज के प्रति अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करता है।


इस प्रकार विद्यालय तथा समाज के सम्बन्धों की देखने से स्पष्ट है कि इनका एक दूसरे से सहयोग किए बिना कार्य नहीं चल सकता । विद्यालयों का कर्तव्य है कि वे बालकों को जीवन के विभिन्न पक्षों से अवगत कराए जिससे वे परिवर्तनशील वातावरण के विभिन्न तत्वों को समझ सकें और अपनी, संस्कृति की अच्छी बातों को ग्रहण कर सामाजिक उन्नत्ति में सहयोग दें।


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