राज्य पर शिक्षा का प्रभाव का वर्णन कीजिए ।
राज्य पर शिक्षा का प्रभाव प्रत्येक राज्य की राजनीतिक व्यवस्था तथा रहन-सहन, संस्कृक्ति तथा सभ्यता, व्यवसाय तथा उद्योग आवश्यकताओं तथा समस्यायें एक-दूसरे से अलग-अलग होती है। जिस राज्य में जैसी राजनीति व्यवस्था तथा रहन सहन, संस्कृक्ति तया सभ्यता, व्यवसाय तथा उद्योग एवं आवश्यकतायें तथा समस्यायें होती हैं, वहाँकी शिक्षा को किसी न किसी रूप में अवश्य प्रभावित करता है। निम्नलिखित पंक्तियों में हम राज्य द्वारा शिक्षा पर पड़ने वाले अनेक प्रभावों की चर्चा कर रहे हैं।
1. राज्य तथा शिक्षा के उद्देश्य
शिक्षा के उद्देश्यों पर राज्य को आवश्यकताओं तथा समस्याओं का गहरा प्रभाव पड़ता है। जो राज्य आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए होते हैं उन्हें आर्थिक आवश्यकतायें और समस्यायें सदैव बादल की भांति धेरे रहती है। अतः उन राज्यों में सर्वप्रथम शिक्षा के व्यवसायिक उद्देश्य पर बल दिया जाता है।
आवश्यकताओं तथा समस्याओं के अतिरिक्त राज्य की संस्कृति तथा सभ्यता भी शिक्षा के उद्देश्यों को प्रभावित करती है। यही कारण है कि भारतीय शिक्षा के उद्देश्यों पर सदैव आदर्शवाद की छाप लगी रहती है। यही नहीं, राजनीतिक व्यवस्था का भी शिक्षा के उद्देश्यों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए जनतांत्रिक तथा एकान्त्रिक राज्यों की शिक्षा का उद्देश्यों में आकाश और पाताल का अन्तर होता है।
2. राज्य और शिक्षा का पाठ्यक्रम
जिस प्रकार शिक्षा के उद्देश्यों पर राज्य की आवश्यकताओं तथा समस्याओं, संस्कृति तथा सभ्यता, राजनीतिक व्यवस्था तथा रहन-सहन एवं आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति का प्रभाव पड़ता है, उसी प्रकार शिक्षा का पाठ्यक्रम भी इन सबसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।
यह कारण है कि जिस राज्य की जैसये आवश्यकतायें तथा समस्यायें होती है, उस राज्य के पाठ्यक्रम में उन्हीं विषयों को सम्मिलित किया जाता है जिसकी राज्य की आवश्यकता होती है। राज्य की संस्कृति एवं सभ्यता भी पाठ्यक्र की आधारशिला होती है।
साथ ही राज्य की आर्थिक, सामाजिक स्थिति एवं उद्योगों और व्यवसायों का भी पाठ्यक्रम के उपर सीधा प्रभाव पड़ता है। इसलिए प्रत्येक राज्य शिक्षा के पाठ्यक्रम में उसी व्यवसाय को प्राथमिकता देता है। जो उसका मूल व्यवसाय होता है।
3. राज्य और शिक्षण पद्धति
प्रत्येक राज्य की शिक्षण पद्धति पर वहाँ की ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक परम्परा का गहरा प्रभाव पड़ता है। इसीलिए हमारे यहाँ की शिक्षण पद्धति पाश्चात्य देशों को शिक्षण-पद्धतियों से भिन्न है। ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक परम्परा के साथ-साथ राज्य की राजनीतिक व्यवस्था भी शिक्षण पद्धतियों को अवश्य प्रभावित करती है।
यही कारण है कि बाल-केन्द्रित शिक्षा-पद्धति केवल जनतांत्रिक व्यवस्था वाले राज्यों में ही पाई जाती है।, एकतंत्रवादी व्यवस्था वाले राज्यों में नहीं। शिक्षण पद्धति पर राज्य की आर्थिक तथा सामाजिक परिस्थितियों का भी गहरा प्रभाव पड़ता है। इसीलिए आर्थिक दृष्टि से सुसम्पन्न राज्य में मंहगी शिक्षण पद्धतियां पाई जाती है तथा पिछड़े हुए राज्यों में सस्ती अर्थात केवल "पुस्तक"।
4. राज्य और स्कूल :
स्कूल राज्य का प्रतिविम्ब होता है। इसीलिए प्रत्येक राज्य की वास्तविक स्थिति का पाता वहाँ के स्कूलों को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है जो राज्य धन-धान्य से परिपर्ण होते हैं, यहाँ के स्कूलों की आर्थिक दशा भी संतोषजनक होती है। परिणामस्वरूप यहाँ के स्कूलों को आधुनिक रूप देने कोई कठिनाई नहीं होती है। इसके विपरीत जिन राज्यों को आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। वहाँ के स्कूल निर्धन ही होते हैं। उनको आधुनिक रूप देना कोरी कल्पना है।
5. राज्य और शिक्षा का प्रशासन
वर्तमान युग में शिक्षा भी राज्य के प्रशासन का एक महत्वपूर्ण अंग है। अतः जिस राज्य का राजनीतिक प्रशासन जैसा होता है, वहाँ को शिक्षा का प्रशासन भी वैसा ही होता है यही कारण है कि एकतान्त्रिक राज्यों में शिक्षा को केन्द्रित कर दिया जाता है तथा जनतांत्रिक राज्यों में विकेन्द्रित दूसरे शब्दों में, एकतान्त्रिक राज्यों में शिक्षा का भार केवल एह ही व्यक्ति विशेष के हाथ में केन्द्रित हो जाता है तथा जनतांत्रिक राज्यों में शिक्षा के उत्तरदायित्व को राज्यों तथा स्थानीय संस्थाओं में विकेन्द्रित कर दिया जाता है।
6. राज्य और अनुशासन
जिस राज्य में जैसी राजनीतिक व्यवस्था होती है, उसका प्रभाव वहां के स्कूलों के अनुशासन पर भी वैसा ही पड़ता है। जनतांत्रिक शासन व्यवस्था में प्रत्येक बालक को उसको रूचियों, रूझानों तथा योग्यताओं एवं क्षमताओं के अनुसार विकसित होने के अवसर प्रदान किये जाते हैं।
परन्तु एकतान्त्रिक शासन-व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गला घोंटकर दमन की नीति पर बल दिया जाता है। इस प्रकार जनतांत्रिक राज्यों में बालक की स्वतंत्रता पर बल दिया जाता है। तथा एकतान्त्रिक राज्यों में दमन पर।
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