एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम की उपलब्धियों का मूल्यांकन | Evaluation of achievements of Integrated Rural Development Program In Hindi
एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम ( IRDP )
अखिल भारतीय ग्रामीण साख पुनरीक्षण समिति ' ( All India Rural Credit Review Committee ) ने 1969 में प्रकाशित अपने प्रतिवेदन में यह अनुभव किया कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सामुदायिक विकास कार्यक्रम व ' हरित क्रान्ति ' के अन्तर्गत ग्रामीण पुनर्निर्माण से सम्बन्धित जिन कार्यक्रमों को आरम्भ किया गया , उनका लाभ साधारणतया उन्हीं ग्रामीणों को प्राप्त हुआ जो पहले से ही अच्छी स्थिति में थे।
इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के आरम्भ से ग्रामीण निर्धनों के लिए अनेक विशेष कार्यक्रम ( Special Programmes ) आरम्भ किये गये । इनमें ' अन्त्योदय कार्यक्रम, ' लघु कृषक विकास एजेन्सी ' ( Small Farmer's Development Agency ) , ' सीमान्त कृषक एवं कृषि श्रमिक विकास एजेन्सी ' ( Marginal Farmers and Agricultural Labourers Development Agency ) , ' सूखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम ' ( Drought Prone Area Development ) तथा ' जनजातीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम ' ( Tribal Area Development Programme ) आदि प्रमुख हैं ।
इन सभी विशेष कार्यक्रमों के मूल्यांकन से यह अनुभव किया गया कि इन कार्यक्रमों से ग्रामीण जनता के जीवन स्तर में कोई महत्वपूर्ण सुधार नहीं हो सका । मूल्यांकन समितियों ने अपने सुझाव में यह तथ्य प्रस्तुत किया कि ग्रामीण निर्धनता का प्रमुख कारण बेरोजगारी व अल्प रोजगारी है । इस कारण समय - समय पर अनेक रोजगार उन्मुख कार्यक्रम आरम्भ किये गये परन्तु इन कार्यक्रमों की प्रमुख कमी यह थी कि इनमें से कोई भी करने कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम का स्वरूप धारण नहीं कर सका ।
इन सभी कमियों को के उद्देश्य से रोजगार उन्मुख कार्यक्रमों को एक साथ मिलाकर सन् 1978-79 से ग्रामीण विकास का एक व्यापक कार्यक्रम आरम्भ किया गया जिसे हम ' एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम ( Integrated Rural Development Programme ) कहते हैं ।
एकीकृत / समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के उद्देश्य ( Objectives of Integrated Rural Development Program )
वस्तुतः समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम का ' प्रमुख उद्देश्य ' ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी मिटाना है । अर्थात् गाँवों में निर्धनतम परिवारों की पहचान कर उन्हें ' स्व-रोजगार ' के अतिरिक्त अवसर प्रदान कर ' गरीबी रेखा ' से ऊपर उठाना है। इस प्रमुख उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस कार्यक्रम के अन्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं -
1. पूर्ण रोजगार एवं भौतिक साधनों के विकास के लिए एक निश्चित कार्यक्रम बनाना जो उत्पादन की वृद्धि में सहायक हो।
2. कृषि पर जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए प्रायः 7.5 करोड़ बेकार व अर्द्ध बेकार ग्रामीणों को काम देने के उद्देश्य से ' कृषि औद्योगिक केन्द्रों ' की स्थापना करना।
3. समाज की वर्तमान एवं भावी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उत्पादकता एवं कार्यक्षमता के ' न्यूनतम प्रमाप ' निर्धारित करना।
