सामुदायिक विकास योजना का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य एवं उपलब्धियाँ | Meaning, Definition, Objectives and Achievements of Community Development Plan in Hindi
सामुदायिक विकास एक समन्वित प्रणाली है जिसके द्वारा ग्रामीण जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयत्न किया जाता है । इस योजना का आधार जन-सहभाग तथा स्थानीय साधन हैं। एक समन्वित कार्यक्रम के रूप में इस योजना में यहाँ एक ओर शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, कुटीर उद्योगों के विकास, कृषि, संचार तथा समाज-सुधार पर बल दिया जाता है, वहीं यह ग्रामीणों के विचारों, दृष्टिकोण तथा रुचियों में भी इस तरह परिवर्तन लाने का प्रयत्न करती है जिससे ग्रामीण अपना विकास स्वयं करने के योग्य बन सकें ।
इस दृष्टिकोण से सामुदायिक विकास योजना को सामाजिक - आर्थिक पुनर्निर्माण तथा आत्म-निर्भरता में वृद्धि करने वाली एक ऐसी पद्धति कहा जा सकता है जिसमें सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विशेषताओं का समावेश है।
सामुदायिक विकास योजना की परिभाषा
सामुदायिक विकास योजना ( कार्यक्रम ) की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
योजना आयोग के अनुसार- " सामुदायिक विकास जनता का स्वयं अपने प्रयासों से ग्रामीण जीवन में सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन लाने का प्रयत्न है । "
प्रो ० टेलर के अनुसार– “ सामुदायिक योजना वह रीति है जिसके द्वारा लोग जो स्थानीय ग्रामों में रहते हैं , अपनी आर्थिक और सामाजिक दशाओं को उन्नत करने में सहायता देने में प्रवृत्त होते हैं और भौतिक उन्नति के विकास में प्रभावशाली कार्यकारी समूह बनते हैं । "
भारत ( 1989 ) संदर्भ अन्य में कहा गया है- " सामुदायिक विकास योजना ग्रामवासियों द्वारा आयोजित और कार्यान्वित किया हुआ एक अनुदान प्राप्त आत्मनिर्भर कार्यक्रम है । सरकार इसमें केवल औद्योगिक मार्गदर्शन तथा आर्थिक सहायता प्रदान करती है । "
" प्रो . ए . आर . देसाई के अनुसार- " सामुदायिक विकास योजना वह प्रणाली है , जिसके द्वारा पंचवर्षीय योजना ग्रामों के विकास और आर्थिक योजना का रूपान्तर करने की प्रक्रिया आरम्भ करना चाहती है । "
इस प्रकार स्पष्ट है कि सामुदायिक योजना का सम्बन्ध ग्रामीण सुधार एवं विकास से है। आज स्वतंत्र भारत में इन योजनाओं के द्वारा ग्रामीण भारत का सर्वांगीण विकास किया जा रहा है ।
सामुदायिक विकास योजना के उद्देश्य
भारत सरकार के सामुदायिक विकास मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक " A Guide to Community Development " के अनुसार सामुदायिक विकास योजनाओं के निम्नलिखित उद्देश्य बताये गये हैं -
1. गाँवों में उत्तरदायी और क्रियाशील नेतृत्व का विकास करना।
2 . ग्रामीण जनता के दृष्टिकोण में परिवर्तन करना।
3. ग्रामीण जनता के आर्थिक स्तर को ऊंचा करना।
4. ग्रामीण जनसंख्या को आत्मनिर्भर बनाना।
5. जनता के स्वास्थ्य के स्तर को ऊँचा उठाने का प्रयास करना।
6. ग्रामीण स्त्रियों एवं बालकों का विकास।
7. राष्ट्र के भावी नागरिकों का समुचित विकास करना।