4. भूमि एवं जल साधनों के पर्याप्त विकास के लिए समुचित प्रयत्न एवं कार्य स्तर निर्धारित करना ।
5. ग्रामीण जनता की कार्य व चिन्तन सम्बन्धी परम्परात्मक विचारधाराओं को ' वैज्ञानिक प्रवृत्तियों में परिवर्तित करना ।
6. विकास की प्रक्रिया में निर्धन किसानों की सहभागिता ' को बढ़ाना।
7. निर्धन किसानों को आत्मनिर्भर बनाते हुए आर्थिक असमानता को कम से कम करना।
8. भूमि, जल एवं धूप के अच्छे प्रयोग पर आधारित कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों में उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाना।
9. देश के समस्त विकास खण्डों मे जनसंख्या के दुर्बल वर्गों के लिए संसाधनों तथा आय में वृद्धि के लिए एक ' एकीकृत कार्यनीति ' तैयार करना।
10. कुछ भू - सम्पत्ति वाले गरीब किसानों के लिए पानी, उन्नत बीज एवं उर्वरक की व्यवस्था करना ताकि भूमि की उत्पादकता में वृद्धि की जा सके।
11. पशु - पालन, मछली पालन, डेयरी उद्योग, रेशम उद्योग आदि के माध्यम से कृषि क्षेत्र में विविधता लाना ।
12. भूमिहीन एवं सीमान्त किसानों के उत्थान के लिए उन्हें आवश्यक आर्थिक सहायता प्रदान करना ताकि वे उत्पादक सम्पत्तियाँ प्राप्त कर सके।
13. भावी लाभ प्राप्त करने वाले परिवारों को विकास योग्य आर्थिक कार्यकलापों में लगाने की योजना बनाना।
समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम की कार्य-नीति
समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम की कार्यनीति की प्रमुख बातें अधोलिखित हैं -
1. प्रत्येक जिले को खण्डों में विभक्त करके विकास की एक पंचवर्षीय रूपरेखा तैयार करने की व्यवस्था की गयी है जो कि कृषि एवं उससे सम्बन्धित क्षेत्रों में व्यावहारिक सम्भावना पर आधारित है । इस योजना में सिंचाई योजना के अधिकतम विकास , पशु - पालन , डेयरी उद्योग , मछली पालन , वन उद्योग और स्थानीय ईंधन स्त्रोतों एवं उर्वरकों के विकास पर बल दिय गया है ।
2. गाँवों के समस्त किसानों को कृषि विस्तार की सेवाएँ उपलब्ध कराते हुए इस कार्यक्रम में यह निश्चित किया गया है कि छोटे एवं सीमान्त किसान परिवारों का व्यवस्थित आधार पर कृषि क्षेत्र में ' मार्ग प्रदर्शन करना ।
3. ग्रामीण परिवारों में से सबसे गरीब परिवारों को पहचान कर गरीबी रेखा से ऊपर उठाने , के लिए उनकी सहायता के लिए एक विशेष कार्यक्रम तैयार किया जाता है । इस कार्यक्रम में व्यक्ति के स्थान पर परिवार का ध्यान दिया जाता है । इससे महिलाओं के आर्थिक कार्यक्रम पर विशेष बल दिया जाता है ।
4. द्वितीयक एवं तृतीयक ' क्षेत्रों ' की उपलब्धि क्षमता का पूरा उपयोग करने के लिए एक रूपरेखा तैयार की गयी है जिससे निर्धारित किये गये दलित समूह में से प्रत्येक परिवार एवं प्रत्येक खण्ड के ' परीक्षण एवं विपणन ' के लिए आधार तैयार करने पर बल दिया गया है ।
5. समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम प्रत्येक जिले में एक ही ' अभिकरण ' के माध्यम से क्रियान्वित क्रिया जायेगा ।
6. जिला खण्ड के लिए ऋण योजना में क्षेत्र के लिए आवश्यक कुछ ऋण की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है साथ ही उससे दलितसमूह की ऋण सम्बन्धी आवश्यकता को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने पर बल दिया जाता है ।
7. इस कार्यक्रम को व्यवस्थित रूप स चलाने एवं नियोजन के लिए सहायता करने के लिए जिला खण्ड एवं ग्राम स्तर पर कार्यान्वियन अभिकरणों में गरीबी को प्रतिनिधित्व प्रदान करने हेतु उपयुक्त यन्त्र का विकास किया गया है ।
8. इस कार्यक्रम को प्रभावशाली ढंग से कार्यान्वयन मुख्यतः एक कक्ष एवं सब प्रकार से सुसज्जित क्षेत्र स्तर के संगठन पर निर्भर करता है । खण्ड स्तर के संगठन को विशेषज्ञता प्राप्त कर्मचारियों की उचित व्यवस्था करके सुदृढ़ व मजबूत बनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है ।
9. इस कार्यक्रम से सबसे गरीब परिवारों की उत्पादकता सम्पत्तियाँ , उन्नत प्रौद्योगिकी और दक्षता प्राप्त करने में सहायता करने पर विशेष ध्यान दिया जाता है । इन परिवारों को सामाजिक सेवाओं , जैसे — शिक्षा , स्वास्थ्य , आवास आदि के समर्थन की आवश्यकता है ।
10. इस कार्यक्रम के अन्तर्गत सबसे गरीब परिवारों को सामाजिक सेवाओं विशेषतया उपयुक्त पोषाहार अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा , प्रौढ़ शिक्षा , बाल एवं महिला कल्याण तथा परिवार कल्याण से सम्बद्ध करने पर बल दिया गया है । इस प्रकार समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम का लक्ष्य केवल गरीबी दूर करना ही नहीं है अपितु सबसे अधिक गरीब परिवारों को आवश्यक सामाजिक सेवाएं उपलब्ध कराना भी है ।
एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम का महत्व ( Importance of Integrated Rural Development Program )
समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के महत्व को उसकी निम्नलिखित उपयोगिताओं व लाभों के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है -
( 1 ) गरीबी कम करने में सहायक
यह कार्यक्रम ग्रामीण लोगों की आर्थिक सहायता कर तथा स्व - रोजगार के अवसर प्रदान कर उन्हें गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में सहायक होता है । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत सातवीं पंचवर्षीय योजना में 181.77 लाख गरीब परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान कर स्व - रोजगार के अवसर प्रदान किये गये । इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन से प्रत्येक लाभार्थी परिवारों के सदस्यों की आय में वृद्धि हुई ।
( 2 ) बेकारी कम करने में सहायक
इस कार्यक्रम में निर्धनतम परिवारों को रोजगार के अवसर प्रदान करने पर सर्वाधिक बल दिया जाता है ताकि बेकारी कम हो सके । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत छठवीं पंचवर्षीय योजना - काल में 1 करोड़ 65 लख परिवारों को स्व - रोजगार प्रदान किया गया । साथ ही रोजगार के और अधिक अवसर बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण कार्यक्रम , ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारन्टी कार्यक्रम तथा भयंकर गरीबी वाले क्षेत्र में क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम चलाकर आमीण रोजगार के अवसर बढ़ाने का भरसक प्रयास किया जा रहा है ।
( 3 ) विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ाने में सहायक
यह कार्यक्रम कृषि तथा अन्य क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुआ है । इसका कारण यह है कि जिन गरीब परिवारों को बैंक से ऋण तथा आर्थिक सहायता प्राप्त हुई है उन्होंने बीज , खाद , उर्वरक , उन्नत कृषि उपकरणों , पशुओं , आदि का प्रयोग कर उत्पादन को बढ़ाने में योग प्रदान किया है । विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ने के फलस्वरूप भी उत्पादन में वृद्धि हुई है ।