योजना आयोग ने इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा है- “ सामुदायिक विकास और राष्ट्रीय प्रसार सेवा कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य जनता के मानसिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना है , जिसके द्वारा ग्रामीण जनता अपने जीवन के महत्व और उद्देश्य को समझने लगे, अपने जीवन के हेतु ऊँचे स्तर की माँग करने लगे तथा अपने जीवन स्तर को ऊँचा उठाने हेतु प्रेरणा, स्फूर्ति, लगन और उत्साह से परिश्रम करना सीखे। "
इस प्रकार सामुदायिक विकास योजनाओं एवं राष्ट्रीय प्रसार सेवा परियोजना का उद्देश्य भारतीय ग्रामीण जीवन को ऊँचा उठाना है । भारत सरकार के सामुदायिक विकास मंत्रालय द्वारा इस कार्यक्रम के आठ उद्देश्यों पर प्रकाश डाला गया है , जो इस प्रकार हैं -
1. ग्रामीण जनता के मानसिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना ।
2. गाँवों में उत्तरदायी एवं क्रियाशील नेतृत्व का विकास करना ।
3. सभी ग्रामवासियों को आत्मनिर्भर एवं गतिशील बनाना ।
4. समस्त ग्रामीण जनता के आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए एक ओर कृषि का आधुनिकीकरण तथा दूसरी ओर ग्रामीण उद्योगों का विकास करना।
5. उपर्युक्त सभी सुधारों को व्यवहारिक रूप प्रदान करने के लिए ग्रामीण स्त्रियों एवं परिवारों की दशा को उन्नत करना।
6. राष्ट्र के भावी नागरिकों के व्यक्तित्व का समन्वित विकास करना।
7. ग्रामीण शिक्षकों के हितों की रक्षा करना और,
8. सभी ग्रमीण लोगों के स्वास्थ्य का स्तर उन्नत करना और बीमारी से उनकी रक्षा करना ताकि वे अधिकाधिक क्रियाशील हो सकें और विकास कार्यक्रम के लाभों का उपयोग कर सकें ।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि सामुदायिक विकास कार्यक्रम का उद्देश्य सम्पूर्ण ग्रामीण भारत का समन्वित विकास करना है जिससे ग्रामीणों का सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक दृष्टि से उत्थान हो सके। इस कार्यक्रम में ग्रामीण जीवनस्तर को उन्नत करने के लिए ग्रामीण जनता के सक्रिय सहयोग पर विशेष जोर दिया गया है। इस योजना में कृषि को सबसे अधिक प्राथमिकता दी गयी है।
सामुदायिक विकास योजना की उपलब्धियाँ
सामुदायिक विकास योजना के विभिन्न कार्यक्रम एवं उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं -
1. कृषि सम्बन्धी कार्यक्रम
इसमें नयी तथा बंजर भूमि को कृषि के योग्य बनाना, सिंचाई के साधनों जैसे नलकूप , कुएँ तथा तालाब एवं छोटी नहरों आदि के निर्माण द्वारा पानी की व्यवस्था करना, उत्तम बीजों , रासायनिक खादों तथा आधुनिक कृषि के औजारों का प्रबन्ध करना सम्मिलित हैं । सीमान्त किसानों ( 2.5 एकड़ से कम भूमि के मालिक ) एवं लघु किसानों ( 2.5 से 5 एकड़ तक भूमि वाले ) के लिए भूमि विकास, सिंचाई, बागवानी, खाद, बीज, कृषि औजार, नयी किस्म की फसलों एवं कृषि प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी है।
ऐसे किसानों को व्यय का 1/4 में 1/3 हिस्सा सहायता ( Subsidy ) के रूप में दिया जाता । सरकारी समितियों के माध्यम से ऐसे किसानों को सहायता दी जाती है । इसके अलावा पशुओं की नस्ल सुधारना, उनकी चिकित्सा एवं कृत्रिम गर्भधान की व्यवस्था करना, भूमिरक्षण ( Soil erosion ) की रोकथाम एवं वृक्षारोपण करना और सब्जी तथा फलों की खेती के लिए ग्रामीणों को प्रोत्साहित करना आदि के कार्यक्रम भी शामिल हैं । विकास खण्डों द्वारा प्रतिवर्ष उन्नत नस्ल के पशुओं एवं मुर्गियों की आपूर्ति की जाती है और पशुओं को उन्नत तरीकों से गर्भाधान कराया जाता है ।