( 4 ) विकास कार्यक्रमों में ग्रामीणों की सहभागिता बढ़ाने में सहायक
समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत बैंक ऋण तथा आर्थिक सहायता प्राप्त लाभार्थी रोजगार का चुनाव य विकास कार्यक्रम की रूपरेखा का निर्धारण स्वयं करता है । इससे योजना का निर्माण ग्रामीण स्तर से ऊपर की ओर होता है । इसके परिणामस्वरूप विकास कार्यक्रम में ग्रामीणों की सहभागिता बढ़ जाती है । योजना की सफलता बहुत कुछ इसकी सहभागिता पर आश्रित रहती है ।
( 5 ) देश की प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाने सहायक
समन्वित विकास कार्यक्रम में ये लोग शामिल रहते हैं जो गरीबी रेखा के नीचे हैं । देश में गरीबी रेखा से नीचे स्तर वाले 26 प्रतिशत लोगों में से ग्रामीण लोगों की संख्या अधिक है । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत समस्त लाभ लक्ष्य - समूह को पहुँचाये जाते हैं । यदि इस कार्यक्रम के द्वारा गरीबी दूर की जा सकी तो लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा होगा, खुशहाली बढ़ेगी तथा समाज में कमजोर वर्ग के लोग प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होंगे। ऐसा करने पर स्वाभाविक रूप से देश प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा ।
( 6 ) अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण में सहायक
छोटे किसानों, सीमान्त किसानों तथा भूमिहीन श्रमिकों के रूप में प्रायः अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के परिवारों का इस कार्यक्रम के अन्तर्गत चयन किया जाता है । इसके फलस्वरूप उन्हें इस कार्यक्रम से अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है और इस प्रकार इससे इन लोगों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है ।
( 7 ) महाजनों के चंगुल से मुक्त कराने में सहायक
भारत के प्रामीण लोग उद्योग - धन्धों एवं स्व - रोजगार स्थापित करने के लिए महाजनों से उच्च ब्याज दर पर ऋण लेकर उनके चंगुल में फैसे जाते हैं । किन्तु अब इस कार्यक्रम के माध्यम से उन्हें सुविधा से ऋण प्राप्त हो जाता है और वे महाजनों के चंगुल में फँस जाने से बच जाते हैं ।
( 8 ) आर्थिक असमानता कम करने में सहायक
समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम में प्राप्त होने वाले उपर्युक्त लाभ अन्ततोगत्वा गाँवों में आर्थिक समानता कम करने में सहायक होते है। इससे सामाजिक न्याय में वृद्धि होती है जो लोकतन्त्रीय देश के लिए अति आवश्यक है।
एकीकृत ( नियोजित ) ग्रामीण विकास योजना की प्रमुख बाधाओं को स्पष्ट कीजिए
एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम एक ऐसा कार्यक्रम है जो कि सभी प्राकृतिक साधनों का श्रेष्ठ उपयोग करने हेतु अधिक विस्तृत एवं क्रमबद्ध , वैज्ञानिक तथा एकीकृत तरीकों को अपनाने पर जोर देता है । साथ ही यह प्रत्येक व्यक्ति को समाजोपयोगी तथा उत्पादक व्यवसायों में इस प्रकार लगाने योग्य बनाना चाहता है कि वह अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु पर्याप्त आय कमा सके । इस प्रकार, इस कार्यक्रम के अन्तर्गत परम्परागत सिद्धान्तों, व्यवहारों तथा प्राथमिकताओं को काफी कुछ बदला गया है।
एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम ग्राम विकास सम्बन्धी बिखरे हुए कार्यक्रमों को समन्वित करने का एक व्यापक कार्यक्रम है। एकीकृत ( समन्वित ) ग्रामीण विकास नामक अवधारणा का प्रयोग सर्वप्रथम विश्व बैंक के द्वारा एक अध्ययन के दौरान किया गया । इसका प्रयोग इस अर्थ में किया गया कि ग्रामीण जीवन का इस प्रकार से विकास किया जाय कि गामीणों का सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक जीवन समन्वित रूप से उन्नत हो सके ।
बी.के.आर.वी.राव अनुसार, " एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम एक ऐसा कार्यक्रम है जिसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के प्राकृतिक एवं मानवीय स्रोतों का अधिकतम उपयोग करके ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार लाने का पूरा प्रयत्न किया जाता है । वर्तमान भारत में एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम जिस रूप में लागू किया गया है, वह आगे वर्णित उद्देश्यों से स्पष्ट है ।
एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम की बाधाएँ
एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम की कुछ कमियाँ तथा बाधाएँ इस प्रकार हैं -
( 1 ) कार्यक्रम सम्बन्धी सही जानकारी न मिल पाना
इस कार्यक्रम से जिन लोगों को लाभ मिलना चाहिए , कई बार इसके सम्बन्ध में सही जानकारी नहीं मिल पाती । इसका मूल कारण सरकारी अधिकारियों तथा क्षेत्र में कार्य कर रहे सरकारी कर्मचारियों की विकास कार्यों के प्रति उदासीनता है । इससे निर्धनतम परिवारों को कार्यक्रम का वास्तव में लाभ नहीं मिल पाता है ।
( 2 ) सही लाभार्थियों का चुनाव नहीं हो पाना
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत सही लाभार्थियों अर्थात् निर्धनतम परिवारों का चयन बार नहीं हो पाता । इसका कारण यह है कि जब ग्राम सेवक गाँव के निर्धनतम परिवारों का चयन करता है तो उस समय पर पंच , सरपंच , प्रधान एवं अन्य प्रभावी व्यक्तियों का दबाव पड़ता है । परिणामस्वरूप वह सही परिवारों का चयन नहीं कर पाता है ।
( 3 ) स्व - रोजगार के लिए आवश्यक व्यावहारिक ज्ञान का अभाव
अनुभव एवं क्षेत्रीय अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि व्यवसाय सम्बन्धी व्यावहारिक जानकारी के अभाव में लाभार्थियों के दिये गये ऋण एवं आर्थिक सहायता का दुरुपयोग ही अधिक हुआ है । साथ ही इस कार्यक्रम के अन्तर्गत आने वाले लाभार्थी परिवारों का यह भी कहना है कि ऋण की राशि व सरकारी सहायता इतनी कम है कि कई परिवार उससे अपने को मुश्किल से स्वरोजगार में लगा सकता है । इस ऋण के लालच में कई कुम्हार , बढ़ई तथा कारीगर अपना स्वयं का परम्परागत व्यवसाय भी छोड़ बैठे हैं ।
( 4 ) सरकारी आंकड़ों की अविश्वसनीयता
इस कार्यक्रम की सफलता में सरकारी आँकड़े एक बहुत बड़ी बाधा है । कई बार अधिकरी किसी कार्यक्रम की सफलता को इस प्रकार बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं कि सरकार को यह ज्ञात नहीं हो पाता कि कार्यक्रम का ग्रामीणों को वास्तव में कितना लाभ मिला है ।
( 5 ) ऋणों तथा सरकारी सहायता का दुरुपयोग
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत आने वाले लाभार्थियों के लिए ऋण एवं सरकारी सहायता की मात्रा इतनी कम है कि इससे कोई स्व - रोजगार साधारणतः प्रारम्भ नहीं कर पाता है । ऐसी दशा में प्राप्त ऋण व सरकारी सहायता का दुरुपयोग होता है । कई लोग इसे खाने - पीने में खर्च कर देते हैं और उनकी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाता है ।
( 6 ) शिक्षा का अभाव
ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लोग अशिक्षित हैं । शिक्षा के अभाव में उनके विकास या उत्थान हेतु प्रारम्भ की गयी योजनाओं या कार्यक्रमों को वे सही रूप में नहीं समझ पाते । परिणामस्वरूप उनका किसी न किसी रूप में शोषण होता ही रहता है ।
( 7 ) सार्वजनिक जीवन में फैला हुआ भ्रष्टाचार
एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत आने वाले परिवारों में से कुछ का कहना यह है कि उन्हें बैंकों से ऋण एवं सरकारी सहायता प्राप्त करने के लिए काफी कुछ खर्च करना पड़ता है , बैंक वालों को तथा अधिकारियों व कर्मचारियों को रिश्वत देनी पड़ती है ।
उनका यह भी कहना है कि वे कृषि सम्बन्धी उपकरण तथा पशु आदि जब एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यकर्ताओं के माध्यम से ऋण - प्राप्ति हेतु आवश्यक शर्त के रूप में खरीदते हैं तो उन्हें 300 या 400 रुपये ज्यादा ही देने पड़ते हैं । परिणामस्वरूप कार्यक्रम का जितना लाभ निर्धन परिवारों को मिलना चाहिए उतना नहीं मिल पाता ।
( 8 ) कर्तव्य - परायणता एवं कार्य के प्रति समर्पण की भावना का अभाव
किसी भी कार्यक्रम की सफलता या असफलता प्रमुखतः इस बात पर निर्भर करती है कि उसे चलाने वाले लोगों में कितनी निष्ठा , लगन एवं ईमानदारी है । अनुभव यह बताता है कि विकास कार्यक्रमों से सम्बन्धित अधिकारियों एवं विभिन्न कार्यकर्ताओं में सही अर्थों में कर्तव्य - परायण का भाव नहीं है, उनमें मिशनरी जोश नहीं है, कार्य के प्रति समर्पण का भाव नहीं है । यद्यपि कुछ अपवाद अवश्य है ।
आज विकास योजनाओं की असफलता का यह एक प्रमुख कारण है । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत निर्धनतम परिवारों में से परिवार के एक सदस्य को ही विभिन्न सुविधाएँ प्रदान की जाती है । परिणामस्वरूप होता य है कि एक ही परिवार के सदस्य अपने को अलग-अलग परिवार का बताकर लाभार्थी परिवारों के रूप में अपना चयन करा लेते हैं और जिन्हें कार्यक्रम का वास्तव में लाभ मिलना चाहिए, उनका चयन कई बार नहीं हो पाता ।
एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम की सफलता हेतु सुझाव
इस कार्यक्रम की सफलता के लिए आवश्यक है कि इसमें एक प्रकार परिवर्तन किया जाय कि इसका लाभ गाँव के सबसे अधिक निर्धन परिवारों को ही मिले । इस सन्दर्भ में अग्रांकित सुझाव दिए जा सकते हैं -
1. ॠणों तथा आर्थिक सहायता को गरीबों में गरीबी की मात्रा को ध्यान में रखकर बाँटा जाए न कि प्रत्येक विकास खण्ड के लिए एक निर्धारित राशि के आधार पर ।
2. इस कार्यक्रम के अन्तर्गत पहले जिन परिवारों को पर्याप्त सहायता नहीं दी गयी , उन्हें अतिरिक्त सहायता प्रदान की जाए ।
3. कार्यक्रम के अन्तर्गत आने वाले नये परिवारों को इतना ॠण व आर्थिक सहायता उपलब्ध करायी जाय कि वे अपनी आय को बढ़ाकर गरीबी रेखा से ऊपर उठ सके ।
4. लाभार्थियों को इस प्रकार संगठित किया जाय कि उनके द्वारा किये जाने वाले उत्पादन को वे स्वयं लाभ उठा सकें ।
5. लाभार्थियों के चयन में विशेष सावधानी की आवश्यकता है। अनुभव यह बताया है कि जहाँ राजनीतिक जागरूकता जितनी अधिक है, वहाँ सही परिवारों का चयन करना उतना ही आसान है। अतः निर्धन एवं पिछड़े परिवारों में राजनीतिक जाग्रति लाना आवश्यक है।
6 . लाभार्थियों को ऋण देने तथा आर्थिक सहायता प्रदान करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को सरल बनाने की आवश्यकता है ताकि निर्धन लोगों को बैंकों व अधिकारियों के बार-बार चक्कर नहीं लगाने पड़ें।
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