2. यातायात एवं संदेशवाहन के साधन
इस कार्यक्रम में नवीन सड़कों का निर्माण , पुराने सड़कों की मरम्मत , परिवहन तथा सेवाओं तथा पशु यातायात के साधनों का विकास और डाकखानों की स्थापना एवं डाक पहुँचाने की व्यवस्था आदि सम्मिलित हैं ।
3. शिक्षा प्रसार
इसमें अनिवार्य एवं मुफ्त प्राथमिक शिक्षा , माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक शिक्षा, प्रौढ़ अथवा सामाजिक शिक्षा और ग्रामवासियों के लिए पुस्तकालय की व्यवस्था आदि सम्मिलित हैं ।
4. स्वास्थ्य और सफाई
प्रत्येक विकास खण्ड में एक स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना तथा सम्पूर्ण योजना क्षेत्र के लिए एक चिकित्सालय और एक चलते-फिरते औषधालय ( Mobile Dispensary ) की व्यवस्था की गयी है । साथ ही इसमें स्वच्छ पीने के पानी का प्रबन्ध तथा मलेरिया, चेचक, हैजा एवं तपेदिक आदि संक्रमण रोगों की रोकथाम पर विशेष ध्यान दिया गया है । स्वास्थ्य केन्द्र के माध्यम से ग्रामीणों की चिकित्सा, शिशु एवं मातृत्व कल्याण, स्वास्थ्य शिक्षा, संक्रमण रोगों की रोकथाम आदि की सुविधाएँ एवं शिक्षा प्रदान की जाती हैं ।
5. मकानों की व्यवस्था
इसमें ग्रामवासियों के लिए अच्छे और सस्ते मकानों की व्यवस्था सम्मिलित है । ग्रामीणों को मकान बनवाने के लिए ऋण देने के साथ ही आधुनिक और नवीन डिजाइनों के मकान बनवाकर देने की व्यवस्था भी की गयी है।
6. कुटीर उद्योग तथा बेकारी-निरवारण
इस कार्यक्रम में कुटीर उद्योगधंधों एवं सहायक तथा हितकारी सेवाओं को प्रोत्साहित कर रोजगार के अवसरों को बढ़ाने पर बल दिया गया है। करघा चलाने, मुर्गी व मधुमक्खी पालने तथा मछली पकड़ने आदि को भी कार्यक्रम में सम्मिलित किया गया है ताकि बेकार रहनेवाले लोगों को काम मिल सके। सहकारी समितियों के माध्यम से भी विभिन्न उद्योग धंधों के लिए भी ऋण की व्यवस्था की गयी है ।
7. प्रशिक्षण
विभिन्न प्रकार के कारीगरी के प्रशिक्षण और लोगों को विभिन्न उद्योगों की जानकारी प्राप्त करने हेतु प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना की व्यवस्था की गयी है। इन केन्द्रों पर किसान पंचों तथा ग्राम-नेताओं के प्रशिक्षण और जनता को उन्नत कृषि प्रविधियों से परिचित करने का भी प्रबन्ध किया गया है।
8. सामाजिक कल्याण
इसके अन्तर्गत सामुदायिक मनोरंजन केन्द्रों की स्थापना जिनमें आमोफोन , रेडियो व चलचित्र की व्यवस्था, सहकारी भण्डारों की स्थापना तथा मेलों, खेल-तमाशों एवं हाटों का आयोजन आदि कार्यक्रम आते हैं।
उपर्युक्त आठ प्रकार के कार्यक्रमों के अलावा सामुदायिक विकास योजना में बाद में कुछ अन्य कार्यक्रमों को भी सम्मिलित किया गया जो निम्नवत् हैं-
( अ ) ग्रामीण जनशक्ति कार्यक्रम ( Rural Manpower Programme )
इसके अन्तर्गत कृषि मजदूरों और प्रमुखतः भूमिहीन मजदूरों को मौसमी बेरोजगारी के दिनों में रोजगार प्रदान करने की व्यवस्था की जाती है । सन् 1969 में इस कार्यक्रम को लागू करने या नहीं करने सम्बन्धी निर्णय की बात राज्य सरकार की स्वयं की इच्छा पर छोड़ दी गयी । यह कार्यक्रम कई राज्यों में चालू है ।
( ब ) ग्रामीण रोजगार के लिए नयी परियोजना ( Fresh Scheme for Rural Employment )
अप्रैल सन् 1961 में प्रारम्भ की गयी इस परियोजना के अन्तर्गत प्रत्येक जिले के लोगों के लिए ग्रामीण विकास के कार्यों के माध्यम से अतिरिक्त रोजगार की व्यवस्था करने का प्रयास किया जाता है । इस देशव्यापी याजना पर प्रतिवर्ष प्रायः 50 करोड़ रुपये व्यय का अनुमान है । और करीब 4.3 लाख लोगों के लिए अतिरिक्त रोजगार जुटाने की व्यवस्था है ।
गाँवों में गरीब परिवारों को ऊँचा उठाने एवं रोजगार देने के लिए 1971-1979 से समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम ( IRDP ) प्रारम्भ किया गया जिसे 1979 से ही 20 सूत्री कार्यक्रम के साथ जोड़ दिया गया है । इसका उद्देश्य गाँवों में रहने वाले 26 करोड़ गरीबों को गरीबी रेखा से ऊँचा उठाना है । छठीं योजना के तहत 150 लाख परिवारों को ( प्रत्येक खण्ड से पाँच वर्ष में 3,000 परिवारों को ) गरीबी रेखा से ऊँचा उठाया जाना था और उनके लिए रोजगार की व्यवस्था की जानी थी ।
( स ) कुआँ - निर्माण कार्यक्रम ( Well Construction Programme )
इसके अंतर्गत सूखाग्रस्त ग्रामीण क्षेत्रों में कुएँ खुदवाकर पानी पीने क व्यवस्था करने का दायित्व आता है ।
( द ) व्यावहारिक पोषण कार्यक्रम ( Applied Nutrition Programme )
यह कार्यक्रम ग्रामीण जनता के स्वास्थ्य स्तर को ऊँचा उठाने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर उन्हें सन्तुलित भोजन के सम्बन्ध में प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु प्रारम्भ किया गया है । गर्भवती माताओं , बच्चों को पोषाहार देने की दृष्टि से कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं । बच्चों को दोपहर का भोजन एवं बच्चों व गर्भवती माताओं को ( Iron and folic acid ) की गोलियाँ वितरित की जाती हैं ।
छठीं पंचवर्षीय योजना में 6 करोड़ माताओं एवं 6 करोड़ बच्चों को इस योजना द्वारा लाभ पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया था तथा 2.4 करोड़ माताओं एवं बच्चों को प्रतिवर्ष यह लाभ प्रदान किया गया है । उपर्युक्त कार्यक्रमों के अतिरिक्त जनजातीय क्षेत्रों एवं पर्वतीय क्षेत्रों के विकास , जन सम्पर्क एवं सूचना आदि के क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किये गये हैं ।
सामुदायिक विकास कार्यक्रम में जन-सहभागिता की भूमिका
सामुदायिक विकास कार्यक्रम के आरम्भ में ही इसके सिद्धान्त को स्पष्ट करते हुए बताया गया था कि यह आत्म निर्भरता एवं पारस्परिक सहयोग का कार्यक्रम है । कोई भी योजना जन-सहयोग के अभाव में सफल नहीं हो सकती इसीलिए सामुदायिक विकास कार्यक्रम को ' जनता का कार्यक्रम कहा गया । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रमुख उद्देश्य यह था कि सुषुप्त ग्रामीण जनता में जागरूकता उत्पन्न की जाये जिससे वे अपनी शक्ति को समझ सकें, स्वयं योजनाएँ बना सकें और स्वयं उन्हें क्रियान्वित करें ।
सरकार की भूमिका इन कार्यक्रमों में मात्र सहयोग की हो सकती है । इस प्रकार सामुदायिक विकास कार्यक्रम में जन - सहयोग का काफी महत्वपूर्ण स्थान है । इस सहयोग के अभाव में कार्यक्रम की सफलता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है । सामुदायिक विकास कार्यक्रम की स्थापना के पश्चात् विभिन्न सरकारी एवं गैर - सरकारी मूल्यांकन समितियों ने इस बात को लेकर योजना की आलोचक की है कि इस कार्यक्रम के विभिन्न स्तरों पर जन - सहयोग का अत्यधिक अभाव रहा है ।
बलवन्तराय मेहता कमेटी ने 1957 में अपने प्रतिवेदन में इस बात की जोरवार सिफारिश की थी कि सामुदायिक विकास योजना के विभिन्न स्तरों पर जन सहयोग प्राप्त करने के लिए ग्राम पंचायतों , पंचायत समितियों एवं जिला परिषदों की तीन - स्तरीय प्रजातन्त्रात्मक व्यवस्था होनी चाहिए । इस व्यवस्था में मेहता कमेटी ने सामुदायिक विकास को एक लक्ष्य तथा पंचायती राज को इस लक्ष्य प्राप्ति के साधन के रूप में स्वीकार किया ।
सामुदायिक विकास कार्यक्रम में जन - सहयोग को बढ़ाने हेतु बलवन्तराय मेहता कमेटी की सिफारिशों के आधार पर ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों एवं जिला परिषदों की तीन स्तरीय प्रजातंत्रात्मक व्यवस्था आरम्भ की गयी । जब तक कार्यक्रम में स्वयं जनता की पूर्ण रूचि नहीं होगी , तब तक कार्यक्रम की सफलता सन्देहजनक ही है ।
डॉ . सच्चिदानन्द ने विकास कार्यक्रमों में जन-सहयोग के निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित किया है-
1. ग्राम - संस्थाओं, गैर-सरकारी संस्थाओं और प्रमुखतः पंचायतों के माध्यम से भी जन सहयोग का सही उपयोग किया जाय ।
2. स्थानीय नेतृत्व का विकास किया जाय ताकि कार्यक्रम की गति बनी रहे ।
3. सामुदायिक कार्यों के लिए स्थानीय साधनों को बढ़ाया जाय और सरकारी अनुदानों का पूर्ण उपयोग किया जाय ।
4. सामुदायिक विकास कार्यक्रम के लिए श्रम - सामग्री एवं धन के रूप में जनता का योगदान प्राप्त करने पर जोर दिया जाय ।
5. कार्यक्रम में अनुसूचित जातियों , जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों का सहयोग प्राप्त किया जाय ।
6. कृषि एवं उद्योग में उत्पादन की नयी पद्धतियों को जनता द्वारा अपनाये जाने पर जोर दिया जाय ।
7. जनता की मनोवृत्ति में परिवर्तन लाया जाय तथा लोगों में भविष्य के लिए नयी भाषाओं का संचार किया जाय । उपर्युक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए जन - सहयोग को उचित दिशा देने के उद्देश्य से समय - समय पर अनेक सामुदायिक विकास कांफ्रेन्स का आयोजन किया गया, जिनमें काफी विचार मंथन हुआ।
इस सम्बन्ध में द्वितीय विकास आयुक्त सम्मेलन में प्रस्तुत सिफारिशों का सारांश निम्नलिखित प्रकार है -
1. नियोजन के कार्य में जनता का सहयोग प्राप्त करने हेतु राज्य सरकारों को समुचित व्यवस्था करने का अनुरोध किया गया । इस उद्देश्य से प्रारम्भ में प्रत्येक स्तर पर परामर्शदात्री समितियों का निर्माण किया गया । तत्पश्चात् ग्राम पंचायतों , पंचायत समितियों एवं जिला परिषदों का गठन किया गया । आशा की गयी कि योजना के साक्ष्यों एवं विकास की गति का जनता द्वारा निर्धारण होगा और इस प्रकार विकास कार्यक्रम सुचारू रूप से चलेगा।
2. स्कूलों एवं कालेजों के विद्यार्थियों में कार्यक्रम के प्रति रुचि बढ़ाने हेतु छुड्डियों में विकास शिविर चलाये जाने चाहिए।
3. ग्रामों में शिक्षकगण नेतृत्व का केन्द्रबिन्दु बन सकते हैं । ग्रामीण स्तर पर कार्यक्रम को चलाये जाने में ग्राम सेवकों की मदद ले सकते हैं ।
4. कार्यक्रम में ग्रामवासियों का सहयोग प्राप्त करने के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं का सहयोग लेना चाहिए।
5. कार्यक्रम में स्त्रियों का सहयोग प्राप्त करने हेतु यह आवश्यक समझा गया कि ऐसे कार्यक्रम चलाये जायें जिससे उनकी रुचि जाग्रत हो सके और साथ ही समाज में उनका स्थान ऊँचा उठ सके ।
6. वृक्षारोपण, जल प्रदाय, खेतों में पानी का विकास एवं कृषि विकास कार्यों हेतु किसानों के शिविर संगठित किये जाने चाहिए । ये शिविर उस समय लगाया जाये, जब कृषि कार्य बन्द हो ।
7. गैर - सरकारी संस्थाओं , शैक्षणिक व अन्य संस्थाओं ( डॉक्टर, वकील, शिक्षक, समाज सेवक, कलाकार ) को प्रचार एवं प्रोत्साहन द्वारा इस कार्यक्रम की ओर आकर्षित किया जाना चाहिए ।
जनसहभागिता की विफलता के कारण
( क ) सामुदायिक विकास कार्यक्रम में जनसहभागिता न प्राप्त होने का एक प्रमुख कारण यह है कि इन कार्यक्रमों में भी सरकारी अधिकारियों तथा कर्मचारियों की तानाशाही प्रवृत्ति चालू है। बड़े बड़े अधिकारीगण अपने से छोटे कर्मचारियों की उपेक्षा करते हैं तथा उनकी कोई भी चिन्ता नहीं करते हैं ।
डॉ. श्यामाचरण दुबे ने भी लिखा है कि यह वास्तविकता नहीं पहचानी गई है कि टीम वर्क का विचार, जो कि विकास की विचारधारा द्वारा स्वीकार किया गया था, आफिसर मातहत सम्बन्धों में एक बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है । यह सम्बन्ध वृहद रूप से भारतीय नौकरशाही के ढाँचे को चित्रित करते हैं । अधिकारी वर्ग में यह प्रबल दृष्टिकोण मिलता है कि यह नया प्रयत्न अत्यधिक काल्पनिक , सैद्धान्तिक एवं अव्यावहारिक है तथा दीर्घकाल में केवल मात्र पारस्परिक रीतियाँ ही कार्य करती हैं।
( ख ) जनसहभागिता की अनुपस्थिति का एक अन्य कारण यह भी है कि सरकारी कर्मचारियों की यह मनमानी और तानाशाही प्रवृत्ति केवलमात्र अपने अधीनस्थों तक ही नहीं , अपितु प्रामसेवकों के प्रति और भी बुरा होता है । डॉ . विल्सन ने अपनी community development programmein . में लिखा है कि ' यदा - कदा ग्राम सेवक को घरेलू कामकाज करने वाले लड़के के रूप में देखने की प्रवृत्ति होती है जो कि निरर्थक दौड़ता है तथा ग्राम्य स्तर पर सब कुछ करता है ।
विभिन्न अवसरों पर मैंने भी स्वयं यह देखा है कि प्रावैधिक विशेषज्ञ अथवा प्रसार अधिकारी ग्रामसेवक के साथ कुछ ऐसा व्यवहार करते हैं , जैसे कि वह उनकी तुलनाकृत अत्यधिक निम्न संगठनात्मक सामाजिक स्तर वाला व्यक्ति हो। वे उनको नीची निगाह से देखते हैं तथा उनको आदेश देते हैं , सम्भवतया इसलिये कि वे ग्राम सेवक हैं तथा कम वेतन पाते हैं और अपेक्षाकृत कम शैक्षणिक अनुभव रखते हैं।
( ग ) जनसहभागिता प्राप्त न होने का तीसरा कारण यह रहा है कि सामुदायिक विकास कार्यक्रम के अधिकांश अधिकारीगण सभी उपलब्धियाँ अतिशीघ्र ही प्राप्त करने के समर्थक हैं। इसके परिणामस्वरूप उनमें झूठा प्रचार, झूठे आंकड़ेबाजी एवं झूठी दिखावटी प्रवृति पाई जाती है। विभिन्न क्षेत्रों में इसकी जानकारी प्राप्त किये बिना ही कि समुदाय इन कार्यों हेतु तैयार है अथवा नहीं, कार्यक्रम प्रारम्भ कर दिये गये।
सामान्यतः सामुदायिक विकास कार्यक्रमों का उद्घाटन ही उनका अन्तिम संस्कार होता है । इस परिप्रेक्ष्य में डॉ. देसाई ने लिखा है कि ' जनसाधारण का नेतृत्व अभी तक न्यून है, सरकारी मशीनरी सामूहिक कार्य तथा ऐच्छिक उत्पादक सहभागिता की तुलनाकृत . प्रचार और प्रदर्शनीय परिणामों पर ही अधिक विश्वास करती हैं।
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